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मुंबई में एक ट्रैफिक जंक्शन पर भीख मांगती कुष्ठ रोग से ग्रस्त महिला

भीख मांगने का काम 20 राज्यों और भारत के दो केंद्र शासित प्रदेशों में एक अपराध है। यह निश्चित तौर पर गरीबी पर समाज की शर्मिंदगी और सार्वजनिक स्थानों के अतिक्रमण पर लोगों के झुंझलाहट को दर्शाता है।

18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में कानूनों पर किए गए हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि ज्यादातर जगहों पर ‘गरीब दिखने’ पर लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है। कानून में ऐसे लोगों को पुलिस द्वारा बिना वारंट के गिरफ्तार करने और लंबे समय तक या अनिश्चित काल तक के लिए सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में भेजने की अनुमति है। यह वैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। कानून की भाषा सहज ढंग से कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अदालतों को समाज के एक वर्ग के प्रति भेदभाव भरे दृष्टिकोण को और वैध बनाने की अनुमति देती है।

कानून और गरीबी के विशेषज्ञ उषा रामनाथन ने दिल्ली में ‘एंटी बेगिंग कानून’ पर किए गए विश्लेषण में पाया कि इस कानून में गहरी खामियां हैं। भीख मांगने के संबंध में यह अन्य राज्यों के कानून के लिए भी सच है और इस समुदाय के साथ सरकार की वचनबद्धता पर पुनर्विचार और पुनर्लेखन की मांग करता है।

अक्टूबर 2016 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने निराश्रित लोगों के लिए एक नए मॉडल बिल पर परामर्श किया, जिसे राज्य सरकारों को टिप्पणी के लिए भेजा गया है। मॉडल कानूनों को केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों द्वारा आम तौर पर राज्य सरकारों द्वारा एक स्वैच्छिक आधार पर अपनाने के लिए तैयार किया जाता है, कभी-कभी परिवर्तन के साथ या बिना परिवर्तन के।

पर्सन इन डेस्टिटूशन(प्रोटेक्शन, केयर एंड रीहबिलटैशन)मॉडल बिल-2006 में बेघर लोगों,भीख मांगते लोगों और विकलांग लोगों के पुनर्वास का उदेश्य रखा गया है। यह बार-बार भीख मांगने और संगठित भीख मांगने के अलावा सामान्य ढंग से भीख मांगने को अपराध नहीं मानता है और आश्रितों की हिरासत की अनुमति नहीं देता है। इसकी बजाय अच्छी तरह से सुसज्जित और पुनर्स्थापित पुनर्वास केंद्र स्थापित करने के लिए, व्यावसायिक प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान करने के लिए, संबंधित राज्य सरकार की ड्यूटी लगाने के साथ-साथ यह निर्धनों को संसाधन उपलब्ध कराने के पर केंद्रित है। मॉडल बिल में निराश्रित लोगों की पहचान करने और समुदायों को जागरूक बनाने के लिए साधन और संगठनात्मक इकाइयों की स्थापना की परिकल्पना की गई है।

हालांकि, बिल में भीख मांगने को लेकर प्रगतिशील और मानवीय दृष्टिकोण की कमी है, और एक स्वस्थ बहस के बाद उस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

कौन है भिखारी?

सरकारी आंकड़ों (वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर) में पूरे देश में 400,000 से अधिक निराश्रित लोगों को ‘भिखारी’ या ‘खानाबदोश’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

सरकार के आंकड़ों में 'भिखारी' के रूप में 400,000 से अधिक लोगों का वर्गीकरण किया गया है

Source: Lok Sabha Unstarred Question No. 457, 01.12.2015; Press Information Bureau, ‘Empowerment of Beggar Population’, 26 April 2015

लेकिन यह भरोसे का आंकड़ा नहीं है। सरकार भी मानती है कि कोई प्रामाणिक डेटा उपलब्ध नहीं है। उधर कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार के आंकड़े भिखारी की संख्या को कम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2011 की जनगणना में दिल्ली में भिखारियों की संख्या 2,187 है। हालांकि, सरकारी विभागों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा पिछले अनुमानों में वर्ष 2004 और वर्ष 2010 के बीच 60,000 और 100,000 के बीच के आंकड़े बताए गए हैं।

इसके अलावा, भिखारी विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए और हिरासत में गए लोगों की संख्या के बारे में जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं है। ययहां तक कि उन पांच राज्यों में भी जहां कानून के व्याख्यान में भीख मांगने को अपराध माना जाता है, आंकड़े सार्वजनिक रूप से सुलभ ढंग में उपलब्ध नहीं हैं।

अधिकांश राज्यों का कानून (असम और तमिलनाडु को छोड़कर) खुद को जीवित रखने के साधन न होने पर अपनी बिगड़ी हुई वेषभूषा के साथ सार्वजनिक जगह पर भटकने को भीख मांगना कहता है।

दूसरे शब्दों में, यदि आप गरीब दिखते हैं, तो आपको गिरफ्तार किया जा सकता है। काम करने वाले बेघर लोगों या सड़कों पर भटकने वाले जनजातियों को पुलिस द्वारा पकड़ने की कई घटनाएं देखी गई हैं।

पश्चिम बंगाल के कानून में ऐसी भाषा का उपयोग है जो औपनिवेशिक कानून की याद दिलाते हैं, जैसे कि एक शब्द है ‘खानाबदोश’। कुछ कानून पूर्व-आजादी के समय (तमिलनाडु) तो कुछ हाल ही में वर्ष 2004 (सिक्किम) में बनाए गए हैं, लेकिन सब जगह भीख मांगने को आपराधिक गतिविधि के रूप में देखा गया है।

कर्नाटक और असम में, धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए एक अपवाद तैयार किया गया है जो धार्मिक दायित्वों को पूरा करने या मंदिरों और मस्जिदों में भीख मांगते हैं। ये कानून धर्म के नाम पर भीख मांग रहे हैं। फिर भी, गायन, नृत्य और करतब दिखा कर मांग करना भीख मांगने की परिभाषा के अंतर्गत आता है और यह अवैध है।

हालांकि, तमिलनाडु में सड़कों पर करतब और प्रदर्शन दिखाने वालों को भिखारी की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है।

अधिकांश राज्यों में कानूनों के तहत (कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर, बिहार और पश्चिम बंगाल के अपवाद के साथ) अदालत भी उन लोगों की गिरफ्तारी का आदेश दे सकती है, जो भीख मांगने के अपराध में गिरफ्तार व्यक्ति पर निर्भर हैं। इसलिए अगर एक व्यक्ति को भीख मांगने के लिए गिरफ्तार किया गया है तो उसकी पत्नी और बच्चों को भी हिरासत में लिया जा सकता है।

हिमाचल प्रदेश में कानून एक कदम आगे चला जाता है, जिससे अदालत उन लोगों को जेल भेजने की इजाजत दे सकती है जो जान-बूझकर जेल जाने के लिए भीख मांगते हैं। इस कानून के तहत, ‘ आदतन भिखारी बने रहने के लिए’ दंडित किया जा सकता है।

इस प्रावधान के तहत पुलिस पूरे परिवार को गिरफ्तार कर सकती है।मॉडल बिल की परिभाषा व्यापक रूप से मौजूदा राज्य कानूनों के समान ही है, जिसमें निर्वाह के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान पर भटकने को ‘भीख मांगने’ के दायरे में देखा गया है। यहां एक सामान्य धारणा काम करती है कि गरीब जैसा दिखाई देने वाला कोई भी भिखारी हो सकता है। हालांकि यह बिल दंड से ज्यादा पुनर्वास पर केंद्रित है।

भिखारी मुक्त सड़क

सड़कों पर कोई भीख न मांगे इसलिए स्थानीय पुलिस या कल्याण विभाग के अधिकारी आवधिक छापे मारते हैं। नियमित रुप से पकड़े जाने वालों में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य शामिल हैं, जिनके लिए भीख मांगना आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है।

कई राज्यों में भीख मांगना संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है। इस अपराध का पता लगाने के लिए एक संक्षिप्त जांच की जा सकती है और दंडित किया जा सकता है।

इंडियन कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर के तहत, जिन अपराधों को पुलिस के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है उन्हें दंडात्मक अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। दरअसल किसी भी व्यक्ति से शिकायत किए बिना और अदालत से पूर्व अनुमति के बिना भी पुलिस जांच शुरू और गिरफ्तारी कर सकती है। अधिकांश राज्य कानून, भिखारी होने के शक पर पुलिस को बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की इजाजत देता है।

भीख मांगने का अपराध गैर-जमानती भी है, यानी, आरोपी को जांच चलने के दौरान जेल से बाहर निकलने के लिए अदालत में आवेदन करना पड़ता है। भारत में नि: शुल्क कानूनी प्रतिनिधित्व के बारे में जागरूकता का स्तर बहुत कम है। कार्यकर्ताओं ने अक्सर कानूनी प्रतिनिधित्व को दयनीय हालत में देखा है। भीख मांगने के आरोपी व्यक्ति को आम तौर पर कानूनी प्रतिनिधित्व देने का कोई मतलब नहीं होता है, और उसे जमानत मिलना बहुत कठिन होता है।

राष्ट्रमंडल खेलों के लिए शहर को "सुशोभित" करने के लिए उठाए गए कदम में दिल्ली सरकार ने शहर को भिखारी मुक्त बनाने का फैसला किया। इसके लिए ‘मोबाइल कोर्ट’ की स्थापना की गई, जिसमें एक छोटे बस में बैठे किसी एक मजिस्ट्रेट की देखरेख में भिखारियों का हटाने की कोशिश की गई।

सवाल उठता है कि अगर भीख मांगने का ‘अपराध’ इतना गंभीर है कि उसे संज्ञेय और गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत किया गया है, तो अपराध की स्थापित करने के लिए पूछताछ और जांच का ‘सार’ कितना पर्याप्त है?

हालांकि मॉडल बिल हर भीख मांगने को अपराधी नहीं मानता है। लेकिन यह बार-बार भीख मांगने वालों को पुनर्वास केंद्रों में अनिश्चित काल के लिए हिरासत में भेजने की अनुमति देता है और इसे उसके हित के रूप में देखा जाता है।

इसके अलावा, बिल में पहचान पत्र जारी करने की परिकल्पना की गई है, जो संभवत: निगरानी के उद्देश्यों से इस्तेमाल किया जा सकता है। यह प्रावधान पुलिस को छापे मारने और 'भिखारी हटाने की मुहिम' में सहायता भी कर सकता है।

कहां जाते हैं गिरफ्तार भिखारी?

राज्यों के कानून घोषित भिखारियों और उनके आश्रितों को अलग-अलग नाम-प्रमाणित संस्था, कार्यशाला, विशेष घर, भिखारी का घर या राहत केंद्र के नाम से पुकारे जाने वाले सरकारी संस्थानों तक भेजने का सुझाव देते हैं।

कुछ राज्यों में वर्कहाउस (जहां शारीरिक श्रम का प्रावधान है) और विशेष घ (शारीरिक श्रम के बिना) के बीच एक भेद किया जाता है। इन संस्थानों की स्थिति पर कोई भी व्यापक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन अलग-अलग रिपोर्टों में इन घरों की बद्तर स्थिति और हर साल यहां एक बड़ी संख्या में मौत का भी संकेत मिलता है।

यह महसूस करना बहुत आसान है कि किस प्रकार इन कानूनों में भीख मांगना और अपराध के बीच सामान्यतः गठजोड़ को दर्शाया जाता है। ‘बंबई प्रिवेंशन ऑफ बीगिंग एक्ट’- 1959 के संस्करणों को अपनाए जाने वाले राज्यों (उदाहरण के लिए, दिल्ली) ने प्रमाणित संस्था में हिरासत को सामान्य दंड के रुप में निर्धारित किया है।

आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों में, अदालत में या तो व्यक्ति को जेल में भेज दिया जाता है या किसी संस्थान में उन्हें भेज दिया जाता है। पश्चिम बंगाल में व्यक्ति को केवल तब ही रिहा किया जा सकता है, जब घर के प्रबंधक को नौकरी मिलती है या अगर कोई रिश्तेदार व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करता है।

अपराध दोहराए जाने पर सख्त सजा मिलती है। अगर किसी व्यक्ति को तीसरी बार भीख मांगे देखा जाता उन्हें 10 साल तक के लिए किसी सरकारी आश्रय स्थल में भेजा जा सकता है। जिसमें से दो साल के लिए जेल भी हो सकती है। विश्लेषण किए गए नौ राज्यों में न्यायाधीश अभियुक्त व्यक्ति को 10 वर्षों तक संस्था में भेज सकते हैं। 10 साल की अधिकतम सजा देने के दौरान, न्यायाधीश को एक संस्था में आठ साल और दो साल के लिए जेल भेजने का अधिकार है।

ऐसा ही मॉडल असम, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी चलाया जाता है, हालांकि यहां सजा की अवधि कम यानी तीन से पांच साल के बीच होती है। कर्नाटक और जम्मू और कश्मीर जैसे कुछ राज्यों में न्यायाधीश केवल अपराध दोहराने वाले को ही संस्था भेज सकती है। हिमाचल प्रदेश में अपराध दोहराने वाले (जो एक महिला या बच्चा नहीं है) को केवल जेल भेजा जाता है। महिलाओं और बच्चों को यहां ‘बेगर्स होम’ भेजा जाता है।

यहां अधिकतम निर्धारित सजा 3 से 10 साल तक होती है। तो सवाल यह उठता है कि क्यों दूसरे राज्यों की तुलना में कुछ राज्यों में भीख मांगना ज्यादा गंभीर अपराध है।

कुछ राज्यों में जैसे हरियाणा और पंजाब में कानून प्रमाणित संस्थान (अनिवार्य चिकित्सा जांच के बाद) में अनिवार्य शारीरिक श्रम का प्रावधान है। अनिवार्य श्रम से फिर पुनर्वास की बजाय हिरासत की प्रकृति दंडनीय दिखने लगता है।

कई राज्यों के कानून किसी प्रमाणित संस्था में अपने उंगलियों के निशान देने से इनकार करने पर अदालतों को किसी व्यक्ति को तीन महीने तक जेल भेजने की शक्ति प्रदान करता है।

गुजरात जैसे कुछ राज्यों में, आरोपियों द्वारा नियमों का पालन करने से इनकार करने पर प्रमाणित संस्था में बची अवधि को जेल में बदला जा सकता है।

राज्य कानून और दोबारा भीख मांगने के लिए अधिकतम सजा

StateLaw on BeggingAvailability in Public DomainMaximum Punishment (for Repeat Offenders)
Andhra PradeshYesYes3 years in workhouse OR 5 years in jail
AssamYesYes3 years in institution (of which one year can be

in jail)

BiharYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

ChhattisgarhYesNoNA
DelhiYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

GoaYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

GujaratYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

HaryanaYesYes5 years in institution (of which one year could

be in jail)

Himachal PradeshYesYesImprisonment of not less than 3 months
Jammu and KashmirYesYesBeggar's home for not less than 7 years
JharkhandYesNoNA
KarnatakaYesYes3 years in relief centre
KeralaYesNoNA
Madhya PradeshYesNoNA
MaharashtraYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

PunjabYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

SikkimYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

Tamil NaduYesYes10 years in work house or special home (of which

two years could be in jail)

TelenganaYesYes3 years in workhouse OR 5 years in jail
UttarakhandYesNoNA
Uttar PradeshYesYes5 years in institution (of which two years could

be in jail)

West BengalYesYesIndefinite detention in a home (till employment

is obtained)

Daman and DiuYesYes10 years in institution (of which two years

could be in jail)

Source: State laws compiled and analysed by Nyaaya here.

भिखारी बच्चों पर क्या कहता है कानून?

भीख मांगने पर राज्य के कानूनों में बच्चों के बर्ताव के प्रति उनके दृष्टिकोण में मूलभूत रूप से भिन्नता है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2015 के तहत भीख मांगने वाले बच्चों को बाल कल्याण समितियों द्वारा देखभाल और संरक्षण की सुविधा मिलनी चाहिए। दूसरी ओर कुछ राज्य के कानून उन्हें अपराधी मानते हैं और कानून के तहत उन्हें किसी संस्थान में भेजा जा सकता है।

बच्चा माने जाने की परिभाषा में भी विसंगतियां दिखती हैं।विभिन्न राज्य कानूनों में अधिकतम आयु 14 से 18 के बीच है।

वर्ष 2010 के दिल्ली जिला न्यायालय के फैसले के अनुसार दिल्ली में बाल भिखारी से जुड़े कानून व्यवस्था में असंगतियां को मान्यता दी गई है । कानून के अनुसार, पांच वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों द्वारा भीख मांगे जाने पर व्यस्क के सामान ही दंड दिया जा सकता है। जबकि बाल न्याय कानून के अनुसार इन बच्चों को बाल कल्याण समिति भेजा जाना चाहिए।

भीख मांगने वाले विकलांग व्यक्ति

जो लोग भीख मांगते हैं, उनमें से ‘अंधा, अपंग या असाध्य असहाय’ होने पर कानून किसी प्रमाणित संस्था में अनिश्चित काल के लिए हिरासत में रखने की अनुमति देता है। कानून "असाध्य असहाय" को परिभाषित नहीं करता है और इसलिए अनिश्चितकालीन हिरासत को मनमाने ढंग से लागू किया जा सकता है।

कानूनी तौर पर स्वीकृत अनिश्चितकालीन हिरासत को लेकर भी संविधान प्रति लोगों का विरोध है। कर्नाटक में समान प्रावधान में प्रयुक्त भाषा दिलचस्प है - जो लोग ‘दुर्बल, विकलांग, जबरदस्त या किसी भी घृणित या असाध्य रोग से पीड़ित हैं’ उन्हें गिरफ्तार किए जाने के तुरंत बाद रिश्तेदारों तक भेज देना चाहिए। राज्य केवल तभी तस्वीर में आता है, जब जिम्मेदारी सौंपने वाला कोई रिश्तेदार न हो।

इसी प्रकार इन कानूनों के तहत मानसिक बीमारी और कुष्ठ रोग से ग्रस्त लोगों को आम तौर पर एक साथ मिलाकर किसी मानसिक अस्पताल में भेज दिया जाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि कुष्ठ रोग के गंभीर बीमारी रोगियों के साथ वास्तव में कैसा बर्ताव किया जाना चाहिए।

दंडात्मक कार्रवाई से पुनर्वास तक

भिखारियों को अपराधी मान कर बर्ताव करने वाले विभिन्न राज्य सरकार समाज में उन्हें पुन: स्थापित करने के अपने कर्तव्य में असफल रहे हैं। जिसके परिणामस्वरुप वे फिर से भीख मांगने लगते हैं। ऐसा करने से उन्हें फिर से शिकायत होती है और अपराध दोहराने वालों के लिए दंड सख्त होती है

भारत के नीति निर्माताओं को भीख मांगने वाले लोगों पर एक सुसंगत और मानवीय दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए, जो दंडनीय न हो बल्कि उनके पुनर्वास पर केंद्रित हो।

मॉडल बिल पुनर्वास की दिशा में बदलाव का प्रतीक है। लेकिन मॉडल बिल को किस तरीके से अपनाना चाहिए इस पर राज्य सरकारों सूचित सार्वजनिक बहस का आयोजन करना चाहिए।

(nyaaya.in भारत के कानूनों का एक स्वतंत्र ऑनलाइन स्रोत है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 1 अप्रैल 2017 को indiaspend.com में प्रकाशित हुआ है।

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