Higher Education_620

मुंबई: भारत दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इस देश में दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी उम्र वाली आबादी रहती है ।लगभग 861 मिलियन लोगों की आयु 15 और 64 वर्ष के बीच हैं। ये आंकड़े इस बात पर जोर देते हैं कि भारत के भविष्य के विकास के लिए शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है।

फिर भी, भारत के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक पदों का एक तिहाई खाली है। किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय का वैश्विक शीर्ष 100 विश्वविद्यालय में स्थान नहीं है । इस साल हासिल की गई उच्चतम रैंक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा 420 थी। यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि भारत में 36.6 मिलियन विश्वविद्यालय के छात्र हैं।

भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैंकिंग, 2018-19

Global Rankings Of Indian Universities, 2018-19
World RankInstitutionNational Rank
420Indian Institute of Science1
519Tata Institute of Fundamental Research2
615Indian Institute of Technology Bombay3
651Indian Institute of Technology Madras4
671Indian Institute of Technology Delhi5
676Indian Institute of Technology Kharagpur6
726University of Delhi7
732All India Institute of Medical Sciences, Delhi8
761Jadavpur University9
774Banaras Hindu University10

Source: Centre for World University Rankings

पिछले चार सालों से 2018 तक, भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में लगातार गिरावट आई है। 2014 में, भारतीय विश्वविद्यालय में सबसे उच्च रैंक 328 था, 2015 में यह 341 था, 2016 में, यह 354 हो गया और 2017 में, यह 397 था।

वैश्विक स्तर पर भारतीय विश्वविद्यालय के लिए सर्वोच्च रैंक

Highest Rank For An Indian University (World Wide)
YearInstitutionRank
2018-19Indian Institute of Science420
2017University of Delhi397
2016Indian Institute of Technology Delhi354
2015Indian Institute of Technology Delhi341
2014Indian Institute of Technology Delhi328

Source: Centre for World University Rankings

ये रैंक मुख्य रूप से शोध पत्रों की संख्या और गुणवत्ता पर यह ध्यान केंद्रित करते हैं कि शीर्ष-स्तर या प्रभावशाली पत्रिकाओं में कितने दिखाई देते हैं और अन्य शोधकर्ताओं द्वारा कितने उद्धृत किए जाते हैं।प्रोफेसर शिक्षण कर्तव्यों के अलावा अकादमिक शोध करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लेकिन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5,606 रिक्त पदों के साथ भारत प्रोफेसरों से कमी है, यानी रिक्त पदों का आंकड़ा 33 फीसदी है, जैसा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) के राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने 23 जुलाई, 2018 को लोकसभा में बताया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में, 2,802 (34 फीसदी) शिक्षण पद रिक्त हैं।

भारतीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में रिक्तियां

शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं खाली पद

खाली पदों ने शिक्षण और शोध की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, जैसा कि प्रोफेसरों ने इंडियास्पेंड को बताया है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के. लक्ष्मीनारायण ने कहा, "पिछले 15-20 वर्षों से, विश्वविद्यालयों की उपेक्षा की गई है। शिक्षकों की भर्तियां नहीं हुई है। अधिकांश पद रिक्त हैं। जब विश्वविद्यालय में कोई शिक्षक नहीं हैं, तो शिक्षा की गुणवत्ता तो कम होगी ही। "

लक्ष्मीनारायण ने आगे कहा, “स्थायी शिक्षकों के पास अनुसंधान के लिए ‘समय और जिम्मेदारी’ है, क्योंकि वे नौकरी सुरक्षा से चिंतित नहीं हैं। लेकिन आजकल, पूरी प्रणाली अनुबंध शिक्षकों की बन रही है।”

प्रोफेसर, जिनके पास स्थायी नौकरी नहीं है ( जिन्हें एड-होक कहा जाता है ) अपने आप को एक अनुबंध में पाते हैं, जो चार महीने से एक साल तक का हो सकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर इंडियास्पेन्ड को बताया, "कई वर्षों से भर्ती नहीं हुई है। बहुत सारे शिक्षक एड-हॉक के रूप में काम कर रहे हैं। मंत्रालय ने भर्ती प्रक्रिया को मंजूरी नहीं दी है। यहां तक ​​कि अगर भर्ती नहीं होती है, तो भी शिक्षण कार्य होता रहता है। इसलिए बड़ी संख्या में एड- हॉक शिक्षकों को नियुक्त किया जाता है, जिनके पास संस्थान से जुड़ने की भावनाएं नहीं हैं। "

सरकार कहती है कि भर्ती विश्वविद्यालयों द्वारा नियंत्रित की जाती है, और मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग केवल प्रक्रिया की निगरानी करते हैं। भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा को 23 जुलाई, 2018 को बताया, "रिक्तियों को भरना एक सतत प्रक्रिया है। विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्थान हैं, वे खाली शिक्षण पदों को भरने के लिए निहित हैं।"

मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्च शिक्षा के सचिव आर सुब्रमण्यम ने ईमेल के जरिए इंडियास्पेंड को बताया कि, “अगर अदालत के मामलों या ऐसी अन्य किसी कारण से भर्ती में देरी हो रही है, तो विश्वविद्यालयों को अनुबंध संकाय संलग्न करने के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। ”

पैसे का सवाल

खाली शैक्षणिक पदों को भरने में फंडिंग एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

लक्ष्मीनारायण कहते हैं, "सरकार का कहना है कि उनके पास प्रोफेसरों की भर्ती के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। तो, एक स्थायी शिक्षक को भर्ती करने की बजाय, जिसकी कीमत 100,000 रुपये से 150,000 रुपये है, विश्वविद्यालय तीन से चार अनुबंध शिक्षकों को नियुक्त कर लेता है।"

पश्चिमी देशों में आमतौर पर उच्च शिक्षा पर उनके बजट का अधिक अनुपात और शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का उच्च अनुपात खर्च किया जाता है, जैसा कि नीचे के चार्ट से पता चलता है।

जीडीपी ( 2014) के प्रतिशत के हिस्से के रुप में, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय

एचआरडी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2014 में शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4.13 फीसदी खर्च किया था। यह ब्रिटेन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीकी देशों से कम है, जो शिक्षा पर जीडीपी का क्रमशः 5.68 फीसदी, 5.22 फीसदी और 6.05 फीसदी खर्च करते हैं।2018-19 में शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में से इक्यावन अमेरिका और आठ ब्रिटेन से थे।

भारत सरकार अनुसंधान पर बढ़ते ध्यान के साथ उच्च शिक्षा वित्त पोषण बढ़ाने की योजना बना रही है। उच्च शिक्षा सचिव सुब्रह्मण्यम ने कहा है, "सरकार ने वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालयों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अन्य उपायों के साथ अनुसंधान के लिए धन की उपलब्धता पर ध्यान देना शुरु किया है।

(श्रेया रमन डेटा विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 16 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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