लखनऊ: नज़मा की 2 साल की बेटी शबनम को एक रोज़ अचानक बुख़ार आया। बुखार इतना तेज़ था कि शबनम बेहोश हो गई। बेटी की हालत बिगड़ते देख नज़मा उसे लेकर ज़िला अस्पताल पहुंची, जहां डॉक्टर ने बताया कि शबनम का वज़न उसकी लंबाई के हिसाब से बहुत कम है, साथ ही उसमें खून की भी कमी है। यह सारे ही लक्षण कुपोषण के हैं। फिलहाल शबनम लखनऊ के बलरामपुर ज‍़िला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती है।

"डॉक्‍टरों ने बताया कि बच्ची कमज़ोर है, भर्ती करना होगा। यहां डॉक्टरों की ओर से वक्त पर खाना दिया जा रहा है। अब वो ठीक लग रही है," लखनऊ के नरही की रहने वाली नज़मा (27) ने बताया। हालांकि नज़मा को अभी भी यकीन नहीं होता कि उनकी बेटी कमजोर है। उनके मुताबिक, "शबनम देखने में ठीक-ठाक है तो कमज़ोर कैसे हो सकती है?"

शबनम की तरह ही उत्तर प्रदेश में ऐसे तमाम बच्‍चे हैं जो कुपोषित हैं और उनके मां-बाप को इसकी जानकारी भी नहीं है। यही कारण है कि उन्हें सही वक्त पर सही इलाज नहीं मिल पाता है। उत्तर प्रदेश में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक, बिहार के बाद यूपी देश का दूसरा ऐसा राज्य है जहां कुपोषण सबसे अधिक है। इसके बाद 2016 से 2018 के बीच हुए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में भी यह आंकड़े चिंताजनक ही रहे। जिसके बारे में हम आपको विस्तार से आगे बताएंगे।

इस साल सितंबर के महीने में मनाए गए पोषण माह के दौरान उत्तर प्रदेश में कुपोषित बच्चों की पहचान का अभियान चलाया गया। इस दौरान 6 साल तक के लगभग 1.26 करोड़ बच्‍चों का वज़न किया गया। इनमें से करीब 12% बच्चे कुपोषित मिले, कुल पाए गए कुपोषित बच्चों में से 12.3% बच्चे अति कुपोषित मिले, राज्‍य पोषण अभियान की तरफ़ से इंडियास्पेंड को दिए गए आंकड़ों के अनुसार।

पोषण माह के दौरान बच्चे का वजन करती आंगनबाड़ी कार्यकर्ता। फ़ोटो: @up_poshan

13 लाख से अधिक नए कुपोषित बच्चे मिले

पोषण अभियान के तहत देश भर में साल 2018 से सितंबर महीने में 'पोषण माह' का आयोजन किया जाता है। इसमें बच्‍चों को कुपोषण से बचाने के उपाय सुझाए जाते हैं। बच्‍चों का वज़न कर कुपोषित बच्‍चों की पहचान की जाती है। पोषण माह में जनभागीदारी को बहुत महत्व दिया गया है, जिससे लोगों में कुपोषण को लेकर जागरूकता फैल सके। इसके लिए पोषण मेला, पोषण रैली, पौष्टिक आहार की जानकारी, एनीमिया के प्रति जागरूकता, डायरिया की रोकथाम, पोषण वाटिका लगवाने जैसे कार्यक्रम होते हैं। इन कामों को एक्‍ट‍िविटी कहा जाता है। इस साल पोषण माह के तहत यूपी में 2 करोड़ से ज़्यादा एक्‍ट‍िव‍िटी हुई है।

पोषण माह के दौरान यूपी में 6 साल तक के 1.26 करोड़ से अधिक बच्‍चों का वज़न किया गया। इनमें से 13.4 लाख बच्चे कुपोषित (Moderate Acute Malnutrition-MAM) और 1.88 लाख बच्चे अति कुपोषित (Severe Acute Malnutrition-SAM) पाए गए, राज्य के पोषण अभियान के आंकड़ों के अनुसार।

पोषण माह के खत्म होने के बाद 'पोषण जन आंदोलन' शुरु किया गया है। यह जन आंदोलन मार्च में मनाए जाने वाले पोषण पखवाड़ा तक चलेगा। इस साल यूपी सरकार का लक्ष्य है कि पोषण माह के खत्म होने से लेकर मार्च 2021 तक लगभग 8 लाख कुपोषित बच्‍चों की पहचान की जाए। इन बच्चों की पहचान के बाद इनकी निगरानी की जाएगी और सही देखभाल से इन्‍हें कुपोषण के चंगुल से मुक्त कराने का प्रयास होगा।

कुपोषित बच्‍चों की निगरानी और ड्राई राशन देने की योजना

"पोषण माह के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कुपोष‍ित बच्‍चों को चिन्‍हित किया है। अब हमारी ओर से बच्चों की न‍िगरानी होगी। साथ ही सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन प्लान के तहत इन बच्चों के परिवारों को सीधे राशन देने का काम भी शुरू हो गया है। अब इन बच्‍चों तक पंजीरी की जगह ड्राई राशन पहुंचाया जाएगा। इसकी ज़िम्मेदारी 'स्वयं सहायता समूह' को दी गई है।," राज्‍य पोषण मिशन के निदेशक कप‍िल स‍िंह ने इंडियास्पेंड को बताया।

उत्तर प्रदेश के राज्‍य पोषण मिशन के निदेशक कप‍िल स‍िंह। फोटो: रणविजय सिंह

यूपी में बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से पहले आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को पंजीरी (पुष्टाहार) बांटने की व्यवस्था थी। अब बच्चों को राज्‍य के 1.88 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों से ड्राई राशन देने की योजना शुरू की गई है। हालांकि कई जगहों पर राशन बंटने में देरी की खबरें भी आ रही हैं।

"पंजीरी बांटना तो पिछले तीन महीने से बंद है। इस महीने से राशन बांटने की बात थी, लेकिन अभी तक कई जगहों पर बच्चों को राशन नहीं मिला है। पंजीरी बांटने की ज़िम्मेदारी हमारी होती थी तो हम बांट देते थे। अब राशन की ज़िम्मेदारी स्वयं सहायता समूहों को दी गई है। मेरी जानकारी में है कि उनके पास राशन आ गया है, जब व्यवस्था नई होती है तो थोड़ी परेशानी होती है। आने वाले दिनों में आंगनबाड़ी केंद्र से राशन बांट दिया जाएगा," आंगनबाड़ी कर्मचारी एवं सहायिका एसोसिएशन की प्रदेश अध्यक्ष गीता पांडेय ने बताया।

बच्‍चों को मिलने वाला राशन उन तक पहुंचा या नहीं इसकी निगरानी के लिए भी राज्‍य पोषण मिशन ने योजना तैयार की है। "इस व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए हम कंप्यूटराइज़्ड सिस्टम बना रहे हैं। इसमें किस लाभार्थी को कितना राशन मिला है, इसकी पूरी जानकारी होगी। हम एक कॉल सेंटर भी बना रहे हैं जिससे महीने में न्यूनतम 1 लाख कॉल की जाएगी। इसमें लाभार्थियों से पूछा जाएगा कि उन्हें राशन मिला या नहीं। यह सब एक महीने के अंदर शुरू हो जाएगा," पोषण मिशन के निदेशक कप‍िल सिंह ने बताया।

उधर ड्राई राशन की इस व्यवस्था पर कई सवाल भी उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि परिवार को दिए जाने वाले राशन का पूरा फायदा बच्‍चों तक नहीं पहुंच पाएगा, ऐसे में कुपोषण की समस्या और गंभीर हो सकती है। "परिवार में राशन देने पर राशन बंट जाएगा। ऐसे में बच्चे तक उसका फायदा कम पहुंचेगा। अगर किसी बच्चे को दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद, दही के अलावा भी मल्टी विटामिन जैसे सप्लीमेंट दिए जाएं तब जाकर बच्‍चा अति कुपोषित होने से बच पाता है। अगर हम केवल राशन देंगे तो इसका बच्चे की सेहत पर ज़्यादा असर नहीं होगा," लखनऊ के बलरामपुर ज़िला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ, देवेंद्र सिंह ने कहा।

लखनऊ के बलरामपुर ज़िला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ देवेंद्र सिंह। फोटो: रणव‍िजय सिंह

यूपी में कुपोषण

उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46.3% बच्चे अविकसित कद के हैं, इन बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से नहीं बढ़ती। इस मामले में राष्ट्रीय औसत 38.4% है। इसी तरह यूपी में पांच साल तक की उम्र के 39.5% बच्चों का वज़न उनकी उम्र के हिसाब से कम पाया गया। इस मामले में राष्ट्रीय औसत 35.7% है, नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफ़एचएस-4) की रिपोर्ट में बताया गया।

इसके बाद 2016 से 2018 के बीच हुए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में भी यह आंकड़े चिंताजनक ही रहे। उत्तर प्रदेश में चार साल से कम उम्र के 38.8% बच्चे अविकसित कद के थे। इसके अलावा 18.5% बच्चों का वज़न उनकी उम्र के हिसाब से कम था, राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के आंकड़ों में बताया गया। यह रिपोर्ट 2019 में आई थी।

लखनऊ के ज‍़िला अस्पताल में भर्ती शबनम अपनी मां नज़मा के साथ। फोटो: रणविजय सिंह

"कुपोषण की लड़ाई में सबसे अहम भूमिका अभिभावकों की है। बच्‍चे को जन्‍म से लेकर 6 महीने तक स्तनपान कराना बहुत जरूरी है। इस दौरान बॉटल फीडिंग नहीं करानी चाहिए। 6 महीने बाद मां के दूध के साथ ही दाल, दलिया, खिचड़ी जैसी चीजें खिलाना शुरू कर देना चाहिए। बच्चे के बड़े होने पर अगर उसका वज़न मेंटेन नहीं हो रहा तो उसे मल्टी विटामिन सप्लीमेंट भी दिया जाना चाहिए। बढ़ते हुए बच्चे की हड्डियां भी बढ़ रही होती हैं तो उन्हें कैल्शियम की जरूरत होती है। हर बच्चे को प्रतिदिन 80 से 100 मिलीग्राम कैल्शियम चाहिए होता है जो दूध से पूरा नहीं हो सकता। ऐसे में कैल्शियम सप्लीमेंट जोड़ा जा सकता है। मां-बाप अगर बच्चों का इतना ख्याल रखेंगे तब जाकर वह कुपोषण से बच पाएगा," वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ देवेंद्र सिंह ने कहा।

पोषण अभियान के तहत लोगों को खानपान के प्रति भी जागरूक करने का काम किया जा रहा है। "हमने लोगों को अच्छे खानपान के बारे में जानकारी देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे - स्थानीय भोजन के अनुसार रेसिपी बुकलेट बनाई है। इसे लाभार्थियों को दिया गया है, जिसमें इस तरह की जानकारी है कि किस भोजन में कितनी कैलोरी है, कितना पौष्टिक तत्व है। साथ ही पूरे दिन का खाना कैसा होना चाहिए इसका भी एक चार्ट बनाकर दिया जा रहा है। इसके अलावा हमारी ओर से लोगों के घरों में पोषण वाटिका भी बनवाई गई है, जिससे उन्हें घर में ही पौष्टिक सब्जियां मिल सकें। इस बार पोषण माह में 4 लाख पोषण वाटिका बनवाई गई हैं," उत्तर प्रदेश में पोषण मिशन के निदेशक कप‍िल सिंह ने बताया।

पिछले साल 6 दिसंबर को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, "पोषण अभियान से क्या फायदा हुआ इसकी जानकारी इसके अनुमोदित अवधि के पूरे हो जाने के बाद पता चल सकती है। हालांकि राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक उम्र के हिसाब से कम लम्बाई, उम्र के हिसाब से कम वजन और अल्पवजन की दर क्रमशः 34.7%, 17% और 33.4% है, जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के हिसाब से कुपोषण के मामलों में सुधार और कमी को दर्शाता है।" सरकार पोषण अभियान को दिसंबर 2017 से चला रही है जिसका लक्ष्य 3 साल की अवधि में कुपोषण की स्थिति में सुधार लाना है।

(रणविजय लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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