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अगरतला, त्रिपुरा अस्पताल में पोलियो ड्रॉप्स देते मेडिकल कर्मचारी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी नाड्डा ने साल 2016 के अंत तक भारत में 95 फीसदी बच्चों का टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा है। यानि मंत्री जी का दावा है है कि 2016 के अंत तक वैश्विक टीकाकरण योजना का उद्देश्य को देश पूरा कर लेगा। लेकिन यह लक्ष्य डेढ़ साल में पूरा हो पाएगा इसमें थोड़ा संदेह लगता है।

मंत्री जी के दावे पर कम विश्वास इसलिए होता है क्योंकि सिर्फ चार महीने पहले ही स्वास्थ्य मंत्री नड्डा ने संसद में बताया था कि भारत के 90 फीसदी बच्चों का टीकाकरण करने में कम से कम पांच साल और लगेंगे।

अबतकदेशमें 65 फीसदीबच्चेही प्रतिरक्षित हो पाए हैं। यह आकंड़े पिछले 38 सालों में, जबसे वैश्विकटीकाकरणयोजनाकी शुरुआत हुई हैसबसे बेहतर रहे हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत हर वर्ष 27 मिलियन नवजात शिशुओं एवं 30 मिलियन गर्भवति महिलाओं को निवारणीय रोगों से बचाने के लिए टीका लगाया जाता है।

सरकारी डाटा के अनुसार भारत में 500,000 बच्चों की मृत्यु प्रभावी टीका के अभाव में होती है क्योंकि हरेक तीन में से एक बच्चा टीकाकरण के लाभ से वंचित रह जाता है।

10 मार्च 2015 को राज्यसभा मेंपूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था “सरकार ने 25 दिसंबर, 2015 को मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की है। इस मिशन का उद्देश्य उन बच्चों को टीका लगाना है जिन्हें आंशिक रुप से टीके लगे हैं या फिर टीके लगे ही नहीं हैं। यह कार्यक्रम हर साल 5 फीसदी या उससे अधिक बच्चों के पूर्ण टीकाकरण में तेजी से वृद्धि के लिए विशेष अभियानों के जरिए चलाया जाएगा। अगले पांच सालों में इस कार्यक्रम के तहत कम से कम 90 फीसदी बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित किया जाएगा”।

एक नज़र भारत मे टीकाकरण के विकास पर:

Source: Ministry of Health and Family Welfare; Figures in %

मौजूदा टीकाकरण दर ( साल 2013-14 ) 65.2 फीसदी तक पहुंच गया है जबकि 1992-92 में यह आकंड़े 35.5 फीसदी थे। साल 1978 में टीकाकरण कर्यक्रम की शुरुआत की गई थी। 1985 में कार्यक्रम को वैश्विकटीकाकरणयोजनाका नाम दिया गया एवं साल 1989-90 तक सभी जिलों में कार्यक्रम लागू किया गया।

वैश्विक टीकाकरण योजना के तहत सरकार नौ बिमारीयां जैसे कि डिफ्थेरिया, बलगम, टिटनस, पोलियो, तपेदिक, खसरा तथा हेपिटाइटिस-बी से मुक्ति के लिए टीका लगवाती है।

उत्तराखंड में बेहतर परिणाम, उत्तर प्रदेश में असर कम

वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार 79.6 फीसदी कवरेज के साथ उत्तराखंड सबसे बेहतर प्रतिरक्षित राज्य है जबकि 52.7 फीसदी के साथ उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे कमज़ोर है।

Source: Ministry of Health and Family Welfare

उपर दिखाए गए राज्य देश के प्रमुख राज्यों में से है क्योंकि देश की 50 फीसदी आबादी इन्हीं राज्यों में रहती है। साथ ही 60 फीसदी जन्म, 71 फीसदी शिशु मृत्यु, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु का 72 फीसदी एवं 62 फीसदी मातृ मृत्यु इनराज्यों में ही होती है।

जिन राज्यों में टीकाकरण योजना के बेहतर परिणाम देखने मिले हैं जैसे कि उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, उन राज्यों में भी वैश्विक टीकाकरण योजना के लक्ष्य तक पहुंचने में कम से कम 20 से 25 फीसदी की कमी है।

दूसरे राज्य जैसे कि गोवा ( 89.1 फीसदी ), सिक्किम ( 85.2 फीसदी ) और केरल ( 82.5 फीसदी )प्रमुख राज्यों में नहीं हैं लेकिन टीकाकरण योजना के तहत बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसे राज्य भी वैश्विक टीकाकरण योजना के लक्ष्य तक पहुंचने में अभी पीछे ही हैं।

टीकाकरण के लाभ को समझने में कमी, टीका के दुष्प्रभाव का डर एवं दवाइयों की कमी होना, कुछ कारण है जिन वजह से टीकाकरण कार्यक्रम के लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सका है।

टीकाकरण योजना के तहत देश में 201जिलों की पहचान की है, जिसमें 50 फीसदी बच्चों को टीके नहीं लगे हैं या उन्हें आंशिक रूप से टीके लगाए गए हैं।

पीछले तीन सालों में टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 599.87 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं।

Source: RajyaSabha; Figures in Rs crore

टीकाकरण के ज़रिए हर साल डिप्थीरिया , टिटनेस , काली खांसी और खसरा जैसी बिमारियों से विश्व में होने वाली करीब 2 से 3 मिलियन मृत्यु को रोका जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2013 में दुनिया भर के करीब 21.8 मिलियन बच्चे टीकाकरण से वंचित रहे हैं जिनमे लगभग आधे बच्चे भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान के हैं।

( मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक है। )

यह लेख मूलत अंग्रेजी में 2 जुलाई 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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