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2006 के बाद से, सीबीआई द्वारा जांच की गई केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ हर तीन में से एक भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों का नतीजा अधिकरियों के बरी होने के रुप में सामने आया है। यह जानकारी अगस्त 2016 में लोकसभा में जारी किए गए आंकड़ों पर आधारित डेटा पत्रकारिता साइट, factly द्वारा इस रिपोर्ट में सामने आई है।

यह मामले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसी एक्ट) के तहत दर्ज किए गए हैं जो सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से संबंधित है। अधिनियम में संशोधन की पुष्टि अब तक संसद द्वारा करना बाकि है।

2006 से अब 7,000 से अधिक भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों का निपटारा

2006 और जून 2016 के बीच, सीबीआई ने पीसी एक्ट के तहत 7,217 मामलों में जांच पूरी की है। इनमें से 3,615 (50.1 फीसदी) मामलों पर कानूनी कार्रवाई की गई है; 2,178 (30.2 फीसदी), पर कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ नियमित विभागीय कार्रवाई (आरडीए) के आदेश दिए गए हैं। जबकि 636 (8.8 फीसदी) मामलों पर केवल आरडीए के आदेश दिए गए हैं। कम से कम 671 मामले (9.3 फीसदी) बिना किसी कार्रवाई के बंद किए गए हैं।

भ्रष्टाचार मामलों की जांच, 2006-16

Source: Lok Sabha; Data as of June 2016

सबसे अधिक भ्रष्टाचार मामलों (933) की जांच 2008 की गई थी। सबसे कम भ्रष्टाचार संबंधित मामलों (467) की जांच 2010 में की गई है।

वर्ष अनुसार भ्रष्टाचार मामलों की जांच

Source: Lok Sabha; Data as of June 2016

32 फीसदी से अधिक मामलों में आरोपी बरी

2006 के बाद से, पीसी एक्ट के तहत 6533 मामलों की जांच पूरी की गई है जहां जांच सीबीआई द्वारा की गई है। कम से कम 4054 (62.1 फीसदी) मामलों में आरोपी को सजा सुनाई गई है जबकि 2,095 (32.1 फीसदी) मामलों में आरोपी को बरी किया गया है।

भ्रष्टाचार मामलों का निपटारा , 2006-16

Source: Lok Sabha; Data as of June 2016

सबसे अधिक मामलों (921) का निपटारा 2013 में किया गया है जबकि 2012 में 865 मामले निपटाए गए हैं। सबसे कम मामले (369) 2008 में निपटाए गए हैं (वही साल पर अधिकतर मामलों की जांच की गई है।)।

अभियोजन की मंजूरी अब भी है मुद्दा

पीसी एक्ट के अनुसार, संबंधित सरकार को, सीबीआई जांच एजेंसी द्वारा अभियोजन पक्ष की सिफारिश की जाने पर, अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। हालांकि, सरकार को तीन महीने की अवधि के भीतर अभियोजन की मंजूरी पर फैसला लेना होता है। लेकिन ऐसे कई मामले होते हैं जो चार महीने से भी अधिक की अवधि से सरकार द्वारा मंजूरी के लिए लंबित रहते हैं।

(दुब्बदु एक दशक से सूचना के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर काम कर रहे है। Factly.in सार्थक सार्वजनिक डेटा बनाने के लिए समर्पित है।)

यह लेख मूलत: अंग्रज़ी में 20 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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