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एक नई रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ वर्षों में पांच वर्ष की आयु से कम अविकसित बच्चों की संख्या में 23 फीसदी एवं कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में 35 फीसदी की गिरावट हुई है।

इसी महीने के शुरुआत में भारत पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन (पीएचएफआई) की रिपोर्ट में पिछले 20 वर्षों से अधिक के दौरान सरकार के सर्वेक्षण के चार दौर द्वारा जारी किए गए 2015 में पोषण सुरक्षा के लिए भारत स्वास्थ्य रिपोर्ट के आंकड़ो का संकलन किया गया है| इंडियास्पेंड के विश्लेषण के मुताबिक भारत में अच्छी मातृ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले राज्यों में अधिक स्वास्थ्यप्रद बच्चे पाए गए हैं।

भारत में अब भी कुपोषित बच्चों की संख्या काफी अधिक है : 40 मिलियन अविकसित बच्चे (आयु की तुलना कम कद) एवं 17 मिलियन कमज़ोर बच्चे (सामान्य वज़न और कद से नीचे) हैं।

इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने बताया सार्वजनिक खर्चे में वृद्धि होने से कुपोषित बच्चों के प्रतिशत को कम करने में मदद मिली है।

इस दूसरे भाग में हम भारत में माताओं को मिलने वाले स्वास्थ्य सुविधाओं एवं मातृ स्वास्थ्य में सुधार से किस प्रकार बच्चों के पोषण में सुधार होता है, इस पर चर्चा करेंगे।

स्वास्थ्य सुविधाओं से माताओं एवं बच्चों पर प्रभाव

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि सुविधाओं में सुधार का प्रभाव, विशेष कर 2005-06 से, माताओं के स्वास्थ्य में सुधार के रुप में हुआ है।

स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चार दौर के आंकड़े (1992-93 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -1 (एनएफएचएस -) से 2013-14 में बच्चे पर रैपिड सर्वे (RSoC )) मातृ स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का संकेत देती हैं।

सुविधाओं में सुधार का कारण वर्ष 2015 तक मातृ मृत्यु दर (एमएमआर ) को कम कर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 109 मातृ मृत्यु करना एवं सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) को पूरा करना था।

2004-06 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत आयोजित सर्वेक्षण के अनुसार भारत में एमएमआर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 256 था ; 2011-12 में इसमें 30 फीसदी का सुधार देखा गया है यानि कि प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर एमएमआर 178 पाया गया है।

2005 में शुरु किया गया जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई), एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसका उदेश्य संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के साथ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है। जेएसवाई के तहत लाभार्थियों की संख्या 2005-06 में 0.74 मिलियन से बढ़ कर 2014-15 में 10.4 मिलियन हुई है।

पिछले वर्षों में प्रसव देखभाल की स्थिति में सुधार हुआ है जिससे मातृ मृत्यु दर में भी गिरावट हुई है।

प्रसव देखभाल में सुधार

इंडियास्पेंड ने अपनी खास विश्लेषण में पहले ही बताया है कि किस प्रकार जेएसवाई के कार्यान्वयन से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और असम में मातृ मृत्यु में गिरावट हुई है।

क्यों भारत में माताएं होनी चाहिए स्वस्थ्य और तंदुरुस्त

दुनिया में महिलाओं की आबादी, जिनकी 18 वर्ष से कम आयु में विवाह हो जाती है, का एक-तिहाई हिस्सा भारत में रहता है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में चर्चा की है किस प्रकार सांस्कृतिक प्रथाएं जैसे कि बाल विवाह का प्रभाव मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर पड़ता है।

लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों से बाल विवाह में गिरावट हुई है।

20 से 24 वर्ष के आयु की महिलाएं, जिनका विवाह 18 वर्ष में हुआ है

बच्चे के जन्म के दौरान कम जोखिम होने के अलावा कार्यक्रम जैसे कि जेएसवाई से मातृ देखभाल में भी सुधार हुआ है।

गर्भावस्था के दौरान आयरन और फोलिक एसिड (आइएफए) की खुराक मां और भ्रूण के विकास की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में एवं एनीमिया को रोकने में मदद करती है।

वर्ष 2005-06 में आंकड़े बताते हैं कि 65 फीसदी महिलाओं को खुराक प्राप्त हुआ है लेकिन केवल 22.3 फीसदी महिलाओं ने इसका उपयोग या खपत किया है। RSoC सर्वेक्षण में गोलियां प्राप्त करने वाली महिलाओं की संख्या में गिरावट देखी गई है लेकिन खपत के आंकडे 22.3 फीसदी ही दर्ज की गई हैं।

इसके अलावा, गर्भवति महिलाएं जिन्होंने टेटनस टॉक्साइड टीकाकरण प्राप्त की है उनके प्रतिशत में भी सुधार दर्ज की गई है। यह टीकाकरण मातृ एवं नवजात टिटनेस (MNT) को रोकने के लिए आवश्यक है।

मातृ देखभाल में सुधार

स्तनपान और शिशुओं की मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली में किस प्रकार यह सहायक है

बेहतर प्रसव देखभाल एवं संस्थागत प्रसव से नवजात की देखभाल के संबंध में अधिक मातृ जागरूकता हुई है।

पोषण में सुधार के लिए नवजात शिशुओं के स्तनपान पर ज़ोर दिया गया है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार पहले साल में सर्वोत्कृष्ट स्तनपान एवं पूरक भोजन के साथ पांच साल की उम्र के तहत बच्चों में होने वाली मौतों का लगभग पांचवां हिस्सा रोका जा सकता है।

अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कोलोस्ट्रम , प्रसव के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान मां द्वारा उत्पादित गाढ़ा दूध, नवजात की अवधि में मृत्यु की संभावना को कम करते हुए शिशओं को आवश्यक पोषक तत्व एवं एंटीबॉडी प्रदान करता है।

एनएफएचएस -3 और RSoC के आंकड़े स्तनपान प्रथे में वृद्धि की प्रवृत्ति दर्शाते हैं।

स्तनपान अभ्यास में सुधार

राज्य-अनुसार स्थिति

कुल मिलाकर, भारत में मातृ स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, जिससे बच्चों के समग्र पोषण स्तर में सुधार हुआ है। हालांकि यह सुधार देश भर में सामान रुप से नहीं हुए हैं।

अविकसित के लिए बेहतर राज्य: मातृ एवं नवजात की देखभाल

अविकसित के लिए बदतर राज्य : मातृ एवं नवजात की देखभाल

केरल, जहां अविकसित बच्चों का अनुपात सबसे कम है, वहां 2005-06 में करीब 99 फीसदी संस्थागत जन्म हुए है।

इसकी तुलना में गोवा, जो अविकसित बच्चों के कम अनुपात वाला दूसरा राज्य है, वहां वर्ष 2013-14 के सर्वेक्षण में 99 फीसदी संस्थागत जन्म हुए हैं जबकि 2005-6 के दौरान यह आंकड़े 92 फीसदी थे।

कुपोषित बच्चों के उच्चतम अनुपात वाले राज्यों, झारखंड और छत्तीसगढ़ में संस्थागत प्रसव के लिए सबसे बदतर बुनियादी ढांचा है। इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण झारखंड जहां अस्पतालों में अभी भी बच्चे के जन्म के लिए कर्मचारियों और सुविधाओं की कमी के संबंध में विस्तार से चर्चा की है।

उत्तर प्रदेश, जहां अविकसित बच्चों का उच्चतम अनुपात है, में जहां तक संस्थागत प्रसव का सवाल है वहां 62.1 फीसदी के आंकड़ों के साथ झारखंड और छत्तीसगढ़ के काफी करीब है। जबकि यहां आयरन और फोलिक एसिड की खुराक तक केवल 4.3 फीसदी गर्भवति महिलाओं की पहुंच पाई गई है।

पीएचएफआई रिपोर्ट कहती है कि “कम मातृ ऊंचाई, कम बॉडी मास इंडेक्स और एनीमिया की उच्च व्यापकता के साथ भारत की महिलाओं का छोटे बच्चे पैदा करने के बड़ा जोखिम हैं और खुद के कुपोषित होने के भी काफी संभावनाएं हैं।”

यह तीन लेख श्रृंखला का दूसरा भाग है। तीसरा भाग हम कल प्रकाशित करेंगे।

(सालवे एवं तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 05 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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