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आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए खुद को नमांकित कराते लाभार्थी। एक नए अध्ययन के मुताबिक इस कार्यक्रम से 15 करोड़ लाभार्थियों के व्यय में किसी भी तरह की कमी नहीं देखी गई है।

भारत का 9 वर्षीय सरकारी स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। लेकिन एक नए अध्ययन के मुताबिक इस कार्यक्रम से गरीब परिवारों पर पड़ने वाला स्वास्थ्य देखभाल लागतों का बोझ कम नहीं हुआ है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) गरीबी रेखा (बीपीएल) के नीचे रहने वाले पांच लोगों के परिवार के लिए 30,000 रुपए तक की चिकित्सा बीमा देती है। यहां बता दें कि गरीबी रेखा शहरी भारत में प्रतिदिन 33 रुपए और ग्रामीण में 27 रुपए प्रति दिन खर्च करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है।

एक वैश्विक पत्रिका ‘सोशल साइंस मेडिसिन’ में प्रकाशित 2017 के एक अध्ययन के मुताबिक, इस कार्यक्रम ने अपने 15 करोड़ लाभार्थियों के स्वास्थ्य व्यय में किसी भी कमी का नेतृत्व नहीं किया है। भारत में स्वास्थ्य से संबंधित बाहर का खर्च, जो परिवारों को ऋण और गहरी गरीबी में धकेलता है, दुनिया के सर्वोच्चतम में से एक है। 50 देशों के निम्न-मध्यम आय समूह में, वर्ष 2014 में सबसे बड़ी स्वास्थ्य खर्च के बीच, भारत छठे स्थान पर था। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 8 मई, 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

आरएसबीवाई के बावजूद गरीब अभी भी स्वास्थ्य देखभाल के लिए भुगतान क्यों कर रहे हैं? अध्ययन में कहा गया है कि कम नामांकन, अपर्याप्त बीमा कवर और आउट पेशेंट की लागत के लिए कवरेज की कमी इसके कारण हैं।

आउट पेशेंट उपचार की लागत, जिसे गरीब लोग अस्पताल में भर्ती करना पसंद करते हैं, भारत में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय का 65.3 फीसदी है, जैसा कि वर्ष 2016 ब्रुकिंग्स रिपोर्ट में बताया गया है। लेकिन ये आरएसबीवाई द्वारा कवर नहीं किए गए हैं।

वर्ष 2017 के अध्ययन में पाया गया है कि यह घरों में आउट पेशेंट की लागत में संभावित 23 फीसदी की वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कारण है, जो 2010 से पहले आरएसबीवाई में नामांकित हैं। इस अध्ययन में मार्च 2012 तक कार्यक्रम का मूल्यांकन किया गया है।

इसके अलावा, जबकि 2004 और 2014 के बीच अस्पताल में भर्ती की लागत 10 फीसदी से अधिक हुई है, आरएसबीवाई का बीमा कवरेज अपरिवर्तित रहा है।

आरएसबीवाई एक स्वास्थ्य सेवा 'प्रयोग' के रूप में शुरू किया गया था

अप्रैल 2008 में, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने आरएसबीवाई का शुभारंभ किया था। आरएसबीवाई वेबसाइट के मुताबिक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना प्रदान करने में विफल रहने के बाद सरकार ने बीमा योजनाओं के साथ ‘प्रयोग’ करने का निर्णय लिया था।

आरएसबीवाई पहले से मौजूद बीमारियों को कवर करता है और अस्पताल में भर्ती के खर्चों के साथ-साथ 100 रुपए की परिवहन लागत भी प्रदान करता है। सार्वजनिक और चयनित निजी अस्पताल, दोनों ही इस योजना के हिस्से हैं।

पंजीकरण के दौरान लाभार्थी 30 रुपए का भुगतान करते हैं और शेष प्रीमियम का भुगतान राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा किया जाता है। जनगणना द्वारा बनाए गए बीपीएल परिवारों की सूची को ही आरएसबीवाई में नामंकिंत किया जाता है। यह कार्यक्रम भारत के 707 में से लगभग 460 जिलों को कवर करता है।

करीब 40 फीसदी बीपीएल लाभार्थी अभी भी शामिल नहीं

करीब 5.9 करोड़ योग्य परिवारों में से 3.63 करोड़ (61 फीसदी) से अधिक आरएसबीवाई द्वारा कवर किया गया था। हालांकि, इसके प्रभाव को ध्यान देने योग्य होने के लिए गरीबों के बड़े हिस्से को कवर करने की आवश्यकता है, जैसा कि ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ’ (आईआईपीएच), ‘भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य फाउंडेशन’, और अध्ययन के लेखकों में से एक अनूप करण बताते हैं।

राज्य अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का कवरेज

Source: Rashtriya Swasthya Bima Yojana; Data as of March 2017

करण कहते हैं, "छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्य जहां उच्च कवरेज है वह गरीबों के लिए इनपेशेंट लागतों पर कुछ खास प्रभाव पड़ा है।"

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, खराब स्वास्थ्य और शिक्षा संकेतक वाले दो राज्य असम और बिहार में, केवल 50 फीसदी से 60 फीसदी बीपीएल परिवारों को कवर किया गया है।

आरएसबीवाई के बारे में केवल 35 फीसदी उपयुक्त परिवार जानते हैं: अध्ययन

कम नामांकन के मुख्य कारणों में से एक कारण यह है कि पर्याप्त लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं। सभी उपयुक्त परिवारों में से 35 फीसदी को योजना के बारे में जानकारी नहीं थी। यह जानकारी मुंबई के ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ द्वारा 2013 में किए गए एक अध्ययन में सामने आई है। 15 करोड़ पंजीकृत लाभार्थियों में से 1.4 करोड़ (9.94 फीसदी) से अधिक अस्पताल नहीं गए थे। करण कहते हैं, "योजना के लाभ पर गरीबों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।"

अस्पताल में भर्ती कराने की लागत में वृद्धि, कवरेज अपरिवर्तित

करण कहते हैं कि 30,000 रुपए का बीमा कवर पांच लोगों के परिवार के लिए अपर्याप्त है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के मुताबिक, वर्ष 2014 में, ग्रामीण भारत में अस्पताल में भर्ती होने की औसत लागत 14,935 थी और शहरी इलाकों में यह 24,435 रुपए थी।

2014 के दशक के अंत में अस्पताल में भर्ती होने की लागत में ग्रामीण क्षेत्रों में 10.1 फीसदी और शहरी भारत में 10.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। लेकिन नौ वर्षों में आरएसबीवाई बीमा राशि योजना अपरिवर्तित रहे हैं।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में जारी वर्ष 2013 के एक अध्ययन के मुताबिक, सामान्य सर्जरी के लिए ये खर्च हैं: निचले पेट के सीसेरियन के लिए 2,469 रुपए से 41,087 रुपए, हिस्टेरेक्टोमी के लिए 4,124 रुपए से 57,622 रुपए और एन्डेक्टक्टोमी के लिए 2,421 रुपए से 3616 रुपए।

अध्ययन कहती है कि, "इस योजना की अपेक्षाकृत कम कवरेज सीमा के कारण कुछ परिवारों का आरएसबीवाई सीमा के बाहर अस्पताल सेवाओं का उपयोग करने का नेतृत्व किया हो सकता है। " सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2012 में, इनपेशेंट व्यय में करीब 9 फीसदी ने 30,000 रुपए से अधिक का भुगतान किया है। औसत वार्षिक व्यय 75,000 से लेकर 80,000 रुपए तक है।

गरीब लोग आउटपेशेंट सेवाएं पसंद करते हैं, जो आरएसबीवाई कवर नहीं करती

आरएसबीवाई आउट-पेशेंट की देखभाल की लागत का भुगतान नहीं करता है, जिसमें अस्पताल में भर्ती शामिल नहीं होता है। आमतौर पर, इसमें डॉक्टर की परामर्श शुल्क, दवाएं और चिकित्सा उपकरण लागत शामिल होते हैं।

हालांकि, स्वास्थ्य पर सभी खर्च का 63.5% आउट पेशेंट लागत से संबंधित है। इसका मतलब है कि एक योजना जिसका लक्ष्य बीपीएल परिवारों पर खर्च के बोझ को कम करना है, वहां एक महत्वपूर्ण कारक अनुपस्थित है।

करण कहते हैं कि, "गरीब आमतौर पर आउट पेशेंट उपचार पसंद करते हैं, क्योंकि इसमें अस्पताल में भर्ती नहीं होता है, जिससे उनकी मजदूरी पर कोई असर नहीं पड़ता है।"

बीपीएल रोगियों के लिए घटिया उपचार

हालांकि, आरएसबीवाई, अस्पताल में भर्ती होने के दौरान दवाइयों के लिए भुगतान करता है, लेकिन कई अस्पतालों इन्हें देने से इंकार कर करते हैं और कभी-कभी अनावश्यक सेवाओं के लिए जोर देते हैं जो अस्पताल में भर्ती होने की लागत में बढ़ोतरी करते हैं। करण कहते हैं, "स्वास्थ्य प्रदाताओं का विनियमन जरूरी है।"

अस्पताल गरीब मरीजों के अनुकूल नहीं होता है और यह उन्हें चिकित्सा सहायता प्राप्त करने से वंचित करता है। आईआईपीएच की अध्ययन कहती है, “ आरएसबीवाई द्वारा अस्पतालों में देरी से प्रतिपूर्ति की वजह से कई अस्पताल प्रशासनिक चिंताओं के कारण आरएसबीवाई रोगियों को स्वीकार करने से इंकार कर देते हैं। ”

कैशलेस बेनिफिट ट्रांसफर को सुविधाजनक बनाने के लिए आरएसबीवाई लाभार्थियों को स्मार्ट कार्ड दिए गए हैं, जो फिंगरप्रिंट के जरिए सत्यापित किए जा सकते है। लेकिन इन कार्डों का उपयोग शायद ही दो कारणों के लिए किया जाता है।

पहला कार्ड के इस्तेमाल के लिए रोगियों को अस्पताल के लोग हतोत्साहित करते हैं।

दूसरा, सबसे अधिक लाभार्थियों को पता नहीं है कि अस्पतालों द्वारा दी गई सेवाओं का कैसे उपयोग किया जाए, जैसा कि ‘ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट’ द्वारा 2014 का एक अध्ययन में पाया गया है। रोगी के घर से पैनल की अस्पताल की दूरी एक ऐसा कारक है जो लाभार्थियों को हतोत्साहित करता है।

योजना को प्रभावी बनाने पर विचार

नामांकन बढ़ाना और इसे कवर करने वालों को शिक्षित करना आरएसबीवाई को अधिक प्रभावी बनाने के सुझावों में से कुछ हैं, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है।

लेखकों ने यह भी सुझाव दिया है कि आउट पेशेंट लागतें विशेष रूप से पुरानी स्थिति से प्रेरित हैं, और लंबे समय में इलाज महंगे हैं।

वियतनाम के अनिवार्य, सरकारी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी पर विचार करें। 2002 में पॉलिसी के सुधार के बाद इसमें दोनों रोगी आउट पेशेंट और इन पेशेंट और आउट पेशेंट खर्च शामिल हैं। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप खर्च कम हुआ, हालांकि इसके चलते अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ा था। इसके परिणामस्वरुप स्कूलों और कार्यस्थल पर अनुपस्थिति भी कम हुई।

विशेषज्ञों ने इलाज व्यय को कम करने के लिए प्राथमिक देखभाल को मजबूत करने की सलाह दी है। पड़ोसी देशों श्रीलंका और थाईलैंड ने बेहतर कवरेज प्रदान करने के लिए अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मजबूत किया है।

(सालवे विश्लेषक हैं और यदवार प्रमुख संवाददाता हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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