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भारत में एक ओर जहां सड़क और रेल लाइन निर्माण का कार्य पूरे ज़ोर-शोर से चल रहा है वहीं बंदरगाहो के विकास एवं अंतर्देशीय जलमार्ग को बेहतर बनाने के लिए सरकार की ओर से कोशिश जारी है। बंदरगाहों के बुनियादी व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने एक लाख करोड़ रुपए ( 15.6बिलियन डॉलर ) देने का निर्णय किया है।

सागरमाला परियोजना के तहत सीमाओं और तटवर्ती क्षेत्रों को सड़क मार्ग द्वारा जोड़ा जाएगा। इससे न केवल माल के आवाजाही में सुविधा होगी बल्कि भारत की कार्बन फुटप्रिंट को कम करने एवं उर्जा बचाने में भी मदद मिलेगी।

तत्कालीन योजना आयोग के अनुसार तटीय नौवहन सबसे सस्ता एवं कम से कम प्रदूषण फैलाने वाला परिवहन माध्यम है। आकंड़ो की बात करें तो यह सड़क माध्यम के मुकाबले 63 फीसदी एवं रेल की तुलना में 38 फीसदी सस्ता है। तटीय नौवहन से 0.55 रुपए प्रति टन-किलोमीटर का खर्च आता है जबकि सड़क माध्यम से 1.50 रुपए एवं रेल से 0.90 रुपए का खर्च आता है।

सागरमाला परियोजना के अंतर्गत बंदरगाहों को विकसित कर, उन्हें सड़क, रेल, अंतर्देशीय और तटीय जलमार्गों से जोड़ा जाएगा। इससे आर्थिक गतिविधियों में भी एक नई दिशा मिलेगी।

बोझल पड़े बंदगाहों में सुधार की ज़रुरत

अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों की तुलना में भारत के बंदरगाहों की क्षमता बहुत कम है। यहां काम की गति काफी धीमी है।

भारत में 12 प्रमुख एवं 200 छोटे बंदरगाह हैं। यदि व्यापार मात्रा की बात करें तो भारत के कुल व्यापार में से 95 फीसदी व्यापार बंदरगाहो के माध्यम से होता जबकि मूल्य के हिसाब से 68 फीसदी व्यापार यहां किया जाता है।

भारत की घरेलू मालों की ढुलाई में तटवर्ती नौवहन से केवल 7 फीसदी परिवहन ही किया जाता है। जबकि चीन और जापान में यह आंकड़े 20 फीसदी और 42 फीसदी हैं।

Source: Ministry of Shipping

7,500 किलोमीटर की कुल समुद्री तट के साथ, भारत में समुद्री रास्ते से 950 मिलियन टन का कारोबार होता है। वहीं चीनमें यह कारोबार 9 बिलियन टन का है।चीन के तटरेखा 15,00 किलोमीटर है।

तटवर्ती नौवहन की एक महत्वपूर्ण कमी है धीमा व्यवस्था क्रम। जहाज के बंदरगाह में प्रवेश करने से लेकर माल के लादने, उतारने, और वापस जाने में काफी समय लगता है।

अप्रैल- नवंबर 2014 में मिली जानकारी के अनुसार तटवर्ती नौवहन के माध्यम से माल लादने, उतारने और वापस जाने में औसतन 2.1 दिन ( 50 घंटे ) लगते हैं।

एशिया एवं विश्व स्तर पर सिंगापुर के बंदरगाह सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। सिंगापुर के बंदरगाहों में यह सारा काम 12 घंटों से भी कम में पूरा कर लिया जाता है जबकि हांगकांग बंदरगाहों में पूरा काम 10 घंटों के भीतर ही कर लिया जाता है।

भारत में बंदरगाहों पर माल लादने-उतारने में दो दिन लगने से छोटी समुद्र यात्राओं में करीब 10 फीसदी का खर्च अधिक हो जाता है।

Source:KPMG

भारत में सड़क के रास्ते 57 फीसदी एवं रेल के ज़रिए 30 फीसदी घरेलू मालों की ढुलाई होती है।

भारत में अंतर्देशीय जल परिवहन का विकास भी संतोषजनक नहीं है।

14,500 किलोमीटर की नौगम्य अंतर्देशीय जलमार्ग में से, प्रमुख नदियों में केवल 5,200 किलोमीटर ( 36फीसदी ) एवं नहरों के 485 किलोमीटर ( 3 फीसदी )यंत्रीकृत जहाजोंका नियंत्रण कर सकते हैं। के.पी.एम.जी रिपोर्ट के अनुसार भारत के माल ढुलाई का केवल 0.5 फीसदी अंतर्देशीय जल परिवहन के द्वारा नियंत्रित किया जाता है जबकि चीन में 8.7 फीसदी, अमरिका में 8.3 फीसदी और यूरोप में 7 फीसदी हिस्सा जल परिवहन द्वारा नियंत्रित होता है।

बंदरगाहों की बेहतरी के लिए काम शुरु

हाल ही में जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट ( जे.एन.पी.टी ) और महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड के बीच दहानू में एक ‘सैटेलाइट पोर्ट’शुरु करने के लिएसमझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। सैटेलाइट पोर्ट शुरु हो जाने से जवाहर लाल नेहरु पोर्ट के ट्रैफिक को कम करने में सहायता मिलेगी।

केंद्र सरकार ने छह राज्यों में बंदरगाह बनाने का निर्णय किया है जिसमें पश्चिम बंगाल में 12,000 करोड़ रुपये निवेश से सागर द्वीप में एक बंदरगाह, 6,000 करोड़ रुपए की लागत से महाराष्ट्र में वधवन बंदरगाह, तमिलनाडु के कोलाचेल, और 1,200 करोड़ रुपए के निवेश से हल्दिया डॉक 2 शामिल हैं।

Source:LokSabha; figures in million tonnes (MT); * Figures for 2014-15 are up to January 2015.

मार्च 2014 के आकंड़ो के अनुसार सभी प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता 800.52 मिलियन टन ( MT ) थी जबकि माल ढुलाई555.54 MT देखी गई थी।

कंडला बंदरगाह साल 2013 - 14 में, 87 MT माल ढुलाई के साथ सबसे व्यस्त बंदरगाह रहा। माल लादने-उतारने और जहाज रवाना करने में यहां औसतन 2.9 दिनों ( 69.6 घंटे ) का वक्त लगा। साफ है ऐसी स्थिति में केवल सागरमाला परियोजना काफी नहीं है।

(अपडेट: यह लेख सड़क एवं रेल की तुलना में जहाज से माल परिवहन व्यय की सही तस्वीर दिखाता है )

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साश नीति विश्लेषक हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 30 जून 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है

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