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2001 से 2011 के बीच, दलित महिलाओं की साक्षरता दर में 14.6 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है – जो कि सामान्य जनसंख्या की महिलाओं से अधिक है (10 प्रतिशत अंक), जैसा कि हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों में बताया गया है।

यह एक सकारात्मक खबर है। एक नकारात्मक खबर यह है कि दलितों में शिशु लिंग अनुपात, 2001 में प्रति 1,000 लड़कों पर 938 से गिरकर 2011 में 933 हो गया है। इसका मतलब हुआ कि अधिकांश दलित लड़कियों का या तो गर्भपात किया जा रहा है या ठीक प्रकार ध्यान न दे पाने के कारण उनकी मृत्यु हो रही है। हालांकि यह अब भी प्रति 1,000 लड़कों पर 919 लड़कियों के राष्ट्र औसत की तुलना में बेहतर है।

दलित महिलाओं में उच्च साक्षरता से लैंगिक अंतर कम हो रहा है, जैसा कि जनगणना आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है।

शिक्षा से दलितों की स्थिति में सुधार

2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग, अनुसूचित जाति जनसंख्या की 66 फीसदी जनता साक्षर है, जबकि इस संबंध में राष्ट्रीय साक्षर दर 73 फीसदी है। कम से कम 66.4 मिलियन या 664 लाख (75.1 फीसदी) अनुसूचित जाति पुरुष एवं 47.2 मिलियन (472 लाख) महिलाएं (56.4 फीसदी) साक्षर हैं – पढ़ने और लिखने के रुप में परिभाषित।

जबकि 15.6 फीसदी अनसूचित जाति ने प्रथमिक शिक्षा प्राप्त की है, स्नातकों के आंकड़े केवल 2.7 फीसदी है।

अनुसूचित जाति में, साक्षरता में लैंगिक अंतर का – या पुरुष एवं महिलाओं के बीच साक्षरता दर में अंतर – 18.7 प्रतिशत अंक है जो कि 16.2 प्रतिशत अंक का राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

2001 में, अनुसूचित जाति के लिए लैंगिक अंतर 24.7 प्रतिशत अंक था और राष्ट्रीय औसत 21.7 प्रतिशत अंक था।

हालांकि, लड़कियों की तुलना में अधिक दलित लड़कों का जन्म होता है, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, दोनों का कुल लिंग अनुपात 943 के राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। अनुसूचित जाति के लिए, यह प्रति 1,000 पुरुषों पर 945 है। 2001 में, शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति में 923 से बढ़ कर 2011 में 946 हुआ है जबिक ग्रामीण इलाकों में, इसी अवधि के दौरान 939 से बढ़ कर 945 हुआ है।

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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