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अमृतसर से 25 किमी दक्षिण में, तरनतारन के सिविल अस्पताल के बाहर लगी मरीजों की कतार। पंजाब के सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के कारण लोग निजी स्वास्थ्य सेवा की ओर जा रहे हैं।

Tआमतौर पर पंजाबियों की छवि एक मजबूत, अपेक्षाकृत अमीर और ऊर्जावान लोगों के रुप में होती है। लेकिन आज की तारीख में वास्तविकता कुछ और है। राज्य में वेस्टिंग ( कद के मुकाबले कम वजन ) बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 2005 में ऐसे बच्चों के आंकड़े 9.2 फीसदी थे, जो वर्ष 2015 में बढ़ कर 15.6 फीसदी हुए हैं। और चार में से एक बच्चा अब भी स्टंड यानी अपनी उम्र की तुलना में कम कद का है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ोंमें सामने आई है।

पंजाब देश में सबसे तेजी से बढ़ रहे समृद्ध राज्यों में से एक रहा है। लेकिन यह बीती बात है। अब पंजाब को ‘एक समय था अमीर कृषि प्रधान राज्य’रूप में जदेखा जा रहा है।

राज्य की अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ लोगों का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है।

आर्थिक प्रगति के लिए स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए चुनाव के मद्देनजर यह छह भाग श्रृंखला का तीसरा लेख है। जिसमें हम उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा, पंजाब और उत्तराखंड में स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति पर चर्चा करने के लिए नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों पर बात कर रहे हैं।

पंजाब मोटापे और बद्तर पोषण जैसी दोहरी समस्याओं का सामना कर रहा है। पिछले एक दशक से वर्ष 2015 तक राज्य में पुरुषों के मोटापे में 5.6 फीसदी और महिलाओं के मोटापे में 1.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। अभी हालात ये हैं कि पंजाब में 27.8 फीसदी पुरुष और 31.3 फीसदी महिलाएं मोटापे के शिकार हैं। इससे संकेत मिलता है कि पंजाब के लोगों पर विभिन्न गैर-संक्रामक रोगों का जोखिम पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। जैसा कि हम आगे देखेंगे, राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली इससे निपटने के लिए तैयार नहीं है। इसके साथ ही, राज्य में पुरुषों में खून की कमी यानी एनीमिक अनुपात में भी दोगुनी वृद्धि हुई है। वर्ष 2005 में 13.6 फीसदी पुरुष एनीमिक पाए गए थे, जो वर्ष 2015 में बढ़ कर 25.9 फीसदी हो गए हैं।

लेकिन कुछ अच्छी खबर भी है। ऐसे पुरुष जो किसी भी तरह से तंबाकू का सेवन करते हैं, उनके अनुपात में गिरावट हुई है। वर्ष 2005 में ये आंकड़े 33.8 फीसदी थे, जो 2015 में कम होकर 19.2 फीसदी हुआ है। यह जानकारीराष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) में सामने आई है। नशीली दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन वर्ष 2005 की तुलना में अब शराब पीने वाले लोगों की संख्या में गिरावट हुई है। हम बता दें कि वर्ष 2005 में ये आंकड़े 43.4 फीसदी थे। महिलाओं में, कम उम्र में शादी होने वाली लड़कियों की संख्या में गिरावट हुई है। वर्ष 2005 में ये आंकड़े 19.7 फीसदी थे, जो वर्ष 2015 में गिरकर 7.6 फीसदी हुए हैं। राज्य का लिंग अनुपात 746 से सुधर कर 860 हुआ है। वर्ष 2014 का भारतीय अनुपात 906 है। हालांकि, हम देखेंगे कि पंजाब में जिला स्तर पर स्वास्थ्य को लेकर बड़ी विविधताएं है।

फिर भी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कम खर्च के बावजूद कुछ मामलों में यहां सुधार देखने को मिल रहा है।

पंजाब के स्वास्थ्य और पोषण संकेतक

पंजाब में स्वास्थ्य में नहीं हुआ उल्लेखनीय सुधार

भारतीय राज्यों में जनसंख्या की दृष्टि से पंजाब 16वें स्थान पर है लेकिन नीति आयोगके अनुसार प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद (एनएसडीपी) के हिसाब से 15वें स्थान पर है। शोध अध्ययनों से पता चला है कि हरित क्रांति से जुड़े ऐतिहासिक मुफ्त ग्रामीण बिजली सुविधा से न केवल भूजल का अत्यधिक दोहनहुआ है, बल्कि वित्तीय झटका भी लगा है। इससे शिक्षा और स्वास्थ्य पर होने वाले सार्वजनिक खर्च पर भी प्रभाव पड़ा है और पंजाब के सामाजिक खर्च में वास्तविक वृद्धि बहुत कम हुई है।

भारत में, पीने के पानी की बेहतर स्रोतों के साथ परिवारों कासर्वोच्च अनुपात और खुले में शौच के अभ्यास का सबसे कम अनुपात पंजाब का है। साथ ही पांच वर्ष के कम उम्र केकम वजनके बच्चों का अनुपात भी चौथा सबसे कम है।

लेकिन फिर भी, स्वास्थ्य संकेतक आर्थिक प्रगति की दृष्टि से पीछे हैं और राज्य के भीतर विषमताएं हैं।

चुनावी जंग के लिए तैयार राज्यों में, स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नवीनतम उपलब्ध वर्ष 2013-14 केआंकड़ों के अनुसार 647 रुपए प्रति वर्ष पर पंजाब का प्रति व्यक्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च दूसरा सबसे कम है। इससे दो बुनियादी ढांचे के अंतर हुए हैं: उदाहरण के लिए, ओडिशा, मध्य प्रदेश और असम जैसे गरीब राज्यों की तुलना में पंजाब में प्रत्येक सरकारी अस्पताल के बिस्तर सेवा का औसत जनसंख्या आकार 2,420 है।

केंद्र एवं राज्य सरकार अनुसार राज्यवार प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय,(2013-14)

Source: Ministry of Health and Family Welfare and EPW Research Foundation India Time Series

वर्ष 2014 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, पंजाब के स्वास्थ्य स्थिति में सुधार न होने का कारण राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में रिक्तियां और अनुपस्थिति है। परिणामस्वरुप, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भरता अधिक होती है (बहिरंग रोगियों के लिए 83 फीसदी और भर्ती रोगियों के लिए 66 फीसदी)। यही कारण है कि, भारत भर में प्रति अस्पताल में प्रवेश के प्रकरण परउच्चतम औसत चिकित्सा व्यय पंजाब का ही है।

पंजाब में स्वास्थ्य बीमा द्वारा कवर होने वाली आबादी का अनुपात भी सबसे कम में है, 5.6 फीसदी। जबकि राष्ट्रीय औसत 15.2 फीसदी है। नवीनतम राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों के आधार पर ‘ब्रूकिंग्स इंडिया’ द्वारा किए गए शोध के अनुसार, भारत के बड़े राज्यों में, पंजाब में ऐसे परिवारों का अनुपात दूसरा सबसे ज्यादा है जहां "अनर्गल" स्वास्थ्य सेवा व्यय की सूचना मिली है। पहले स्थान पर केरल है।

अक्सर, पंजाब से मरीजों को चिकित्सा देखभाल के लिए पड़ोसी राज्य जाते हैं। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पंजाब का प्रति स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रयोजनों के लिए रात भर की यात्रा का औसत व्यय भी सबसे ज्यादा था। वर्ष 2016 एनएसएसओ रिपोर्ट ‘की इंडिकेटर्स ऑफ डोमेस्टिक टूरिजम इन इंडिया ’के अनुसार, पंजाब के लिए यह औसत 31,512 रुपए था, जो कि 15,336 रु के ऱाष्ट्रीय औसत का दोगुना है।

वर्ष 2014 के एक अध्ययनके अनुसार, पंजाब के ज्यादातर स्वास्थ्य संस्थान (55 फीसदी) अपने 22 जिलों में से केवल सात जिलों (लुधियाना, गुरदासपुर, जालंधर, अमृतसर, होशियारपुर, फिरोजपुर और पटियाला) में स्थित हैं।

पंजाब के स्वास्थ्य पर मीडिया कवरेज में अक्सर "कैंसर ट्रेन" का जिक्र किया जाता है, जो पंजाब के कपास बेल्टसे राजस्थान के बीकानेर तक कैंसर रोगियों को ले जाता है। राज्य में इलाज पर उच्च लागत को देखकर कैंसर रोगियों और देखभाल करने वालों के लिए रेलवे रियायत का इस्तेमाल कर पंजाब के कई गरीब लोग कैंसर के इलाज के लिए राजस्थान की यात्रा करते हैं।

वर्ष 2016 में जारी किए गए एनएफएचएस 4नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों, के अनुसार, पंजाब में ऐसे परिवारों का अनुपात जिनका कोई भी एक सदस्य स्वास्थ्य बीमा या स्वास्थ्य योजना के तहत कवर है, वह अपेक्षाकृत उच्च (22.1 फीसदी) है। जबकि मणिपुर के लिए ये आंकड़े 3.7 फीसदी, गोवा के लिए 11.4 फीसदी और उत्तराखंड के लिए 19.8 फीसदी हैं। हालांकि बीमा कवरेज में जिला स्तर पर असमानताएं हैं। पटियाला जिले में 10.5 फीसदी परिवार स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर है जबकि रूपनगर में 45.4 फीसदी परिवार बीमा के तहत कवर हैं। अन्य जिलों के आंकड़े भी अलग-अलग हैं।

जिला अनुसार स्वास्थ्य बीमा द्वारा कवर परिवार

Source: National Family Health Survey; Figures in percentage, indicate households with any member covered by health insurance/scheme. Click on the map to view district-level data.

पंजाब की करीब 70 फीसदी माताओं को प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त नहीं

Uपंजाब की करीब 70 फीसदी माताओं को प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त नहीं होता है। एनएफएचएस 4 के अनुसार, गोवा के लिए यही आंकड़े 37 फीसदी और मणिपुर के लिए 66 फीसदी हैं। एक जिला स्तर के विश्लेषण के अनुसार, फिरोजपुर और पटियाला जैसे जिलों में हरेक पांचवी मां को प्रसव पूर्व देखभाल प्राप्त होता है।

जिला अनुसार प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त करने वाली माताएं

Source: National Family Health Survey; Figures in percentage. Click on the map to view district-level data.

वर्ष 2005 से 2015 के बीच, जैसा कि हमने पहले बताया है,जन्म के समय पंजाब के लिंग अनुपात में सुधार हुआ है। इस संबंध में , 2015 में यह आंकड़े 746 से 860 या या उत्तर प्रदेश (869 (2014 में)) और हरियाणा (866 (2014 में )) के बराबर हुआ है। वर्ष 2014 का अखिल भारतीय औसत 906 है। यह सुधार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्र, दोनों में हुआ है, हालांकि शहरी-ग्रामीण के बीच का अंतर बड़ा है।

ग्रामीण और शहरी पंजाब में लिंग अनुपात सुधार

Source: National Family Health Survey

पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच, शहरी लिंग अनुपात बठिंडा जिले में 1,147 है (भारत के सर्वश्रेष्ठ लिंग अनुपात वाले क्षेत्र केरल और पुडुचेरी की औसत से बेहतर )जबकि अमृतसर जिले के लिए ये आंकड़े 593 हैं, जो भारत में सबसे कम है।

जन्म के समय ग्रामीण लिंग अनुपात गुरदासपुर जिले में सबसे कम है और 1,148 के आंकड़े के साथ नवांशहर जिले में सबसे अधिक है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में जन्म के समय संपूर्ण लिंगानुपात जालंधर में सबसे कम 711 है और नवांशहर में सबसे ज्यादा 1,154 है।

जिला अनुसार जन्म के समय लिंग अनुपात

Source: National Family Health Survey; Click on the map to view district-level data.

जैसा कि हमने पहले बताया है, कम उम्र में लड़कियों की शादी होने के मामलों में भी गिरावट हुई है। इस संबंध में आंकड़े वर्ष 2005 में 19.7 फीसदी से कम होकर 7.6 फीसदी हुआ है। कम उम्र में विवाह का उच्चतम अनुपात मानसा जिले का है, 13.3 फीसदी। और सबसे कम रुपनगर जिले का है, 4.5 फीसदी।

पिछले दशक के दौरान पंजाब में, पूरी तरह से प्रतिरक्षित बच्चों का अनुपात में भी सुधार हुआ है। एनएफएचएस 4के अनुसार ये आंकड़े 60.1 फीसीदी से सुधर कर 89.1 फीसदी हुए हैं। हालांकि, जिला स्तरीय विषमताएं बनी हुई हैं। पंजाब के जिलों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में भिन्नता है। लुधियाना में 72.3 फीसदी है तो कपूरथला में 100 फीसदी।

पिछले एक दशक में, घर या अस्पताल में, सुरक्षित प्रसव या डॉक्टर / नर्स / महिला स्वास्थ्य आगंतुक / सहायक नर्स मिडवाइफ / अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की सहायता से जन्म करवाने में भी वृद्धि हुई है, 2005 में68.2 फीसदी से बढ़ कर 2015 में 94.1फीसदी हुआ है। बरनाला और फरीदकोट जिलों में लगभग 99 फीसदी प्रसव सुरक्षित हुए हैं। इस तरह लुधियाना और मोहाली जैसे जिलों में 10 में से एक प्रसव बिना स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सहायता के दर्ज की गई है।

कुपोषण और संचारी और गैर संचारी रोगों के दोहरे बोझ के साथ, पंजाब में स्वास्थ्य और पोषण की रणनीतियों पर पुनर्विचार करना महत्वपूर्ण हो सकता है। फिलहाल, पंजाब की स्वास्थ्य प्रणाली नई चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। राज्य में होने वाला चुनाव राजनीतिक दलों को पंजाब के मतदाताओं के लिए स्वास्थ्य योजना साझा करने का अवसर दे रहा है।

यह छह श्रृंखला लेख का तीसरा भाग है। पहला और दूसराभाग यहां पढ़ सकते हैं।

(कुरियन नई दिल्ली के ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ के ‘हेल्थ इनिशिएटिव’ में फेलो हैं।

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