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भारत में इस समय यह बहस का विषय है कि चीन और पाकिस्तान की तुलना में कम न्यूक्लीय अस्त्र - भन्डार होने पर चिंतित होने की जरुरत है.

भारत के लिए चिन्ता कि कोई जरूरत नहीं है |

भारत ने न्यूक्लीय शक्ति संपन त्रिशक्ति– बेड़े का विकास कर लिया है | जिसमें पहला न्यूक्लीय अस्त्र युक्त युद्धक–विमान, दूसरा धरती से मार करने वाली अंतर्राष्ट्रीय बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम) और तीसरा– न्यूक्लीय अस्त्रों से युक्त सबमैरीन– लांच्ड बैलिस्टिक मिसाइल (एस.एल.बी.एम) और इस तरह भारत के पास शक्तिशाली न्यूक्लीय हथियार प्रतिरोधी क्षमता है– पड़ोसी देशों के न्यूक्लीय शस्त्र युक्त होने की तुलना में |

“भारत के न्यूक्लीय त्रिशक्ति युधास्त्र उसके न्यूक्लीय शक्ति डेटरेंस पोटेंशियल यानि कि न्यूक्लीय प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं”– ऐसा लिखते हैं सेवानिवृत्त ग्रुप कैप्टन अजय लेले और प्रवीण भरद्वाज, रक्षा विश्लेषक– इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिफेन्स स्टडीज़ एंड एनालिसिस ( आई.डी.एस.ऐ.) जो दिल्ली स्थित रक्षा विषेशज्ञों का थिंक टैंक है |

न्यूक्लीय सैन्य –विज्ञान के अनुसार एक मेगा टन क्षमता वाला न्यूक्लीय वारहेड लगभग 210 किलोमीटर– जो कि दक्षिण मुंबई से तीन गुना क्षेत्रफल का हो सकता है, और उसके संपूर्ण जीवन को नष्ट कर सकता है | उपरोक्त तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए, एक अमेरिकी न्यूक्लीय वैज्ञानिकों के संघटन द्वारा प्रकाशित बुलेटिन, जोकि वैश्विक स्तर पर न्यूक्लीय अस्त्र भण्डार के ऊपर नज़र रखते हुए सम्बंधित तथ्यों को प्रकाशित करती है– में तथ्यात्मक आकड़ों के परिप्रेक्ष्य में बात करते हुए कहा, यह बात पूर्णतया महत्वहीन है कि भारत की तुलना में पाकिस्तान के पास 10 अधिक हथियार हैं या चीन के पास 140 से अधिक |

नयूयार्क टाइम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि पाकिस्तान की पहचान विश्व में सवार्धिक तेज़ी से न्यूक्लीय अस्त्रों के भण्डार को विकसित करने वाले राष्ट्र के रूप में हो चुकी है– जिसके परिणाम –स्वरुप दक्षिण– एशिया एक न्यूक्लीय खतरों से युक्त निरंतर बढ़ते हुए समस्या ग्रस्त क्षेत्र के रूप में उभरा है |

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Source: Nuclear Notebook, Bulletin of Atomic Scientists; As of 2013

अपने दुश्मन – देशों से ज्यादा हथियार के भन्डार– रखने का यह कतई मतलब नहीं कि आप उनकी तुलना में ज्यादा सुरक्षित हो गए हैं |

ऐसा इसलिए है– क्योंकि न्यूक्लीय और एटॉमिक अस्त्र – जिनको साधारण भाषा में वेपन्स ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन, कहा जाता है– वास्तविकता में केवल विरोधी देशों को भयभीत कर कूटनीतिज्ञ सामरिक अप्रतिरोध की स्थिति को बनाये रखने के लिए निर्मित और भण्डारित किया जाता है | जिसके परिणाम स्वरुप परस्पर न्यूक्लीय अस्त्रों से सज्जित प्रतिद्वंदी देश एक सामरिक गतिरोध कि स्थित में रहते हैं |

मनुष्य जाति के अब तक ज्ञात इतिहास में न्यूक्लीय बमों का सबसे पहले इस्तेमाल दो बार (6 और 9 अगस्त, 1945) दूसरे विश्वयुद्ध में 69 साल पहले किया गया | उन न्यूक्लीय बमों को जापान के दो शहरों– हिरोशिमा और नागासाकी के ऊपर गिराया गया था | उसके बाद आज तक न्यूक्लीय बमों का विनाशकारी इस्तेमाल नहीं किया गया |

भविष्य में– पारस्परिक सुनिश्चित विनाश “mutually assured destruction”, जिसको सामरिक बोल-चाल की भाषा में –MAD- कहा जाता है, का संभावित प्रयोग वस्तुतः हमारे प्रायद्वीप में न्यूक्लीय अस्त्रों के इस्तेमाल में गतिरोध की स्थिति उत्पन्न किये रहता है |

भारत का न्यूक्लीय त्रिशक्तियुक्त बेड़ा उतरोत्तर शक्तिशाली होने की ओर निरंतर गतिशील |

भारत की न्यूक्लीय मारक क्षमता काफी शक्तिशाली है – क्यूंकी उसके पास विविध सामरिक रूप से संघारक लड़ाकू विमान हैं– जैसे न्यूक्लीय शक्ति युक्त एंग्लो- फ्रेंच जैगुआर, फ्रेंच डासौल्ट मिराज 2000 और रशियन सुखोई-30 एम के आई लड़ाकू विमान – जिसको वर्तमान में अति उन्नत किया जा रहा है , जिससे कि वह न्यूक्लीय शक्ति युक्त सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल्स को मारक स्थान पर ले जाने के लिए काबिल हो सके |

भारत की धरती से मार करने वाली मिसाइलों में – अग्नि–v है – जिसकी मारक क्षमता 5000 किलो मीटर है – जिसका मतलब यह पूरे चीन तक प्रहार कर सकती है | उक्त अग्नि मिसाइल एक मोबाइल वाहन से या रेलवे वैगन से फेंकी जा सकती है – और इस तरह यह गुप्त रह कर अपना काम कर सकती है,और जिसको इच्छा अनुसार कहीं भी लेजाकर प्रयोग करसकती है , ऐसा रिपोर्ट मे कहा गया है |

त्रिशक्ति – बेड़े का तीसरा प्रोग्राम विकास की प्रक्रिया में है | न्यूक्लीय शक्ति युक्त – अरिहंत सबमैरिन, जो की 700 किलो मीटर तक समुन्द्र सतह पर आकर मार कर सकती है, k-15 सागरिका बैलिस्टिक मिसाइल से और k-4 मिसाइल का प्रयोग कर - 3000 किलोमीटर तक टारगेट सीमा है |

चीन के पास न्यूक्लीय त्रिशक्ति बेड़ा है – लेकिन पाकिस्तान के पास समुद्र से मार सक्ने वाली क्षमता नहीं है |

भारत के सामरिक सिद्धांतों मे प्रमुख है फ़र्स्ट स्ट्राइक नहीं करेगा |

भारत का न्यूक्लीय शस्त्रों को फ़र्स्ट स्ट्राइक न करने का सिद्धान्त जनवरी 2003 मे पास हुआ |

उक्त सिद्धान्त में कहा गया की भारत केवल तभी न्यूक्लीय अस्त्रों का प्रतिशोधात्मक इस्तेमाल करेगा – जब उसके क्षेत्र या उसकी सेना पर कोई न्यूक्लीय बम का प्रहार कर दे , और रिपोर्ट में कहा गया की प्रति उत्तर में भारत द्वारा आक्रमण बहुत भयानक होगा |

भारत ने ऐसा भी कहा है की वह न्यूक्लीय अस्त्रों का इस्तेमाल उन देशों के खिलाफ नहीं करेगा जिनके पास न्यूक्लीय क्षमता नहीं है | भारत ने घोषित किया कि वाह न्यूक्लीय अस्त्रों का इस्तमाल कभी नॉन – न्यूक्लीय देशों के खिलाफ नही करेगा | भारत का मूल आणविक हतियारों को प्रथमतः नहीं प्रयोग करने के मूल सैधांतिक दस्तावेज में वर्णित शब्दों का अर्थ कोडेड है | उसके अनुसार भारत को एक ऐसे न्यूक्लीय सैन्य बल कि आवश्यकता है जी कि अभूतपूर्व विनाशक परिस्थितयों में भी उत्तम संचालन पद्धति को अपनाते हुए अपना – अंततः देश का वजूद कायम रख सके |

“ न्यूक्लीय अस्त्रों के क्षेत्र में भारत द्वारा सबसे पहले आक्रमण नहीं करने की नीति और नॉन - न्यूक्लीय देशों पर कभी आक्रमण नहीं करने के सिद्धान्त अपनाने के पीछे केवल यही उद्देश्य है की वह रक्षा क्षेत्र मे केवल प्रतिशोधक, देत्तेरेंट के रूप में न्यूक्लीय अस्त्र रखता है ,न की किसी को सिर्फ धमकाने के लिए ” उक्त विचार पूर्व उप – रक्षा सलाहकार श्री सतीश चंद्र ने कहा |

भारत ने शास्त्रों का क्यूँ निर्माण क्या ?

विश्व मे सबसे पहले अणु बम की विनाशक क्षमता को सन 1945 मे देखा – जब u.s.a. ने हिरोशीमा और नागासाकी शहरों पर अणु बम का प्रहार कर लगभग 200,000 जनता को मार डाला | उसी दिन से न्यूक्लीय बमों के राजनीतिक इस्तेमाल पर बहस जारी है |

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय न्यूक्लीय अस्त्रों को निर्माण करने की नीति पर सहमति नहीं थी | लेकिन बाद मे अमेरिका और कनाडा के सहयोग से भारत में न्यूक्लीय प्रोग्राम चल पड़े |

सन 1962 के भारत – चीन के युद्ध के समय और 1964 में चीन द्वारा न्यूक्लीय टेस्ट करने बाद प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सिद्धान्त रूप में न्यूक्लीय प्रोग्राम को मान्यता दिया | जिसको व्यंग मे सबटेर्राएयन न्यूक्लीय विस्फोट परपसेस (एस0 एन0 ई0 पी0 पी0) कहा गया |

इस SNEPP के प्रोग्राम के कारण ही भारत ने पहला शांति पूर्ण न्यूक्लीय बम का विस्फोट 18 मई , 1974 मे किया – जब प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी थी |

हालाँकि उक्त पोखरण विस्फोट एक बहस का विषय रहा है , सामरिक विद्धवानों के बीच, लेकिन इसने भारत की सामरिक न्यूक्लीय टेक्नोलॉजी सफलता साबित कर दी |

उस पोखरण के न्यूक्लीय बम के लिए यंत्र में प्लोटोनियम भारत , कनाडा , अमेरिका – के संयुक्त सहयोग से प्राप्त हुआ | हेवी – वाटर भारत के रिएक्टर के लिए U.S. से आया है, ऐसा फ़ैडरेशन ऑफ अमेरीकन साइंटिस्टस ने कहा |

पोखरण विस्फोट के बाद भारत के ऊपर अंतरराष्ट्रीय प्रविधानों का इस्तेमाल होने लगा है , जिसके कारण भारत का सामरिक न्यूक्लीय प्रोग्राम बाधित होता रहता है | इस कारण से एक न्यूक्लीय सप्लायरस का संघ बन गया है जो कि भारत के न्यूक्लीय सामरिक प्रोग्रामों में बाधा करता है |

24 सांलों के अंतराल बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के शासन में 5 बार न्यूक्लीय टेस्ट हुए – उसके बाद भारत ने स्वयं घोषणा किया कि वह अब न्यूक्लीय टेस्ट नहीं करेगा |

पोखरण के भारतीय टेस्ट के 3 सप्ताह बाद पाकिस्तान ने सामरिक टेस्ट किये |

द्वारा जयरामन एक प्रोड्यूसर और न्यूज़ रायटर है – बूम लाईव में |

और सेठी एक विश्लेषक है – इंडियास्पेंड में |

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