नई दिल्ली: स्वाति कुमारी की उम्र 16 साल है, वो झारखंड के सिमडेगा ज़िले के बरसलोय गांव में 11वी कक्षा में पढ़ती है और गाँव-गाँव जा कर नुक्कड़ नाटक के ज़रिये बाल विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती है। वो ऐसा क्यों कर रही है, पूछने पर स्वाति ने हमें एक दास्तान सुनाई, दास्तान उसकी एक दोस्त की है, जिसका वो नाम नहीं बताना चाहती हैं।

स्वाति की बचपन की इस सहेली का विवाह 14 साल की उम्र में ज़बरदस्ती करा दिया गया था। स्वाति ने बताया कि उसकी सहेली के मम्मी-पापा ग़रीब थे, इसलिए उन्होंने उसकी जल्दी शादी करवा दी, वो शादी नहीं करना चाहती थी। इसके बाद उसकी पढ़ाई भी बीच में छूट गयी, वो अपना घर भी ठीक से सँभाल पायी। स्वाति ने अपनी दोस्त को शादी के बाद पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित किया। स्वाति ने इंडियास्पेंड को बताया, ”मेरी सहेली का पति शराबी था, पढ़ाई तो दूर की बात है वो घर में भी ख़ुश नहीं थी।” इसके बाद देश की लाखों किशोरियों की तरह स्वाति की सहेली भी 15 साल की उम्र में माँ बन गयी। स्वाति धीमी आवाज़ में बताती हैं, “वो माँ नहीं बनाना चाहती थी, उसने ससुराल वालों से भी कहा कि उसे अभी बच्चा नहीं चाहिए। इसके बाद वो लोग उसे परेशान करने लगे, बच्चा पैदा करने के लिए ज़बरदस्ती करने लगे। उम्र से पहले ही ये सब होने की वजह से वो मानसिक रूप से कमज़ोर हो गयी थी, उसको समझ नहीं आया कि क्या करे, वो सोच ही नहीं पायी...उसने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली।”

बाल विवाह के मुद्दे से स्वाति के ख़ास जुड़ाव के पीछे उसकी सहेली की ज़िंदगी की दर्दनाक दास्तान है।

आज भी भारत की कुल आबादी की 26.8% लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है, यानी देश की हर चौथी किशोरी का विवाह कम उम्र में कर दिया जाता है। देश की 15 से 18 साल की उम्र की 8% लड़कियाँ गर्भवती है। ये नवीनतम उपल्बध आँकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वे (NFHS-4) से साल 2015-16 के हैं।

एक किशोरी के लिए छोटी उम्र में शादी का मतलब है छोटी उम्र में बच्चा पैदा होना, पढ़ाई बीच में ही छूट जाना और घरेलू एवं यौन हिंसा की ज़्यादा सम्भावना। बाल विवाह और किशोरी गर्भ धारण के साथ किशोरियों के स्वास्थ से जुड़े ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता है या जिनकी जानकारी के अभाव में किशोरियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

ऐसे ही कई मुद्दों को देश के तीन राज्यों- झारखंड, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 300 किशोरियों ने उठाया और अधिकारों से जुड़े सवाल पूछे। समाजसेवी संस्थान दसरा ने 13 दूसरे गै़र-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर “अब मेरी बारी” अभियान शुरु किया। इस अभियान के तहत तीनों राज्यों से 300 किशोरियों को चैम्पियन चुना गया, जिन्होंने सात ज़िलों से होते हुए 3,296 किलोमीटर की यात्रा तय की। इस यात्रा के दौरान इन किशोरियों ने सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों से बात की, अस्पातलों और आंगनवाड़ी केंद्र में जा कर पड़ताल की और उन्हें समझाया कि किशोरियों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही इन किशोरियों ने जागरूकता फैलाई और सुझावों की एक सूची भी तैयार की।

झारखंड की स्वाति कुमारी भी इस यात्रा में शामिल किशोरी चैम्पियन में से एक हैं। भारत में पैदा होने वाले 33.6% बच्चे, किशोरियों के गर्भ-धारण से पैदा होते हैं। स्वाति के राज्य झारखंड की बात करें तो NFHS-4 के आँकड़ों के अनुसार राज्य की 33% आबादी किशोर-किशोरियों की है। राज्य में 38% लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही करवा दी जाती है। झारखंड में 15 से 19 साल की उम्र के बीच की 12% किशोरियाँ या तो गर्भवती हैं या माँ बन चुकी हैं।

“अब मेरी बारी" अभियान के दौरान किशोरियों के यौन स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और पोषण से जुड़े मुद्दे भी उठाए। इन मुद्दों से जुड़ी सरकारी योजनाओं का सोशल ऑडिट भी किया गया और चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए।

झारखंड

किशोरियों में गर्भ धारण रोकने के लिए ज़रूरी है कि इसके बारे में जानकारी फैलाई जाए। झारखंड के जिन 63 गांवों का सोशल ऑ़डिट किया गया उनमें से सिर्फ़ 47 गाँव ऐसे थे जहाँ के आंगनवाड़ी केंद्र में बाल विवाह, जल्दी गर्भ-धारण और इससे जुड़े ख़तरों के बारे में जानकारी दी जाती है। 10 गाँवों में इन मुद्दों से जुड़ी किसी भी तहर की जागरुकता फैलाने का काम नहीं किया जाता है। ऐसे सिर्फ़ तीन गाँव थे जहाँ सक्रिय रूप से जानकारी दी जाती है, और लोगों को समझाया जाता है।

कम उम्र में विवाह के साथ ही बाल यौन शोषण का ख़तरा भी बढ़ जाता है। सिर्फ़ 19 गाँव ऐसे थे, जहाँ ब्लाक अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ केंद्र में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम यानी POCSO (Protection of Children from Sexual Offences ) क़ानून और किशोर न्याय (किशोरों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम के बारे में जानकारी दी जाती है। 41 गाँव ऐसे हैं जहाँ इन क़ानूनों के बारे में किसी तरह की कोई जागरूकता नहीं है।

झारखंड के 63 गाँवों में से सिर्फ़ 37 गाँवों में एड्स या यौन संबंधों से फैलने वाले रोगों के बारे में जानकारी दी जाती है। सिर्फ़ चार गाँवों में किशोर-किशोरियों के लिए उपयुक्त स्वास्थ केंद्र मौजूद हैं जो सक्रियता से काम करते हैं, 12 गाँवों में ये सुविधा उपलब्ध ही नहीं है, 19 गाँवों में ये सुविधा उपलब्ध है पर सब तक इसकी पहुँच नहीं है और 28 गाँवों में ये सुविधा सबकी पहुँच में है।

सिर्फ़ पाँच गाँव ऐसे मिले, जहाँ यौन स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में मुहिम और अभियानों के ज़रिए जानकारी दी जाती है।

सैनिटेरी पैड्ज़ की उपलब्धता एक और बड़ी चुनौती है। 35 गाँव ऐसे हैं जहाँ के किशोरियों के लिए उपयुक्त स्वास्थ केंद्रों में भी सैनिटेरी पैड्ज़ उपलब्ध नहीं हैं।17 गाँवों के केंद्रों में पैड्ज़ उपलब्ध हैं पर सभी तक उनकी पहुँच नहीं है। दो गाँवों में पैड्ज़ उपलब्ध हैं पर वो अच्छे क़िस्म के या इस्तेमाल करने में लायक नहीं है। सिर्फ़ नौ गाँव ऐसे हैं जहाँ के किशोरियों के लिए उपयुक्त स्वास्थ केंद्रों में अच्छे पैड्ज़ उपलब्ध हैं जिन तक सभी की पहुँच है।

झारखंड के दोइगढ़ ज़िले के कुंजोरा गाँव में रहने वाली 21 साल की कुमारी प्रियंका पांडे बताती हैं कि उनके आंगनवाड़ी केंद्र या गाँव के स्वास्थ केंद्र में सैनिटेरी पैड्ज़ नहीं मिलते, पर उनके गाँव में आठवीं तक का स्कूल है जहाँ पढ़ने वाली किशोरियों को पैड्ज़ दिए जाते हैं। प्रियंका ने बताया, “हमें पैड्ज़ ख़रीदने के लिए गाँव से बाहर जाना पड़ता है।”

स्वाति स्कूल में पढ़ती है पर उसे भी पैड्ज़ ख़रीदने के लिए गाँव से बाहर ही जाना पड़ता है। स्वाति ने बताया, “हमारे स्कूल में कोई पैड्ज़ नहीं बाँटे जाते हैं, आंगनवाड़ी केंद्र में भी पैड्ज़ नहीं मिलते, गाँव से बाहर जाकर 35-40 रुपए में पैड्ज़ का पैकेट ख़़रीदना पड़ता है।”

अक्सर किशोरियाँ माहवारी शुरू होने के साथ ही पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती है या फिर स्कूल जाना कम कर देती हैं। अच्छे शौचालयों की कमी और शौचालयों में पानी और पैड्ज़ के निपटान की व्यवस्था ना होना इसका बड़ा कारण है।

झारखंड के 63 में से सिर्फ़ 25 गाँवों में लड़कियों के लिए अलग शौचालाय हैं, जो साफ़ और सुरक्षित है और जिनका सब इस्तेमाल कर सकते हैं। 15 गाँवों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय ही नहीं हैं, 10 गाँवों में शौचालय का इस्तेमाल सब नहीं कर पाते हैं, 13 गाँवों में सभी लोग शौलाय का इस्तेमाल कर तो सकते हैं पर ये ना तो साफ़ रहते हैं और ना ही इस्तेमाल करने लायक हैं।

उत्तर प्रदेश

NFHS-4 के 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार राज्य की 34% आबादी किशोर और किशोरियाँ हैं। 21.1% लड़कियों का बाल विवाह कर दिया जाता है जो 11.9% के राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है। इसके साथ ही किशोरी गर्भ धारण के आँकड़े उत्तर प्रदेश में चौंकाने वाले हैं। भारत की हर दसवीं गर्भवती किशोरी उत्तर प्रदेश से है। राज्य में किशोरी गर्भ-धारण की दर 3.8% है यानी भारत की 44.67 लाख गर्भवती किशोरियों में से 4.08 लाख उत्तर प्रदेश में हैं।

छोटी उम्र में माँ बनने और बाल विवाह होने से किशोरियों को हिंसा, कुपोषण, प्रसव के दौरान मृत्यु आदि का ख़तरा ज़्यादा होता है। माँ की उम्र कम होने से पैदा हुए बच्चे के स्वास्थ को भी ख़तरा ज़्यादा होता है और ज़िंदा रहने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। “अब मेरी बारी” मुहिम के साथ उत्तर प्रदेश से तीस लड़कियाँ जुड़ी और इन्होंने बाल विवाह का मुद्दा सबसे पुरज़ोर ढंग से उठाया।

मुहिम से जुड़ी लखनऊ की प्रांजलि शर्मा ने कहा कि लड़कियों और महिलाओं की स्वास्थ आबादी के लिए बाल विवाह को रोकना बहुत ज़रूरी है। प्रांजलि ने कहा, “लड़कियों का स्कूल जाना और जननीय स्वास्थ के बारे में जानकारी होना बहुत ज़रूरी है ताकि वो अपनी शादी, बच्चों, और अपनी ज़िंदगी के बारे में जागरूक फ़ैसले ले सकें।”

राजस्थान

NFHS-4 के आँकड़ों में राजस्थान की 31.2% आबादी 15 साल से कम उम्र की है। राज्य में 35.4%, यानी एक तिहाई से भी ज़्यादा लड़कियों का बाल-विवाह कर दिया जाता है। आँकड़ों के अनुसार 15 साल की सिर्फ़ 0.2% लड़कियाँ या तो गर्भवती हैं या फिर माँ बन चुकी हैं। पर ये आँकड़ा 18 साल की लड़कियों में बढ़कर 9% हो गया और एक साल के अंतर यानी 19 साल की लड़कियों में लगभग दोगुना यानी 21% हो गया।

राजस्थान में देखा गया है कि जो किशोरियाँ स्कूल नहीं जाती हैं उनमें गर्भवती होने की सम्भावना (बारह साल या उससे ज़्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों के मुक़ाबले) चार गुना ज़्यादा होती है।

राजस्थान के उदयपुर खेड़ा गाँव में रहने वाली सीमा जाट 19 साल की है, सीमा ने बताया, “मेरी शादी 7-8 साल की उम्र में ही हो गयी थी पर अभी तक मेरा गौना नहीं हुआ है, मेरे परिवार वाले चाहते हैं इसलिए मैं अभी तक पढ़ाई कर रही हूँ पर सबके साथ ऐसा नहीं होता।” सीमा ने अपनी दोस्त माया लोहार की कहानी बताई जो उनके जीवन से काफ़ी अलग है, “माया की शादी मेरे साथ ही हुई थी, हम साथ में पढ़ते थे पर गौना होने से पहले ही बारहवीं क्लास में उसकी एक बेटी हो गयी, उसकी पढ़ाई छूट गयी, पति भी उसका ज़्यादा साथ नहीं देता है,” सीमा ने बताया कि माया अपनी क्लास में सबसे अच्छी छात्र होने के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई और अब इसी वजह से इसे कोई अच्छी नौकरी भी नहीं मिल पा रही है।

समाधान और सुझाव

“अब मेरी बारी” मुहिम से जुड़ी 300 किशोरियों ने अलग अलग ज़िलों में जाकर सरकारी अधिकारियों और डॉक्टरों से बात की, उपलब्ध सुविधाओं का जायज़ा लिया, अपनी और अन्य किशोरियों की समस्याएं समझाईं और जागरूकता फैलाने के साथ ही कई सुझाव भी दिए:

  1. हर ब्लाक में किशोर-किशोरियों के लिए एक उपयुक्त स्वास्थ केंद्र ज़रूर होना चाहिए।
  2. किशोरियों को परिवार नियोजन के बारे में अच्छी तरह से जानकारी दी जाएँ उन्हें गर्भ-निरोध के तरीक़ों और दवाइयों के बारे में स्वास्थ केंद्र पर समझाया जाए। साथ ही यौन संबंध से फैलने वाली बीमारियों के बारे में बताया जाए।
  3. किशोरियों ने सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए एक अलग शौचालय की माँग की, जो साफ़ और सुरक्षित हो और कहा कि बिना भेदभाव के सभी किशोरियों और गर्भवती लड़कियों को पौष्टिक खाना मिलना चाहिए।
  4. सैनिटेरी पैड्ज़ की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए किशोरियों ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्रों में सैनिटेरी पैड्ज़ की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
  5. किशोरियों का ये भी कहना है कि जागरूकता के साथ साथ, बाल विवाह जैसे मुद्दों पर, उनसे खुल के बात की जाए और यौन शोषण एवं न्याय से जुड़े क़ानूनों के बारे में बताया जाए और ये जानकारी स्कूलों में भी दी जाए। साथ ही गाँव की बाल सुरक्षा समिति में किशोरियों की भी अहम भूमिका होनी चाहिए।

किशोरियों का ये मानना है कि जानकारी सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ताकि लड़कियाँ अपने फ़ैसले ले पाएँ, अपने लिए सही और ग़लत में चुनाव कर सकें और एक स्वस्थ जीवन जी सकें।

(साधिका इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट हैं)