Bengaluru: The 3.5mw solar power plant at HAL airport in Bengaluru on Dec 23, 2016. (Photo: IANS)

बेंगलुरु: एचएएल हवाई अड्डे पर सौर ऊर्जा संयंत्र

नई दिल्ली: आने वाले दशक में 11 गीगावाट (जीडब्लू) नवीकरण ऊर्जा यानी या 1000 मेगावॉट के 11 कोयला संयंत्र से उत्पन्न बिजली ऊर्जा के बराबर, को जोड़कर, कर्नाटक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में राष्ट्रीय परिदृश्य पर सबसे आगे रहते हुए 2027-28 तक ऊर्जा में आत्मनिर्भर भी हो सकता है, इसमें कर्नाटक के वर्तमान जीवाश्म ईंधन क्षमता को नहीं जोड़ा गया है। कर्नाटक के बारे में एक नए अध्ययन की रिपोर्ट कुछ ऐसी ही तस्वीर बनाती है।

यदि सफल हो जाए तो, 2027-28 तक 23 जीडब्ल्यू के साथ नवीकरण ऊर्जा या राज्य की स्थापित क्षमता का 60 फीसदी कर्नाटक की 110 टेरावाट-घंटे (TWH) बिजली की मांग का 43 फीसदी उत्पन्न करेगा, जैसा कि एक वैचारिक संस्था, इन्स्टिटूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के जुलाई 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है, यह आंकड़ा आज के 27 फीसदी से ज्यादा है। 9.4 जीडब्ल्यू या राज्य की कुल स्थापित क्षमता का 25 फीसदी कोल ऊर्जा एक दशक में बिजली उत्पादन का 39 फीसदी देगा, जो आज के 49 फीसदी नीचे है।

यह यात्रा कठिन नहीं है। 2017-18 में, कर्नाटक ने 12 जीडब्ल्यू की नवीकरण क्षमता स्थापित करने के लिए लगभग 5 जीडब्ल्यू की बढ़ोतरी की। 27 जीडब्ल्यू की राज्य की स्थापित क्षमता का 46 फीसदी। इस प्रकार कर्नाटक पड़ोसी तमिलनाडु के लंबे एकाधिकार को समाप्त करके नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक राज्यों में नंबर एक पर आ गया।

ऑस्ट्रेलिया के आईईईएफए के ऊर्जा वित्त अध्ययन के निदेशक, टिम बकली और आईईईएफए अनुसंधान सहयोगी काशीश शाह ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, "कर्नाटक का प्रगतिशील नेतृत्व शेष भारत के लिए बिजली व्यवस्था परिवर्तन में एक सकारात्मक भूमिका मॉडल प्रदान करता है।"रिपोर्ट में कहा गया है, " अगर अन्य राज्य कर्नाटक का अनुसरण करते हैं, भारत डिकार्बनाइजेशन में वैश्विक नेता के रूप में अपना स्थान बना सकता है। तेजी से कम लागत वाली नवीनीकरण तकनीक को अपनाने से भारत की ‘महंगे जीवाश्म ईंधन आयात पर बढ़ती निर्भरता‘ कम हो सकती है।"

पेरिस जलवायु समझौते 2015 में अपनी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता के अनुरूप, भारत 2022 तक 175 जीडब्ल्यू नवीकरणीय बिजली क्षमता स्थापित करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक चला रहा है, जो इसके वर्तमान आंकड़े का तीन गुना है। यह 1000 मेगावाट के 175 कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों को प्रतिस्थापित करने के लिए पर्याप्त है । यह जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम करेगा। जीवाश्म ईंधन से खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है और इससे ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी होती है।

भारत के नवीनीकरण ऊर्जा लक्ष्य में, 100 जीडब्ल्यू सौर स्रोतों से भी आना है, सौर ऊर्जा समृद्ध राज्य कर्नाटक और तमिलनाडु इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

बिजली के आयात से, आत्मनिर्भरता तक

नवीनीकरण, थर्मल, हाइड्रो और परमाणु समेत कर्नाटक की स्थापित क्षमता 2027-28 तक 38 जीडब्ल्यू तक पहुंचने का अनुमान है, यानी मार्च 2018 तक 27 जीडब्ल्यू से 43 फीसदी ऊपर। बढ़े हुए स्थापित क्षमता से ‘शुद्ध शून्य आयात’ तक पहुंचने के लिए, राज्य को 49 TWH की अतिरिक्त बिजली आपूर्ति की आवश्यकता होगी, जिसका मतलब घरेलू मांग को पूरा करने के लिए कोई आयात नहीं है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2027-28 तक शुद्ध शून्य आयात एक रूढ़िवादी अनुमान है। कर्नाटक अपने नवीकरणीय उत्पादन संसाधनों के विस्तार के माध्यम से बिजली निर्यातक बन सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक ने 2017-18 में 61 TWH बिजली का उत्पादन किया, और लगभग 68 TWH की कुल मांग को पूरा करने के लिए अंतर-राज्य ग्रिड से लगभग 7 TWH आयात किया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य द्वारा उत्पादित 61 TWH में, 12 जीडब्ल्यू की स्थापित क्षमता या 27 जीडब्ल्यू की 46 फीसदी राज्य की स्थापित क्षमता के जरिए नवीनीकरण से 27 फीसदी उत्पन्न हुआ था।

बिजली का सबसे बड़ा हिस्सा, लगभग 49 फीसदी, कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से आया। रिपोर्ट के अनुसार 4.5 जीडब्ल्यू की संयुक्त स्थापित क्षमता के साथ अन्य 24 फीसदी हाइड्रो और परमाणु स्रोतों द्वारा उत्पन्न किया गया था।

अगर कर्नाटक अगले दशक में 11 जीडब्ल्यू की क्षमता को जोड़ता है तो इसके पास पहले से ही 12 जीडब्लू तक नवीकरणीय क्षमता है। साथ ही मौजूदा स्तर पर स्थापित 9 जीडब्ल्यू की कोल क्क्षमता को बनाए रखता है, यह किसी भी बिजली के आयात के बिना राज्य की पूरी मांग को आसानी से पूरा कर सकता है, जैसा कि रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है और हमने इसे पहले भी आपको बताया है।

रिपोर्ट की मानें तो राज्य को एकमात्र संशय इस बात को लेकर है कि अगले दशक में राज्य की कोयले की क्षमता 1.7 जीडब्ल्यू पीछे हट सकती है। यह भी माना जाता है कि वर्तमान में पाइपलाइन में जो परियोजनाएं हैं, वे 1.32 जीडब्ल्यू नई कोल क्षमता के लिए जिम्मेदार होंगी, और इससे आंशिक रूप से भरपाई संभव है।

इस प्रकार राज्य को 2027-28 में 9.4 गीगावॉट की संचयी कोयले की क्षमता के साथ रह जाएगा, जो मार्च 2018 तक 9.8 जीडब्ल्यू से 4 फीसदी की गिरावट है।

क्यों कोयले से दूर होना कर्नाटक के लिए फायदेमंद ?

जैसा कि हमने कहा, कर्नाटक में अब तक बिजली उत्पादन मिश्रित साधनों पर निर्भर जरूर है, लेकिन अभी यह कोयला पर बहुत ज्यादा निर्भर है। चूंकि कर्नाटक के पास कोयले के अपने खदान नहीं हैं, यह ओडिशा, तेलंगाना और झारखंड के खानों से रेलवे के माध्यम से आता है, जो इसके बिजली संयंत्रों से लगभग 700 से 1,200 किमी दूर है। राज्य समुद्री रास्ते से आयातित कोयले पर भी निर्भर है।

अन्य राज्यों से कोयला लेने में लगभग 2,130 रुपये प्रति टन रेल परिवहन खर्च आता है (लगभग 90 फीसदी अतिरिक्त लागत), जबकि जिन राज्यों के पास अपनी खादानें हैं, वहां सिर्फ 2,268 रुपये प्रति टन की लागत है, जिसमें कर भी शामिल हैं, जैसा कि रिपोर्ट से पता चलता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक में कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों ने वार्षिक आयातित ईंधन लागत में दो साल से 2,000 करोड़ रुपये (300 मिलियन डॉलर) खर्च किए हैं।

इससे कोयले से उत्पन्न बिजली महंगी हो जाती है। भारतीय कोयले का उपयोग करते हुए करीब 3 से 5 रुपए प्रति किलोवाट-घंटे (केडब्ल्यूएच) और आयातित कोयले के लिए 5-6 रुपये प्रति किलोवाट।

इस रिपोर्ट के सह-लेखक कशिश शाह ने इंडियास्पेंड को बताया कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी (अंतरराष्ट्रीय कोयले के लिए मुद्रा अवमूल्यन के साथ) ने इन टैरिफों को उच्च कर लिया है और उपभोक्ताओं को ईंधन की अलग-अलग कीमतें दी गई हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगे कोयला आधारित टैरिफ को देखते हुए कर्नाटक की वितरण कंपनियों के पास नई सौर और पवन ऊर्जा के लिए 3 रुपये प्रति यूनिट पर अनुबंध का ‘प्रमुख प्रोत्साहन’ है।

कर्नाटक में हालिया सौर निविदाएं प्रति यूनिट 2.82-3.06 रुपये की रिकॉर्ड कम बोली के करीब देखी गई हैं। जून 2018 में, कर्नाटक ने पवन ऊर्जा वाली बिजली के लिए, 3.45 रुपये प्रति यूनिट की ऊपरी कैप के साथ, रिवर्स नीलामियों की शुरुआत की ( जहां प्रतिस्पर्धी बोली-प्रक्रिया के माध्यम से कीमतें तय की जाती हैं और सबसे कम बोलीदाता जीतता है ), जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। कोयले से निकाले गए बिजली शुल्क से ये दरें 30-50 फीसदी कम हैं।

(त्रिपाठ प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 1 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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