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यदि पिछले दो चुनावों के दौरान खड़े हुए उम्मीदवारों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात स्पष्ट है कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कोर्ट में उम्मीदवारों के खिलाफ, हत्या, जबरन वसूली, अपहरण, डकैती, महिलाओं के खिलाफ अपराध, बलात्कार सहित कई जघन्य मामले दर्ज हैं।

बिना किसी अपवाद के सभी राजनीतिक पार्टियां वैसे उम्मीदवारों को चुनती हैं जिन पर गंभीर अपराधिक आरोप लगे हैं। इसके पीछे क्या कराण है यह इंडियास्पेंड ने स्व-घोषित हलफनामों की विश्लेषण के ज़रिए जानने की कोशिश की है : वर्ष 2005 के चुनाव में ऐसे केवल 8 फीसदी उम्मीदवार ने जीत हासिल की जिनके खिलाफ कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं है। वर्ष 2010 में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या केवल 4 फीसदी थी। जबकि वर्ष 2005 एवं 2010 में दागी उम्मीदारों की सफलता 23 फीसदी एवं 12 फीसदी दर्ज की गई है।

वर्ष 2005 में 2,029 उम्मीवारों में से 274 ( 14 फीसदी ) दागी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दी गई थी। जबकि वर्ष 2010 में कुल 3,058 उम्मीदवारों में से दागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ कर 600 ( 20 फीसदी ) दर्ज की गई है। वर्ष 2005 में 274 दागी उम्मीदवारों के खिलाफ कुल 499 हत्या के आरोप, 81 जबरन वसूली के मामलों और 102 अपहरण के आरोप दर्ज की गई थी। जबकि वर्ष 2010 में 600 दागी उम्मीवारों पर 919 हत्या के मामले, 207 जबरन वसूली एवं 151 अपहरण के मामले दर्ज की गई है।

भारत की राजनीतिक पार्टियों में दागी उम्मीवारों का चुनाव लड़ना नई बात नहीं है लेकिन वर्ष 2010 के चुनाव के दौरान बिहार के 66 निर्वाचन क्षेत्रों से चार से अधिक दागी उम्मीदवार( जिनके खिलाफ जघन्य अपराधिक मामले दर्ज हैं) ने चुनाव लड़ा है। 20 निर्वाचन क्षेत्रों से छह या अधिक ऐसे उम्मीवादरों ने चुनाव लड़ा है जिनके खिलाफ अपराधिक मामले लंबित हैं।

जनता दल ( यूनाइटेड ) पार्टी में दागी उम्मीदवारों की संख्या सबसे अधिक

वर्ष 2010 के चुनाव के दौरान जद ( यू ) के 34 फीसदी, एलजेपी के 33 फीसदी, बीजेपी के 26 फीसदी एवं कांग्रेस के 18 फीसदी उम्मीवारों ने निर्वाचन आयोग को बताया कि कोर्ट में उनके खिलाफ जघन्य अपराधिक मामले लंबित हैं।

दागी उम्मीदवार, 2005 एवं 2010 बिहार चुनाव

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here. Note: Heinous cases are those involving offences related to murder, extortion, kidnapping, robbery and dacoity, and crimes against women & children, including rape. If convicted for these offences, the punishment ranges from 7 years to life imprisonment or the death sentence.

हालांकि राजनीति में अपराधीकरण का मुद्दा हर चुनाव के दौरान आता है लेकिन बिहार के संदर्भ में उम्मीदवारों पर लगाए गए अपराधों की प्रकृति सबसे गंभीर मुद्दा है।

वर्ष 2005 चुनाव के दौरान बीजेपी ने 26 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया जिनके खिलाफ 35 हत्या, 16 जबरन वसूली, 7 अपहरण एवं 5 डकैती के मामले दर्ज की गई थी।

2005 चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के खिलाफ अपराधिक मामले

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

वर्ष 2010 में यह आंकड़े और बद्तर हो गए।

जद (यू), बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाली पार्टी, में कम से कम 79 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या, 20 के खिलाफ जबरन वसूली एवं 11 के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं जबकि 42 कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या संबंधित मामले दर्ज हैं। बीजेपी से 25 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया जिनके खिलाफ 47 हत्या, 12 जबरन वसूली, 12 अपहरण एवं 2 बलात्कार के मामले दर्ज हैं।

2010 चुनाव के दौरान उम्मीवारों के खिलाफ अपराधिक मामले

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

दागी उम्मीदवारों को ही चुनती है पार्टी

वर्ष 2005 चुनाव को दौरान, 2,029 उम्मीदवारों में 1,539 उम्मीदवार “साफ” थे यानि उनके खिलाफ किसी भी प्रकार का अपराधिक मामला दर्ज नहीं था।

जबकि बाकि के 490 उम्मीदवार, 274 के खिलाफ जघन्य अपराध का मामला दर्ज था, 113 के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज थे, 36 के खिलाफ मामले दर्ज थे, यदि दोष सिद्ध होता है तो उन्हें दो से पांच साल की सज़ा मिल सकती है एवं 67 उम्मीदवारों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज थे जिनका दोष सिद्ध होने पर दो या उससे कम की सज़ा हो सकती है।

इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि अपराध की संख्या भी राजनीतिक दलों के लिए काफी मायने रखती है।

आपराधिक मामलों का सामना कर रहेउम्मीवारों में से 56 फीसदी ( 490 में से 274 ) के खिलाफ जघन्य अपराध के मामले दर्ज हैं एवं 23 फीसदी ( 490 से 113 ) के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं।

राजनीतिक पार्टियों ने ऐसे उम्मीदवारों को अधिक प्राथमिकता दी है जिनके खिलाफ दोष सिद्ध हो जाने पर कम से कम पांच साल और ज़्यादा से ज़्यादा से उम्रकैद की सज़ा हो सकती है।

2005 चुनाव के दौरान दागी उम्मीदवारों की संभावित सज़ा

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

इसी तरह 2010 चुनाव के दौरान, 1,207 उम्मीदवार जिनके खिलाफ अपराधिक मामले लंबित हैं, 50 फीसदी ( 1,207 से 600) के खिलाफ जघन्य अपराध के मामले एवं अन्य 28 फीसदी ( 1,207 से 340) के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित हैं।

पार्टी ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता देती है जिनके खिलाफ जघन्य अपराध एवं गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं।

2010 चुनाव के दौरान दागी उम्मीदवारों की संभावित सज़ा

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

2005 चुनाव के दौरान केवल 8 फीसदी एवं 2010 में 4 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं

यह स्पष्ट है कि राजनीतिक पार्टियां दागी उम्मीदवारों को क्यों चुनती हैं।

बिहार में 2005 के विधानसभा चुनाव में लड़ने वालेसाफ छवि के 1,539 उम्मीदवारों में से केवल 126 ( 8 फीसदी ) ही निर्वाचित हुए थे जबकि चुने जाने वाले दागी उम्मीदवारों की संख्या 22 फीसदी ( 274 से 61 ) थी।

113 उम्मीदवारों, जिनके खिलाफ दंगा , धोखाधड़ी और जालसाजी सहित कई गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं, में से 23 ( 20 फीसदी ) विधानसभा तक पहुंच पाए थे। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि साफ छवि वाले उम्मीवारों के मुकाबले जघन्य एवं गंभीर अपराध करने वाले उम्मीदवारों की चुनाव में जीतने की उम्मीद तीन गुना अधिक है।

2005 विधायकों की संभावित सज़ा

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

2010 चुनाव के दौरान साफ छवि वाले उम्मीदवारों की संख्या और बद्तर दर्ज की गई है। 2010 में केवल 4 फीसदी ( 1,851 में से 82 ) साफ छवि के उम्मीदवारों ने चुनाव जीता है।

जघन्य अपराध के आरोप वाले उम्मीदवारों की सफलता दर 11 फीसदी दर्ज की गई एवं गंभीर अपराध के आरोप वाले उम्मीदवारों का 12 फीसदी दर्ज की गई है जो कि साफ छवि के उम्मीदवारों की तुलना में तीन गुना अधिक है।

2010 विधायकों की संभावित सज़ा

Source: Self-sworn affidavits submitted by contesting candidates to ECI, Bihar Chief Electoral Officer 1, 2. View raw data here.

( मनोज के. आईआईटी दिल्ली से स्नातक हैं एवं सेंटर फॉर गवर्नेंस एवं डिवलपमेंट के संस्थापक भी हैं। मनोज की शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही में एक विशेष रुचि है एवं इससे जुड़े कई परियोजनाओं से भी जुड़े हैं। मनोज से संपर्क manoj@cgdindia.org पर किया जा सकता है।

मदन दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून एवं कॉमर्स स्नातक हैं। मदन ने मैकिन्से इंडिया एवं यूनाइटेड नेशन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी के साथ काम किया है। फिलहाल मदन दिल्ली हाई कोर्ट में वकील हैं। )

यह लेख इंडियास्पेंड के बिहार पर विशेष विश्लेषण का हिस्सा है। इस श्रृंखला के अन्य लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 5 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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