नई दिल्ली: भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की निमोनिया से मौत का लागातर गिर रहा आंकड़ा अचानक 2014 के बाद से बढ़ रहा है।

साल 2013-14 में भारत में निमोनिया से पांच साल से कम उम्र के 7,116 बच्चों की मौत हुई जो पिछले दो दशक में सबसे कम थी। साल 2009-10 से निमोनिया से होने वाले बच्चों की मौत का आंकड़ा लगातार गिरता रहा और 2013-14 में इसमें सबसे ज़्यादा सुधार हुआ। लेकिन 2014 के बाद से अचानक निमोनिया से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ने लगी। 2014 में जो आंकड़ा 7,116 था वह 2018-19 में दोगुने से भी ज़्यादा, 14,949 पर पहुंच गया।

यह आंकड़े स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री, अश्विनी कुमार चौबे, ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में 13 दिसम्बर 2019 को सदन के सामने रखे।

विशेषज्ञों का कहना है कि देश में वायु प्रदूषण के बढ़ने के साथ ही निमोनिया के मामले भी बढ़ रहे हैं। बेहतर होती तकनीक की वजह से भी अब ज़्यादा मामले दर्ज होने लगे हैं। जो बच्चे का टीकाकरण से छूट गए हैं या जिनका टीकाकरण पूरा नहीं हो पाया है, वो भी निमोनिया का आसानी से शिकार हो सकते हैं।

क्या है निमोनिया और यह क्यों होता है

निमोनिया एक प्रकार का गंभीर सांस संबंधी संक्रमण है जो सीधा फेफड़ों पर असर करता है। निमोनिया होने पर फेफड़ों के अंदर मवाद और तरल (पस और फ़्लूइड) भर जाता है जिससे शरीर को ऑक्सीजन मिलनी कम हो जाती है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फ़ंगाई, किसी से भी हो सकता है। यह संक्रमण खांसने या छींकने और ख़ून चढ़ाने, संक्रमित ब्लेड या सीरिंज के इस्तेमाल से फैल सकता है। छोटे बच्चों को निमोनिया होने पर उन्हें कुछ भी खिलाना-पिलाना मुश्किल हो जाता है, बच्चे बेहोश हो सकते हैं, उन्हें हाईपोथरमिया या अल्पताप और कनवलज़न या बेहोशी और ऐंठन हो सकती है।

ज़्यादातर स्वस्थ बच्चे इस संक्रमण से लड़ पाते हैं पर जिन बच्चों का इम्युनिटी सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, वो आसानी से निमोनिया का शिकार हो जाते हैं। इम्युनिटी कमज़ोर होने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें कुपोषण सबसे अहम है, ख़ासकर शिशुओं में। इसीलिए ज़रूरी है कि जन्म के बाद छह महीने तक माएं अपने शिशु को सिर्फ़ स्तनपान कराएं।

NFHS-4 के साल 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश के लगभग आधे बच्चों को ही 6 महीने तक स्तन पान कराया जाता है।

पहले से चल रही बीमारियां जैसे एचआईवी संक्रमण या मीज़ल्ज़ की वजह से भी बच्चों को निमोनिया हो सकता है। आसपास के वातावरण और पर्यावरण से जुड़े भी कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से बच्चे को निमोनिया हो सकता है। जिसमें वायु प्रदूषण (ख़ासकर घर के अंदर का वायु प्रदूषण जो कंडे या लकड़ी जलाकर खाना बनाने से हो सकता है), बड़े परिवार वाले घर में रहना और माता-पिता का धूम्रपान करना शामिल हैं।

दुनियाभर में निमोनिया का कहर

यूनिसेफ़ के मुताबिक़ दुनिया में हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत निमोनिया से होती है, जिसमें से सबसे ज़्यादा मौतें दो साल से कम उम्र के बच्चों की होती हैं। भारत में हर दो मिनट में निमोनिया या डायरिया की वजह से एक बच्चे की मौत हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ़ के 2013 में जारी किए गए द इंटीग्रेटेड ग्लोबल एक्शन प्लान फॉर द प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ़ निमोनिया एंड डायरिया का लक्ष्य निमोनिया से होने वाली मौतों को हर 1,000 बच्चों पर तीन मौतों तक सीमित करना है।

नवंबर 2019 में आई जॉन होप्किन्स ब्लूम्बर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के इंटरनेशनल वैक्सीन ऐक्सेस सेंटर (आईवीएसी) की 2019 निमोनिया एंड डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट कार्ड के अनुसार 2017 में भारत में 5 साल से कम उम्र के 2,33,240 बच्चों की मौत निमोनिया से हुई यानी हर एक हज़ार बच्चों पर 9.3 मौतें।

पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण निमोनिया है। भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर हर एक हज़ार बच्चों पर 50 है। शिशु मृत्यु दर, संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स में तीसरा है। लक्ष्य है इस आंकड़े को आधा करने का। भारत को इस लक्ष्य को पूरा करने में निमोनिया जैसी बीमारियां बड़ी रुकावट हैं।

निमोनिया का इलाज

निमोनिया को सरल और सस्ते इलाज, दवाइयों और रख रखाव से ठीक किया जा सकता है और रोका जा सकता है। ज़्यादातर मामलों में स्वास्थ्य केंद्रों पर आसानी से उपलब्ध सस्ते एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। निमोनिया जानलेवा ना हो इसके लिए शुरूआती स्तर पर बीमारी का पता लगना और इसका इलाज होना बहुत महत्वपूर्ण है।

शिशु मृत्यु दर यानी चाइल्ड मॉर्टेलिटी रेट को कम करने के लिए निमोनिया की रोकथाम बेहद ज़रूरी है। इसके लिए बच्चों को कई तरह के टीके लगाए जाते हैं। इन टीकों में मुख्य हैं मीज़ल्ज़ यानी खसरा, एचआइबी या हिमोफ़िलस इनफलुएंज़ा (बी) और नियूमोकोकल वैकसीन।

सरकार यह टीके यूआइपी यानी यूनिवर्सल इम्युनाईज़ेशन प्रोग्राम के तहत लगाती है। जो बच्चे इस टीकाकरण मुहिम में अभी भी बचे हुए हैं या छूट गए हैं या जिनका पूरा टीकाकरण नहीं हुआ है, उनके लिए सरकार ने दिसंबर 2019 में सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0 की शुरुआत की है।

2013-14 के बाद मौतों में बढ़त

देश में निमोनिया से 2009-10 में 13,610 बच्चों की मौत हुई थी जो 2013-14 तक लगातार घटते हुए 7,116 पर आ गई और उसके बाद से इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। साल 2017-18 में यह आंकड़ा 16,282 था जो 2018-19 में 14,949 पर आ गया। 2019 अक्टूबर तक ही पांच साल की उम्र तक के 6,753 बच्चों की मौत निमोनिया की वजह से हो चुकी है।

Deaths of Children Under- 5 due to Pneumonia

Source: Ministry of Health and Family Welfare

अक्टूबर 2019 तक सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुईं, जहां निमोनिया की वजह से पांच की उम्र के 957 बच्चों की मौत हो गई। सबसे ख़राब पांच राज्यों में मध्य प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं।

WORST 5 with highest number of under-5 pneumonia deaths in 2019 (till October)

Source: Ministry of Health and Family Welfare

देश भर में निमोनिया से होने वाली मौतों के आंकड़ों में 2013-14 में आई बढ़त सबसे ज़्यादा मध्य प्रदेश में दिखाई देती है। यहां 2013-14 में 551 बच्चों की मौत हुई जो 2009-10 के बाद से सबसे कम था पर 2018-19 में यह आंकड़ा 1,977 पर पहुंच गया।

Deaths of Children Under- 5 due to Pneumonia in Madhya Pradesh

Source: Ministry of Health and Family Welfare

“आंकड़ों में इस बढ़त के दो कारण हो सकते हैं। पहला यह कि समय के साथ तकनीक में सुधार आया है और अब ज़्यादा मौतें दर्ज की जा रही हैं, हो सकता है कि यह मौतें पहले भी हो रही थीं पर इनकी गिनती नहीं थी,” पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़, के कम्युनिटी मेडिसिन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ की प्रोफ़ेसर डॉ. मधु गुप्ता ने इंडियास्पेंड को बताया।

“देश में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है और सभी जानते हैं कि हम कैसी हवा में सांस ले रहे हैं। वायु प्रदूषण निमोनिया का एक बड़ा और महत्वपूर्ण कारण है, और वायु का ख़राब होता स्तर निमोनिया के बढ़ते मामलों का कारण हो सकता है,” डॉ. मधु गुप्ता ने कहा, उन्होंने बताया कि घरों के अंदर भी वायु प्रदूषण का स्तर लगातार ख़राब हो रहा है।

निमोनिया की रोकथाम

निमोनिया को रोकने के लिए सरकार ने दो मुख्य क़दम उठाए हैं--टीकाकरण और सांस अभियान।

नवंबर 2019 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत निमोनिया से होनी वाली बच्चों की मौतों को रोकने के लिए सांस अभियान की शुरुआत की। सांस यानी सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रीलाइज़ निमोनिया सक्सेसफ़ुली ।

सरकार के मुताबिक़ इस अभियान के तहत निमोनिया से सुरक्षा और सोच में बदलाव लाने के लिए टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया, पोस्टर, बैनर, और स्वास्थ्य कर्मियों के ज़रिये समाज, माता-पिता और परिवारों तक जानकारी फैलाई जाएगी। अभियान के तीन मुख्य बिंदु हैं--बच्चों में निमोनिया के इलाज और प्रबंधन के दिशानिर्देश; स्वास्थ्य कर्मियों को कौशल विकास और निमोनिया पहचानने और निर्धारित प्रबंधन की ट्रेनिंग; और जागरूकता अभियान।

इस अभियान की शुरुआत इसी साल 16 नवंबर को हुई और यह मुहिम अभी अपने शुरूआती स्तर पर है, इसलिए इसकी सफ़लता के आंकड़े मौजूद नहीं हैं।

दूसरा अहम क़दम है निमोनिया को रोकने के लिए टीकाकरण, जिसमें मीज़ल्ज़ यानी खसरा, एचआइबी या हिमोफ़िलस इनफलुएंज़ा (बी) और पीसीवी यानी नियूमोकोकल कोन्जुगेट वैकसीन शामिल हैं।

NFHS-4 के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार भारत के 12 से 23 महीने की उम्र के 38% बच्चों का पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ है। पूर्ण टीकाकरण यानी BCG और मीज़ल्ज़ का टीका और पोलियो और DPT के टीके की तीन ख़ुराक। 12 से 23 महीने की उम्र के 19% बच्चों को मीज़ल्ज़ का टीका नहीं लगा है। नियूमोकोकल कॉंजुगेट वैकसीन 2017 में ही शुरू हुई है। आइवीएसी के 2019 निमोनिया और डायरिया रिपोर्ट कार्ड के अनुसार एचआइबी-3 के टीके का कवरेज 89% है और पीसीवी-3 का कवरेज 6% है, जबकि लक्ष्य 90% का है।

इसी रिपोर्ट का कहना है कि भारत में 2017 में नियूमोकोकल कॉंजुगेट वैकसीन आने के बाद से काफ़ी सुधार आया है। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत का निमोनिया से लड़ने के लिए लक्ष्य 84% था और भारत अभी 67% पर है।

डॉ. मधु ने बताया, “पीसीवी के इस्तेमाल को अभी कुछ ही समय हुआ है। निमोनिया की रोकथाम में इसका कितना फ़ायदा हुआ है या इसका कितना असर पड़ा है, यह कह पाना अभी बहुत जल्दी है।”

सरकार का कहना है कि आने वाले समय में देश के सभी बच्चों तक यह टीके पहुंचा कर निमोनिया जैसी बीमारी से लड़ा जा सकता है। इंडियास्पेंड की नवंबर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक़ आने वाले समय में भारत में टीकाकरण पर होने वाला ख़र्च तेज़ी से बढ़ने वाला है। अभी तक देश में हो रहे टीकाकरण का ख़र्च सरकार ने अकेले नहीं उठाया है। इसमें कई सारे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का आर्थिक योगदान रहा है। यह योगदान कम या ख़त्म होने पर टीकाकरण भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

डॉ. मधु ने बताया कि पीसीवी महंगा टीका है, इसके लिए पैसे की कमी रही है और यह सभी तक नहीं पहुंच पाया है। उन्होंने कहा, “पीसीवी का कवरेज काफ़ी कम है, यह महंगा टीका है और सरकार फ़िलहाल सिर्फ़ 6 राज्यों में ही इसे उपलब्ध करा रही है। हालांकि महंगी क़ीमत पर यह देशभर में उपलब्ध है। देशभर के बच्चों तक यह टीका पहुंचना ज़रूरी है लेकिन इसके लिए भारी बजट चाहिए। इसके बल्क प्रोडक्शन की भी ज़रूरत है, पर राज्य सरकारें इतना बड़ा ख़र्च उठाने में आनाकानी कर रही हैं।”

(साधिका, इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट हैं।)

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