मुंबई: भारत के सभी राज्यों और केंद्रीय शासित राज्यों में से, केवल दिल्ली और चंडीगढ़ में जिला अदालतें नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम (एनसीएमएस) समिति द्वारा 2012 में निर्धारित इंफ्रास्ट्रक्चर दिशा-निर्देश को पूरा करती हैं। यह जानकारी एक थिंक टैंक, विधी सेंटर फ़ॉर लीगल पॉलिसी की एक नई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट में कहा गया है, अधिकांश जिला अदालतें दिव्यांग लोगों के लिए सुलभ नहीं हैं और उनमें से 60 फीसदी में पूरी तरह काम करनेवाला वॉशरूम नहीं है।

प्रत्येक जिला अदालत का मूल्यांकन नौ मापदंडों के आधार पर किया गया था - नेविगेशन, वेटिंग एरिया, स्वच्छता, बाधा मुक्त पहुंच, मामले प्रदर्शन, सुविधाएं, सुरक्षा और अदालत की वेबसाइट।

जबकि चंडीगढ़ (100 फीसदी) और दिल्ली (90 फीसदी) का सर्वेक्षण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा, वहीं बिहार (26 फीसदी), मणिपुर (29 फीसदी) और नागालैंड (29 फीसदी) सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य थे।

29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से, केवल पांच राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेश, 60 से अधिक का समग्र स्कोर प्राप्त करने में सक्षम थे (राज्यों की संख्या घटकर 28 हो गई है और 6 अगस्त, 2019 के बाद केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या बढ़कर नौ हो गई, अनुच्छेद 370 में बदलाव; जम्मू-कश्मीर अब एक राज्य नहीं है, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है, और लद्दाख भी अब केंद्र शासित प्रदेश है) ।

Source: Building Better Courts, a report by Vidhi Centre for Legal Policy

2012 के एनसीएमएस दिशा निर्देशों ने लंबित मामलों की उच्च संख्या से निपटने के उद्देश्य से अदालत के इंफ्रास्ट्रचर के लिए एक विस्तृत योजना बनाई थी। दिशा निर्देशों में कहा गया है, " बढ़ रहे लंबित मामलों में योगदान देने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक पर्याप्त संख्या में जजों और अपेक्षित इंफ्रास्ट्रचर की कमी है।"

258,965 लंबित मामलों के साथ, जिला और अन्य अधीनस्थ अदालतें, देश के कुल लंबित मामलों का 64.37 फीसदी बनाती हैं, जैसा कि कानून और न्याय मंत्री ने 19 जुलाई, 2019 को लोकसभा को बताया है।

निचली अदालत अधिकांश वादकारियों के लिए संपर्क का पहला बिंदु है और अध्ययन ने भारत भर में 665 जिला अदालतों का आकलन करके और 6,650 वादियों का साक्षात्कार करके मुकदमों पर दृष्टिकोण से पहुंच की जांच की है।

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रवेश

यह पता लगाने के लिए कि क्या अदालतें वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांग लोगों के लिए सुलभ हैं, सर्वेक्षण में तीन बुनियादी विशेषताओं की जांच की - रैंप और लिफ्ट, विजुअल एड की उपस्थिति और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए वॉशरूम। केवल 2 फीसदी अदालतों में विजुअल एड थे, 11 फीसदी में वॉशरूम थे और 27 फीसदी में रैम्प और लिफ्ट थे।

अधिकांश जिला न्यायालय दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ नहीं हैं

Source: Building Better Courts

केवल चंडीगढ़ की जिला अदालत ने इन तीनों विशेषताओं पर अच्छा प्रदर्शन किया। अन्य राज्यों में से कोई भी 50 फीसदी स्कोर नहीं कर सका। कुल 100 अंकों में से, लक्षद्वीप और दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेशों ने क्रमशः 67 और 55 का स्कोर बनाया।

स्वच्छता

665 अदालतों में से 585 ( 88 फीसदी ) में से एक वॉशरूम था, लेकिन केवल 40 फीसदी पूरी तरह कार्यात्मक थे। एक पूरी तरह कार्यात्मक वॉशरूम वह है, जिसमें पानी चल रहा हो, नियमित सफाई का प्रावधान हो और महिलाओं और पुरुष के लिए अगल-अलग जगह हो। गोवा के न्यायालयों के किसी भी वाशरूम में पानी नहीं था । नियमित रूप से सफाई नहीं थी, जिससे स्वच्छता के लिए सबसे कम अंक मिले।

60% District Courts Do Not Have Fully Functioning Washrooms
Washrooms Present 88
Male and Female Washrooms Present 85
Fully Functioning Washroom 40

Source: Building Better Courts

इसके अलावा, 15 फीसदी अदालतों में महिलाओं के लिए अलग वॉशरूम नहीं था। आंध्र प्रदेश (69 फीसदी), ओडिशा (60 फीसदी) और असम (59 फीसदी) में आधे से अधिक जिला अदालतों में महिलाओं के लिए अलग वॉशरूम नहीं थीं।

यह पूछे जाने पर कि वाशरूम की गुणवत्ता में सुधार कैसे किया जा सकता है, वादियों ने पानी और फ्लश सुविधा की आवश्यकता पर जोर दिया।

सुरक्षा

भारत के 89 फीसदी जिला अदालतों में सामान की स्कैनिंग की सुविधा नहीं है; 71 फीसदी में आग बुझाने का यंत्र नहीं है और 52 फीसदी में आपातकालीन निकास संकेत नहीं हैं।

89 फीसदी जिला अदालतें बगैर स्कैनिंग सुविधा के

Source: Building Better Courts

सुविधाएं

करीब आधी जिला अदालतों (46 फीसदी) में वेटिंग रूम नहीं था। राजस्थान (14 फीसदी) और बिहार (16 फीसदी) में वेटिंग रूम के साथ अदालतों की सबसं कम प्रतिशत थीं। दूसरी ओर, दिल्ली, गुजरात, गोवा, हिमाचल प्रदेश और मेघालय के सभी जिला न्यायालय परिसरों में वेटिंग रुम थे।

वादियों ने कहा कि प्रमुख सुधार में एक है कि वेटिंग रुम हो: अधिक सीटिंग (69 फीसदी), बेहतर वेंटिलेशन (37 फीसदी) और स्वच्छता का उच्च स्तर (26 फीसदी)।

टाइपिस्ट (100 फीसदी), फोटोकॉपीयर (98 फीसदी), स्टांप विक्रेता (97 फीसदी) और सार्वजनिक नोटरी (96 फीसदी) अधिकांश अदालतों में उपलब्ध थे, लेकिन प्राथमिक चिकित्सा देखभाल केवल 59 फीसदी अदालतों में उपलब्ध थी।

पहुंच और नेविगेशन

मूल्यांकन की गई अधिकांश अदालतें सार्वजनिक परिवहन (80 फीसदी) के माध्यम से सुलभ थीं और पार्किंग की जगह (81 फीसदी) थी। आंध्र प्रदेश, गोवा और केरल ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और गुजरात, सिक्किम और त्रिपुरा को जिला अदालतों तक पहुंच के मामले में सबसे नीचे स्थान दिया गया है।

केवल 20 फीसदी अदालतों के पास नक्शे थे और 45 फीसदी के पास हेल्प डेस्क थे। अधिकांश वादियों (59 फीसदी) ने वकीलों से अदालत परिसर के भीतर दिशा निर्देश मांगे।

(श्रेया रमन डेटा एनालिस्ट हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।