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नई दिल्ली के एक अस्पताल के ओपीडी में डेंगू का टेस्ट कराता एक मरीज। दिल्ली में मीडिया और चिकित्सा निगरानी प्रणाली लगातार डेंगू से हुई मौतों की संख्या पर नजर रखे हुए हैं। लेकिन हकीकत यह है कि बताई गई संख्या की तुलना में मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा हैं। डेंगू से हुई मौतों के संबंध में आंकड़ों की असमानता से एक नई बहस छिड़ गई है।

वर्ष 2015 में निगरानी एजेंसियों द्वारा बताए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए मीडिया ने दिल्ली में डेंगू बुखार से 60 लोगों की मौत होने की खबर दी है। हम बता दें कि डेंगू बुखार का वायरस मच्छर के काटे जाने पर फैलता है। हालांकि, दिल्ली सरकार के आंकड़े मीडिया द्वारा बताई गई संख्या से आठ गुना अधिक हैं। दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक डेंगू से मरने वालों की संख्या 486 है।

हालांकि अब तक यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों ही आंकड़े हकीकत से दूर हैं। क्योंकि वर्ष 2015 के दौरान दिल्ली में ‘रिपोर्ट ऑन मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ’ से मिले आंकड़ों को नुसार दर्ज मौतों में से 62.7% मौतों की वजह डेंगू रहा। यहां यह भी बता देना जरूरी है कि 17 मिलियन की आबादी वाले महानगर दिल्ली विश्वसनीय ढंग से सभी मौतों को दर्ज करता है। इसका मतलब यह हुआ कि डेंगू से मरने वालों की संख्या 486 से ज्यादा है। क्योंकि घर पर होने वाली मौतों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। अस्पताल से बाहर जितनी मौतें दर्ज हुईं उसका प्रतिशत 37.3 है।

यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि डेंगू से मरने वाले लोगों के संबंध में मीडिया या चिकित्सा निगरानी प्रणाली द्वारा बताई गई संख्या की तुलना में वास्तविक आंकड़े अधिक हैं। केंद्रीय और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों द्वारा दिए गए अलग-अलग आंकड़ों से स्वास्थ्य तैयारियों में बाधा पड़ती है। इन सारी परिस्थियों ने डेंगू बुखार को बहस के केंद्र में ला दिया है।

डेंगू बुखार और अन्य वेक्टर जनित रोगों के फैलने के कारण सार्वजनिक रुप से तनाव के साथ दिल्ली सरकार और मीडिया के बीच विवाद भी उत्पन्न हुआ है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने सितंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

मीडिया को मिले डेंगू बुखार के आंकड़े कितने विश्वसनीय?

मीडिया उन आंकड़ों का उपयोग करती है, जो दिल्ली सरकार आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) को रिपोर्ट करती है। एनवीबीडीसीपी के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में 2015 में उत्पन्न मामलों की तुलना में 2016 में डेंगू बुखार के मामले एक चौथाई हैं। 6 नवंबर, 2016 तक डेंगू बुखार से 4 लोगों की मौत और 3,778 मामले सामने आए हैं।

विभिन्न सरकारी सूत्रों से डेंगू से हुए मौत की संख्या

Source: National Vector-Borne Disease Control Programme, Government of Delhi

इसके विपरीत, हिंदूस्तान टाइम्स ने 2016 में डेंगू से होने वाली मौतों की संख्या 26 बताई है। यह संख्या एनवीबीडीसीपी के आंकड़ो से छह गुना अधिक है। एनवीबीडीसीपी की विश्वसनीयता पर विशेषज्ञों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं।

आंकड़ों में असमानता एक राष्ट्रीय मुद्दा है। ‘अमेरिकन सोसायटी फॉर द ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजिन’ के जर्नल में वर्ष 2014 में प्रकाशित हुए अध्ययन के अनुसार, पिछले छह वर्षों से वर्ष 2012 तक के दौरान आधिकारिक तौर पर दर्ज मामलों की तुलना में चिकित्सकीय निदान डेंगू के मामले 282 गुना अधिक थे। इसी अध्ययन में भारत में डेंगू पर वार्षिक आर्थिक लागत 1.11 बिलियन डॉलर यानी 7500 करोड़ रुपए बताई गई है।

आगे और भी साक्ष्य हैं, जिससे पता चलता है कि डेंगू बुखार से होने वाली मौतों और मामलों की रिपोर्ट वास्तविकता से कम आंकी गई है।

सितंबर 2016 में, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट, जिसे अभी भी पेश किया जाना बाकी है, सरकारी ऑडिटर (टाइम्स ऑफ इंडिया में यहाँ उद्धृत) ने पाया कि दिल्ली के अस्पतालों में 409 लोगों की मौत के मामले दर्ज किए गए हैं जबकि डेंगू से होने वाली मौत पर समिति ने 60 मौतों या 85 फीसदी कम मौतों की पृष्टि की है। एशियन एज में छपी कैग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के अस्पतालों, दक्षिण दिल्ली नगर निगम और नोडल एजेंसी द्वारा जब रक्त के नमूनों का परीक्षण हुआ और उसमें 68,000 में डेंगू वायरस पाए गए। जबकि एनवीबीडीसीपी में किए गए परीक्षण में 22,436 मामले सकारात्मक पाए गए।

बहरहाल, साल-दर-साल की प्रवृति से लगता है कि भारत में वेक्टर जनित रोगों को एक चुनौती के रूप में देखना चाहिए।

वर्ष 2016 के आधिकारिक आंकड़ों तो यह बताते हैं कि डेंगू बुखार के मामले वर्ष 2015 की तुलना में एक-चौथाई थे। फिर भी, दिल्ली अस्पतालों पर भारी भीड़ 2015 की याद दिलाते हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों?

दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया दोनों का आतंक

इस सवाल का जवाब शायद, चिकनगुनिया के प्रसार में निहित है। चिकनगुनिया में जोड़ों के दर्द, चकत्ते, तेज बुखार और चकत्ते सहित डेंगू बुखार के कुछ नैदानिक ​​लक्षण पाए जाते हैं।

दोनों बीमारियां एडीज प्रजाति के मच्छर द्वारा फैलते हैं लेकिन दोनों अलग कारणों से होते हैं। और यह संभव है कि एक मरीज एक ही समय में डेंगू बुखार और चिकनगुनिया दोनों से पीड़ित हो। दोनों रोगों का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, डेंगू बुखार चिकनगुनिया से ज्यादा खतरनाक है।

एनवीबीडीसीपी के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में पिछले वर्ष चिकनगुनिया के मामले न के बराबर थे, जबकि वर्ष 2016 में 11,000 से अधिक मामले पाए गए हैं। चिकनगुनिया के इस हमले ने स्वस्थ्य देखभाल प्रणाली को पूर्णतया ध्वस्त कर दिया है। डेंगू के बाद चिकनगुनिया ने बड़े पैमाने पर दहशत पैदा की है।

दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले, 2013-16

Source: Cases of Chikungunya and dengue as recorded by National Vector-Borne Disease Control Programme

चिकनगुनिया के कम रोगियों को ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है। अक्सर होता है कि कई ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है जिन्हें भर्ती होने की जरुरत नहीं होती है। डेंगू बुखार में भी सबको अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। जबकि कुछ ऐसे मामले होते हैं कि जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरुरत है उन्हें या जो देरी से भर्ती कराया जाता है या भर्ती ही नहीं कराया जाता है।

चिकनगुनिया पर मीडिया फोकस और संक्रमण का डर अस्पताल में अनावश्यक भर्ती के कारण हो सकते हैं। जिससे अस्पतालों में भीड़ बढ़ती है। गंभीर लोगों के इलाज में देरी होती है और रोगी की मौत का कारण बना है।

आधिकारिक प्रतिक्रिया: समस्या से इनकार

इन बीमारियों का आतंक बढ़ रहा है और अधिकारियों का अब भी यही कहना है कि यह कोई समस्या है ही नहीं। डेंगू से होने वाली मौतों पर गौर करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा गठित समिति ने सितंबर में कहा कि डेंगू या चिकनगुनिया से हुई मौतों की कोई पुष्टि नहीं हुई है।

अक्सर मौत की समीक्षा समितियों पर वास्तविकता से कम आंकड़े दर्ज करने का दबाव रहता है। जैसा कि 2012 में एनडीटीवी ने मुंबई से बताया है। समस्या के बड़े पैमाने को स्वीकार करने से इनकार केवल डेंगू महामारी तक ही सीमित नहीं है। 2016 में, भारत में मलेरिया पर अल जज़िरा द्वारा किए गए जांच में दिखाया है कि किस प्रकार मरने वालों की आधिकारिक संख्या वास्तविकता से कम आंके गए हैं।

2010 के एक अध्ययन में तर्क दिया कि भारत में मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या सैकड़ों में नहीं थे, जैसा कि आधिकारिक आंकड़ों में बताया गया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस अध्ययन के बाद आधिकारिक समिति ने देश में मलेरिया से मृत्यु दर के आंकड़ों में 20 से 40 गुना संशोधन का सुझाव दिया। समिति की अंतिम रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया।

प्रवास और अनियोजित शहरी विस्तार कई संक्रामक रोगों के फैलने में एक अहम भूमिका निभाते हैं। इन दो कारणों से मानव और वैक्टर जैसे कि मच्छर निकट सानिध्य में आते हैं। संक्रामक रोगों के एक पहले से ही बड़े बोझ के साथ, यह नई चुनौतियां स्वास्थ्य प्रणालियां विफल होती प्रतीत होती हैं, जैसा कि दिल्ली में देखा जा रहा है।

अक्टूबर, 2014 में अर्थशास्त्रियों ने सिफारिश की है कि भारत में डेंगू बुखार की स्थिति, समाज पर इसके असर और आर्थिक बोझ की व्यापक समीक्षा के लिए प्रयाप्त और सही-सही आंकड़ों की जरूरत है। बेहतर आंकड़ों से स्वास्थ्य देखभाल की सार्वजनिक प्रणाली को चुस्त-दुरूस्त किया जा सकता है।

(राजनीतिक और आर्थिक टीकाकार कुरियन स्वास्थ्य पर लगातार लिखते रहे हैं। वह नई दिल्ली के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में पब्लिक हेल्थ के फेलो हैं।))

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 नवंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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