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गुजरात में खेड़ा जिला का धुंडी गांव: चटाई पर बैठ कर चाय की चुस्की लेते 72 वर्षीय किसान फोडाभाई परमार। परमार के पीछे खेतों में सौर पैनल चमक रहे हैं। परमार उन छह किसानों में से एक है, जिन्होंने आपस में मिलकर गुजरात के अहमदाबाद से लगभग 90 किमी दूर, खेड़ा जिले के धुंदी गांव में दुनिया की पहली सौर सिंचाई सहकारी समिति बनाई है।

‘सौर पम्प इरिगेटर्स सहकारी एंटरप्राइज’ (स्पाइस) ने मई, 2016 में काम करना शुरू किया । इससे न केवल डीजल से सौर पंप पर निर्भरता बढ़ी, बल्कि जरूरत से ज्यादा उर्जा को स्थानीय स्तर पर उपयोग के लिए बेचा भी गया। सदस्यों के पास अब बिजली बचाने का उत्साह है और वे अपने भूजल के उपयोग को कम कर रहे हैं। बची हुए बिजली को वे स्थानीय स्तर पर उपयोग के लिए ‘मध्य गुजरात विंज कंपनी लिमिटेड’ (एमजीवीसीएल) को बेचते हैं। इस तरह एक समानांतर राजस्व स्रोत बन रहा है।

भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग करने का अनुमान है। ये आंकड़े कुल वैश्विक उपयोग एक चौथाई से अधिक है। भारत में 60 फीसदी से अधिक खेती भूजल पर निर्भर है और अगर वर्तमान रुझान जारी रहते हैं तो अगले 20 वर्षों में भारत में लगभग 60 फीसदी जलस्तर एक गंभीर स्थिति में होंगे, जैसा कि विश्व बैंक ने 2012 की इस रिपोर्ट में कहा है।

निर्धारित पैमाइश

स्पाइस ने एमजीवीसीएल को 4.63 / किलोवाट (किलोवाट घंटे, ऊर्जा की इकाई) की दर से बिजली बेचने के लिए 25 साल के लिए बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

आईडब्ल्यूएमआई-टाटा जल नीति कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित इस पत्र के अनुसार, छह सौर पंपों और 56.4 केडब्ल्यूपी की कुल क्षमता के साथ धुंडि में सिंचाई प्रणाली से 85,000 किलोवाट / वर्ष सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की संभावना है। हम बता दें कि इसी कार्यक्रम ने शुरूआत में और फिर किस्तों में स्पाइस को आर्थिक सहायता दी है।

पंप मालिक सिंचाई के लिए प्रति वर्ष 40,000 किलोवाट का उपयोग करेंगे। शेष प्रति वर्ष 45,000 किलोवाट ग्रिड को बेचकर, 3,00,000 रुपए की कमाई करेंगे। दिसंबर, 2016 तक, छह सदस्यों ने एमजीवीसीएल को अतिरिक्त ऊर्जा की बिक्री से 1,60,000 रुपए से अधिक कमाई की ।

आईडब्ल्यूएमआई-टाटा जल नीति कार्यक्रम के सलाहकार नेहा दुर्गा ने इंडियास्पेंड को बताया, "ग्रिड के लिए बिजली की बिक्री से सौर पंपों द्वारा उत्पन्न होने वाली बिजली के लिए मूल लागत मिल जाती है ।" वह आगे कहती हैं, "भले ही किसान सिंचाई के लिए वर्ष के 100 दिनों के लिए पंपों का इस्तेमाल करते हैं, अन्य 200 दिनों के लिए ग्रिड को हरित बिजली मिल रही है। साथ ही, किसानों को अब अपनी ऊर्जा और पानी के उपयोग पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। "पेपर के अनुसार, " धुंदी में दिख रहे सौर पंप केवल सिंचाई संपत्ति नहीं, बल्कि एक आय-उत्पन्न करने वाली परिसंपत्ति है, जो जलवायु के लिए हितकारी है और जिसमें जोखिम-मुक्त आमदनी की क्षमता है। ''

आईडब्लूएमआई- टाटा वॉटर पॉलिसी प्रोग्राम, श्रीलंका के कोलंबो स्थित एक गैर-लाभप्रद अनुसंधान संगठन इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट और मुंबई स्थित सर रतन टाटा ट्रस्ट के बीच एक साझेदारी है।

सौर पंप स्थापित करना महंगा है...

वर्ष 2015 में, सिंचाई के लिए 9 मिलियन डीजल पंपों का इस्तेमाल किया रहा था, जो महंगे और बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक थे। मोटे तौर पर इनके इस्तेमाल का कारण बिजली कनेक्शन की कमी या बद्तर बिजली की उपलब्धता है।

एक सौर पंप की अग्रिम लागत, पारंपरिक पंप से लगभग 10 गुना ज्यादा है। यह निश्चित तौर पर खरीदारों को हतोत्साहित करता है। नई दिल्ली स्थित एक गैर लाभकारी संस्था ‘शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन’ द्वारा वर्ष 2014 के विश्लेषण के अनुसार, सौर पंपों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए पूंजी सब्सिडी और वित्त का समर्थन जरूरी है।

इस तर्क को देखते हुए, अग्रिम पूंजी लागत के 90 फीसदी तक सब्सिडी प्रदान करते हुए नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने वर्ष 1992 से पूरे भारत में सिंचाई और पीने के पानी के लिए सौर जल पम्पिंग सिस्टम स्थापित करने के लिए एक कार्यक्रम चलाया है।

विभिन्न राज्य सरकारें अलग-अलग ढंग से सब्सिडी भी प्रदान करती है। राजस्थान में किसान सौर पंप की कुल लागत का केवल 14 फीसदी का भुगतान करते हैं। महाराष्ट्र में किसान केवल 5 फीसदी का भुगतान करते हैं।

वर्ष 2016 के सीईईडब्लू पेपर के अनुसार, एक ही समय में कई राज्य कृषि बिजली के कनेक्शन और खपत पर सब्सिडी देते हैं। इससे तुलना करते हुए लगता है कि सौर-उर्जा सिंचाई प्रणाली खर्चीला है।

सौर पंपों में शून्य ईंधन लागत शामिल हैं, लेकिन बड़ी प्रारंभिक पूंजी की जरूरत

Source: Council on Energy, Environment and Water

हालांकि, सोलर पंप, सस्ती और निर्बाध बिजली प्रदान करके वर्षों में स्वयं के लिए भुगतान करते हैं, जबकि रखरखाव में बहुत कम खर्च होता है। इसके विपरीत, डीजल पंप के ईंधन और रखरखाव के लिए प्रति वर्ष 20,000 से 25,000 रुपये तक का खर्च आता है।

स्पाइस का अनुभव अजमाने योग्य है। शुरुआत में, जो किसान शामिल हुए थे, उन्होंने सौर पंपों के लिए लागत में 5000 / केडब्ल्यूपी का योगदान दिया था। बाकी 59,000 / किलोवाट, आईडब्लूएमआई की ओर से रिसर्च ग्रांट के तौर पर रियायती था।

56.4 किलोवाट क्षमता वाली परियोजना, जिसमें छह सौर पंप और बुनियादी ढांचा जैसे ग्रिड लाइन और बिजली के खंभे शामिल थे, के लिए 50 लाख रु का खर्च आया, जैसा कि दुर्गा ने बताया है। ग्रिड के निर्माण पर 15 लाख रु खर्च किए गए थे और शेष सौर पंपों की लागत थी। दुर्गा के अनुसार, " लाभ देखते हुए, सामूहिक रूप से शामिल होने वाले चार नए किसानों ने बाद में 25,000 / केडब्ल्यूपी का भुगतान किया, जो प्रारंभिक प्रतिभागियों की तुलना में चार गुना अधिक है।"

छूट प्राप्त सौर पंप अत्यधिक भूजल उपयोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं…

अक्टूबर, 2016 तक पूरे देश में 92,305 सौर पंप स्थापित किए गए हैं। अकेले 2015-16 में 31,472 सौर पंप लगाए गए हैं। एमएनआरई के मुताबिक, ये आंकड़े पिछले 25 वर्षों के दौरान कुल स्थापित सौर पंप की तुलना में अधिक हैं।

धुंडि सौर अनुभव के आधार पर आईडब्ल्यूएमआई-टाटा ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों द्वारा सौर पंपों पर पूंजीगत लागत सब्सिडी को 2016 में औसतन 90,000 की पेशकश से लगभग 50,000 / केडब्ल्यूपी तक घटाया जाए और बचत का इस्तेमाल किसान 7.0-7.5 / केडब्ल्यूएच के फीड-इन टैरिफ में ग्रिड को बिजली बेचने का अवसर देने के लिए करे।

किसानों को ग्रिड से पूर्ववर्ती बिजली उपयोग के द्वारा सौर पंप मिलेंगे, और इसके बदले उपयोगिता को बिजली की बिक्री के लिए बिजली खरीद की गारंटी मिल जाएगी।

दुर्गा सरकारी योजना के तहत प्रदान किए गए सब्सिडी वाले सौर पंप से भूजल के अधिक उपयोग को दशकों से देश के कई हिस्सों में किसानों को मिल रही मुफ्त बिजली से जोड़कर देखती हैं।

दुर्गा कहती हैं, "पानी की निकासी पर कोई नियंत्रण तंत्र है। ग्रिड से जुड़े पंपों में, आप कभी भी लाइन बंद कर सकते हैं। प्रति वर्ष किसानों को बिजली कनेक्शन जारी किए जाने पर नियंत्रण कर सकते हैं, लेकिन सौर पंपों के साथ आप यह नहीं कर सकते। यह ऊर्जा का 25 साल का मुफ्त स्रोत है। "

जल संसाधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल नीति-2012 में सिफारिश की थी कि भूजल निकासी के लिए बिजली के उपयोग को विनियमित किया जाना चाहिए। नीति कहती है कि, "कृषि उपयोग के लिए भूजल पम्पिंग के लिए अलग-अलग इलेक्ट्रिक फिडर पर विचार किया जाना चाहिए। " स्पाइस मॉडल इस उद्देश्य के साथ अच्छी तरह से फिट बैठता है

(पाटिल विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। यह रपट वीडियो वालंटियर्स के सहयोग से तैयार की गई है। वीडियो वालंटियर्स एक वैश्विक पहल है, जो आंकड़ों और तस्वीरों के द्वारा वंचित समुदायों की स्थिति से हमें परिचित कराती है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 5 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुई है।

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