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पी. कृष्णावेनी तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में थैलिययुथू पंचायत की पूर्व दलित अध्यक्ष हैं। समाज में व्याप्त जाति और लिंग भेद पर आवाज बुलंद की तो इन पर हमला हुआ और इन्होंने अपनी उंगलियां और एक कान खो दी। इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया। लेकिन हमले के बाद इनका इरादा और बुलंद हुआ । धीरे-धीरे विकास की जरूरतों पर फोकस रखते हुए इन्होंने अन्य जातियों और समुदायों का समर्थन जीता।

थैलैयुथू पंचायत, तिरुनेलवेली जिला (तमिलनाडु): पी कृष्णावेनी की आंखों में 13 जून 2011 की रात एक बुरे सपने की तरह बसी हुई है। घर से महज 200 मीटर की दूरी पर, एक स्थानीय मंदिर के सामने उन्हें खून से लथपथ हालत में छोड़ दिया गया था।

रात के करीब दस बजे जब उनके पति और दो बेटियों ने उन्हें इस हालत में देखा तो मदद के लिए शोर मचाया। लेकिन सामने कोई नहीं आया। बाद में अस्पताल ले जाने के लिए जब उनके पति ने खुद उन्हें उठा कर ऑटो-रिकशा में बैठाया तो उनके हाथों की दो उंगलियां नीचे जमीन पर गिर पड़ीं। उनका दाहिना कान भी कटा हुआ था।

खौफ आज भी कृष्णवेनी के दिल में जिंदा है लेकिन इरादा चट्टान की तरह मजबूत हो चुका है।42 वर्षीय कृष्णावेनी ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया, “मुझे नहीं पता कि उस हमले के बाद मैं जिंदा कैसे हूं। यह एक चमत्कार है। शायद इसलिए भी कि मैं बहुत ही दृढ़ और साहसी हूं।”

दुबली-पतली कृष्णावेनी एक दलित हैं और भारत के दक्षिणी छोर पर अपने गांव में अपनी दृढ़ता और आत्मविश्वास के लिए जानी जाती हैं।

वर्ष 2006 से 2011 के बीच थैलेयूथियु पंचायत अध्यक्ष के रूप में कृष्णावेनी ने जाति पूर्वाग्रह को चुनौती दी और समाप्त किया। इन्होंने पितृसत्ता संस्कृति के खिलाफ लड़ाई लड़ी। साथ ही एक सीमेंट कंपनी के खिलाफ भी खड़ी हुई, जो गांव की जमीन लेना चाहते थे। उन्होंने उन आम चीजों पर अधिकार जमाया, जिनका उच्च जातियों द्वारा अतिक्रमण किया गया था। इसके साथ ही उन्होंने विकास कार्यों पर भी ध्यान दिया। गांव की जमीन पर महिलाओं के लिए शौचालय बनाए गए। वह पंचायत कार्यालय में प्रमुख की कुर्सी पर बैठी, जबकि एक दलित होने के नाते उनके सहयोगियों को ऐसी उम्मीद नहीं थी। भेदभाव का विरोध करने पर उन्हें स्वतंत्रता दिवस- 2007 को तिरंगा के बजाय एक काला झंडा फहराए जाने जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ा।

कृष्णावेनी की कहानी विशेष रुप से असाधारण है। लेकिन ऐसी कई महिलाएं हैं जो पुरुष सत्ता वाली मानसिकता के बीच से उभरी हैं और स्थानीय नेताओं के रुप में आगे बढ़ रही हैं।

60 फीसदी महिला पंचायत नेताओं अब स्वतंत्र रूप से काम करती हैं – हमारा अध्ययन

तमिलनाडु के छह जिलों में इंडियास्पेंड द्वारा चलाओ गए एक अध्ययन में कृष्णावेनी उन 40 भूतपूर्व और वर्तमान महिला पंचायत नेताओं में से एक हैं, जिनके कार्यों और जिंदगी पर फोकस किया गया है।

ये छह जिले हैं, दक्षिण में शिवगंगाई और तिरुनेलवेली, केंद्र में डिंडीगुल, पूर्व में नागापट्टिनम, कृष्णगिरी और राज्य के उत्तर-पश्चिम में धर्मपुरी। इस अध्ययन में इस बात का विश्लेषणा किया जा रहा है कि किस प्रकार महिला ग्रामीण नेताओं द्वारा लिए गए फैसले पुरुष नेताओं से अलग हो सकते हैं।

लगभग 45 दिनों के दौरान व्यक्तिगत साक्षात्कार और और शिवगंगाई जिले पर देवकोट्टई ब्लॉक के 43 पंचायतों के खातों पर विश्लेषण करने के बाद हमने पाया –

  • करीब 60 फीसदी महिला पंचायत नेताएं ( 32 में से 19 ) बिना पुरुष हस्तक्षेप या समर्थन के, स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। इन महिलाओं को पंचायत खातों और पंचायतों के माध्यम से क्रियान्वित सरकारी कार्यक्रमों की पूरी जानकारी थी। दो को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन वे खातों और कार्यक्रमों से भी परिचित थीं।
  • तमिलनाडु में महिला पंचायत नेताओं ने सड़कों के निर्माण और पहुंच में सुधार के लिए पुरुष समकक्षों की तुलना में 48 फीसदी अधिक धन का इस्तेमाल किया है।
  • पानी की कमी वाले क्षेत्र शिवगंगाई में, पुरुष और महिला नेताओं ने पानी के बुनियादी ढांचे, जैसे कि बोरवेलों और पाइपलाइनों पर समान मात्रा में खर्च किया, लेकिन महिला नेताओं ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में शुद्ध पानी सुनिश्चित करने के लिए परिष्कृत जल प्रणालियों में अधिक पैसा खर्च किया है।
  • महिलाएं बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए अधिक खर्च करती हैं। पुरुष नियमित रूप से रख-रखाव में अधिक ( 1.5 गुना ) खर्च करते हैं । जैसे कि पानी और स्ट्रीट लाइट की मरम्मत (पुरुषों ने स्ट्रीट लाइट लगाने में छह गुना अधिक खर्च किया)।

प्रति पंचायत औसत व्यय, 2011-2016

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Source: Data shared by the block development office in Devakottai Block, Sivagangai district

तमिलनाडु में अब भारत की सबसे कम प्रजनन दर है। राज्य के आंकड़े ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड और बेल्जियम की तुलना में कम हैं। साथ ही राज्य में दूसरा सबसे अच्छा शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर है। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ सबसे कम अपराध दर दर्ज किए गए हैं। इस पर इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में बताया है।

लेकिन राज्य अब भी जातिगत भेदभाव है और ग्रामीण जनता कार्यालयों में महिलाएं अब भी पुरुषों के प्रतिरोध का सामना करती हैं। लेकिन महिला पंचायत नेताओं की संख्या में वृद्धि महिलाओं के लिए आरक्षण के लाभों को दर्शाता है।

आरक्षण लागू हुए बीत गया चौथाई सदी का वक्त

वर्ष 1992 में, भारत ने अपने संविधान में 73 वें और 74 वें संशोधनों को लागू किया, जिसमें ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित की गई, ताकि सामान्य और अन्य बहिष्कृत समूहों, जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां, में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व हो। कुछ राज्यों जैसे बिहार, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु और गुजरात में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 50 फीसदी तक बढ़ाया गया है।

इन संवैधानिक सुधारों को एक चौथाई सदी का समय बीच चुका है और जैसा कि हमने पाया, महिला पंचायत नेताओं ने शासन को बदलने में लंबी छलांग लगाई है। वे राजनीतिक रूप से जागरूक हो रही हैं और अपने परिवारों के पुरुषों से अलग पहचान बना रही हैं।

पुरुष प्रतिरोध के बावजूद, महिलाओं के पंचायत सदस्यों ने हरियाणा में उपलब्धियों की सूची तैयार की है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अपनी जनवरी 2016 की रिपोर्ट में बताया है। इनमें गरीबों के लिए मकान बनाना, जल पंप स्थापित करना और स्त्री भेषभाव के खिलाफ प्रचार शामिल है।

हमने पाया कि तमिलनाडु में महिलाएं तात्कालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। ब्लॉक विकास कार्यालय (बीडीओ) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, शिवगंगाई जिले के कलैर्यकोविल ब्लॉक में, सात में से पांच पंचायत रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) प्रणाली सुचारू रूप से काम कर रही हैं और ये सभी महिलाओं की अध्यक्षता के तहत हैं। इस ब्लॉक में पानी बेहद खारा है।

कृष्णगिरी और धर्मपुरी जिले के पहाड़ी पंचायतों में बाल विवाह की समस्या है। हमारे द्वारा सर्वेक्षण किए गए सात में से छह पंचायतों में महिला पंचायत नेता बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रहीं थीं। सात में से चार महिला पंचायत नेता उच्च माध्यमिक स्कूलों के उत्थान पर पैसा खर्च कर रही थीं ताकि लड़कियों द्वारा आगे की पढ़ाई छोड़ देने की दर कम हो सके। लड़कियों की जल्द शादी का एक बड़ा कारण यह भी है।

इस तरह के परिणाम और अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं, लेकिन यह उन संघर्षों को कम नहीं करता है जिनसे महिला पंचायत नेताओं को गुजरना पड़ता है जैसा कि कृष्णावेनी को झेलना पड़ा है।

'वे मुझे ई... सककीलीची पुकारते हैं! कभी मेरा नाम नहीं '

वर्ष 2006 में जब कृष्णावेनी 33 वर्ष की थीं, जब वह थलैयुतुऊ पंचायत की पहली दलित महिला अध्यक्ष चुनी गई थी। कृष्णावेनी एक ऐसे समूह की हैं, जिसे सक्कीलीयर्स कहा जाता है। अध्यक्ष के रुप में उसने जो सबसे पहला काम इन्होंने किया वह गैरकानूनी कब्जे वाले पोरंबोक (सीमन्स) भूमि को जब्त करना और खाली करने से इनकार करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करना था। इनमें पल्लर, मुस्लिम, नाडर, थेवर और कोनारस, सभी उच्च जाति के लोग शामिल थे।

कृष्णावेनी बताती हैं, उनके साथ जातिवाद और भेदभाव नियमित रूप से थेवार और पल्लर दोनों द्वारा किया जाता था, जबकि दोनों अनुसूचित जाति के हैं।। कृष्णवेली कहती हैं, "पल्लारों ने मुझे हमेशा 'ई.. सक्किलिची' कह कर संबोधित किया। कभी मेरा नाम नहीं लिया। वे मुझे मारने की धमकी देते थे। वे स्वयं जाति की अनुसूचित हैं, लेकिन खुद को सक्कीलिअर्स से उच्च समझते हैं। "तिरूनेलवेली जिले में जातिवाद की समस्या गहरी है। अकेले वर्ष 2015 में, स्थानीय कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि तिरुनेलवेली और पड़ोसी जिले में करीब 100 जाति आधारित हत्याएं हुईं, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने अप्रैल 2015 की रिपोर्ट में बताया है। कई घटनाएं राष्ट्रीय रिकॉर्ड में शामिल नहीं हुईं, ऐसा लगता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से 2015 के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य स्तर पर 52 से ज्यादा जाति आधारित हत्याएं नहीं हुई हैं।

अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत 10 गांवों में पुरुष संभ्रांतियों को लेते समय, कृष्णावेनी ने वर्ष 2006 में, इंडिया सीमेंट्स के खिलाफ एक और मोर्चा खोला । उन्होंने कंपनी के खालिफ चार प्रदूषण नोटिस जारी किए, जो सन 1949 से शंकरनगर, थलायूथू में सीमेंट के कारखाने चला रहे हैं।

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तिरुनेलवेली जिले के शंकरनगर थिलैयुथु गांव में इंडिया सीमेंट्स की प्रमुख सीमेंट फैक्टरी। ग्राम पंचायत के अध्यक्ष के रूप में कृष्णावेनी ने कंपनी को चार प्रदूषण नोटिस जारी किए ।

लेकिन यह भारत सीमेंट्स द्वारा प्रस्तावित कैप्टिव थर्मल पावर प्लांट के खिलाफ उनका अभियान था, जिसने उन्हें और कंपनी को आमने-सामने खड़ा किया। तमिलनाडु पंचायत अधिनियम, 1996 की धारा 160 के अनुसार, किसी भी उद्योग के किए ग्राम पंचायत की अनुमति आवश्यक है। कृष्णवेनी ने बिजली संयंत्र से अधिक प्रदूषण होने के डर से अनुमति से इंकार कर दिया।

हालांकि, वर्ष 2011 में निर्माण शुरू हो गया। वह बताती हैं "आरटीआई अनुरोध के माध्यम से मुझे पता चला कि उन्होंने पंचायत को नजरअंदाज कर दिया है और जिला कलेक्टर से अनुमति ली है।"वर्ष 2011 की शुरुआत में, उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय में इंडिया सीमेंट्स के खिलाफ मामला दायर किया।

यह वह समय था जब कृष्णवेनी सामुदायिक शौचालय के लिए भूमि तैयार कर रही थी। पंचायत में शौचालय की एक बड़ी मांग थी। रात में युवा और गर्भवती महिलाएं खुले खदान में जाती थीं, जहां उन्हें स्थानीय पुरुषों द्वारा परेशान किया जाता था।

जिला और राज्य प्रशासन को लिखने पर भी उन्हें कोई राशि प्राप्त नहीं हुई। इसलिए अंतिम सहारे के रुप में, उन्होंने अपने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत पैसे के लिए इंडिया सीमेंट्स से अपील की।

कृष्णावेनी पंचायत द्वारा सभी मामलों को रफा-दफा करने की शर्त पर कंपनी सहमत हो गई। वह कहती हैं, “मैं क्या कर सकती थी? मुझे छोटी लड़कियों द्वारा शौचालय निर्माण करने के कई अनुरोध मिले थे। वे इस अनुरोध के लिए विशेष रुप से पंचायत ऑफिस आई थीं। इसलिए मैं उनके लिए कुछ करना चाहती थी। यदि एक महिला होने के नाते मैं उनकी समस्याओं का समाधान न करूंगी तो कौन करेगा। यह एक मुश्किल विकल्प था।”

अंत में, उन्होंने सहमति व्यक्त की, यह सौदा हुआ कि केवल शौचालय निर्माण के माध्यम से मामलों को रफा-दफा करेंगी।

शौचालयों के लिए पहचान की गई जमीन एक वार्ड सदस्य द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया। जिसने एक अन्य व्यक्ति ( जिससे पहले जमीन ली गई थी ) के साथ कृष्णावेनी पर हमले की योजना बनाई थी। कृष्णावेनी शौचालय निर्माण पर चर्चा के बाद कलेक्ट्रेट से घर वापस आ रही थी।अचानक वहां 15 लोग आ गए। उनके हाथों में क्रिकेट बैट और हंसिया था।

वह कहती हैं, “मुझे लगा कि वे ऑटो ड्राइवर पर हमला करने वाले हैं। अगले ही पल मुझे महसूस हुआ कि वे लोग मुझ पर हमला कर रहे हैं। मेरे पेट, मेरे हाथ मेरे पूरे शरीर पर वे बल्ले से मार रहे थे। उन्हें लगा कि मैं कहीं भाग न जांऊ, इस डर से उन्होंने मेरे घुटने पर वार किया।”

बाद में कृष्णावेनी को उनके द्वारा ही बनवाए गए गांव के पुस्तकालय के पास, करुप्पूस्वामी मंदिर के सामने मरने के लिए छोड़ दिया।

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जून 2011 में कृष्णावेनी के पति और दो बेटियों ने उन्हें खून से लथपथ इसी पुस्कालय के पास पाया और मदद के लिए शोर मचाया। लेकिन सामने कोई नहीं आया। बाद में अस्पताल ले जाने के लिए जब उनके पति ने खुद उन्हें उठा कर ऑटो-रिकशा में बैठाया तो उनके हाथों की दो उंगलियां नीचे जमीन पर गिर पड़ी। उनका दाहिना कान भी कटा हुआ था।

दलित महिलाएं, कलेक्टर की शक्ति और पंचायतों की शक्तिहीनता

दलित महिला अध्यक्षों को विशेष तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है। तमिलनाडु पंचायत अधिनियम की धारा 205 उत्पीड़न के लिए एक उपकरण है, जो जिले कलेक्टर को निर्वाचित पंचायत अध्यक्षों को बर्खास्त करने की अनुमति देता है।

महिलाएं असंगत रूप से प्रभावित होती हैं। पंचायत और ग्रामीण विकास के निदेशालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों से 2016 तक, जितने पंचायत अध्यक्षों को खारिज किया गया, उनमें 42.5 फीसदी महिला पंचायत अध्यक्ष थीं। इनमें से 30 फीसदी दलित महिला अध्यक्ष थीं।

अन्य समस्याएं भी हैं: पंचायत को दी गई सीमित शक्तियां और धन।

तमिलनाडु राज्य राजस्व का 10 फीसदी हिस्सा पंचायत के लिए राज्य वित्त आयोग के अनुदान के रूप में देता है।

लेकिन गांव-स्तरीय संस्थानों को शासन का कोई भी अधिकार नहीं है, जैसे कि स्वास्थ्य केंद्र और विद्यालय, संबंधित राज्य-सरकारी विभागों द्वारा नियंत्रित होते हैं।

ज्यादातर राज्य अनुदान केवल नियमित रखरखाव के लिए पर्याप्त हैं। उदाहरण के लिए, एक आरओ जल प्रणाली के लिए दूरवर्ती- आंतरिक क्षेत्रों में 2,000 की आबादी वाले पंचायत के लिए 600,000 रुपए या वार्षिक बजट का 60 फीसदी से ऊपर की लागत आती है। पेशेवर और घर करों के माध्यम से पंचायत धन जुटाते हैं, जो शहरी स्थानीय निकायों की तुलना में बहुत कम हैं।

स्कूलों और स्वास्थ्य केन्द्रों को उन्नत करने के लिए, पंचायत के अध्यक्षों को निरंतर पैरवी और पंचायत संघ और जिला संघ तक राजनीतिक पहुंच या विधानसभा के सदस्य या संसद के सदस्यों पर निर्भर होना पड़ता है। ये थोपी गई राजनीतिक का एक ऐसा नेटवर्क हैं, जिसमें महिलाओ, विशेष रूप से पहली बार कदम रखने वाली महिलाओं के लिए पहुंच बनाना बेहद कठिन है।

कई महिला नेताओं ने जिला कलेक्टर के साथ पैरवी के घंटे का उल्लेख किया है। कभी-कभी यह समय पांच साल तक भी रहा, फिर भी सफलता नहीं मिली।

महिला पंचायत नेता के लिए सबसे बड़ा नुकसान नियमित वेतन का अभाव है। पंचायत अध्यक्षों को प्रति माह केवल 1500 रुपए का यात्रा भत्ता मिलता है, जिनमें से अधिकांश ब्लॉक और जिला स्तर पर नियमित बैठकें करने में ही खर्च हो जाता है। कई लोग अपने पैसे खर्च करते हैं, लेकिन यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से मुश्किल है, क्योंकि आमतौर पर परिवार के बजट पर उनका अधिकार नहीं होता है।

फिर भी महिलाएं पीछे नहीं जा रही हैं।

महिलाओं के बीच बढ़ती राजनीतिक चेतना

पिछले 25 वर्षों में पंचायत की महिला नेताओं ने बढ़ती राजनीतिक चेतना का प्रदर्शन किया है।

हालांकि, पंचायत अध्यक्ष एक गैर-पार्टी की स्थिति में हैं, लेकिन इस अध्ययन के अनुसार 43 फीसदी महिलाएं किसी न किसी राजनीतिक दल से संबंधित थीं, मुख्य रूप से अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एआईएडीएमके)।

वर्ष 1996 में, तमिलनाडु पहला राज्य था, जिसमें महिलाओं के लिए पंचायत सीट पांच साल की बजाय 10 साल के लिए आरक्षित की गई थी।

जिन महिलाओं से हमने बातचीत की, उनमें से कम से कम 30 फीसदी ने कहा कि वे अप्रैल 2017 में आगामी पंचायत चुनाव में फिर से चुनाव लड़ेंगी, भले ही वे महिलाओं के लिए आरक्षित सीट का प्रतिनिधित्व न करें।

बात थैलेयूथु की करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्णावेणी को सभी जातियों और समुदायों में स्वीकृति प्राप्त हुई है।

जब वह तिरुनेलवेली के अस्पताल में भर्ती थी तो कोनार युवा ने उन्हें रक्त दान दिया था। गांव के लोगों ने कहा कि वे उनके काम की सराहना करते हैं । उन्होंने कृष्णावेनी द्वारा सामना किए गए उत्पीड़न को स्वीकार किया। उनका सबसे बड़ा समर्थन महिला वार्ड के सदस्यों से आता है।

मुस्लिम वार्ड के सदस्य मोहम्मद ने स्वीकार किया, “पहले मुस्लिम पुरुषों के कहे में आकर मैं भी उन्हें समर्थन नहीं देती थी। लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि उन्हें बेवजह लोगों द्वारा परेशान किया जा रहा है तो फिर मैं उनका समर्थन करने लगा।”

उन पर हमला हुए छह वर्ष हो चुके हैं। वक्त के साथ शारीरिक घाव भर गए हैं। हालाकिं उनके गर्दन और हाथों पर अब भी गहरे निशान हैं। उन्हें लंबे समय तक बैठ कर काम करने में अब भी तकलीफ होती है। फिर भी

आज, कृष्णावेनी अपने उन्हीं हमलावरों के बीच रहती हैं, जिनका घर उनके घर से कुछ दूरी पर है। वह कहती हैं, “मैं जब भी उन्हें देखती हूं, मुझे गुस्सा आता है। कभी-कभी तो लगता है कि मैं बाहर जाऊं और उन्हें मार डालूं। उनकी वजह से ही मैंने इतना झेला है। ”

कृष्णावेनी वर्ष 2011 में फिर से चुनाव के लिए फिर खड़ी हुई थी और हार गई।हमने उनसे पूछा, सचमुच महिलाओं के लिए राजनीति में बाधा है?

"अन्तिमिकम" उन्होंने कहा- पितृसत्ता

चार लेखों की श्रृंखला का यह पहला लेख है।

(राव GenderinPolitics, की सह-संस्थापक हैं। यह एक ऐसी परियोजना है, जो भारत में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और शासन के सभी स्तरों पर राजनीतिक भागीदारी को रेखांकित करती है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 08 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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