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डीज़ल बसों की तुलना में बिजली बसें, 27 फीसदी राजस्व एवं प्रति दिन 82 फीसदी अधिक मुनाफा कमाती हैं। यह खुलासा इंडियन इंस्ट्टीयूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के शहरी परिवहन के लिए बिजली वाहनों के मूल्यांकन के लिए किए गए अध्ययन में सामने आया है।

इस निष्कर्ष का विशेष महत्व है क्योंकि भारतीय शहरों में प्राथमिक जन पारगमन 150,000 डीजल बसों द्वारा प्रदान की जाती है जिसका शहरी धुंध और कार्बन उत्सर्जन (जिस कारण ग्रह गर्म हो रहा है) में काफी योगदान है।

शीला रामशेष एवं उनके समूह द्वारा किए गए आईआईएससी के अध्ययन अनुसार, डीजल बसों को बिजली बस द्वारा प्रतिस्थापित करने से प्रति वर्ष कम से कम 25 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। बिजली बसों से सीओ 2 उत्सर्जन नहीं होता है, लेकिन उनकी चार्ज स्टेशनों के लिए आवश्यक बिजली मुख्य रुप से कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से ही मिलता है जो भारत का प्राथमिक ऊर्जा स्रोत है।

हालांकि, यदि बिजली बसों की बैटरी चार्ज स्टेशनों पर सौर पैनल स्थापित किया जाता है तो प्रति बस, सालाना और 25 टन सीओ 2 उत्सर्जन कम किया जा सकता है। दूसरे तरीके के देखें, यदि 150,000 डीजल बसें बिजली बसों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है तो सीओ 2 उत्सर्जन के 3.7 मिलियन टन बचाया जा सकता है।

बाहरी प्रदूषण को कम करने के अलावा – अहमदाबाद आईआईएम के पेपर के अनुसार जिससे हर साल भारत में 670,000 लोगों की जान जाती है- साफ बस प्रणाली, राष्ट्रीय कार्बन कमी के लक्ष्यों में सहायता प्रदान करेगी। भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में परिवाहन की दसवें हिस्से की हिस्सेदारी है, जैसे कि हमने, 2009 में हुए एक अध्ययन के हवाले से, इस संबंध में विस्तार से यहां बताया है।

भारत अब दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख प्रदूषक है , जैसा हमने उल्लेख किया है, 2014 में वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि का लगभग एक तिहाई का योगदान रहा है।

बिजली बसें पर्यावरण और आर्थिक रुप से बेहतर

बेंगलूर महानगर परिवहन निगम (बीएमटीसी) - भारत की सबसे बड़ी और सबसे अधिक कुशलतापूर्वक चलाने के बस बेड़े - को मुफ्त निरीक्षण के लिए तीन महीने के लिए चीन निर्मित बिजली बस प्रदान की गई थीं। रामशेष और उसके सहयोगियों ने कम से कम 200 किलोमीटर (बस 'बैटरी रिचार्ज से पहले 215 किमी चला सकता है) की औसत दैनिक यात्रा के साथ एक पूर्व मौजूदा मार्ग पर अपना परीक्षण किया।

अध्ययन में, 2015 में 93 दिनों की अवधि में एक ही मार्ग पर बिजली एवं डीज़ल बसों आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव की तुलना की गई है।

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बिजली बस सिर्फ पर्यावरण के लिए ही साफ नहीं हैं बल्कि आर्थिक रुप से अधिक उपयोगी हैं। दोनों बसों द्वारा उत्पन्न राजस्व लगभग समान ही था, लेकिन मुनाफा, जैसा की हमने बताया, 82 फीसदी अधिक था। इसका मुख्य कारण रखरखाव और परिवर्तनीय लागत, डीज़ल बसों से कम होना है और साथ ही यह ऊर्जा दक्षता में अधिक है।

बिजली बनाम डीज़ल: अर्धशास्त्र अभिकलन

बिजली बसों के पक्ष में जो एक बात नहीं हैं वह इसकी अधिक कीमत होना है (30,000,000 रुपए बनाम डीज़ल बसों के लिए 8,500,000 रुपए)। यदि बिजली बसों का निर्माण भारत में किया जाए इसकी कीमत में कमी भी हो सकती है। परीक्षण के लिए इस्तेमाल बस चीन से आयात किया गया था।

डीज़ल बसों की तुलना में बिजली बसों का प्रतिदिन 50 किलोग्राम कम सीओ 2 उत्सर्जन करने से स्पष्ट है कि बिजली बसें ही बेहतर हैं। डीजल बसें प्रति वर्ष सीओ 2 के 77 टन उत्सर्जित करती हैं।डीज़ल बसों की तुलना में बिजली बसों का प्रतिदिन 50 किलोग्राम कम सीओ 2 उत्सर्जन करने से स्पष्ट है कि बिजली बसें ही बेहतर हैं। डीजल बसें प्रति वर्ष सीओ 2 के 77 टन उत्सर्जित करती हैं।

कार्बन उत्सर्जन में भारी डीजल वाहनों की भूमिका

2009 में एकमॉसफेरिक एनवॉयर्नमेंट पत्रिका में छपे इस अध्ययन के अनुसार, पेट्रोल से संचालित हल्के मोटर वाहनों की तुलना में डीजल चालित बसों और ट्रकों का उत्सर्जन में अधिक योगदान होता है।

वाहन उत्सर्जन:कैसे लगी हैं कतार में

Source: Emissions from India's transport sector: State-wise synthesis

2010 में, भारत और 21 अन्य एशियाई देशों ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारणों को कम करने के लिए और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत करने के लिए, अधिक टिकाऊ परिवहन ईंधन और प्रौद्योगिकियों के लिए प्रतिबद्ध किया है।

उच्च प्रारंभिक निवेश के बावजूद, बिजली बसे शहरी भारत के लिए एक बेहतर तकनीकी विकल्प बन सकता है।

(पद्मांबन बैंगलुरु स्थित पत्रकार हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 21 मार्च 2016 को www.indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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