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ओड़िसा में रेत पर बनाई गई मोहम्मद अजमल कसाब की मूर्ति। कसाब को मुबंई में हुए बम धमाकों के आरोप में 2012 में फांसी हुई थी।

मृत्युदंड भारत में आम है।हाल ही में भी साल 1993 में मुंबई में हुए सिरियल बम ब्लास्ट के एक आरोपी, याकूब मेमन को फांसी की सज़ा दी गई है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीईरबी )जेल सांख्यिकी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 से 2014 के बीच देश में 1,303 मामलों में मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई है।

हालांकि इस अवधि के दौरान केवल तीन दोषियों को ही मृत्युदंड दिया गया है। मृत्यदंड की सज़ा देश के तीन राज्यों, पश्चिम बंगाल (2004), महाराष्ट्र (2012) एवं दिल्ली (2013) में सुनाई गई है। साल 2004 से 2012, सात सालों में भारत में किसी को भी मृत्युदंड नहीं दिया गया।

  • 14 अगस्त 2004 में पश्चिम बंगाल के अलीपुर सेंट्रल जेल में धंनजय चर्टजी नाम के शख्स को फांसी दी गई थी। धनंजय पर एक किशोरी के साथ बलात्कार एवं हत्या का आरोप था।
  • 21 नवंबर 2012 में आतंकवादी, मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को पुणे के येरवाड़ा जेल में फांसी दी गई थी। आतंकवादी कसाब को 2012 में मुंबई में हुए हमले के दौरान पकड़ा गया था।
  • 9 फरवरी 2014 में मोहम्मद अफज़ल गुरु को दिल्ली के तीहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। अफज़ल गुरु पर 2001 में देश के संसद पर हुए हमले का आरोप था।

इसके अलावा, इस अवधि के दौरान 3,751 मौत की सज़ा के मामलों को आजीवन कारावास में बदला गया है।

पूर्व चार्टड एकाउंटेंट, याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को नागपुर जेल में फांसी दे दी गई है।मेमन की फांसी की सज़ा को लेकर देश भार में बहस छिड़ गई है।

जुलाई 2007 में याकूब मेमन सहित 11 आरोपियों को स्पेशल कोर्ट द्वारा मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई थी। इन सभी पर 1993 में हुए मुंबई धमकों में शामिल होने का आरोप था। मुबंई में हुए इस आतंवादी हमले में 260 लोगों की जान चली गई थी जबकि 700 लोग गंभीर रुप से घायल हुए थे।

मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मेमन की सज़ाको बरकरार रखते हए बाकि के 10 आरोपियों ( जिसमें से एक की बाद में मृत्यु हो गई) की मृत्युदंड की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

सोशल मीडिया पर बना चर्चा का विषय

सोशल मीडिया पर मेमन की फांसी को लेकर जबरदस्त चर्चा हो रही है। मामले को धार्मिक रंग देने की कोशिश करते हुए कुछ लोगों का कहना है कि भारत में केवल मुस्लमानों को ही फांसी की सज़ा सुनाई जा रही है। एशियन न्यूज़ इंटरनेश्नल (एएनआई ) के अनुसार इस दावे की प्रतिक्रिया का भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमनियम स्वामी ने विरोध किया है। आंकड़ों का हवाला देते हुए स्वामी ने कहा कि 1947 से लेकर अब तक भारत में 170 लोगों को फांसी दी गई है जिसमें से मुस्लमानों की संख्या केवल 15 है।

नेश्नल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के मृत्युदंड पर एक रिपोर्ट के अनुसार आज़ादी के बाद से कम से कम 60 मुसलमानों ( उप नाम के आधार पर ) को फांसी दी गई है।

रिपोर्ट में कंद्रीय जेलों से आंकड़े संकलित किए गए है। लेकिन यह आंकड़े परिपूर्ण नहीं हैं क्यों कई राज्यों ने समपूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है। जानकारी न दे पाने के लिए कई कारण दिए गए हैं। कुछ राज्यों, जैसे केरल एवं आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने दीमक द्वारा रिकॉर्ड नष्ट हो जाने का कारण बताया।

साल 1967 में जारी किए गए 35वीं विधि आयोग की रिपोर्ट के मुताबिकसाल 1953 से 1963 के दौरान 1,400 से अधिक कैदियों को मृत्युदंड दिया गया है। लेकिन यह रिपोर्ट धर्म के आधार पर दोषियों का ब्योरा नहीं देती है।

2007 – मृत्युदंड का साल

साल 2007 में मौत की सज़ा की संख्या सबसे अधिक सुनाई गई है। इस साल कम से कम 186 लोगों को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई है। इससे पहले सबसे अधिक मौत की सज़ा साल 2005 में सुनाई गई थी। 2005 में यह आंकड़े 164 रहे थे। गौरतलब है कि साल 2005 में ही सबसे अधिक मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला गया था। मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने की संख्या 1,241 दर्ज की गई है।

मृत्युदंड – 2004-2013

पिछले दस सालों में सबसे अधिक मृत्युदंड की सज़ा उत्तर प्रदेश राज्य में सुनाई गई है। उत्तर प्रदेश में दस सालों में मृत्यदंड के आंकड़े 318 दर्ज किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ( 108 ), कर्नाटक ( 107 ) , बिहार ( 105 ) एवं मध्य प्रदेश ( 104 ) का स्थान है।

मृत्युदंड देने वाले टॉप पांच राज्य, 2004 – 2013

साल 2004 से 2013 के दौरान देश में दिए गए कुल मृत्यदंड में से इन पांच राज्यों की हिस्सेदारी 57 फीसदी रही है।

दिल्ली में, साल 2004 से 20013 के बीच, मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने की संख्या 2,465 दर्ज की गई है। इस मामले में 303 की संख्या के साथ झाड़खंड एवं उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है। बिहार में आंकड़े 157 दर्ज किए गए हैं जबकि पश्चिम बंगाल में यह आंकड़े 104 हैं।

मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने वाले टॉप पांच राज्य

2004 से 2013 के बीच अकेले दिल्ली में मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने की हिस्सेदारी 66 फीसदी दर्ज की गई है।

160 देशों में नहीं दिया जाता मृत्युदंड – भारत, चीन जापान अमरिका इनमें नहीं

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 160 देशों ने कानूनी रुप से मौत की सज़ा को समाप्त कर दिया है जबकि 98 अन्य देशों ने इस सम्पूर्ण रुप से हटा दिया है।

साल 2007 में दुनिया भर से मौत की सज़ा को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मृत्युदंड समाप्त करने एवं मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था।

भारत के अलावा, मौत की सज़ा को समाप्त करने के संकल्प करने का जिन देशों ने विरोध किया है उनमें चीन, जापान एवं अमरिका प्रमुख हैं।

साल 2012 में 22 अन्य देशों में 778 फांसी पर लटकाने के मामले दर्ज किए गए हैं। इन आंकड़ों में साल 2012 के मुकाबले 14 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। गौरतलब है कि साल 2012 में यह आंकड़े 682 दर्ज किए गए थे।

पिछले सोमवार को पाकिस्तान में दो आरोपियों को फांसी से लटकाया गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान में दिसंबर 2014 से अब फांसी पर लटकने वालों की संख्या 176 हो गई है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 29 जुलाई 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है|

( मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ एक नीति विश्लेषक एवं साहा नई दिल्ली में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं ।)

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