district court RTR3C2GV

सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी के एक विश्लेषण के अनुसार, पिछले पांच वर्ष,2009 से 2013 के दौरान, यदि भारत के जिले और अधीनस्थ अदालतों में सभी न्यायिक पद भरे होते तो अदालतों में चल रहें मामलों के निपटारे में 25 फीसदी की वृद्धि हो सकती थी।

यदि न्यायाधीशों या जजों की संख्या पर्याप्त होती अदालतों में चल रहे मामलों के निपटारे की संख्या 89,271,343 से बढ़ कर 111,589,179 हो जाती। इसका मतलब हुआ कि 2013 के अंत तक नीचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में 83 फीसदी गिरावट होती यानि 26,893,249 लंबित मामले से गिरकर 4,575,415 तक हो सकते थे।

भारत के अधीनस्थ न्यायालयों में विलंबित मामले

Source: Supreme Court

इंडियास्पेंड ने इस लेख की श्रृंखला के पहले भाग में बताया था कि गुजरात में अधीनस्थ अदालतों में सबसे अधिक रिक्त पद हैं (1963 स्वीकृत पदों में से 747 पद रिक्त हैं) और इसी कारण से गुजरात की अदालतों से लंबित मामलों का निपटारा करने में करीब 287 वर्षों का समय लग सकता है।

गुजरात की अधीनस्थ न्यायालयों में 2,045,261 लंबित मामले हैं एवं 1,096 जजों ( अक्टूबर 2015 तक की संख्या ) के साथ सभी लंबित मामलों का निपटारा करने में 287 सालों का वक्त लग सकता है। यदि जजों की संख्या 1,963 हो तो यही मामले 10 वर्षों में निपटाए जा सकते हैं। यह आंकड़े जजों की दक्षता के संबंध में औसत से भी कम है।

इसी प्रकार पूरे भारत में न्याय प्रणाली तेजी से बढ़ाई जा सकती है।

देश भर की सभी अदालतों में 23 फीसदी जजों की कमी

इंडियास्पेंड के आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण के अनुसार भारत में करीब 5,000 जजों की कमी है और इसी कारण से अदालतों में मामलें लंबित होते हैं एवं न्याय में विलंब होता है।

इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने आपको बताया है कि किस प्रकार देश की सभी जिला एवं सत्र अदालतों में 25 मिलियन मामले लंबित हैं। लेख के दूसरे भाग में हमने बताया कि किस प्रकार करीब दो मिलियन मामलों पर पिछले एक दशक से भी अधिक वर्षों से कर्यवाही चल रही है।

लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013 के अंत तक, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के आधार पर भारत में प्रति जज मामलों का औसत अनुपात 1,625 है।

भारत में प्रति मिलियन आबादी पर 17 जज हैं जबकि प्रति मिलियन आबादी पर 50 जजों की सिफारिश की गई है।

राज्य सभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, 1 अगस्त 2015 तक सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 28 थी जबकि उच्च न्यायालयों को 633 जज हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या

Source: RajyaSabha; Figures as on 1.08.2015

1 अगस्त 2015 तक के आंकड़ों के आधार पर उच्च न्यायलयों में 1,017 जजों में से 384 ( 38 फीसदी ) जजों की कमी है। 31 दिसंबर 2014 तक के आंकड़ों के अनुसार, अधीनस्थ न्यायालयों में कुल 20,214 जजों में से 4580 ( 23 फीसदी ) जजों की कमी है।

यदि संख्या के संदर्भ में बात की जाए तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सबसे अधिक रिक्त पद हैं। 24 उच्च न्यायालयों में से स्वीकृत 160 जजों की संख्या में से केवल 84 जज ही हैं। जजों के रिक्त पद के संबंध में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ( 31 ) दूसरे स्थान पर हैं। इसके बाद बंबई उच्च न्यायालय (30) कर्नाटक उच्च न्यायालय (30) और उच्च न्यायालयों (23)का स्थान है।

स्वीकृत जजों की संख्या में अधिकतम कमी छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में है। छत्तीसगढ़ के लिए यह आंकड़े 59 फीसदी हैं जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए 53 फीसदी, कर्नाटक उच्च न्यायालय के लिए 48 फीसदी, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के लिए 46 फीसदी और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के लिए 45 फीसदी है।

उच्च न्यायालयों में जजों की संख्या

Source: RajyaSabha; Figures as on 1.08.2015

केरल उच्च न्यायालय , मेघालय एचसी , सिक्किम उच्च न्यायालय और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में जजों की संख्या पूरी है।

दिसंबर 2014 के अंत में निचली अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या 17,715 से बढ़कर 20,214 हुई है।

अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की संख्या

Source: LokSabha; Figures as on 31.12.2014

कुल स्वीकृत संख्या के अनुपात के रिक्त पदों के संदर्भ में, मिज़ोरम सबसे उच्च स्थान पर है। मिज़ारम में कुल स्वीकृत 67 जजों की संख्या में 36 रिक्तियां हैं ( 54 फीसदी ) । इस संबंध में पुडुचेरी के लिए यह आंकड़े 52 फीसदी , मेघालय के लिए 45 फीसदी दिल्ली के लिए 40फीसदी और बिहार के लिए 39 फीसदी हैं।

श्रृंख्ला समाप्त। पहला एवं दूसरा भाग आप यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

( मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 4 दिसंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हआ है।

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