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वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने टीबी के रोकथाम के लिए निदान, रोगी की देखभाल और उपचार पर 16 नीतियों की सिफारिश की है। लेकिन एक नए वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, भारत इन 16 सिफारिशों में से छह लागू नहीं करता है। चार अन्य नीतियां, जो राष्ट्रीय नीति का हिस्सा हैं, वह भी पूरी तरह लागू नहीं की जा रही हैं।

‘मेडेसिन्स सेन्स फ्रंटियरेस’ (एमएसएफ) और ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट 'आउट ऑफ स्टेप' के तीसरे संस्करण में यह बात सामने आई है।

इस रिपोर्ट में 29 देशों में टीबी नीतियों और प्रथाओं की समीक्षा की गई है, जिनकी वैश्विक टीबी में 82 फीसदी की हिस्सेदारी है।

सरकारी सूत्रों ने इंडियास्पेंड को बताया कि वर्ष 2017 के अंत तक भारत तीन उपेक्षित सिफारिशों को लागू कर सकता है। 2015 में 28 लाख टीबी के मरीजों की संख्या सामने आई है। जाहिर है इस संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि दुनिया भर में भारत पर टीबी का बोझ सबसे ज्यादा है। हालांकि, टीबी की रोकथाम हो सकती है। इस बीमारी का इलाज संभव है।

फिर भी यह यह दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारी बनी हुई है। सिर्फ वर्ष 2015 में टीबी से 18 लाख लोगों की मौत हुई है।

भारत अब भी करता है बलगम स्मीयर परीक्षण

रोग की पहचान और दवा प्रतिरोधी उपचार, ये दो महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहां भारतीय नेशनल टबर्क्यलोसिस पॉलिसी अब तक डब्लूएचओ सिफारिशों के साथ ताल नहीं मिला पाया है।

भारत ने अभी भी वयस्कों और बच्चों में टीबी के लिए एक्सपर्ट एमटीबी / आरआईएफ प्रारंभिक परीक्षण शुरु नहीं किया है। यह टीबी के मूल्यांकन और रोग से निपटने के लिए परीक्षण की त्वरित प्रक्रिया है।

अपने यहां ‘स्टेमम स्मीयर माइक्रोस्कोपी’अब भी प्राथमिक परीक्षण बना हुआ है। यह सस्ता और आसान है, लेकिन टीबी के लिए उपलब्ध सबसे संवेदनशील परीक्षण नहीं है। इसके अलावा, एचआईवी पॉजिटिव मरीजों में टीबी की पहचान करने की दर बहुत खराब है। इसपर बाद के खंड में चर्चा की गई है।

मुंबई के मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉ. निर्गेस मिस्त्री कहती हैं, “जीनी एक्सपर्ट ( एक्सपर्ट एमटीबी / आरआईएफ के लिए ब्रांड नाम) से लाभ लेने में लागत बढ़ती है। देरी से बहु-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर टीबी) का पता लगाने की लागत, परीक्षण के संचालन में खर्च की तुलना में यह अधिक है। ”

वह आगे कहती हैं, ऐसा लगता है कि सरकार एमडीआर टीबी के खतरे को कम आंक रही है। “हालांकि सरकार कहती है कि नए टीबी मामलों में एमडीआर टीबी की घटना 1.8 फीसदी और दोबारा इलाज करने के मामले में 18 से 20 फीसदी है लेकिन कई अध्ययनों से पता चलता है कि ये आंकड़े 18 से 20 फीसदी और 28 से 30 फीसदी के बराबर हो सकते है। ”

रिपोर्ट के मुकाबले राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम में उपचार की सफलता

Source: Revised National Tuberculosis Control Programme, The Tuberculosis Cascade of Care in India’s Public Sector: A Systematic Review and Meta-analysis, PLoS Medicine

NOTE: Government does not report new smear-negative TB cases; **includes patients who completed treatment and patients who were cured; *TB Patients who did not relapse after one year of completing treatment

एमएसएफ इंडिया मेडिकल कोऑर्डिनेटर के डॉ स्टोब्दन कलन कहते हैं, “एक नैदानिक ​​परीक्षण के रूपजेनेएक्सपर्ट सार्वभौमिक रूप से मान्य है। हालांकि, आरएनटीसीपी ने देश के प्रति जिले में जेनेएक्सपर्ट जोड़ा है लेकिन उपयोग की दरें अब भी कम हैं। "

दवा प्रतिरोधी टीबी का पता लगाने के लिए पर्याप्त नहीं

बाजार में सबसे मजबूत, पहली पंक्ति वाले टीबी दवाईयों में से दो हैं राफैम्पिसिन और आइसोनियाजिड। जो मरीज पहली दवा प्रतिरोधी हैं, आमतौर पर दूसरी दवा से उनपर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।

लेकिन भारत में, राइफैम्पिसिन-प्रतिरोधी रोगियों का पहली पंक्ति दवा संवेदी परीक्षण (डीएसटी) नहीं किया जाता है, जो आइसोनियाजिड प्रतिरोध का भी निदान कर सकता है।

इन दोनों दवाओं के प्रति प्रतिरोधी मरीजों को मल्टी ड्रग प्रतिरोधी तपेदिक कहा जाता है। एक डीएसटी इस तरह के रोगियों के इलाज के लिए मदद कर सकता है।

वर्ष 2015 में, भारत में मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी टीबी रोगियों की संख्या 130,000 थी, जो दुनिया में सबसे ज्यादा थी। फिर भी पूरे देश में डीएसटी की पेशकश करने वाली केवल 67 प्रयोगशालाएं हैं।नतीजा यह होता है कि टीबी रोगियों का कई साल ऐसी दवाईयों से इलाज कर बर्बाद होता है, जिससे उनकी बीमारी ठीक नहीं होती है। इसके अलावा, उनका पैसा बर्बाद होता है और संक्रमण फैलने की संभावनाएं भी बढ़ती है।

अधिक प्रभावी नई दवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं

रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत की नेशनल ट्यूबरक्लॉसिस पॉलिसी, डब्ल्यूएचओ के नौ महीने की एमडीआर टीबी आहार की सिफारिश को अमल में नहीं लाती है। एमडीआर टीबी के साथ मरीज वर्तमान में 24 महीने के उपचार पर रहते हैं, लेकिन यह 2017 के अंत तक बदल सकता है।

भारत के नेशनल ट्यूबरक्लॉसिस प्रोग्राम जिसे हम संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के रूप में जानते हैं, के द्वारा फरवरी 2017 में प्रकाशित तपेदिक उन्मूलन रिपोर्ट 2017-2025 के लिए नेशनल स्ट्रटीजिक फ्लान के अनुसार, “आरआर-टीबी (राइफैम्पिसिन प्रतिरोधी) रोगियों के लिए 2017 के अंत तक देश भर में छोटे एमडीआर-टीबी आहार का स्तर बढ़ाया जाएगा।”

40 वर्षों के बाद दो जीबी की दो नई दवा ( जैनसेन के बेडाक्विलिन और ओत्सुका की डेलामाइंड ) सामने आई। ‘बेडाक्लिन’ को ‘यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ द्वारा 2012 में स्वीकृत किया जबकि ‘डेलामाइंड’ को वर्ष 2014 में ‘यूरोपीय मेडिसिंस एजेंसी’ द्वारा स्वीकृति मिली थी।

हालांकि, डब्लूएचओ ने वर्ष 2015 में व्यापक दवा प्रतिरोधी (एक्सडीआर) टीबी मामलों के इलाज के लिए ‘डेलामाइन’ के उपयोग पर अपनी नीति जारी की थी, लेकिन यह भारत के राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण प्रयासों का हिस्सा नहीं है। नई रिपोर्टें है कि ओत्सुका कंपनी भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से संपर्क करने के लिए प्रयास कर रही है।

हालांकि, भारत ने नेशनल टीबी कंट्रोल प्रोग्राम में बेडाक्विलिन को ‘सशर्त अनुमति’ मिली, जो मानदंडों में फिट आने वाले 600 मरीजों के लिए 6 स्थानों पर उपलब्ध है।

दवा तक पहुंच अभी भी आसान नहीं है। जनवरी 2017 में, दिल्ली के एक अस्पताल में पटना के एक 18 वर्षीय एक्सडीआर टीबी रोगी का इलाज किया जा रहा था। उसे बेडाक्विलिन के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। उसे दिल्ली में दवा से देने से इनकार किया गया था, क्योंकि वह दिल्ली की निवासी नहीं था।

उन्नत जांच तकनीक तक एचआईवी / एड्स रोगियों की पहुंच नहीं

एचआईवी न केवल टीबी के जोखिम को बढ़ाता है, बल्कि मृत्यु दर भी बढ़ने की संभावना होती है। अन्तर्हित टीबी के साथ एचआईवी पॉजिटिव मरीजों में सक्रिय टीबी होने की 26 गुना अधिक संभावना होती है। वर्ष 2015 में, टीबी के कारण 40,000 एचआईवी पॉजिटिव मरीजों की मृत्यु हुई है।

हालांकि, एचआईवी रोगियों में टीबी का पता लगाना आसान नहीं है। 50 फीसदी मामलों में, एचआईवी टीबी के मरीजों का स्मीयर टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव होता है।

डब्ल्यूएचओ टीबी एलएएम, एक मूत्र परीक्षण की सिफारिश करता है, जो एचआईवी पॉजिटिव रोगियों में टीबी के मामलों को तेजी से पहचान सकता है। विशेष रूप से उनमें, जो गंभीर रूप से बीमार हैं या जिन रोगियों में सीडी 4 प्लस टी कोशिकाओं का लगातार क्षय देखा जा रहा है।

‘ऑउट ऑफ स्टेप’ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत एचआईवी / एड्स से पीड़ित व्यक्तियों में टीबी एलएएम का उपयोग नहीं करता है, जो सीडी 4 प्लस टी कोशिकाओं की 100 μL से कम संख्या के साथ जी रहे हैं या गंभीर रूप से बीमार हैं।

बाल रोगियों के लिए अब तक बाल चिकित्सा नियामक संयोजन नहीं

हर साल 10 लाख से अधिक बच्चों में टीबी की पहचान होती है और 140,000 बच्चों की मौत इसी वजह से होती है। बच्चों और वयस्कों के लिए दवा की मात्रा अलग होती है और डब्लूएचओ ने वर्ष 2012 में बच्चों के लिए ड्रग्स का निश्चित मात्रा में संयोजन की सिफारिश की थी। लेकिन इसकी अनुपस्थिति में, अनुचित खुराक के खतरे के साथ बच्चों को वयस्क दवाएं दी जाती हैं।

इसके बावजूद देश के सभी हिस्सों में देखभाल के स्तर के रूप में बाल चिकित्सा नियामक संयोजन को लागू नहीं किया गया है। जबकि यह राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का हिस्सा है, जैसा कि 'आउट ऑफ स्टेप' रिपोर्ट में कहा गया है।

भारत के सेंट्रल टीबी प्रभाग के उप महानिदेशक डॉ. सुनील खापर्डे ने रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, " स्वंयसेवी संस्था की और से आने वाली हर रिपोर्ट पर सरकार को जवाब देना आवश्यक नहीं है।"

टीबी डिवीजन में काम करने वाले एक अन्य डॉक्टर( जो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं थे , इसलिए उनका नाम नहीं दिया गया है) ने कहा कि भारत पहले से ही छह अनुमोदित सिफारिशों में से तीन को लागू करने के लिए तैयार है।

उन्होंने बताया, "एमडीआर टीबी के लिए छोटा कोर्स साल के अंत तक शुरू हो जाएगा। एक्सपर्ट एमटीबी / आरआईएफ का उपयोग वर्तमान में बाल चिकित्सा तपेदिक रोगियों, अतिरिक्त पल्मोनरी टीबी और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों के निदान के लिए किया जाता है। बाल तपेदिक रोगियों के लिए बाल चिकित्सा नियामक संयोजन पहले से ही पांच राज्यों में शुरू हो चुके हैं।"

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 जुलाई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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