बेंगलुरु: “मैं एक इंजीनियर बनना चाहता हूं। यही कारण है कि मैंने विज्ञान का विकल्प चुना है," 16 वर्षीय नितिन कुमार ने अपनी कलाई के चारों ओर नारंगी बैंड को सहेजते हुए और धीरे से अपनी नीली-चेक शर्ट की पूरी आस्तीन को खींचते हुए बताया। उनके पिता, मुनियप्पा एन, जो कर्नाटक की राजधानी से लगभग 40 किलोमीटर दूर देवनाहल्ली में, एक रागी और सब्जी किसान थे, खुश लग रहे थे।

2018-19 में सीनियर स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र (एसएसएलसी या कक्षा 10) की परीक्षा में कर्नाटक में 83 फीसदी अंक प्राप्त करने वाले नितिन, 1,983 वशिष्ठ परगनिष्ठ गम्पू (VPG, या विशेष श्रेणी) के छात्रों के बीच टॉपर हैं। इन छात्रों ने परीक्षा के लिए गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान में विशेष कोचिंग प्राप्त की थी।

बैंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड की कॉर्पोरेट सोशल रेसपॉंसिब्लिटि शाखा द्वारा वित्तपोषित परियोजना में, मिड-टर्म परीक्षा में खराब प्रदर्शन करने वाले कुछ 1,983 छात्रों को शिक्षकों और अधिकारियों से अतिरिक्त ध्यान और समर्थन मिला। इनमें से लगभग 70 फीसदी छात्र परीक्षा पास कर गए।

पिछले वर्ष के अपने प्रदर्शन की तुलना में, जिले ने एसएसएलसी परीक्षा 2018-19 के लिए सूचीबद्ध किए गए 34 स्कूल जिलों के बीच रैंकिंग में 11 स्थानों का सुधार कर तीसरे स्थान पर रहा, जैसा कि इंडियास्पेंड द्वारा पहुंचे गए एसएसएलसी परिणामों पर 2019 की रिपोर्ट से पता चलता है। पास हुए छात्रों में से 88 फीसदी 2017-18 से छह प्रतिशत अंक और राज्य औसत (73.7 फीसदी) से 15 प्रतिशत अंक अधिक प्राप्त किया।चार तालुकों में से दो (जिलों के भीतर प्रशासनिक इकाइयां) - देवनहल्ली और नेलमनगला - ने क्रमशः राज्य में पांचवां और छठा स्थान हासिल किया।

जिले का प्रदर्शन महत्वपूर्ण है, क्योंकि कर्नाटक राज्य में दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे खराब एसएसएलसी पास प्रतिशत था - 73.7 फीसदी जबकि अन्य राज्यों के आंकड़े इस प्रकार थे - आंध्र प्रदेश का 94.88 फीसदी, केरल का 98.11 फीसदी, तेलंगाना का 92.43 फीसदी और तमिलनाडु का 95.2 फीसदी है।

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसइआर) 2018 में दिखाया गया है कि कई भारतीय बच्चे वयस्क जीवन में आवश्यक बुनियादी कौशल के बिना स्कूल छोड़ देते हैं,जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 जनवरी, 2019 को रिपोर्ट किया था।कक्षा 10 के छात्रों ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा आयोजित 2018 के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण में गणित में सबसे खराब प्रदर्शन किया।

एक विशेष श्रेणी

इस परियोजना का उद्देश्य, सितंबर 2018 में आयोजित मिड टर्म परीक्षाओं में 40 फीसदी से कम अंक हासिल करने वाले छात्रों के प्रदर्शन में सुधार करना था। यह काफी हद तक सफल रहा - 70 फीसदी वीपीजी छात्र परीक्षा पास हुए, 30 फीसदी (584) ने प्रथम श्रेणी (60 फीसदी -70 फीसदी अंक) और 31 फीसदी (618) ने द्वितीय श्रेणी (50-59%) प्राप्त किया।

मिड टर्म और एसएसएलसी परीक्षा के बीच के पांच महीनों के लिए, केंद्रों पर आयोजित फ्री-ऑफ-कॉस्ट वीकेंड कक्षाओं में विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए परियोजना ने वीपीजी छात्रों को चार विषयों में ( गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान ) गहन कोचिंग प्रदान की, जैसा कि हमने बताया है।

पाठ्यक्रम को कस्टम बनाया गया था और सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को तैनात किया गया था। छात्रों को परिवहन सेवा और भोजन भी दिया गया। बेंगलुरु ग्रामीण जिले के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आर लाथा ने कहा, "इसका उद्देश्य केवल छात्रों को उत्तीर्ण करने में मदद करना नहीं था, बल्कि उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार सीखने का माहौल भी देना था।"

ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक शिक्षा पहल, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बेंगलुरु जिला संस्थान से श्रीकांत श्रीधरन ने इंडियास्पेंड को बताया, "मुझे लगता है कि कोई भी पहल जो पीछे रहने वाले छात्रों को उनके सीखने की राह में में मदद करती है, वह एक अच्छा है। इस मामले में लगभग 2,000 ऐसे छात्रों की पहचान की गई और उन्हें उनकी पढ़ाई के लिए मदद मिली। इस तरह की पहल को केवल 10 वीं कक्षा में ही नहीं, बल्कि कक्षा 1 से 5 तक भी ऐसे सभी छात्रों तक पहुंचाया जाना चाहिए।"

मार्च 2018 में लता के सीईओ के रूप में कार्यभार संभालने के एक महीने बाद, 2017-18 के एसएसएलसी परिणाम घोषित किए गए। पिछले वर्ष की तुलना में पांच स्थान नीचे जिले को 14 वां स्थान दिया गया। तत्कालीन जिला मंत्री कृष्ण बायर गौड़ा ने एक समीक्षा बैठक के दौरान जिले के प्रदर्शन के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और " एक रणनीति तैयार करने के लिए मुझ पर छोड़ दिया", जैसा कि लता ने इंडियास्पेंड को बताया।

बेंगलुरु ग्रामीण जिले की विशेष कोचिंग पहल में नितिन कुमार, कीर्तन एस, रक्षिता एम और नीथरा के छात्र थे और उन्होंने कर्नाटक में माध्यमिक विद्यालय की परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। 83 फीसदी स्कोर के साथ नितिन उन छात्रों के बीच सबसे उपर रहे।

एक ‘अनौपचारिक समिति’ जिसमें सीईओ, एक शिक्षा सलाहकार, मुख्य लेखा अधिकारी, मुख्य योजना अधिकारी, सार्वजनिक शिक्षा उप निदेशक और एक शिक्षा अधिकारी शामिल थे, उन्होंने उन छात्रों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया, जिन्होंने मिड टर्म परीक्षा में 40 फीसदी से कम अंक प्राप्त किए थे।

लता ने कहा, "हमने उन छात्रों को भी शामिल किया जो वीपीजी में एक विषय में फेल हो गए थे।" नितिन उनमें से एक था।

समिति ने कई तरह के कारकों को महसूस किया, जैसे ‘शिक्षण का अव्यवस्थित तरीका, शिक्षकों की तरफ से प्रोफेश्नल टच की कमी, किसी स्कूल में कर्मचारियों की कमी और कुछ अन्य में कर्मचारियों का अधिशेष, धीमी गति से सीखने वालों के लिए व्यक्तिगत ध्यान की कमी’, छात्रों के कम प्रतिशत के लिए जिम्मेदार थे, जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।

अक्टूबर 2018 तक, एक क्लस्टर में विभिन्न स्कूलों के वीपीजी छात्रों को हेडमास्टर या हेडमिस्ट्रेस (एचएम) के चार्ज के तहत एक नोडल केंद्र में समायोजित किया गया था। एक केंद्र में प्रत्येक कक्षा में 50 छात्र थे। लता ने कहा, "हमने सुनिश्चित किया कि क्लस्टर में सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढांचे के साथ एक स्कूल को नोडल केंद्र के रूप में चुना जाए।"

कुल मिलाकर, 33 नोडल केंद्रों में 42 कक्षाएं थीं।

Source: CEO, Zilla Panchayat, Bengaluru Rural

शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मदद से पहचाने गए जिले में ‘सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों’ से युक्त एक टीम ने वीपीजी पाठ्यक्रम बनाया। संबंधित विषय के शिक्षकों ने विषयों को शॉर्टलिस्ट किया। टाइम टेबल आवंटित किए गए थे और नोडल केंद्रों पर शिक्षकों को प्रत्येक शनिवार को कवर करने के लिए विषय सौंपे गए थे।

शैक्षिक सलाहकार और मुख्य समिति से जुड़े आर नागराजा ने इंडियास्पेंड को बताया, “हमने एचएम और शिक्षकों के लिए ओरिएंटेशन रखा।हम उन्हें विश्वास में लेना चाहते थे। एचएम के ओरिएंटेशन के दौरान हमने स्पष्ट किया कि उनका सहयोग, सद्भावना और नेतृत्व आवश्यक था।"

सिलेबस को डिजाइन करने वाली समिति का हिस्सा रहे बसेट्टीहल्ली के सरकारी हाई स्कूल में एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक भास्कर आर. एन. ने इंडियास्पेंड को बताया, "हालांकि सामाजिक विज्ञान को केवल दिसंबर तक के लिए रखा था, लेकिन हमने शिक्षकों के लिए दो दिवसीय ओरिएंटेशन किया था। बहुत सारी अध्ययन सामग्री हैं, लेकिन हमें इस बात का फैसला करना था कि वीवीआई समूह के लिए थोड़े समय में क्या और कैसे पढ़ाया जाए।"

हालांकि छात्रों का चयन करना एक महत्वपूर्ण पहलू था। अक्टूबर और फरबरी के बीच की जरूरत और पांच महीने की छोटी खिड़की को प्राथमिकता देने के लिए एक पाठ्यक्रम बनाना बहुत जरूरी था।

टीम का हिस्सा रहे, 15 साल के अनुभवी गणित के शिक्षक स्वामी एच आर ने इंडियास्पेंड को बताया, "गणित शिक्षकों के एक समूह ने एक पाठ्यक्रम बनाया, जिसमें पूरे पाठ्यक्रम का 40 फीसदी शामिल था। पिछले साल शिक्षकों को एक समस्या का सामना करना पड़ा, क्योंकि राज्य सरकार ने सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) पाठ्यक्रम की शुरुआत की थी और यह पहला बैच था और हमें प्रश्नपत्र का पैटर्न नहीं पता था।"

प्रत्येक शनिवार को कक्षाएं आयोजित की जाती थीं, और बैंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड से लगभग 31 लाख ($ 45,000) की वित्तीय सहायता देकर छात्रों को परिवहन और भोजन प्रदान किया था।

नोडल केंद्रों की निगरानी एचएम द्वारा की गई, जो लता को रिपोर्ट करते थे। उन्होंने बताया, "मैं साप्ताहिक जांच करती थी ।"

बेंगलुरू ग्रामीण जिले के सीईओ आर लता ने वशिष्ठ परगनिथा गंपू पहल का नेतृत्व किया। यह जिला कर्नाटक राज्य में 2018-19 की मिड टर्म स्कूल परीक्षा में तीसरे स्थान पर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11 स्थान ऊपर है।

प्रिपेरटॉरी के परिणाम अपर्याप्त

दिसंबर में प्रिपेरटॉरी परीक्षाओं के परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं थे। जबकि लता वीपीजी छात्रों के लगभग 90 फीसदी के पास होने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन केवल 70 फीसदी ने ही किया। मुद्दे का एक हिस्सा पाठ्यक्रम में बदलाव था, जैसा कि उन्होंने बताया।

जिले के सभी गणित शिक्षकों को सभी 1,983 छात्रों के पहले प्रिपेरटॉरी के पेपर का विश्लेषण करने के लिए बुलाया गया था। लता ने बताया, "हम एक व्यापक राय चाहते थे, क्योंकि गणित को एक कठिन विषय के रूप में देखा जाता है। इसमें अंतिम परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता थी।"

चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि एक कार्य पुस्तिका बनाई जाए। सबसे अनुभवी गणित शिक्षकों में से पांच को अन्य जिम्मेदारियों से छूट दी गई थी। गणित शिक्षक और उन लोगों में से एक, जिन्होंने कार्यपुस्तिका बनाने में मदद की, स्वामी ने बताया “हमने 66 प्रश्नों के साथ एक कार्यपुस्तिका बनाई, ताकि एक छात्र को पूरे पाठ्यक्रम द्वारा डर नहीं लगे। यह पाठ्यक्रम का 25 फीसदी था। "

कार्यपुस्तिका में प्रश्न निर्माण और ड्राइंग पर आधारित थे, और शिक्षकों के अनुभव के आधार पर संभावित प्रश्न रखे गए थे।

एक दशक के अनुभव वाली विज्ञान शिक्षक रोहिणी हेगड़े ने कहा, "हमारा ध्यान आरेख, प्रमेय और वर्गीकरण जैसे बुनियादी विषयों को सुनिश्चित करने और छात्रों को पूरी तरह से पढ़ाने पर केंद्रित था।"

बैंगलोर ग्रामीण जिला विशेष श्रेणी के छात्रों के लिए बनाई गई गणित कार्यपुस्तिका का एक पेज। आप यहां कार्यपुस्तिका तक पहुंच सकते हैं। Source: CEO, Zilla Panchayat, Bengaluru Rural

बाद में, कार्यपुस्तिका का उपयोग जिले के सभी छात्रों तक पहुंचाया गया था, लता ने कहा, " हम यह सुनिश्चित करना चाहता था कि वीपीजी छात्रों ने इस पर काम किया या नहीं। लगभग 44 अंक के सवाल अंतिम परीक्षा में इस कार्यपुस्तिका से आए थे।”

नितिन ने इंडियास्पेंड को बताया, छोटे समूहों में छात्रों ने सवाल पूछने और अपनी शंकाओं को दूर करने का विश्वास पाया। “मेरा उद्देश्य 90 फीसदी से अधिक स्कोर करना था। अब मेरी बहन जो इस साल अपने एसएसएलसी की परीक्षा देखी, वह कहती है कि मुझसे ज्यादा अंक प्राप्त करेगी।”

चार विषयों - गणित, अंग्रेजी, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के शिक्षकों ने वीपीजी पहल की आवश्यकताओं के अनुरूप एक पाठ्यक्रम बनाया। वीपीजी के 70 फीसदी छात्रों में से 30 फीसदी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।

एक अन्य वीपीजी छात्र, कॉमर्स में ग्रैजुएट करने के बाद एक बैंक में काम करने की इच्छा रखने वाली, रक्षिता एम को 79 फीसदी अंक मिले। रक्षिता ने कहा, "कक्षाओं से मेरे संदेह दूर हुए और नए शिक्षकों से मिलना और नए दोस्त बनाना अच्छा लगा।" उनके पिता, मुनिराजू के एम, जो कक्षा 6 तक पढ़े हैं और एक मजदूर हैं, ने कहा कि वह चाहते थे कि उनकी बेटी अपनी पढ़ाई जारी रखे। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि यह बच्चों के लिए एक अच्छी पहल है और इसे जारी रखना चाहिए।"

हैप्पी होम स्कूल

तीन प्रिपरेटॉरी परीक्षाओं के बाद, 20 फीसदी छात्र अभी भी असफल हो रहे थे, कुछ ने 28 से कम अंक प्राप्त किए थे।शिक्षा सलाहकार, नागराजा के परामर्श से, 'हैप्पी होम स्कूल' नामक एक पहल शुरू की गई, जो प्रत्येक स्कूल में 20 छात्रों के एक छोटे समूह को पढ़ाएगी। कोई शिक्षक प्रवास नहीं होगा क्योंकि कक्षाएं नियमित शिक्षकों द्वारा सिखाई जाएंगी।

यह समझाते हुए कि क्यों छात्रों को शिक्षकों के साथ फर्श पर चटाई पर बैठना चाहिए, नागाराजा ने कहा, "यह पेस्टालोजी की बच्चों को उनकी ही शैली में सीखने में मदद करने के लिए शैक्षिक दर्शन पर आधारित है। "

"प्रत्येक छात्र से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह पढ़ाए जा रहे किसी विशेष विषय को दोहराए, जिसे तब बड़े समूह द्वारा दोहराया जाएगा।"

उन्हें A1 समूह कहा जाता था। एक सिलेबस जल्दी से तैयार किया गया था, क्योंकि परीक्षा शुरू होने में केवल 10 दिन बचे थे। बच्चों को अकादमिक रूप से अच्छा या बुरा नहीं कहा जाता था। नागराज ने बताया, “ कई धीमे सीखने वाले होते हैं। हम सभी से एक गति से सीखने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।“

प्रिपरेटॉरी परीक्षा में 28 फीसदी से कम हासिल करने वाले छात्रों की मदद के लिए ‘हैप्पी होम स्कूल’ विकसित किया गया था। यह शैक्षणिक सलाहकार आर नागराजा द्वारा जोहान पेस्टलोजी के दर्शन का उपयोग कर, विकसित किया गया था।

नेत्रा के और कीर्तन एस सहित छात्रों ने उठाया लाभ

कीर्तन अपने परिवार में एसएसएलसी पास करने वाली पहली शख्स हैं। जबकि उसकी मां ने कक्षा 7 तक पढ़ाई की है, उसके पिता शिक्षित नहीं हैं, और दोनों सीमेंट मोर्टार श्रमिकों के रूप में काम करते हैं। उसका भाई एक ड्राइवर है, जिसने कक्षा 9 के बाद स्कूल छोड़ दिया था।

उसने इंडियास्पेंड को बताया, “हम अपने शिक्षकों के आसपास बैठे थे। वह समूह हमारी वीपीजी कक्षाओं की तुलना में छोटा था, जिसने मुझे अधिक मदद की।”

नेत्रा के, जो अंतिम प्रिपरेटॉरी में अपने अधिकांश विषयों में असफल हो गई थी, उन्होंने हैप्पी होम स्कूल में भाग लेने के बाद 67 फीसदी स्कोर किया। कैंटीन में काम करने वाली उसकी मां, गायत्री को खुशी हुई कि इस पहल का फल सामने आया है।

चन्नाहल्ली में एक अंग्रेजी शिक्षक और प्रोजेक्ट के साथ जुड़ी रूपा ने कहा, “शुरू में हमने नहीं सोचा था कि कुछ छात्र पास होंगे। लेकिन परिणाम अच्छे थे।बच्चे शुरू में वीपीजी कक्षाओं के बारे में अनिच्छुक थे, उन्हें डर था कि उन्हें 'सुस्त' छात्र कहा जाएगा।”

आगे के कदम: औपचारिक और सुव्यवस्थित प्रक्रिया

अधिकारियों और शिक्षकों ने इंडियास्पेंड को बताया कि खराब प्रदर्शन के लिए सरकारी स्कूलों में अक्सर छात्रों को निजी स्कूलों द्वारा छोड़े गए छात्रों को समायोजित (जिससे एसएसएलसी में निजी स्कूलों का प्रदर्शन प्रभावित न हो) करना पड़ता है।

"इसी समय, सरकारी स्कूलों में नामांकन कम हो रहा है, और निजी क्षेत्र द्वारा बच्चों की विशाल संख्या को बहुत ही सतही शिक्षा प्रदान की जा रही है,” जैसा कि श्रीधरन ने कहा। पुराने बुनियादी ढांचे और कुछ पॉकेट में शिक्षक की कमी भी बड़ी चुनौतियां हैं।

हालांकि इस प्रयास के परिणाम सामने आए हैं, लेकिन चुनौती अगले साल भी इसे जारी रखने की है।

लता ने बताया, "हमारे पास कुछ बेहतरीन शिक्षक और अधिकारी हैं, जिन्होंने हमें अच्छा प्रदर्शन करने में मदद की है। लेकिन हमें इस प्रक्रिया को औपचारिक बनाने और कारगर बनाने की जरूरत है। मैं नहीं चाहती कि जब मैं स्थानांतरित हो जाऊं और एक अलग जिले में चली जाऊं तो यह बंद हो जाए। इसे जारी रखना चाहिए और किसी खास व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। ”

“व्यक्ति संचालित कार्यक्रम बहुत आसानी से अपना महत्व खो देते हैं”, जैसा कि श्रीधरन ने कहा। उन्होंने यह सुझाव दिया कि इस तरीके को औपचारिक रूप दिया जाना चाहिए और सिस्टम में शामिल किया जाना चाहिए।

श्रीधरन ने यह भी चेतावनी दी है कि छात्रों को मानकीकृत आकलन में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार करने वाली पहल, जरूरी नहीं कि छात्रों के सीखने में वृद्धि करे। उन्होंने कहा, "फिर भी, इस तरह के मूल्यांकन प्रदर्शन छात्रों को प्रशिक्षण देने के प्रमुख उपायों में से एक है, ऐसे मूल्यांकन छात्रों के स्कूल से उच्च शिक्षा के लिए आगे बढ़ाते हैं, इसलिए यह उनके लिए उपयोगी है ।"

( पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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