परोपकार के कामों में दक्षिण भारत के प्रमुख कारोबारियों ने उत्‍तर भारतीयों के मुकाबले 8 गुना ज्‍यादा दान दिया है।

यह तथ्‍य हुरून इंडिया फिलन्‍थ्रापी लिस्‍ट-2014 से सामने आया है। यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक साल के दौरान भारतीय के उद्योगपतियों ने विभिन्‍न कार्यों के लिए कितना दान दिया है।

चीन का हुरून रिसर्च इंस्‍टीट्यूट, शंघाई की ओर से तैयार की गई इस सालाना सूची के दूसरे संस्‍करण में 10 करोड़ रुपये से ज्‍यादा दान करने वाले लोगों को शामिल किया गया है। टॉप 10 सूची में आईटी जगत के शामिल हैं, जिनमें विप्रो के अजीम प्रेमजी अकेले ही 12,316 करोड़ रुपये दान कर लगातार दूसरे साल शीर्ष पर हैं।

इस सूची में शामिल कई उद्योगप‍ति पश्चिमी भारत (मुंबई, पुणे जैसे 19 शहरों से) से हैं जबकि दक्षिण भारत के उद्योगपतियों ने सबसे ज्‍यादा करीब 13,300 करोड़ रुपये का दान दिया है।

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अगर हम देखें कि किस सेक्‍टर ने कितना दान दिया है तो टेक्‍नोलॉजी, मीडिया और टेलीकम्‍युनिकेशंस (टीएमटी) का योगदान सबसे ज्‍यादा 15,151 करोड़ रुपये है। अपेक्षाकृत कम ग्लैमरस सेक्‍टर जैसे एनर्जी और इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर ने भी अपनी हिस्‍सेदारी निभाई है। नीचे दिया चार्ट दर्शाता है कि किस सेक्‍टर में किसने सबसे ज्‍यादा योगदान दिया।

दानदाताओं ने किन कार्यों के लिए चंदा दिया अगर उन पर नजर डालें तो साफतौर पर शिक्षा एक ऐसा विषय है जो सबके दिल के करीब है। टॉप 50 में से आधे ज्‍यादा (27) दानदाताओं ने शिक्षा को पैसा दिया। इस तरह इस क्षेत्र को कुल 15,800 करोड़ रुपये का दान मिला है।

अन्‍य कार्यों को मिला दान शिक्षा की तुलना में बेहद कम है, इसलिए हमने नीचे दिए चार्ट में अन्‍य क्षेत्रों के सबसे बड़े दानदाताओं को दर्शाया है। इसमें निवेश से जुड़ी कंपनी डीएसपी ब्‍लैकरॉक के हेमेंद्र कोठारी का विशेष तौर पर जिक्र है, उन्‍होंने पर्यावरण से जुड़े प्रयासों के लिए 12 करोड़ रुपये दिए हैं।

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चूंकि यह हुरून फिलन्‍थ्रोपी लिस्‍ट का दूसरा संस्‍करण है, इसलिए हम पिछले साल के आंकड़ों से तुलना कर सकते हैं। नीचे दिए चार्ट में देख सकते हैं कि एचसीएल के शिव नादर ने इस साल 1,864 करोड़ रुपये कम दान दिया है। हालांकि, वह 1,136 करोड़ रुपये दान कर 2014 की सूची में अभी भी तीसरे स्‍थान पर बने हुए हैं।

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कुछ लोग यह कह सकते हैं कि हुरून की यह सूची परोपकार को एक प्रतिस्‍पर्धा में बदलकर इसे हल्‍का बना रही है। लेकिन फिर भी यह भारत में दान को मापने और दर्ज करने की गिनी-चुनी कोशिशों में से एक है।

इस लिहाज से यह सूची भारत में परोपकार को समझने का एक आवश्‍यक माध्‍यम है।

लेकिन भारत को इस काम के लिए चीन के एक रिसर्च इंस्‍टीट्यूट का मुहं ताकना पड़ेगा।

(सभी आंकड़े हुरून इंडिया फिलन्‍थ्रोपी लिस्‍ट 2013 2014 से लिए गए हैं।)

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