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500 रुपये और 1,000 रुपए के नोटों के बंदी का प्रभाव कृषि और अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों पर सबसे ज्यादा होगा। इससे आने वाले तीन महीनों के दौरान भारत में विनिमय और व्यापार प्रणाली बिखरी रह सकती हैं। यह जानकारी एक अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म डेलॉयट द्वारा पिछले हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। हम आपको बता दें कि भारत में कृषि और असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या 48.2 करोड़ है, और उन्हें नकदी के रूप में मेहताना मिलता है।

डेलॉइट की रिपोर्ट कहती है कि इसके विपरीत आने वाले महीनों में ‘कैशलेस’ तरीकों का उपयोग कर लेन-देन में वृद्धि होगी। इससे ई-कामर्स, भुगतान बैंकों और भुगतान गेटवेज जैसे क्षेत्र मुनाफा कमाने के लिए तैयार हैं। रिपोर्ट में लंबे समय के दौरान इस रवैये को सकारात्मक माना गया है।

10 नवंबर 2016 को प्रमुख समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर एक ऑनलाइन भुगतान गेटवे, पेटीएम का प्रकाशित विज्ञापन

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Advertisement of an online payment gateway, PayTM, published on the front page of major newspapers on November 10, 2016

500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को बदलने के लिए भारत भर में बैंकों और एटीएम के सामने लंबी कतारें लगी हुई हैं। नोट बदलने की होड़ में कहीं-कही हाथापाई की घटनाएं भी दर्ज की गई हैं।

Source: Indian Express.

प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के बाद उभरे संकट को पूरी तरह से दुरुस्त करने के लिए और 50 दिनों के मोहलत की वकालत की है। सरकार ने कुछ लेन-देन में पुराने नोटों की वैधता अगले 10 दिनों के लिए बढ़ा दी है।

डेलॉइट रिपोर्ट कहती है कि, खुदरा क्षेत्र जैसे कि किराना दुकानों, सब्जी और फल विक्रेताओं पर कम समय के प्रभाव देखने मिल सकते हैं। जबकि रियल इस्टेट क्षेत्र पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ने की काफी संभावना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “कुल मिलाकर, आम जनता के उपभोग पैटर्न में व्यवधान के साथ अवशिष्ट आय पर नकारात्मक प्रभाव की संभावना है। ” रिपोर्ट में नोटबंदी को अपने कार्यकाल में सबसे महत्वपूर्ण सुधार के उपायों में से एक बताया गया है। साथ इसे काले धन और समानांतर अर्थव्यवस्था का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण कदम भी बताया गया है।

लेकिन दूसरे इतने आशावादी नहीं दिखाई देते हैं। इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर नाम की एक संस्था में इंडिया सेंट्रल कार्यक्रम के देश निदेशक, प्रणव सेन लिखते हैं, नोटबंदी से शायद असंगठित क्षेत्र को सजा मिली है। शायद स्थायी रूप से इसे क्षति पहुंची है। असंगठित क्षेत्र वित्तीय क्षेत्र पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा है, जिसका बैंक ऋण देने में एक चौथाई या सकल घरेलू उत्पाद में 26 फीसदी की हिस्सेदारी हो सकती है।

एक अर्थशास्त्र और नीति पोर्टल, आइडियाज फॉर इंडिया में 14 नवंबर, 2016 को सेन लिखते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि यह मोदी जी की एक प्रमुख राजनीतिक और प्रख्याति प्राप्त करने वाली चाल है। इस कदम से काफी हद तक एक प्रभावशाली नेता के रुप में अपनी छवि निखारी है। लेकिन इन सबके पीछे की कीमत क्या है यह जरुर पूछा जाना चाहिए। ”

काला, या बेहिसाब, पैसे पर सरकार के खिलाफ कार्रवाई के हिस्से के रुप में 14 लाख करोड़ रुपए (या 217 बिलियन डॉलर, उस समय प्रचलित भारतीय मुद्रा के मूल्य का 86 फीसदी) 8 नवंबर, 2016 की आधी रात से बेकार हो गए। हम बता दें कि बेहिसाब पैसों की अर्थव्यवस्था में यह रकम पांचवा हिस्सा है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 8 नवंबर 2016 को विस्तार से बताया है।

कृषि में 4 फीसदी वृद्धि की थी भविष्यवाणी, पिछले दो वर्षों से है नुकसान

वर्ष 2014-15 में भारत में भारत में कृषि विकास दर 0.2 फीसदी संकुचित हुआ है। जबकि 2015-16 में 1.2 फीसदी से अधिक की वृद्धि नहीं हुई है। इसका कारण लगातार पड़ने वाला सूखा है।

अक्टूबर 2016 की इस क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल कृषि में 4 फीसदी वृद्धि की उम्मीद की गई थी। लेकिन नोटबंदी से इस पूर्वानुमान में सेंध लगने की संभावना है। भारत अभी सर्दियों की बुवाई के मौसम के बीच है, लेकिन सरकार के से कदम से किसानों के पास बीज खरीदने के पैसे कम पड़ रहे हैं।

विमुद्रीकरण से कृषि पर प्रभाव

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Source: Key Economic Indicators, Office of the Economic Advisor

* Note: For 2016-17, number represents prospective growth figures.

इस साल भारतीय किसानों को रिकॉर्ड फसल होने की उम्मीद थी, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 में विस्तार से बताया था। लेकिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर नकदी से चलता है। गौर हो कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर 80 करोड़ लोग या भारतीय आबादी का 65 फीसदी निर्भर है। किसान बीज, खाद और कृषि उपकरण नकद दे कर खरीदते हैं। कार्यकर्ताओं का भुगतान भी नकद में होता है। और व्यापारी और कमीशन एजेंट भी किसानों को नकद में ही भुगतान करते हैं। नकदी की कमी से ग्रामीण भारत गुस्से में है।

इंटरनेट और ऑनलाइन भुगतान में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की दखल सीमित

वर्तमान में भारतीय कार्यबल के 80 फीसदी से अधिक को अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के तहत रोजगार प्राप्त है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में लघु और मध्यम उद्योगों, दुकानों में काम करने वाले, ,घरों में काम करने वाली एवं अन्य शामिल हैं।

सड़क के किनारे विक्रेताओं, टैक्सी ड्राइवरों, किराना दुकानों और मेडिकल स्टोर पर 500 और 1000 रुपए के नोट स्वीकार करना बंद कर दिया है।

डेलॉइट रिपोर्ट कहती है, जो लोग डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उपयोग नहीं करते हैं, इंटरनेट का उपयोग या मोबाइल बैंकिंग और ई-वॉलेट का उपयोग नहीं करते हैं, वे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, भारत में करीब 7- करोड़ डेबिट और 2.5 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं। करीब 95 करोड़ लोग या आबादी के 78 फीसदी लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं है।

जबकि सरकार के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में निजी खपत में, पिछले पांच वर्षों से 2015 तक लगातार वृद्धि हुई है।

निजी उपभोग की बढ़ती शेयर गिरने के लिए तैयार

Source: Key Economic Indicators, Office of the Economic Advisor

Note: * Provisional estimates

ई-कॉमर्स, भुगतान कंपनियों को मुनाफा

ई-कॉमर्स के रूप में वेबसाइटों कैश ऑन डिलीवरी रोक लगा दी है। कैश ऑन डिलीवरी भारतीय ऑनलाइन खरीदार के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प है। इसके जरिए 80 फीसदी बिक्री होती है और अब विमुद्रीकरण के बाद बाद बैंकों में एकत्र हुए पैसे जमा कराने के लिए संघर्ष कर रही हैं। रिपोर्ट में एक पलटाव की भविष्यवाणी की गई है कि ई-कॉमर्स उद्योग और भुगतान की सुविधा देने वाली कंपनियों को फायदा होगा।

2015 में भारत में ऑनलाइन लेनदेन में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 12 नवंबर, 2016 को बताया है।

डेलॉयट की रिपोर्ट में जो अन्य प्रभाव सूचिबद्ध किए गए हैं वे इस प्रकार हैं – रुपए का भाव बढ़ने के कारण विदेश व्यापार पर प्रभाव, कम मुद्रास्फीति और सस्ती कीमतों, विशेष रूप से अचल संपत्ति के क्षेत्र में।

भारतीयों की क्रय-शक्ति संकट में - रिपोर्ट

मशहूर अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर अंकलेसरिया ने इकोनोमिक टाइम्स से बात करते हुए कहा, “जहां तक ​​वास्तविक अर्थव्यवस्था का सवाल है, तो इससे क्रय-शक्ति पर बड़ा झटका लगने की उम्मीद है। हर तरह के लोग जो नोट स्वीकार कर रहे थे, वे नोट अब स्वीकार नहीं करेंगे।”

डेलॉइट रिपोर्ट कहती है, “घरेलू स्तर पर, कुछ उथल-पुथल हो सकती है जैसा कि इसका प्रभाव अधिकतर निचले और ऊपरी आमदनी वर्गों द्वारा महसूस किया जाएगा। ”

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(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 नवंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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