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राजस्थान के डूंगरपुर जिले के कंक्रडारा पंचायत की एक बैठक। 14वें वित्त आयोग ने ऐसे पंचायतो को बेहतर फंड देने की सिफारिश की है। Image: UN Women/Gaganjit Singh

  • 14वीं वित्त आयोग के सिफारिश के अनुसार अगले पांच वर्षो तक स्थनीय ग्रामिण सरकार, पंचायतो को तीन गुना अधिक फंड दिया जाएगा। यानि पंचायतों को मिलने वाली राशि 63,051 करोड़ रुपए (13.3 बिलियन डॉलर) सेबढ़ कर 200,292 करोड़ (31.2 बिलियन डॉलर) हो जाएगी।
  • मुद्रा प्रबंधन के मामले में केरल की पंचायत संस्था सबसे अधिक प्रभावी ढंग कार्य कर रही हैं। केरल के बाद सबसे बेहतर ढ़गं से कार्य कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्य की पंचायतो का देखा गया है।
  • केन्द्र की ओर से मिलने वाले फंड में से सबसे बड़ा हिस्सा, 60 फीसदी ग्राम पंचायतो को मिलता है। ग्राम पंचायत, पंचायत प्रणाली की सबसे छोटी इकाई होती है।
  • ब्लॉक और ज़िला पंचायतो को अधिक धन राज्य सरकार द्वारा ही प्राप्त होता है।
  • ग्राम पंचायत 11 फीसदी राजस्व उत्पन्न करती है जबकि बॉल्क और ज़िला पंचायत 0.4 फीसदी एवं 1.6 फीसदी ही राजस्व उत्पन्न कर पाती हैं।

यह कुछ मुख्य निष्कर्ष हैं जो दिल्ली की एक संस्था, अकाउंटिब्लीटी इनीशिएटिव के विश्लेषण के दौरान सामने आए हैं।संस्था ने अपनी खास रिपोर्ट “भारत में ग्रामीण स्थानीय सरकारों को वित्तीय हस्तांतरण की एक समकालीन विश्लेषण” (A Contemporary Analysis of Fiscal Transfers to Rural Local Governments in India)में इन बिंदुओं का ज़िक्र किया है।

हालांकि साल 2001 से 2011 के दौरान भारत की शहरी आबादी में 31.8 फीसदी की वृद्धी हुई है लेकिन 69 फीसदी भारत अब भी ग्रामिण इलाकों में बसता है।

पंचायतो का सशक्तिकरण 90 के दशक में हुआ था। पंचायती राज व्यवस्था का निर्माण स्थानीय विकास को बल दिलाने के लिए किया गया था। 1992 में हुए 73 एवं 74 संशोधन के अनुसार भारतीय व्यवस्था को तीन खंडो में बांटा गया है –केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय।

स्थानीय सरकारों को भी दो भागो में बांटा गया है – शहरी एवं ग्रामीण। ग्रामीण सरकार को आगे तीन स्तरों में विभाजित किया गया है। ग्राम (गांव), पंचायत (0.25 मिलियन), ब्लॉक पंचायत (6405) एवं ज़िला पंचायत (589).

14वें वित्त आयोग ने राज्यों केअधिकारों में अधिक हस्तांतरण करने पर ज़ोर दिया है। इसके अलावा आयोग ने आबादी और आकार के आधार पर ग्रामीण, शहरी और स्थानीय सरकारो को 287,436 करोड़ रुपए (48 बिलियन डॉलर)देने की सिफारिश भी की है। नगरीय निकायों के मुकाबले ग्रामीण निकायों को अधिक राशि देने का भी सुझाव दिया गया है- 13वें वित्त आयोग की तुलना में 14वें वित्त आयोग के कुल आवंटन मेंग्रामीण स्थानीय सरकारों के लिए शेयर में0.5 फीसदी से 2.0 फीसदी की वृद्धी हुई है।

आने वाले पांच वर्षों में ग्रामीण और शहरी निकायों में 287,436 करोड़ रुपए आवंटित किए जाएंगे। शहरी क्षेत्रों के लिए आवंटित किए जाने वाली राशि 23,111 करोड़ रुपए से बढ़कर 87,144 करोड़ रुपए की गई है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राशि लगभग तिगुनी कर दी गई है।

ग्राम पंचायत के काम संतोषजनक नहीं

देश भर में करीब 0.25 मिलियन ग्राम पंचायत हैं। ताज़ा मिले आंकड़ो के अनुसार, साल 2011-12 में ग्राम पंचायत द्वारा संभवत 3,118 करोड़ रुपए ( 0.65 बिलियन डॉलर ) राजस्व के रुप में उत्पन्न किया था। यह आंकड़े निश्चित तौर से साल 2014-15 के मणिपुर के लिए अनुमानित राज्य बजट की तुलना में कम हैं।

ग्राम पंचायत अपने संकलन से 11 फसदी से अधिक राजस्व उत्पन्न करती है। स्थानीय कर (टैक्स) जैसे कि अचल संपत्ति कर, उपयोगकर्ता प्रभार (जमीन और मकान, सीमा शुल्क , टोल टैक्स , परिवहन और संचार पर लाइसेंस फीस टैक्स) से ग्राम पंचायत यह राजस्व उत्पन्न करती हैं। शेष 89 फीसदी फंड ग्राम पंचायतो को केन्द्र, केंद्रीय वित्त आयोग, न्यायगत फंड, राज्य सरकारों की सहायता अनुदानो से प्राप्त होते हैं।

साफ है कि ग्राम पंचायतो के राजस्व में लगातार वृद्धि हो रही है। जोकि अधिक स्वायत्तता और जवाबदेही का एक संकेतक है।

ग्राम पंचायतो को साल 2009-10 में लगभग 70 फीसदी राशि केंद्र से प्राप्त होती थी। बाद में यह आकंड़े गिर कर 61 फीसदी हुए। शायद इसका सबसे मुख्य कारण है कि केंद्रीय द्वारा मिलने वाले अनुदान राज्य को जाता है और राज्य अधिक राशि ब्लॉक और ज़िला स्तरीय पंचायत निकायों दे रही है।

मध्यवर्ती पंचायत या ब्लॉक पंचायत 0.4 फीसदी राजस्व उतपन्न करती हैं। ब्लॉक पंचायतों को करीब 79 फीसदी फंड केंद्र और राज्य सरकार द्वारा प्राप्त होता है।

ज़िला पंचायतो की हालत कुछ बेहतर नहीं। ज़िला पंचायत 1.6 फीसदी राजस्व उत्पन्न करती हैं।

भारत में पंचायतो की स्थिति: राज्यों में एक तुलना

देश भर के पंचायतो की बात करें तो केरल के ग्रामीण संस्थानों की स्थिति सबसे बेहतर है।पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक -“वित्त मामले में केरल पहले स्थान पर है, दायित्व एवं कार्यकर्ताओं के मामले में दूसरे स्थान पर और संरचना और कार्य बेहतर तरीके से करने में तीसरे स्थान पर है। केरल में पंचायतों के काम बेहद पारदर्शी है। एक ओर राज्य ने अधिकतम कार्य पंचायत को सौंप रखा है तो वहीं दूसरी तरफ पंचायत के नीचे पैसे के हस्तांतरण की पारदर्शी प्रणाली भी है।हाल ही में केरल में राज्य वित्त आयोग अधिक प्रभावशाली रुप में उभरा है।एक अध्ययन के अनुसार केरल पंचायतों के प्रभावी संचालन के लिए स्टाफ की संख्या पर्याप्त है। फंड की उपलब्धता के सूचक के तहत केरल नम्बर वन स्थान पर है”।

पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक केरल के बाद, ग्रामीण संस्थानों की बेहतर स्थिति कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु की हैं।

अध्ययन में राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं का स्थान,हस्तांतरण की राशि के आधार पर किया गया है। यहां हस्तांतरण का आशय पंचायतो को मिलने वाले अधिकार, कार्य और धन से है। 1992 से पूर्व स्थानिय सरकारी सुधार केवल अर्द्ध औपचारिक निकायों थे। इन सुधारों के अंतर्गत स्थानीय निकायों को अधिक कार्य एंव अधिकार मिले।

यहअधिकार राजस्व उत्पन्न के लिए कर संकलन से संबंधित थे। साथ ही स्थानीय निकायों के प्रबंधन के लिए शासन संबंधित शक्तियां एवं कानून संबंधित अधिकार भी दिए गए। पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन में कार्य, वित्त , पदाधिकारियों , क्षमता निर्माण, और जवाबदेही जैसे विभिन्न मानकों के आधार पर पंचायती राज संस्थाओं को स्थान प्रदान किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह एक आम धारणा है कि पंचायत आर्थिक और तकनीकी रूप से कम सक्षम होती है। इसलिए अपने मूलभूत कार्यों जैसे कि पानी संबंधित कार्यों का रख-रखाव, जल निकास, सफाई व्यवस्था, स्कूल भवनों और अन्य सार्वजनिक संपत्ति का रख-रखाव, कल्याण एवं आर्थिक कार्य कृषि और उद्योगों से संबंधित काम नहीं उचित प्रकार से नहीं कर पाती।

हस्तांतरण में वित्त आयाम राज्यों के बीच सूचकांक स्कोर ( index score ) में 32.05 की कम राष्ट्रीय औसत दर्ज की गई है।भारत के ज्यादातर राज्यों में पंचायत स्तर परतेरह राज्यों को हस्तांतरण के लिए औसत स्कोर से ऊपर रखा गया है।

सरकार की 0.25 मिलियन छोटी ग्राम पंचायत इकाइयां हैं जहां भारत के गांव में रह रहे 833 मिलियन आबादी से संबंधित हैं। अंग्रेजी के प्रसिद्ध अखबर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दैरान, टी आर रघुनंदन ( अकाउंटिब्लीटीइनीशिएटिव के सलाहकार और पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव ) ने बताया कि इन संस्थानों के वित्त और कार्यों के अधिक हस्तांतरण के साथ ही भारतीय लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक गहरा किया जा सकता है।

(इस श्रृंखला के दूसरे हिस्से में स्थानीय संस्थाओं को मिलने वाली राशि और उनके खर्च प्रभाव पर चर्चा की जाएगी)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 जून 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है


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