मुंबई: मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड में विधानसभा चुनावों के साथ राष्ट्रीय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भारत के उत्तरपूर्व में अप्रत्याशित निर्वाचन लाभ उठाए हैं, लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व भारत के औसत से नीचे रहा है । इसके अलावा मेघालय और त्रिपुरा में तो महिलाओं के प्रतिनिधित्व में और गिरावट आई है। यह जानकारी चुनावी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण में सामने आई है।

तीन राज्य विधानसभाओं (प्रत्येक राज्य के लिए 60 सीटें) में सिर्फ 3 फीसदी या 180 सीटों में से छह महिलाओं के नाम रहे हैं - मेघालय और त्रिपुरा में तीन-तीन और नागालैंड में एक भी नहीं, जैसा कि ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) द्वारा मार्च 2018 की इस रिपोर्ट में चुनाव डेटा में दिखाया गया है।

यह राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिध्व के राष्ट्रीय औसतका एक तिहाई(9 फीसदी)और संसद में महिला प्रतिनिधित्व का एक चौथाई (12 फीसदी) है, जैसा कि इंडियास्पेंड 8 मार्च, 2016 की रिपोर्ट में बताया है। विश्व स्तर पर, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए 193 सदस्य देशों में भारत 148वें स्थान पर है।

इस साल तीन राज्यों में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या में 48 फीसदी वृद्धि ( 2013 में 42 महिलाओं से 2018 में 62 तक ) के बावजूद, इन राज्यों में कम प्रतिनिधित्व है।

निर्णय लेने में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों के लिए महत्वपूर्ण है, जैसा कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व पर संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन से पता चलता है।

उत्तर-पूर्व क्षेत्र में राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी दूसरे लिंग विकास सूचकांक पर उनके प्रदर्शन के विपरीत है, जहां इन राज्यों में भारत भर में इस मामले में सबसे अच्छा स्थान है,जैसा कि इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट यहां, यहां, और यहां बताया था।

नागालैंड में पिछले 55 वर्ष में कोई महिला नहीं चुनी गई

1963 में राज्य की स्थापना के बाद से नागालैंड राज्य विधानसभा के लिए कोई भी महिला निर्वाचित नहीं हुई है। एडीआर स्टेट रिपोर्ट के मुताबिक, 2003 के बाद से 15 वर्षों में पहली बार राज्य में पांच महिलाओं ने चुनाव लड़ा है। 2003 में, तीन महिलाएं चुनाव के लिए खड़ी हुई थीं; लेकिन कोई भी निर्वाचित नहीं हुई। इन 15 वर्षों में, नागालैंड में एक भी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा था।

लिंग विकास सूचकों पर, नागा महिलाएं भारतीय औसत से बेहतर हैं। यहां कम महिलाएं एनीमिया (23.9 फीसदी) से पीड़ित होती हैं। 18 साल की आयु से पहले विवाह किए जाने के लिए मजबूर होने वाली महिलाओं की संख्या (13.3 फीसदी) भी कम है और साथ ही विवाह संबंधी हिंसा (12.7 फीसदी) के रिपोर्ट के मामले भी कम दर्ज हुए हैं। राज्य में अधिकांश महिलाओं (97.4 फीसदी) की घरेलू फैसले में हिस्सेदारी होती है।

उम्मीदवार के लिंग अनुसार नागालैंड में चुनावी प्रदर्शन

Source: Association for Democratic Reforms (ADR) report 2018 and Election Commission of India reports 2013, 2008 and 2003

त्रिपुरा में महिला साक्षरता अधिक, लेकिन अल्प महिला विधायक

त्रिपुरा में, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 297 उम्मीदवारों में से 24 महिलाएं थीं, जैसा कि एडीआर स्टेट रिपोर्ट से पता चलता है। 2013 की तुलना में नौ महिलाएं ज्यादा हैं, लेकिन इनमें से केवल तीन महिलाएं चुनी गई ,जो 2013 की तुलना में दो कम और 2008 में राज्य विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व के बराबर है।

नव निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में भाजपा ( जिसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) को हटा कर 35 सीटें जीतीं ) की दो शामिल हैं।

2013 में, पिछले विधानसभा चुनाव में कुछ ही महिलाओं (15) ने चुनाव लड़ा था। फिर भी पांच चुनी गई थी, इस वर्ष की तुलना में दो ज्यादा। यह कम प्रतिनिधित्व त्रिपुरा की महिला साक्षरता दर (89.5 फीसदी) भारत के सर्वोच्च के बीच होने के बावजूद बनी हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

उम्मीदवार के लिंग अनुसार त्रिपुरा में चुनावी प्रदर्शन

Source: Association for Democratic Reforms (ADR) report 2018 and Election Commission of India reports 2013, 2008 and 2003

मेघालय में 33 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, तीन ने हासिल की जीत

मातृसत्ता वाले इलाके मेघालय ( जहां परिवार के वंश को पिता के बजाय मां के माध्यम से पता लगाया जाता है ) में 2018 के विधानसभा चुनावों के लिए खड़े होने वाले 370 उम्मीदवारों में से 33 महिलाएं थीं, जैसा कि एडीआर स्टेट रिपोर्ट से पता चलता है।

इनमें से तीन महिलाएं, या विधान सभा के 59 सदस्यों में से 5 फीसदी निर्वाचित हुई । 2003 के बाद से, 2013 में राज्य ने पिछले 15 सालों में अपना उच्चतम प्रतिनिधित्व किया था, जब चुनाव लड़ने वाली 25 महिलाओं में से चार ने जीत हासिल की थी।

हाल के चुनावों में, कांग्रेस एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी थी, जिनके पास 21 सीटें थीं, जिनमें से दो महिलाओं के पास थी। भाजपा ने दो सीटों ( दोनों पर पुरुष ) से राज्य में सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), यूनाईटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट से गठबंधन किया।

नई गठबंधन की एक महिला एनपीपी से चुनी गई है, जिसने 19 सीटें जीती हैं।

मेघालय देश में महिलाओं के लिए सबसे अच्छी साक्षरता दर (82.8 फीसदी) का दावा करता है और कम उम्र में विवाह (16.9 फीसदी) की सबसे कम दरों वाले राज्यों में से एक है। राज्य में अधिकांश महिलाओं (91.4 फीसदी) का घर के फैसले में हिस्सेदारी है। यह राष्ट्रीय औसत (84 फीसदी) से अधिक है। हालांकि, लिंग सूचकांकों पर मातृप्रभावी राज्य का प्रदर्शन फिसल रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड 26 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। 2006 से 2016 तक, महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर मेंतीन गुना वृद्धि हुई है, 100,000 जनसंख्या पर 7.1 से बढ़कर यह 26.7 हुआ है।

उम्मीदवार के लिंग अनुसार मेघालय में चुनावी प्रदर्शन

Source: Association for Democratic Reforms (ADR) report 2018 and Election Commission of India reports 2013, 2008 and 2003

पूर्वोत्तर में महिला सशक्तिकरण की विसंगति

शेष भारत की तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी अधिकांश राज्य पितृसत्तात्मक संरचना का पालन करता है। पिछले साल, फरवरी 2017 में, नागालैंड में नगरपालिका चुनावों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के मुद्दे पर हिंसा बढ़ गई थी, जिसमें दो लोगों की जान गई थी।

पारंपरिक आदिवासी निकायों ने राज्य में अनुच्छेद 243 (टी) लागू करने का जोरदार विरोध किया, जो शहरी स्थानीय निकायों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों से संबंधित महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का जनादेश है। लोगों ने कानून को नागा परंपरा के अतिक्रमण के रूप में देखा।

नागा संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) के तहत संरक्षित हैं, और राज्य सरकार ने तर्क दिया कि यह नागालैंड में शांति के लिए बड़ी बाधा बन जाएगी, जैसा कि ‘द हिंदू’ ने 8 फरवरी, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

महिलाओं के समूह, जैसे ‘नागालैंड मदर्स एसोसिएशन’ और महिला आरक्षण के लिए संयुक्त कार्य समिति ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में राज्य विधानसभा के फैसले को चुनौती दी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सहभागिता के अधिकार को बरकरार रखा।

पारम्परिक नागा कानून स्पष्ट रूप से लिंग भूमिकाओं और लिंगी जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है, जैसा कि मार्च 2017 के इस लेख में बताया गया है। जबकि पुरुष सामाजिक मुद्दों से निपटते हैं, जिसमें गांव प्रशासन और परिषद शामिल हैं। महिलाएं घरेलू काम देखती हैं और उन्हें सार्वजनिक कार्यालय से बाहर रखा जाता है।

मेघालय में भी, मातृवंशीय व्यवस्था महिलाओं को सशक्त बनाने से ज्यादा परंपरा को मजबूत करने में काम करती है, जैसा कि 2012 की ‘शिलोंग टाइम्स’ की यह रिपोर्ट कहती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, " विभिन्न पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रतिबंधों के कारण राजनीति में भाग लेने के लिए महिलाओं को तैयार नहीं किया गया हैं, लेकिन धीरे-धीरे बदलाव हुए हैं जिसमें महिलाओं को डोरबार में भाग लेने की अनुमति दी गई है।"

" इसे जो भारत के बाकी हिस्सों से अलग बनाता है वो यह है कि इन समाजों में महिलाओं का जो स्थान है, जहां वे संगठित हो सकती हैं, अपने एजेंडा को प्राथमिकता दे सकती हैं, अपनी राय को आवाज दे सकती हैं, " जैसा कि जर्नल ‘इंडियन सोसीअलाजिकल सोसाइटी’ के अप्रैल 2017 के इस पेपर समझाया गया है-

“राजनीति स्थायी रूप से पुरुषों का क्षेत्र रहा है। इसलिए निर्णय लेने और नीति हस्तक्षेप में महिलाओं का स्थान पीछे है।”

(मोहन इंटर्न हैं और सालदानहा सहायक संपादक हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 मार्च 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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