एक वैश्विक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2015 में, गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण भारत में हुई 10.3 मिलियन मौतों में से 2.5 मिलियन मौतों की वजह प्रदूषण है।

वर्ष 2015 में, विश्व में से नौ मिलियन या 16 फीसदी मौतें प्रदूषण के कारण हुई हैं। प्रदूषण और स्वास्थ्य पर किया गया एक अध्ययन, जो ‘लैनसेट’ में प्रकाशित हुआ है, उसमें ये जानकारी सामने आई है। ये आंकड़े संयुक्त रुप से एक्वायर्ड इम्यूनोडिफीसिन्सी सिंड्रोम (एड्स), टीबी, और मलेरिया से हुई मौतों के मुकाबले तीन गुना अधिक है।

अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली जैसे महानगर और रांची जैसे छोटे शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण से फुफ्फुसीय रोग (सीओपीडी), कैंसर, मधुमेह और अन्य प्रदूषण संबंधी बीमारियों की घटनाएं बढ़ रही हैं। श्रीलंका और भारत के बीच एक दिसंबर 2017 को हुए टेस्ट क्रिकेट मैच को कई बार बीच में रोकना पड़ा ,क्योंकि श्रीलंका के खिलाड़ी सांस लेने में कठिनाइयों की शिकायत कर रहे थे, जबकि कुछ लोग दिल्ली में "खराब हवा की गुणवत्ता" के कारण जमीन पर उल्टी कर रहे थे।

प्रदूषण और एनसीडी के बीच बढ़ते संबंध

भारत में प्रदूषण की वजह से कम से कम 27 फीसदी मौतें हुई हैं और इन आंकड़ों के साथ यह प्रदूषण-संबंधी मौतों की सबसे ज्यादा संख्या वाला देश बन गया है। ‘लैंसैट’ के मुताबिक दूसरा स्थान चीन का है। कम और मध्यम-आय वाले समूह प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। प्रदूषण की वजह से 92 फीसदी मृत्यु इसी आय समूह में हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 14 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

वर्ष 1990 में, बीमारी भार का 30.5 फीसदी हिस्सेदारी एनसीडी की रही है, जो कि वर्ष 2016 में बढ़कर 55.4 फीसदी हो गया है। यह जानकारी ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ द्वारा 2017 की रिपोर्टइंडिया: हेल्थ ऑफ नेशन स्टेटस’ में है।

वर्ष1990 के बाद से, मधुमेह में 80 फीसदी और हृदय रोगों में 34 फीसदी की वृद्धि के साथ मधुमेह और हृदय रोग भारत की बढ़ती विकलांगता के लिए प्रमुख कारण हैं । समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) - कुल बीमारी का बोझ, बीमार स्वास्थ्य, विकलांगता या प्रारंभिक मृत्यु के कारण खो जाने वाले वर्षों की संख्या के रूप में व्यक्त किया गया।

राज्य अनुसार गैर-संज्ञानात्मक रोग भार- 2016

Source: The Health of Nation States, 2017;

(Units are Disability Affected Life Years per 100,000 of the population)

नई दिल्ली स्थित ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट’ (सीएसई) द्वारा किए गए वर्ष 2016 के एक अध्ययन, ‘लाइफस्टाइल डिसीज: बॉडी बर्डन’ के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में कम से कम 61 फीसदी मौतें एनसीडी के कारण हुई थीं।

जीवनशैली से जुड़े रोगों पर शहरी लोगों से ज्यादा ग्रामीण करते हैं खर्च

‘लाइफस्टाइल डिसीज: बॉडी बर्डन’ रिपोर्ट के अनुसार होने वाली सभी भारतीय मौतों में कम से कम 13 फीसदी का कारण सीओपीडी के है। ग्रामीण पुरुष और महिलाओं में अपने शहरी समकक्षों की तुलना में सीओपीडी होने का जोखिम अधिक है।

हालांकि, वर्ष 2016 में सीओपीडी के खतरे के भीतर 10.76 मिलियन ग्रामीण पुरुष थे, वहीं शहरी पुरुषों की संख्या 3.94 मिलियन थी। कम से कम 5.54 मिलियन और 1.97 मिलियन ग्रामीण और शहरी महिलाओं को 2016 में सीओपीडी का खतरा था।

क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज का जोखिम

Source : Body Burden: Lifestyle Diseases, 2016

पिछले दो दशकों में सीओपीडी उपचार लागत में पांच गुना वृद्धि हुई है। अकेले वर्ष 2016 में, ग्रामीण जनसंख्या ने 35,445.2 करोड़ (5.53 बिलियन डॉलर) खर्च किया है, जबकि शहरी आबादी द्वारा 12,860.9 करोड़ (2 बिलियन डॉलर) खर्च किया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वर्ष 2005 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, सीओपीडी रोगियों द्वारा खर्च किए गए धन को तम्बाकू और धूम्रपान को नियंत्रण करने जैसे रणनीति अपना कर कम किया जा सकता है।.

ग्रामीण भारत के लिए अस्पताल में खर्च वृद्धि का संबंध पहचान और उपचार में देरी से जुड़ा हुआ है।विशेष उपचारों का लाभ उठाने के लिए ग्रामीण नागरिकों को अक्सर शहरों और कस्बों की यात्रा करनी पड़ती है।

जागरूकता, सुविधाओं, विशेष चिकित्सकों की कमी और छोटे शल्यचिकित्सकों की कमी ग्रामीण भारत के लिए सामूहिक उपचार लागत को बढ़ाती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच पाने के बाद भी, मरीज बाहर में खुद की देखभाल करने में असमर्थ हैं। उच्च अस्पताल में भर्ती के खर्च और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल में विश्वास की कमी से भी लोग औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल से बचते हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार शहरी इलाकों (58.7 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण भारत में कम लोग (44.7 फीसदी) बीमारियों की रिपोर्ट करते हैं।

सीएसई के महानिदेशक सुनीता नारायण ने ‘बॉडी बोर्डेन: लाइफस्टाइल डिसीज’ अध्ययन में लिखा है, “भारत में जोखिम के लिए डब्लूएचओ द्वारा जिन चार कारकों ( शराब, तम्बाकू, खराब आहार और शारीरिक गतिविधि की कमी ) की पहचान की गई है, वे लागत पर विचार करने के लिए बहुत अधिक हैं। ”

"इन जोखिम कारकों के कई लक्ष्य हैं और उन बीमारियों के भी कारण हो सकते हैं, जो आमतौर पर उनसे जुड़े नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, कीटनाशकों के संपर्क कैंसर का कारण माना जाता है, लेकिन नए आंकड़ों में मधुमेह भी सामने आ रहा है। "

(पाटिल इंटर्न हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 3 जनवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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