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तमाम आलोचनाओं के बीच, वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में 15 फीसदी की कटौती की गई है, लेकिन अक्टूबर 2015 में जारी किए गए सरकारी आंकड़ो पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि, राज्यों के स्वास्थ्य बजट में - संयुक्त तौर पर – पहले ही, पिछले वर्ष 21 फीसदी की वृद्धि हुई है।

हालांकि, यह वृद्धि सभी राज्यों में एक समान नहीं हुई है, जो कि संकेत देते हैं कि राज्य – विशेष रुप से छोटे राज्य – पर्याप्त राशि जुटाने में असमर्थ हैं एवं वह स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च कर रहे हैं। पिछले एक वर्ष में केंद्रीय खर्च में कटौती की भरपाई करने के लिए कितने राज्य इस पर खर्च कर रहे हैं यह संख्या अब तक स्पष्ट नहीं है क्योंकि यह आंकड़े 2016 के अंत में ही उपलब्ध होगा।

जैसा कि हमने पहले भी अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि ग्रामीण इलाकों में रह रहे कम से कम 58 फीसदी भारतीय, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को चुनते हैं (शहरी इलाकों में 68 फीसदी) क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। लांसेट के इस पेपर के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्चों के कारण प्रत्येक वर्ष अतिरिक्त 3.9 करोड़ लोग वापस गरीबी की ओर पहुंचते हैं।

राज्यों को धन के हस्तांरण के अनुमान में- एक प्रक्रिया जिसे हस्तांतरण कहा जाता है, इसका प्रस्ताव 14वें वित्त आयोग ने दिसंबर 2014 में दिया था - 2014-15 बजट के दौरान, केंद्र ने राज्य योजनाओं के लिए भुगतानों में वृद्धि की थीः इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राज्य योजनाओं के लिए हस्तांतरण दोगुने से भी अधिक बढ़कर (108 फीसदी) 2,59,855 करोड़ रुपए (43 बिलियन डॉलर) हुए हैं।

राज्यों के लिए बहुत सी वृद्धियां, विशेष रुप से ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, स्थिरतापूर्वक हुई हैं। एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार, इसके पीछे का उदेश्य, “ इन योजनाओं के क्रियान्वयन में राज्य सरकारों को अधिक से अधिक स्वामित्व प्रदान करना एवं संसाधनों के कम विस्तार से बचना था। पुनर्गठित केन्द्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के मॉडल जारी है। राज्य/ केंद्र शासित राज्य योजना के तहत अधिक आवंटन इसे प्रतिबिंबित करता है।”

अक्टूबर 2015 में जारी किए गए, बजट(आय के अनुमान का उपयोग कर बजट तैयार किया जाता है, जो आम तौर पर वास्तविक कर के हिसाब के लिए छह महीने में संशोधित किया जाता है) के संशोधित अनुमान (आरई) के अनुसार, 2014-15 से 2015-16 के बीच, कर राजस्व के बिना शर्त हस्तांतरण में - या जिसे आधिकारिक भाषा में “अनटाइड फंड” कहा जाता है- 55 फीसदी की वृद्धि हुई है, यानि कि यह आंकड़े 3.38 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर 5.24 लाख करोड़ रुपए तक हुए हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में 6 फीसदी की वृद्धि हुई है, वर्ष 2013-14 में 29,492.5 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2014-15 में, जिस वर्ष राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया था, 31,274 करोड़ रुपए हुए हैं। ये कटौतियां एनडीए के दूसरे वर्ष 2015-16 में हुई थी।

स्वास्थ्य बजट में वृद्धि

छोटे राज्यों को नहीं मिल रही राशि, स्वास्थ्य फंडिग में कटौती

हालांकि खराब स्वास्थ्य संकेतों वाले 18 राज्यों ने - जिन्हें “अधिक-फोकस” वाले राज्य कहा जाता है- केंद्रीय कटौतियों के अनुमान में स्वास्थ्य पर खर्चों में वृद्धि की है, लेकिन हमारे विश्लेषण से पता चलता है किस प्रकार पर्याप्त राशि के अभाव में छोटे राज्यों ने स्वास्थ्य पर खर्च कम किया है।

हाई फोकस राज्यों में स्वास्थ्य पर आवंटन (रु)

वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 के बीच, झारखंड और ओडिशा ने अपने स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चे में 80 फीसदी एवं 70 फीसदी की वृद्धि की है। कुछ राज्यों ने मामूली वृद्धि की है; त्रिपुरा और मणिपुर ने स्वास्थ्य पर खर्च में कटौती की है।

राज्य बजट में, बुनियादी ढांचे बनाने के लिए राशि में वृद्धि हुई है। 2011-12 में 37.2 फीसदी से बढ़कर 2014-15 में यह आंकड़े 50 फीसदी हुए हैं। जबकि कर्मचारियों के वेतन और अन्य प्रशासनिक खर्चे पर फंड पर 62.2 फीसदी से गिरकर 49.9 फीसदी हुआ है।

दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक, की रिपोर्ट कहती है कि “एफएफसी (14वीं वित्त आयोग) की सिफारिशों के लागू होने के बाद से देश अपना पहला बजट चक्र पूरा करने के करीब है; उपलब्ध आंकड़ो में बड़े अंतरों के कारण इन सिफारिशों के वास्तविक असर का कोई बड़ा आंकलन करना मुश्किल है।”

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 26 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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