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आधे से अधिक भारतीय परिवारों में पीने के पानी का स्रोत नहीं है – ग्रामीण भारत में 63 फीसदी – ग्रामीण परिवारों का पांचवा भाग पीने के पानी के लिए 500 मीटर से अधिक की यात्रा करते हैं। यह जानकारी 2001 की जनगणना के आंकड़ों में सामने आए हैं।

ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश में, 35 फीसदी से अधिक ग्रामीण परिवारों को पीने के पानी के लिए 1/2 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

पीने के पानी के स्रोत के लिए ओडिशा के ग्रामीण परिवारों को करनी पड़ती है एक घंटे की यात्रा

Source: Census 2011

भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (IHDS II), जिसमें 42,153 भारतीय परिवारों का सर्वेक्षण किया गया है, कहती है कि पानी के स्रोत तक पहुंचने के लिए चार ग्रामीण परिवारों में से एक को आधा घंटा खर्च करना पड़ता है।

ओडिशा के ग्रामीण परिवारों को पानी के स्रोत तक पहुंचने के लिए औसतन सबसे अधिक चलना पड़ता है – एक घंटे से भी अधिक। इसके अलावा, अपनी बारी के लिए उन्हें इंतज़ार भी करना पड़ता है। एक भरे बाल्टी में अधिक से धिक 20 किलो पानी भरा जा सकता है।

शहरी क्षेत्रों में स्थिति अधिक बेहतर नहीं है: 20 फीसदी परिवारों को पीने के पानी के स्रोत तक पहुंचने के लिए आधे घंटे का समय लगता है।

गर्मियों में. भारत भर में 36 फीसदी परिवारों को पानी के स्रोत के लिए 30 मिनट लगते हैं, जोकि दूसरे मौसम की तुलना में 23 फीसदी अधिक है।

परिवार जिन्हें पानी के स्रोत के लिए 30 मिनट या अधिक समय लगता है

Source: Indian Human Development Survey (IHDS II)

पानी के स्रोत कम होने से पानी और असुरक्षित हो रहा है

अनुमानित तौर पर हर वर्ष 230 घन किमी पानी इस्तेमाल करने के साथ, भारत विश्व में सबसे बड़ा भूमिगत जल उपयोगकर्ता है, यह वैश्वक खपत का चौथाई से भी अधिक है।

सतह सिंचाई परियोजनाओं की सीमित सफलता और किसानों के लिए और सस्ती बिजली नलकूपों के उपयोग से भूजल और जलवाही स्तर पर अत्यधिक निर्भरता डाल दिया है।

भूजल स्तर में गिरावट आने से लाखों भारतीयों के लिए दूषित पानी पीने का खतरा बढ़ रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

पंजाब और हरियाणा के कृषि राज्यों के पूर्व मानसून भूजल स्तर तुलना से पता चलता है कि 2011 से 2015 के बीच हरियाणा में 20 मिटर से अधिक गहरे कुओं के प्रतिशत में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि पंजाब में 70 फीसदी की वृद्धि हुई है।

20 मीटर से अधिक गहरे पूर्व मानसून भूजल के साथ कुएं

Source: Central Ground Water Board (CGWB), 2011, 2015

पीने की पानी की गुणवत्ता के साथ समझौता

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा 2016 की इस रिपोर्ट के अनुसार, कई लोगों के लिए सुरक्षित पीने के पानी तक पहुंच में मुश्किल होने के साथ, जल जनित रोगों के कारण भारत को कम से कम 73 मिलियन कार्य दिवसों का नुकसान हुआ है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की इस रिपोर्ट, भारत में पीने

का पानी, सफाई, स्वच्छता और हाउसिंग स्थिति के महत्वपूर्ण संकेतक , के अनुसार बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में स्थिति बद्तर है। इन राज्यों में 18 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी, गुणवत्ता पीने के पानी का उपयोग करने में असमर्थ है।

बिहार के ग्रामीण परिवारों के करीब पांचवें हिस्से को बुरे गुणवत्ते वाला पीने का पानी मिलता है

पीने के पानी पर खर्च होने वाले समय का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी ), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और ऑक्सफेम द्वारा वैश्विक अध्ययन के अनुसार, पीने के पानी लाने का प्रयास शिक्षा सहित विकास को धीमा करता है।

बच्चे, विशेष रुप से गरीब परिवारों की बच्चियों स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण पानी के लिए उनकी घर में अधिक रहने की आवश्यकता है।

कम मानव विकास सूचकांक (एचडीआई 2007-08) के साथ भारतीय राज्यों के ग्रामीण घरों में या घरों के पास पीने के पानी का स्रोत होने का अनुपात अधिक बताया है एवं ग्रामीण महिलाओं को पीने का पानी लाने के लिए औसतन अधिक समय लगता है।

Source: Indian Human Development Survey, (IHDS II), NITI Aayog - Population data, NITI Aayog - HDI data

कुछ बेहतर चिन्ह

IHDS सर्वेक्षण के करीब 92 फीसदी उत्तरदाताओं ने साल में पर्याप्त पानी होने की बात कही है, हालंकि इस वर्ष आंकड़े गिर कर 80 फीसदी हुए हैं।

देश भर से 95 फीसदी से अधिक शहरी उत्तरदाताओं ने 'पीने के पानी की बेहतर स्रोत' जैसे कि बोतल का पानी, पाइप से पानी, ट्यूबवेल की सूचना दी है।

(तिवारी इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक है। बापत इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 21 जून 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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