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बेंगलुरु से सटा शहर कोलार कभी सोने की खान के लिए जाना जाता था। अब इस इलाके की पहचान टमाटर उत्पादक क्षेत्र के तौर पर होती है। कोलार में कृषि उत्पादन बाजार समिति के बाजार में अच्छे-बुरे टमाटरों को परखते लोग। शायद आपको पता हो कि यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर बाजार है। वर्ष 2016 में फसल अच्छी है। इससे बाजार तक सब्जी की पहुंच में वृद्धि हुई है, लेकिन दाम कम हुए हैं। नोटबंदी के बाद सब्जियों की कीमतें और गिर गई हैं।

कोलार (कर्नाटक): बेंगलुरू से 85 किमी पूर्व में कोलार जिले के टोंडाला गांव में सुनील कुमार रहते हैं। पेशे से सब्जी किसान सुनील की उम्र 21 साल है। 8 नवंबर 2016 को सरकार की तरफ से 86 फीसदी नोटों को अमान्य करार दिए जाने के बाद टमाटर के दाम अचानक गिरने से और सब्जियों की अतिरिक्त आपूर्ति के बाद सुनील को लगभग 3,00,000 रुपए का नुकसान हुआ है।

सुनील अपनी पांच एकड़ की जमीन पर टमाटर की खेती करते हैं। वह कहते हैं कि पिछले साल इसी अवधि के दौरान उन्होंने 30 लाख रुपए का मुनाफा कमाया था।

सुनील आगे बताते हैं कि 2016 से आय में 110 फीसदी की गिरावट उस समय आई है, जब इस साल मौसम बढ़िया था और फसल भी। लेकिन यह नोटबंदी अपने साथ बुरा समय लेकर आ गया। बाजार से नोट बाहर होते ही टमाटर के भाव 80 फीसदी तक गिर गए।

सुनील कहते हैं, “इस साल टमाटर के एक भरे टोकरे की कीमत 30 से 50 रुपए के बीच की है । इस मौसम में कभी एक भरा टोकरा 700 रुपए का बेचा जाता था। मेरे पास परिवहन पर खर्च करने और इसे बाजार तक लाने या कीमत बढ़ने तक का इंतजार करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए नुकसान थोड़ा कम करने के लिए मैंने नवंबर के अंत में टमाटर के पौधे उखाड़ लिए। यह मेरा अब तक का सबसे बुरा अनुभव है और बुरा साल भी।”

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कोलार में शहरी बाजार तक पहुंचने के इंतजार में टमाटर के टोकरे। टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट हुई है। यहां तक कि दाम गिर कर 25 पैसे प्रति किलो पर आए हैं। जिस कारण छत्तीसगढ़, नासिक और हैदराबाद में किसान अपनी उपज को नष्ट कर दे रहे हैं।

कर्नाटक का कोलार इस इलाके का सबसे बड़ा सब्जी उगाने वाला क्षेत्र है । यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर बाजार भी है। नवंबर में कोलार बाजार में टमाटर की कीमत प्रति किलो 3-5 रुपए थी। दसरे शब्दों में कहें तो पिछले साल इसी अवधि में मिल रही कीमत की तुलना में 85 फीसदी कम थी।

सुनील जैसी ही हालत देश भर के किसानों की है। टमाटर के दाम गिर कर प्रति किलो 25 पैसे तक पहुंचे हैं, जैसा कि ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस की 10 दिसंबर, 2016 की इस रिपोर्ट में बताया गया है। गिरती कीमतों के कारण छत्तीसगढ़ जिले में किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर 100 ट्रैक्टर-ट्रॉलियां या लगभग 45,000 किलो टमाटर यूं ही फेंक दिया।

हताश किसानों द्वारा इस तरह की घटनाएं नासिक, हैदराबाद और अन्य प्रमुख सब्जी उत्पादक क्षेत्रों में भी देखी गई हैं।

दक्षिण के टमाटर किसान और पश्चिम के प्याज किसान सबसे ज्यादा प्रभावित

नवंबर 2015 से नवंबर 2016 के बीच सात भारतीय शहरों अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में सब्जियों की कीमतों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार कीमतों में 60 से 85 फीसदी गिरावट होने का सबसे ज्यादा प्रभाव कर्नाटक के टमाटर किसान और महाराष्ट्र और गुजरात के प्याज किसानों पर पड़ा है।

शहर के अनुसार सब्जी की कीमतों में गिरावट

Source: National Horticulture Board; Negative values indicate rise in prices

आलू की कीमतें दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगरों में स्थिर रही हैं। हम बता दें कि आलू का 2 से 3 महीने तक भंडार और उपयोग किया जा सकता है। वहीं बेंगलुरू और मुंबई में आलू की कीमतों में 17 फीसदी और 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। नवंबर 2015 में प्रति क्विंटल आलू की कीमत 1,086 रुपए थी, जबकि नवंबर 2016 में 27 फीसदी की वृद्धि होकर कीमत प्रति क्विंटल 1,376 रुपए तक पहुंची है।

मुंबई को छोड़ कर छह शहरों में बढ़ते आमद के साथ मटर की कीमत में 15 फीसदी से 20 फीसदी के बीच गिरावट हुई है।

आंकड़ों से पता चलता है कि कीमतों में गिरावट अतिरिक्त आपूर्ति के कारण भी हुई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, टमाटर की कीमतों में (संकर किस्म) 55-85 फीसदी की गिरावट हुई है, लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में जैसे अहमदाबाद, कोलकाता और हैदराबाद में पिछले साल के मुकाबले आपूर्ति दोगुनी और तीन गुनी भी हुई है।

उदाहरण के लिए, चेन्नई में वर्ष 2016 में प्रति क्विंटल टमाटर के लिए किसान को ज्यादा से ज्यादा 760 रुपए मिल सकते थे, जबकि नवंबर 2015 में यह कीमत 4,900 रुपए थी। यानी कीमत में 85 फीसदी की गिरावट हुई। वर्ष 2016 में महानगर के लिए आपूर्ति 2,910 मीट्रिक टन थी, जो 2015 की तुलना में 40 फीसदी अधिक है।

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कोलार (कर्नाटक) के कृषि उत्पादन बाजार समिति के बाजार में एक थोक व्यापारी टमाटर की गुणवत्ता को जांचते-परखते हुए।

हैदराबाद में कीमतों में 60 फीसदी गिरावट देखी गई , लेकिन नवंबर में आपूर्ति में 337 फीसदी की वृद्धि हुई है। नवंबर 2016 में, हर जगह प्याज की कीमत प्रति क्विंटल 650 रुपए से 1,500 रुपए के बीच रही, जबकि 2015 में यही कीमत 3,027 रुपए से 5,600 रुपए के बीच थी।

नासिक (महाराष्ट्र) के लासलगांव कृषि में उत्पादन बाजार समिति के बाजार में प्रति किलो प्याज की कीमत 5 से 7 रुपए रही है। यह भारत का सबसे बड़ा थोक बाजार है।

जिन सात शहरों के आंकड़ों का हमने विश्लेषण किया है, उन शहरों के लिए नवंबर 2016 में आपूर्ति 196400 मीट्रिक टन रही, जबकि नवंबर 2015 में यह 186175 मीट्रिक टन थी।

दिसंबर में स्थिति और बद्तर हो गई, जब कीमतों में 20 से 25 फीसदी की और गिरावट हुई । बागवानी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, पिछले 10 सालों में दिल्ली के बाजार में इस बार मटर सबसे कम दाम में बेचे गए।

पर्याप्त बारिश से अच्छी फसल, नोटबंदी ने कर दिए भाव कम

राज्य के स्वामित्व वाली ‘हॉर्टकल्चरल प्रोड्यूसर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग एंड प्रासेसिंग सोसायटी’ के मैनेजिंग डाइरेक्टर बेल्लूर कृष्णा ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया, “मानसून की बारिश सितंबर से लोकर नवंबर तक में समाप्त हो जाती है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। जाहिर है तब बाजार में ‘कम आपूर्ति और उच्च मूल्य’ की थ्योरी चलती है। इस साल कर्नाटक के सब्जी उपज वाले क्षेत्रों में वर्षा अच्छी हुई है।”

वह कहते हैं, “इससे फसल तो अच्छी हुई,लेकिन नोटबंदी के कारण नकद में आई कमी से कीमतों में गिरावट हुई है।”

कोलार, बेलगावी, हावेरी और चित्रदुर्ग, कर्नाटक के बड़े सब्जी उत्पादकक्षेत्र हैं। वर्ष 2016 में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान इन क्षेत्रों में सामान्य वर्षा हुई है।

अक्तूबर 2016 में कर्नाटक ने 22 जिलों और कुछ अतिरिक्त तालुकों में सूखा घोषित किया है। राज्य को केंद्र सरकार से 1,782 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 10 जनवरी, 2016 को विस्तार से बताया है।

कृष्णा कहते हैं, “नोटबंदी के प्रभाव से कीमतों में गिरावट केवल 20 फीसदी तक बढ़ी है। ”नोटबंदी का प्रभाव कृषि और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों पर भी पड़ सकता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 नवंबर, 2016 को बताया है।

बागवानी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 9.4 मिलियन हेक्टेयर, या भारत के फसली क्षेत्र के करीब 10 फीसदी हिस्से में सब्जी की खेती होती है। जिसमें 50 फीसदी हिस्से में आलू, प्याज और टमाटर की खेती होती है।

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के निदेशक, ब्रजेन्द्र सिंह ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “ज्यादातर फलों और सब्जियों का लेन-देन नकद में होता है। नोटबंदी का निश्चित रुप से असर पड़ा है। सब्जियां बाजार में ज्यादा आ रही हैं तो मंदी बढ़ेगी।”

सिंह कहते हैं, “टमाटर की खेती आमतौर पर शहरों के आसपास बाजार समीतियों के माध्यम से होती है और यह लाभदायक है।”

सिंह आगे बताते हैं, “ पिछले दो सालों में टमाटर की कीमत 50 रुपए प्रति किलो तक पहुंची है। इस साल जलवायु अनुकूल थी और फसल भी अच्छी हुई। अचानक अधिक आपूर्ति और नकद की कमी के कारण बाजारों में मंदी आई है।”

सिंह का मानना है कि अगले चार महीने में स्थिति सामान्य होगी और वर्ष 2017 की गर्मियों तक किसानों को उनकी फसल के लिए अच्छी कीमत मिलनी शुरु हो जाएगी।

(अरणि (तमिलनाडु) में रहने वाले प्रभु एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। प्रभु 101Reporters.com के साथ भी जुड़े हैं। यह जमीनी स्तर पर पत्रकारों का एक भारतीय नेटवर्क है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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