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भारत में पिछले 14 वर्षों में, 2001 से 2014 के बीच ठंड के कारण कम से कम 10,933 लोगों की मौत हुई है यानि औसतन प्रति वर्ष 781 लोग ठंड का शिकार बनते हैं। ओपन सरकारी डाटा ( ओजीडी ) से प्राप्त आंकड़ों पर किए गए प्राकृतिक कारणों से होने वाले आकस्मिक मृत्यु के विशलेषण में यह आंकड़े सामने आए हैं।

ठंड का शिकार अधिकतर राज्यों में रह रहे बेघर लोग बनते हैं। सुप्रीमकोर्ट द्वारा बेघर जनता के लिए बेहतर आश्रय प्रदान करने के आदेश देने के बाद भी राज्यों द्वारा ठोस कदम नहीं लिए गए हैं।

अधिक बेघर पुरुष होते हैं ठंड का शिकार

यदि आंकड़ों पर नज़र डाले तो ठंड से मरने वाली बेघर महिलाओं की तुलना में बेघर पुरुषों की संख्या पांच गुना अधिक है। ठंड की चपेट में जहां 1,780 महिलाओं की जान गई है वहीं ठंड से मरने वाले पुरुषों की संख्या 9,152 दर्ज की गई है।

ठंड के कारण होने वाली मौतों का लिंग वितरण (2001-2014)

ठंड से अधिक पुरुषों की मौत होने का एक कारण अधिक बेघर पुरुषों की जनसंख्या, विशेष कर शहरी इलाकों में, हो सकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का बेघर लिंग अनुपात ( प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या ) 694 है। यह आंकड़े ग्रामीण इलाकों के लिए 878 हैं जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए 558 हैं।

पुरुषों में 45 से 59 आयु वर्ग के लोग सबसे अधिक कमज़ोर होते हैं एवं उनकी जान को सबसे अधिक खतरा होता है जबकि 60 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के लिए ठंड से जान जाने का सबसे अधिक जोखिम होता है।

वार्षिक आपदा सांख्यिकीय समीक्षा 2012 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2014 के बीच ठंड से सबसे अधिक मृत्यु, वर्ष 2012 में हुई है। 2012 में करीब 1,000 मौत के आंकड़े दर्ज किया गया है। इसी साल दिसंबर के महीने में शीतलहर से ही करीब 249 लोगों की मौत हुई है जोकि दुनिया में किसी भी प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतों में छठी सबसे बड़ी संख्या है।

राष्ट्रीय जलवायु केंद्र द्वारा जारी वार्षिक जलवायु सारांश 2012 के अनुसार 2012 के दिसबंर के अंतिम 10 दिनों में सामान्य से नीचे 5 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ भयंकर शीतलहर का प्रकोप था। उसी वर्ष के शुरुआत में, गृह मंत्रालय , भारत सरकार ने ठंडी हवाओं/ शीत लहर को प्राकृतिक आपदाओं की सूची में शामिल किया गया था जोकि सरकारी सहायता के लिए वरणीय हैं।

ठंड के कारण मृत्यु ( 2001-2014 )

पंजाब के अलावा गरीब राज्य सबसे अधिक प्रभावित

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2009 के बीच 13 , 12, 12 और 10 शीत लहरों के साथ ठंड से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले राज्य उत्तर प्रदेश (यूपी) , बिहार, राजस्थान और पंजाब रहे हैं।

2001 से 2014 के बीच, ठंड के मौसम के कारण सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में हुई है। उत्तर प्रदेश में न केवल शीतलहर का सबसे अधिक प्रकोप रहा है बल्कि यहां बेघर लोगों की संख्या भी सबसे अधिक , 18.56 फीसदी, है। पंजाब एवं बिहार में भी शीतलहर का काफी प्रकोप रहा है लेकिन इन राज्यों में बेघरों की जनसंख्या, 2.63 फीसदी एवं 2.57 फीसदी, कम है।

हालांकि ठंड से होने वाली मौतों की संख्या के संबंध में पंजाब एवं बिहार, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।

दूसरे राज्यों के साथ इन दोनों राज्यों को पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने “बेघर लोगों के प्रति असंवेदनशील दृष्टिकोण रखने ( जिनमें से कई लोगों की ठंड के कारण मौत हो जाती है )”, पर कड़ी फटकार लगाई थी एवं सर्दियों के आने से पहले पर्याप्त आश्रयों स्थापित करने के आदेश दिए थे।

राज्यवार ठंड के कारण कुल मौतों का वितरण (2001-2014)

राज्यों की अक्षमता या लापरवाही?

भारतीय राज्यों का अपने सबसे कमजोर लोगों – बेघर – लोगों को बेहतर आश्रय देने में अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों को बेघर लोगों के लिए बेहतर आश्रय प्रदान करने के कई बार आदेश देने ( 2001 एवं 2011 ) के बाद सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों ने 2012 में 16 राज्यों के अनुपालन की एक रिपोर्ट - "शहरी बेघर आबादी के लिए स्थायी शेल्टर " में मूल्यांकन किया। राज्यों को अच्छा , औसत , बुरा और कोई अनुपालन नहीं के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

अच्छा अनुपालन उन राज्यों को दिया गया जिन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अनिवार्य 60 फीसदी से अधिक स्थायी आश्रयों का निर्माण किया है। जिन राज्यों ने 30 फीसदी से 60 फीसदी के बीच स्थायी आश्रयों का निर्माण किया है उन्हें औसत के रुप में वर्गीकृत किया गया है। 20 फीसदी से 30 फीसदी स्थायी आश्रय निर्माण करने वाले राज्यों को बुरा अनुपालन के रुप में वर्गीकृत किया गया है जबकि 20 फीसदी से नीचे वाले राज्यों को कोई अनुपालन या जान-बूझकर अनुपालन न करने के रुप में वर्गीकृत किया है।

इनमें से किसी भी राज्य ने कोर्ट की आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया है।

दिल्ली , उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के औसत के रूप में वर्गीकृत किया गया है एवं अधिक आश्रयों खोलने और अस्थायी और बेकार आश्रयों को स्थायी बना कर और बेहतर कर सकते हैं। नौ राज्यों में बुरा अनुपालन पाया गया है। अधिकर राज्यों में गैर कार्यात्मक या अधूरे आश्रय देखे गए हैं। बनाए गए कई घर निराशाजनक हैं और इसी कारण इस्तेमाल नहीं होते हैं। महाराष्ट्र एवं पस्चिम बंगाल में एक भी कार्यात्मक आश्रय नहीं बनाया गया है इसलिए दोनों राज्यों को जान-बूझकर अवज्ञा श्रेणी में रखा गया है।

Compliance LevelStates
GoodNone
AverageDelhi, Uttar Pradesh, Tamil Nadu
PoorAndhra Pradesh, Bihar, Chattisgarh, Gujarat, Jharkhand, Karnataka, Madhya Pradesh, Odisha, Rajasthan, Uttarakhand
No Compliance/ Wilful DisobedienceMaharashtra, West Bengal

Source: Supreme Court Commissioners

राजस्थान का मामले थोड़ा अजीब है। गौर हो कि राजस्थान, बेघर जनता को आश्रय प्रदान करने में नकाम होने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आलोकन में आया है। राजस्थान में शीतलहर का खासा प्रकोप रहता है एवं यहां 10.24 फीसदी लोग बेघर हैं। लेकिन फिर भी ठंड से होने वाली मौतों की संख्या के संबंध में यह राज्य नौवें स्थान पर है जबकि इसे आश्रय निर्माण के मामले में बुरे श्रेणी में रखा गया है। राज्य को सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों की रिपोर्ट में बेघरों के लिए स्थायी आश्रयों के निर्माण न करने के लिए दोषी पाया गया था।

शहरीकरण में वृद्धि के साथ, शहरी क्षेत्रों में बेघर जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। 2001 से 2011 के बीच, शहरी बेघर जनसंख्या में 20.5 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि ग्रामीण बेघर जनसंख्या में 28.4 फीसदी की कमी आई है। यह आंकड़े बड़े पैमाने पर लोगों का ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर विस्थापित होने का संकेत देती है और जो शहरों में स्थायी ठिकाना बनाने में सक्षम नहीं हैं।

With increasing urbanisation, the homeless population in urban areas is fast rising. Between 2001 and 2011, the urban homeless population grew by 20.5%, while the rural homeless population has decreased by 28.4%, suggesting large-scale displacement of the poor--from rural areas to urban areas--who cannot afford basic shelter.

( चतुर्वेदी स्वतंत्र पत्रकार और opiniontandoor.in पर ब्लॉगर है )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 27 नवम्बर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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