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इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार पिछले 10 वर्षों में, देश में स्वीकृत हुई छः पेटेंट में से केवल एक के लिए भारतीय आविष्कारक ज़िम्मेदार हैं।

अपने बौद्धिक संपदा की रक्षा करने हुए अन्य पांच पेटेंट विदेशी कंपनियों के नाम रहे हैं।

graphic_sub_zeroSource: Controller General of Patents, Designs and Trademarks; Note: Data for 2015 up to Dec. 15; View data.

चार नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने हाल ही में कहा है कि अन्य अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जब बात नई प्रौद्योगिकियों के बनाने और नई चीजों की खोज की होती है तो पारंपरिक कमजोरी दिखाते हुए भारत की भूमिका ठीक नहीं है जिस ओर देश को ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेक इन इंडिया योजना की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि कंपनियों को भारत में आविष्कार करना आवश्यक है।

“New inventions, technologies, products that can compete on the world stage are in the end based on new discoveries, new understanding of the workings of nature — what we call basic science, which eventually translates into applied sciences and technologies. So my suggestion is that you replace the slogan ‘Make In India’ with the slogan ‘Discover, Invent and Make in India’.

-- David Gross, Nobel prize laureate for physics, 2004

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी) की ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स ने 2015 में हुए नवरचना के संबंध में 141 देशों में से भारत को 81 वें स्थान पर रखा है।

graphic_1Source: World Intellectual Property Organization

सरकारी शोधकर्ताओं आगे; बहुराष्ट्रीय कंपनियां मजबूत

हो सकता है भारत में अधिक आविष्कार नहीं किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए कौन है ज़िम्मेदार?

पिछले 10 वर्षों में 10,615 पेटेंट भारतीयों के नाम हुए हैं जिनमें कुछ आश्चर्यजनक और -तो कम आश्चर्यजनक नाम शामिल हैं।

इनमें सबसे उपर प्रमुख अनुसंधान एवं 2,060 पेटेंट के साथ भारत की विकास संस्था, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) है। इनमें अन्य नाम भारत के कुछ सबसे बड़े सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों के हैं।

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बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मजबूत उपस्थिति, जैसे कि हिंदुस्तान यूनिलीवर और सैमसंग, इशारा करती हैं कि भारत में वह कितना अनुसंधान और विकास करती हैं।

सीएसआईआर के 38 प्रयोगशालाओं में से पुणे, महाराष्ट्र स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला 334 पेटेंट के साथ इस दिशा में नेतृत्व कर रहा है। यदि यह सीएसआईआर से अलग इकाई होती तो यह भारत की सबसे बड़ी अन्वेषक होती।

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पिछले 10 वर्षों में भारतीय आविष्कारकों को सबसे अधिक पेटेंट रसायन अनुसंधान के लिए प्रदान किया गया है।

graphic_4Source: Controller General of Patents, Designs and Trademarks; Note: Data for 2015 up to Dec. 15; View data.

नवीन आविष्कारों के लिए क्या कर रही है सरकार?

जल्द ही नई राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति की घोषणा की जा सकती है।

यदि मसौदा संस्करण पर नज़र डालें तो यह नीति, सृजन और बौद्धिक संपदा के व्यावसायीकरण का महत्वपूर्ण विस्तार प्रतीत हो रही है।

पिछले महीने, अमिताभ कांत , औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव, ने कहा कि, “हम उम्मीद करते हैं कि नई नीति एक दूरदर्शी दस्तावेज़ होगी जो अगले 10 वर्षों में एक अभिनव अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में भारत का मार्गदर्शन करेगी।”

मसौदा संस्करण में शामिल कुछ साधन सार्वजनिक उकसाने वाले हैं - अनुसंधान संस्थानों ( पीएउआई ) को अधिक बौद्धिक संपदा उत्पन्न करने के लिए वित्त पोषित करना। अन्य साधन में उद्योग और शिक्षा के लिए बेहतर बातचीत के लिए मदद करना शामिल हैं।

यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने भारत में पीएफआई लाने की कोशिश की है, जैसे कि अधिक आविष्कार एवं पेटेंट के लिए सीएसआईआर प्रयोगशालाएं।

वर्ष 2009 में लाया गया बौद्धिक संपदा विधेयक के भी यही लक्ष्य थे। विधेयक ने पेटेंट को अनिवार्य कैसे बनाया और अपने पेटेंट पर अनन्य लाइसेंस प्रदान करने के लिए इसने पीएफआई को मजबूर कैसे किया, इस पर विरोध जताया गया। इसके लिए तर्क दिया गया कि अनन्य पेटेंट से आगे चल कर एकाधिकार हो सकता है।

एक बड़ा नैतिक मुद्दा यह था कि क्योंकि ऐसे संस्थानों को सरकारी नीधि मिलती है, उनके अनुसंधान से नीति क्षेत्र की कंपनियों को लाभ मिलना गलत प्रतीत हो रहा था।

शालिनी भूटानी, नई दिल्ली स्थित कानूनी कार्यकर्ता ने हिंदू बिज़नेस लाइन में छपे एक कॉलम में तर्क दिया कि “विधेयक धारणा की पुष्टि करता है कि नवाचार के लिए उपयुक्त भरपाई करना केवल बौद्धिक संपदा अधिकार और पैसे हैं... सार्वजनिक क्षेत्र के शोधकर्ता का एक सामाजिक दायित्व के रूप में व्यावसायीकरण के विचार को बेचना कुटिल है।”

यह विधेयक 2014 में वापस ले लिया गया।

12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में, एक पेटेंट अधिग्रहण और सहयोगात्मक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास (पेस) कार्यक्रम का जिक्र किया गया है। योजना का उदेश्य भारतीय कंपनियों को ‘मेक इन इंडिया’ मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान संस्थानों से नई प्रौद्योगिकियों का अधिग्रहण करने में सहायता करना है।

इन संस्थानों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों, जो अनुसंधान और विकास में भारतीयों को शामिल करती हैं, में पेस विकास और उभरती प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन का समर्थन करेगी।

पिछले वर्ष अप्रैल में एक समारोह के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “यदि हम बौद्धिक संपदा अधिकारों पर दुनिया को आत्मविश्वास दिखाएं तो हम उनके रचनात्मक काम के लिए विश्व स्तर पर एक गंतव्य बन सकते है।” लेकिन पेटेंट की व्यवसाययकरण एक अलग बात है।

नहीं हो रहें हैं 5 फीसदी से अधिक पेटेंट सफलतापूर्वक व्यावसायिक

पिछले महीने हुए एक समारोह के दौरान कांत ने बताया कि सभी पंजीकृत नवाचारों में से केवल पांच फीसदी ही व्यावसायिक हुए हैं।

मिंट की इस रिपोर्ट के अनुसार, इसका एक कारण ज्यादातर संस्थागत अनुसंधान का उद्योग के लिए लागू न होना एवं अकादमिक पत्रिकाओं में प्रकाशित करने पर अधिक ज़ोर देना हो सकता है।

एक विपरीत तर्क दिया जा सकता है कि ऐसे कई लोग हैं जो पेटेंट प्रणाली को नवाचार, विशेष रुप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हानिकारक देखते हैं।

विशाल सिक्का , सीईओ, इंफोसिस, एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी, ने पेटेंट को "सॉफ्टवेयर उद्योग पर एक अभिशाप " के रुप में व्यक्त किया है।

पेटेंट को किस हद तक बाधा के रुप में देखा जाता है इसका अंदाज़ा अगस्त 2015 में जारी किए गए भारतीय पेटेंट कार्यालय के दिशा-निर्देशों के विरोध से लगाया जा सकता है। इन दिशा-निर्देश एल्गोरिदम या सॉफ्टवेयर के पेटेंट की अनुमति दी है। इस तरह के पेटेंट लागत रॉयल्टी या लाइसेंस फीस के संबंध में, अन्य कंपनियों पर लगा सकता हैं।

अतिरिक्त लागत के अलावा, इन तरीकों में से आकस्मिक उपयोग से कंपनियां, विशेष रुप से स्टार्ट-अप, शुरु कर सकते हैं।

वेंकटेश हरिहरन, iSPIRT, सॉफ्टवेयर उत्पाद थिंक टैंक, ने इकोनोमिक टाइम्स से बातचीत करते हुए कहा कि, “हम भारतीय उद्यमियों का नवाचार पर और ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं न कि मुकदमेबाजी पर।”

एक और बात यह है कि देखा जाए कि सॉफ्टवेयर की दुनिया में परिवर्तन काफी जल्दी आता है, और जिनके लिए पेटेंट जो 20 साल के लिए मान्य हैं, उनका कोई मतलब नहीं निकलता है और इससे केवल नवीनता की गति धीमी होगी। भारतीय पेटेंट कार्यालय अब दिशा निर्देशों को समाप्त कर दिया है।

केवल सॉफ्टवेयर उद्योग में लोग पेटेंट की भूमिका पर फिर से विचार नहीं कर रहे हैं। अमेरिकन इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला ने, इलेक्ट्रिक कार उद्योग में उनके उपयोग से नवाचार शीघ्रता की उम्मीद करते हुए दूसरों के लिए अपने पेटेंट को खोलने का असाधारण कदम उठाया है।

वर्तमान स्थिति देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि खुले पेटेंट जैसे विचार का समय आ गया है या नहीं।

यह दो-लेख श्रृंखाला का पहला भाग है।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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