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मुंबई: पिछले एक दशक से 2016 तक, भारत में सिजेरिअन प्रसव का प्रतिशत दोगुना हुआ है। यह जानकारी 13 अक्टूबर, 2018 को ‘द लांसेट’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। 9 फीसदी से बढ़कर यह 18.5 फीसदी पहुंच गया है। यह वृद्धि सी-सेक्शन डिलीवरी में वैश्विक वृद्धि ( 21 फीसदी ) के साथ मेल खाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पैटर्न चिंताजनक है। एक सामान्य प्राकृतिक प्रसव के विपरीत, सी-सेक्शन डिलीवरी में पेट और गर्भाशय में चीरा लगाने की आवश्यकता होती है। कुछ जटिल मामलों में मां और बच्चे की जान बचाने के लिए इसकी अनुशंसा की जाती है। इनमें वे अपात चिकित्सीय स्थिति शामिल हैं,जो गर्भावस्था या प्रसव को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे-भ्रूण संकट, लंबे समय तक लेबर, अत्यधिक रक्तस्राव और मधुमेह या एचआईवी के इतिहास के साथ उच्च जोखिम वाली गर्भधारण आदि। लांसेट रिपोर्ट निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन के प्रसार को इस प्रवृति के मुख्य संचालक के रुप में देखती है। ऐसा करने में कम जोखिम में होने पर भी अनावश्यक सी-सेक्शन में वृद्धि का सवाल उठाता है। सालाना दुनिया भर में 64 लाख अनावश्यक सिजेरिअन प्रसव में से 50 फीसदी ब्राजिल और चीन में हुए हैं। बचने योग्य सर्जिकल प्रक्रियाएं मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए दीर्घकालिक बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं और आगे यह मृत्यु या शारीरिक अक्षमता में समाप्त हो सकता है, जैसा कि डब्ल्यूएचओ ने इस 2015 के बयान में चेतावनी दी थी। एक अक्सर अनदेखा तथ्य सी-सेक्शन डिलीवरी के बाद सामान्य होने की अपेक्षाकृत धीमी प्रक्रिया और इसके कारण होने वाला आघात भी है। यह रोगी और उसके परिवार पर व्यय का बोझ भी बढ़ाता है। अप्रैल 2018 में सी-सेक्शन के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली 23 वर्षीय अपूर्व पवांर कहती हैं, “बिल एक लाख रुपये से ज्यादा चला गया और अब ये ऐसा है कि हमें दूसरा बच्चा चाहिए या नहीं, यह फैसला लेने से पहले सोचना पड़ेगा।”

2014 की एक लांसेट रिपोर्ट के अनुसार, सिजेरिअन प्रसव के माध्यम से पहले बच्चे के जन्म, महिलाओं में अगली गर्भावस्था में जटिलताओं की संभावना को बढ़ाता है।

चंडीगढ़ में, 98 फीसदी जन्म सी-सेक्शन के माध्यम से

क्या सी-सेक्शन डिलीवरी का प्रतिशत स्वीकार्य है? 1985 में, डब्ल्यूएचओ ने वकालत की थी कि देश में 10 फीसदी से 15 फीसदी डिलीवरी सी-सेक्शन प्रक्रियाओं के माध्यम से हो सकती है। लेकिन 2015 के एक बयान में यह स्पष्ट किया गया कि महिला की आवश्यकता अनुसार ही यह होनी चाहिए। जैसा कि देश की सी-सेक्शन दर 10 फीसदी की ओर बढ़ी है, बच्चे और मातृ मृत्यु दर में इसी तरह की गिरावट आई है। लेकिन दर 10 फीसदी से अधिक होने के बाद बच्चे और मातृ मृत्यु दर पर इसका क्या असर होगा, इसका कोई साक्ष्य नहीं था। यदि सी-सेक्शन के माध्यम से 10 फीसदी से 15 फीसदी डिलीवरी होती है, तो इसका मतलब प्रक्रिया का अधिक उपयोग और दुरुपयोग होना है, जैसा कि लांसेट रिपोर्ट में कहा गया है।

भारत में, सी-सेक्शन दरें व्यापक रूप से भिन्न हैं - यह नागालैंड और बिहार में 6 फीसदी और तेलंगाना में 58 फीसदी है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों से पता चलता है। पुणे स्थित स्त्री रोग विशेषज्ञ और ‘सपोर्ट फॉर एडवोकेसी एंड ट्रेनिंग फॉर हेल्थ इनिशिएटिव’ ( साथी ) की सीनियर कोर्डिनेटर, अरुण गडरे कहते हैं, "सी-सेक्शन की दर 50 फीसदी के पार पहुंच रही है, यह स्वीकार्य नहीं है।"

उच्च सी-सेक्शन दरों के साथ राज्य, 2017

देश में सबसे ज्यादा सी-सेक्शन दर ( 98 फीसदी ) की सूचना, चंडीगढ़ से मिली है और यह उससे काफी ज्यादा है, जिसे गडरे स्वीकार्य मानते हैं। सामान्य डिलीवरी के माध्यम से जन्म लिए प्रति बच्चे पर सी-सेक्शन के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 60 है। दिल्ली में, प्रतिशत 67.83 फीसदी था।

लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक, 6.1 फीसदी पर, दक्षिण एशिया ने पिछले पंद्रह वर्षों में सिजेरिअन प्रसव दरों में सबसे तेजी से वृद्धि देखी है। हालांकि, उपमहाद्वीप में, भारत की बांग्लादेश (30.7 फीसदी) और श्रीलंका (30.5 फीसदी) की तुलना में कम दरें हैं, लेकिन नेपाल (9.6 फीसदी) और पाकिस्तान (15.9 फीसदी) से अधिक दरें हैं।

निजी सुविधाएं अधिक सी-सेक्शन आयोजित करती हैं: शहरों में 45 फीसदी, गांवों में 38 फीसदी

स्वास्थ्य कार्यकर्ता मानते हैं कि निजी क्षेत्र सी-सेक्शन में उछाल को बढ़ावा दे रहा है। गडरे कहते हैं, "सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल का कमजोर चेहरा बेहतर सेवाओं की आकांक्षा रखने वाले परिवारों को निजी क्षेत्र चुनने में मजबूर करती है। यह भारतीय स्वास्थ्य देखभाल का मूल रोगविज्ञान है। पिछले 14 वर्षों में, निजी क्षेत्र को अनियमित सी-सेक्शन को रोकने या उत्तरदायी ठहराने के लिए कुछ नहीं किया गया है। निजी क्षेत्र सी-सेक्शन के माध्यम से स्पष्ट रूप से लाभ कमा रहे है। "

शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों में सी-सेक्शन डिलीवरी

भारत में, शहरी, निजी सुविधाओं में 45 फीसदी सीजेरियन आयोजित किए गए थे और ग्रामीण निजी सुविधाओं के लिए आंकड़े 38 फीसदी थे और केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) के तहत सूचीबद्ध निजी अस्पतालों में 56 फीसदी डिलीवरी सीज़ेरियन प्रक्रियाएं थीं, जैसा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा द्वारा 2017 के जवाब से पता चलता है। सीजीएचएस के तहत सूचीबद्ध निजी अस्पतालों के साथ 31 शहरों में से 20 (64.5 फीसदी) से एकत्रित डेटा सिजेरिअन डिलीवरी की ओर असमान रूप से झुके हुए थे। शहरी भारत में रहने वाली नई मां सी-सेक्शन डिलीवरी को ‘सामान्य’ मानती हैं। 29 वर्षीय रेशमा कुकयान कहती, “ मेरे ऑफिस में ज्यादातर महिलाओं ने सी-सेक्शन डिलीवरी कराई है। बच्चे के विकास में कमी देखते हुए खुद मैंने भी सी-सेक्शन का ही विकल्प चुना था। मेरे साथी मुझसे कहते थे कि मैं ठीक रहूंगी और चूंकि उनमें से 90 फीसदी ने सी-सेक्शन ही कराया था, इसलिए मैं इसके लिए तैयार थी।"

शहरों में पुणे में सबसे कम सी-सेक्शन की दर, 38 फीसदी दर्ज की है, जो भी स्वीकार्य सीमा से ऊपर है। वर्ष 2005-2006 और 2015-2016 के बीच निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलीवरी 28 फीसदी से 41 फीसदी तक बढ़ी है। दूसरी तरफ, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में गिरावट दर्ज की गई है, जैसा कि एनएफएचएस -4 में डेटा से पता चलता है।

निजी और सार्वजनिक सुविधाओं में सी-सेक्शन डिलीवरी

सबसे अमीर क्विंटाइल में महिलाएं अधिक सी-सेक्शन का विकल्प चुनती हैं

आज सी-सेक्शन आम क्यों हैं? डॉक्टरों कहते हैं कि आहार की आदतों में बदलाव, देर से गर्भधारण और लेबर दर्द का डर कुछ कारण हैं।

सूर्या ग्रूप ऑफ हॉस्पिटल के निदेशक और सलाहकार प्रसूतिविद सुचित्रा पंडित कहती हैं, "मेरे पास अवास्तविक उम्मीदों के साथ माताएं आती हैं जो एक विशिष्ट समय पर बच्चों को जन्म देना का आग्रह करती हैं। एक मरीज जो लेबर में थी, उसने कहा कि वह केवल 5 बजे अपने बच्चे को जन्म देना चाहती हैं। जब उन्हें प्रसव में देरी के खतरों के बारे में चेतावनी दी गई तो उसके परिवार ने कहा कि वे लिखित में विनिर्देश डालने को तैयार हैं।"

पिछले 20 वर्षों से 2014 तक, सबसे अमीर क्विंटाइल (आय से आबादी का शीर्ष 20 फीसदी) की महिलाओं में सी-सेक्शन चुनने का विकल्प 10 फीसदी से 30 फीसदी तक बढ़ा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

डॉक्टरों का कहना है, सी-सेक्शन डिलीवरी की बढ़ी हुई दर चिकित्सा प्रगति को भी दर्शाती है, जो आपातकालीन स्थितियों की पहचान करने की अनुमति देता है। कलर डोप्लर अल्ट्रासाउंड और नवजात गर्भनिरोधक देखभाल इकाइयों (एनआईसीयू) ने डॉक्टरों के लिए भ्रूण के विकास से जुड़े जोखिमों का आकलन करना आसान बना दिया है। पंडित कहती हैं, " तीसरे स्टेज में उच्च क्षमता वाले एनआईसीयू की उपस्थिति समय से पहले जन्म लेने वाले कई बच्चों के जीवन को बचा सकती है। अगर हम जटिलताओं के समय में जीवन बचाना चाहते हैं, तो हमारे पास सी-सेक्शन के अलावा विकल्प नहीं है।” डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 35 लाख है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।

संख्याओं पर नजर

डब्ल्यूएचओ ने सीज़ेरियन की आवश्यकता निर्धारित करने के लिए रोबसन वर्गीकरण की सिफारिश की- 10 प्रसूति मानकों की एक चेकलिस्ट। इनमें गर्भावस्था और गर्भावस्था के इतिहास जैसे कारक शामिल हैं।

2017 में, 1 00,000 से अधिक लोगों द्वारा हस्ताक्षरित एक ऑनलाइन याचिका ने निरंतर बढ़ती दरों की ओर ध्यान दिलाया था। निजी अस्पतालों द्वारा सीजेरियन संख्याओं के खुलासे के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने जोर दिया था, जैसा कि द हिंदू ने 4 जुलाई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। दिल्ली स्थित स्त्री रोग विशेषज्ञ सीमा जैन कहती हैं, "आप डिलिवरी और सर्जरी की संख्या की गिनती रखते नहीं हैं। लेकिन जब आप संख्या देखते हैं, तो यह एक नियंत्रण की तरह काम करता है। "

( क्षेत्री लेडी श्री राम कॉलेज ऑफ वूमन से स्नातक हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 दिसम्बर 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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