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महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का पाथर्डी कृषि बाजार इलाके में सबसे बड़ा कृषि व्यापार का ठिकाना है। बाजार का रजिस्टर बताता है कि नोटबंदी से पहले सप्ताह की तुलना में कृषि उत्पादों के साथ भरे वाहनों के प्रवेश में 75 फीसदी और कपास के साथ भरे वाहनों में 80 फीसदी की गिरावट हुई है। जबकि मवेशियों की बिक्री 50 फीसदी तक कम हुई है।

प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1,000 रुपए के नोटों को अमान्य घोषित करने के एक सप्ताह बाद मुंबई से मात्र 350 किलोमीटर दूर बसे पाथर्डी कृषि बाजार में बिक्री 60 फीसदी तक कम हुई है। ये आंकड़े संकेत देते हैं कि किस प्रकार सरकार के इस कदम से महाराष्ट्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की गति धीमी हुई है। हम बता दें कि पिछले दो सालों से लगातार सूखे की मार झेल रहा महाराष्ट्र इससे उबरने की कोशिश में है।

पाथर्डी का कृषि उत्पादन बाजार समिति (एपीएमसी) भारत में ऐसे ही 2,500 बाजार का प्रतिनिधित्व करता है। पाथर्डी कृषि बाजार में ज्यादातर लेन-देन नकद में ही होता है। इन बाजारों में मंदी का व्यापक असर व्यापारियों, कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

इंडियास्पेंड द्वारा बाजार के अधिकारियों से एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी से पहले सप्ताह की तुलना में इन दिनों पाथर्डी बाजार में कृषि उपज के साथ भरे वाहनों के प्रवेश में 75 फीसदी की गिरावट हुई है। जबकि कपास से भरे वाहनों के आने में 80 फीसदी की गिरावट हुई है। जबकि मवेशियों की बिक्री 50 फीसदी तक कम हुई है।

नोटबंदी के बाद बाजार में प्रवेश करने वाले वाहनों में 70 फीसदी गिरावट

Source: Pathardi Agriculture Produce Marketing Committee, Ahmednagar

नोटबंदी सप्ताह के दौरान मवेशियों की बिक्री में 60 फीसदी की गिरावट

Source: Pathardi Agriculture Produce Marketing Committee, Ahmednagar

अपनी आमदनी का 15 फीसदी छोड़कर किसान पाते हैं 100 रुपया

500 और 1,000 रुपए के नोटों को अमान्य होने से किसान कृषि अर्थव्यवस्था से बाहर हो रहे हैं। किसान नकदी में ही लेन-देन करते रहे हैं और काफी हद तक औपचारिक बैंकिंग संस्थाओं से दूर हैं।

50 साल के कपास किसान भीमसेन महादेव ने कपास लेन-देन में 15 फीसदी गंवा दिया है। वह पुराने नोटों में अपने पैसे नहीं चाहते थे। इसलिए इन्होंने 4200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपनी उपज एपीएमसी बाजार गेट के बाहर एक अपंजीकृत व्यापारी को बेच दिया। जबकि बाजार में इसकी कीमत 5,000 रुपए प्रति क्विंटल है।

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महादेव कहते हैं, "मुझे अपने परिवार के खर्चों की व्यवस्था करनी है और मेरे खेत पर काम करने वाले मजदूरों को 100 रुपए के नोट में भुगतान भी करना है। मुझे इस मौसम में बहुत नुकसान हुआ है।"

पाथर्डी बाजार में व्यापारी अपने उत्पादन और मवेशियों के लिए पुराने नोट या 2,000 के नए नोटों में भुगतान करने के लिए तैयार थे। लेकिन किसान, जिनका एक दिन का खर्च इससे बहुत कम है, वे 2,000 रुपए के नोट लेने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों को डर है कि क्या वे 2,000 रुपए के छुट्टे करा पाएगें?

किसानों ने बताया कि वे पुराने नोट नहीं लेना चाहते हैं क्योंकि वे इस बात के लिए निश्चत नहीं थे कि वे कभी पुराने नोटों को नए नोटों में बदलवा पाएंगे।

पाथर्डी एपीएमसी के निदेशक वैभव दहीफले ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, "शुरुआत में कुछ किसान इस विश्वास के साथ पुराने नोट स्वीकार कर रहे थे कि वे इसे बैंक में जमा करा देंगे। कुछ किसानों ने 21 नवंबर के बाद भी पुराने नोटों को स्वीकार करना जारी रखा है। अब भी व्यापारियों का पुराने नोटों में लेन-देन जारी है और परिणामस्वरुप कई दुकानें बंद हो गई हैं।"

पाथर्डी एपीएमसी: नोटबंदी के बाद दैनिक व्यवसाय पर प्रभाव

Source: Pathardi Agriculture Produce Marketing Committee, Ahmednagar

नोटबंदी से कपास बिक्री में कमी

इंडियास्पेंड से बात करते हुए वैभव ने बताया कि बाजार में कपास नवंबर में पहुंच जाता है। इस साल फसल अच्छी होने की वजह से एपीएमसी अधिकारियों को उम्मीद थी कि दैनिक लेन-देन 50 लाख रुपए (77,000 डॉलर) तक पहुंच जाएगी। लेकिन बाजार से एकत्र आंकड़ों के अनुसार, विमुद्रीकरण के बाद , यह लेनदेन एक दिन में अधिकतम 30 लाख रुपए ( 46,000 डॉलर ) तक ही पहुंच पाया है।

कपास खरीदने वाले कुछ व्यापारियों ने बाजार में नकदी की अनुपलब्धता के खिलाफ विरोध दर्ज करने के लिए दुकाने बंद कर दी हैं। और पर्याप्त नकदी सुनिश्चित नहीं करने के लिए सरकार को दोषी ठहराया है।

नोटबंदी के बाद कपास बिक्री में गिरावट, एक सप्ताह बाद दोबारा पुनरुज्जीवित

Source: Pathardi Agriculture Produce Marketing Committee, Ahmednagar

नकदी के अभाव में व्यापारी चेक द्वारा किसानों को क्यों नहीं करते भुगतान?

इंडियास्पेंड ने पाया कि एपीएमसी में व्यापारी किसानों को चेक द्वारा भुगतान करना पसंद नहीं करते हैं। क्योंकि ज्यादा पैसा वे नकदी के रुप में रखते हैं।

किसानों को भी चेक पर ज्यादा भरोसा नहीं होता है। महादेव कहते हैं, "मुझे यकीन नहीं होता कि चेक को खाते में जमा कराने के बाद मुझे पैसे मिलेंगे भी या नहीं। हो सकता है न मिले। चेक लौट जाए।"

(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 नवंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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