पटना: दिल्ली में एक फ़ैक्टरी में काम करने वाले मोहम्मद जब्बार (बदला हुआ नाम) 3 जून को अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ दरभंगा के सिंघवारा प्रखंड के अपने गांव रामपुरा पहुंचे। गांव पहुंच कर वह सीधे स्कूल में बने क्वारंटीन केंद्र में गए, तो उन्हें बताया गया कि क्वारंटीन केंद्र अब बंद हो चुका है। वह लौट कर रामपुरा में अपने चाचा के घर गए और 5 जून को अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर अपने गांव से करीब 8 किलोमीटर दूर शिवदासपुर में अपनी ससुराल चले गए। उसी शाम ससुराल में उनकी मौत हो गई।

“शिवदासपुर में जो क्वारंटीन केंद्र था, वह भी पहले ही बंद हो चुका था। मो. जब्बार की मौत के बाद 28 घंटे तक उसका शव पड़ा रहा। उसके बाद डॉक्टरों की टीम आई और उसका सैंपल लिया। सैंपल लेने के बाद हमें एक वीडियो दिखा कर बताया गया कि शव का अंतिम संस्कार कैसे करना है। हम लोगों ने मास्क और दस्ताने पहनकर शव को दफ़नाया। अगले दिन डॉक्टरों ने बताया कि वह कोरोनावायरस से संक्रमित थे,” शिवदासपुर के स्थानीय निवासी मो. जमील ख़ान ने इंडियास्पेंड को बताया। जमील, जब्बार की मृत्यु के बाद सैंपल लेने के लिए डॉक्टरों को बुलाने से लेकर उनके अंतिम संस्कार तक में शामिल थे।

जब्बार में कोरोनावायरस के संक्रमण की पुष्टि के बाद दो दर्जन और लोगों के सैंपल लिए गए। “सभी सैंपल के नतीजे निगेटिव आए हैं”, दरभंगा के सिविल सर्जन संजीव कुमार सिन्हा ने इंडियास्पेंड को बताया। दरभंगा में कोरोनावायरस से मौत का यह पहला मामला था।

बिहार में प्रवासी कामगारों के आने का सिलसिला अभी भी जारी है, लेकिन प्रवासियों के लिए बनाए गए क्वारंटीन केंद्र बंद हो चुके हैं। अनलॉक-1 के बाद एक जून से ही इन केंद्रों में प्रवासियों का रजिस्ट्रेशन बंद कर दिया गया था और 15 जून से राज्य के सभी क्वारंटीन केंद्रों को बंद कर दिया गया। 2 जून को बिहार के 534 प्रखंडों में 11,167 क्वारंटीन केंद्र चल रहे थे, जो 9 जून को घटकर 4,106 रह गए। 14 जून आते-आते राज्य में सिर्फ़ 288 क्वारंटीन केंद्र ही काम कर रहे थे, जिनमें 4,986 लोग रह रहे थे, राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के 14 जून तक के आंकड़ों के अनुसार। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक, इसके बाद के आंकड़े विभाग ने जारी नहीं किए थे।

यह तब हो रहा है जबकि बिहार में संक्रमण के मामले और उससे होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।बीती 6 जुलाई तक बिहार में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीज़ों की संख्या 12,140 पर पहुंच गई और अब तक इससे 97 लोगों की मौत हो चुकी है।

इन केंद्रों को बंद करने के पीछे सरकार की दलील है कि होम क्वारंटीन ही सबसे बेहतर उपाय है जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे से घर में अगर 4 या 5 सदस्यों रहते हैं और एक ही शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो होम क्वारंटीन प्रभावी नहीं हो सकता। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग ने कहा था कि क्वारंटीन केंद्र बंद होने के बाद डोर-टू-डोर मॉनीटरिंग की जाएगी मगर जब इंडियास्पेंड 4 ज़िलों के सिविल सर्जन और कईं गांवों के मुखिया से इस बारे में बात की तो उन्होंने ऐसे किसी भी सरकारी आदेश से इंकार कर किया। यहां तक कि जो लोग अब किसी दूसरे राज्य से बिहार आ रहे हैं उनका कोई रिकॉर्ड भी नहीं रखा जा रहा है।

अनलॉक-1 के बाद बंद किए क्वारंटीन केंद्र

बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने 31 मई को सभी ज़िलाधिकारियों को पत्र लिख कर कहा था कि 1 जून के बाद आने वाले किसी भी प्रवासी मज़दूर का क्वारंटीन केंद्र में पंजीकरण नहीं होगा और सभी क्वारंटीन केंद्रों को हर हाल में 15 जून तक ही संचालित किया जाएगा।

आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ़ से 31 मई को सभी ज़िलाधिकारियों को पत्र भेजकर 15 जून तक सभी क्वारंंटीन केंद्रों को बंद करने का आदेश दिया गया था।

“सभी राज्यों को 1 जून 2020 तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के माध्यम से बचे हुए प्रवासी मज़दूरों को भेजने का अनुरोध पत्र भेजा गया है। अतः 1 जून अथवा उसके बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले श्रेणी ‘क’ के यात्रियों को प्रखंड क्वारंटीन केंद्र में रखा जाएगा, किंतु किसी भी हालत में यह कैंप 15 जून तक ही कार्यरत रहेंगे”, आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत की तरफ़ से लिए गए पत्र में कहा गया।

“चूंकि 1 जून से सामान्य रूप से रेलगाड़ियों का परिचालन एवं सार्वजनिक परिवहन प्रारंभ रहेगा, अतः श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आ रहे यात्रियों के अलावा किसी अन्य साधन से आ रहे लोगों का प्रखंड स्तरीय पंजीकरण 1 जून के बाद नहीं होगा,” पत्र में आगे लिखा गया।

इस आदेश के बाद एक-एक कर क्वारंटीन केंद्र बंद होने लगे।

सरकार की दलील

हालांकि आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से जारी पत्र में क्वारंटीन केंद्र बंद करने के पीछे सामान्य परिवहन शुरू होने को वजह बताई गई है। लेकिन, बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इसके पीछे कुछ और भी वज़ह बताई है।

“विदेशी विशेषज्ञों ने यह राय दी है कि होम क्वारंटीन ही बेस्ट क्वारंटीन है। इसके बावजूद हमने क्वारंटीन केंद्र चलाए”, इंडियन एक्सप्रेस की 2 जून की एक रिपोर्ट में सुशील कुमार मोदी ने कहा।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), बिहार के राज्य सचिव डॉ सुनील कुमार, सुशील कुमार मोदी की इस दलील से सहमत नज़र नहीं आते। "होम क्वारंटीन उन्हीं लोगों के लिए बेस्ट क्वारंटीन है, जो पढ़े-लिखे हैं और जिनके पास कई कमरों का मकान है। अगर 5 या 6 सदस्यों का परिवार एक ही मकान में रहता है और एक ही शौचालय है, तो उस परिवार के लिए होम क्वारंटीन बेस्ट क्वारंटीन कैसे हो सकता है?" डाॅ. सुनील कुमार ने इंडियास्पेंड से कहा।

इंडियन एक्सप्रेस की इसी रिपोर्ट में प्रत्यय अमृत ने कहा, “हमलोग प्रवासी श्रमिकों का पंजीयन सोमवार (1 जून) से बंद कर रहे हैं क्योंकि ज़्यादातर प्रवासी मज़दूर बिहार लौट आए हैं।”

आपदा प्रबंधन विभाग के विभिन्न क्वारंटीन केंद्रों में ठहरे प्रवासियों के पंजीयन के रिकॉर्ड के मुताबिक, 14 जून तक 15,33,392 प्रवासी मज़दूर लौटे हैं। 14 जून के बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने इस आंकड़े को अपडेट नहीं किया है। यह आंकड़े 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का परिचालन शुरू होने के बाद आए श्रमिकों के हैं।

बाहर से आने वालों का कोई रिकॉर्ड नहीं

ऊपर इंडियन एक्सप्रेस की जिस रिपोर्ट का ज़िक्र किया गया था उसी में प्रत्यय अमृत ने यह भी कहा था कि 1 जून के बाद बाहर से आने वाले लोगों पर डोर-टू-डोर मॉनीटरिंग के ज़रिए नज़र रखी जाएगी। लेकिन 1 जून के बाद से बिहार लौट रहे लोगों का कोई रिकॉर्ड मेंटेन नहीं हो रहा है। इस बारे में किसी भी तरह का कोई आधिकारिक निर्देश न तो सिविल सर्जनों को मिला है और न ही पंचायतों के मुखिया को।

इंडियास्पेंड ने दरभंगा, वैशाली, शिवहर और पटना ज़िलों के सिविल सर्जनों और कईं गावों के मुखिया से बात की। इस बातचीत में उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि अभी आ रहे प्रवासी मज़दूरों के रजिस्ट्रेशन का उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला है, लेकिन यह ज़रूर कहा कि प्रवासी मज़दूरों का दूसरे राज्यों से आना बदस्तूर जारी है।

“सरकार से हमें कोई निर्देश नहीं मिला है कि बाहर से आने वाले श्रमिकों का रिकॉर्ड रखना है। बल्कि किसी भी तरह का कोई निर्देश नहीं मिला है। अगर मुझे ख़बर मिलती है कि कोई बाहर से आया है, तो स्वविवेक पर मैं उन्हें कहता हूं कि वह 14 दिनों तक घर में ही रहें”, शिवहर ज़िले के तरियानी ब्लॉक की खुरपट्टी पंचायत के मुखिया जितेंद्र सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया।

“क्वारंटीन केंद्र बंद होने के बाद गांव में 200 से ज्यादा लोग आ चुके हैं। लेकिन, किसी ने भी उनसे नहीं पूछा कि उन्हें कोई लक्षण तो नहीं है या वह होम क्वारंटीन में रह रहे हैं या नहीं,” जितेंद्र सिंह ने बताया।

दरभंगा के सिंघवारा ब्लॉक की अस्थुआ पंचायत के मुखिया लाल बाबू यादव भी केदारनाथ सिंह की तरह ही किसी भी तरह का कोई निर्देश नहीं मिलने की बात कहते हैं। “आशा वर्करों को कोई निर्देश मिला होगा, तो मिला होगा, हम लोगों को कोई निर्देश नहीं मिला है। पिछले दिनों बीडीओ-सीओ के साथ बैठक भी हुई थी, लेकिन इस बैठक में प्रवासी मज़दूरों को लेकर हमें कोई निर्देश नहीं दिया गया,” लाल बाबू ने इडियास्पेंड से कहा। उनकी पंचायत में 15 जून के बाद से अब तक 100 से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर आ चुके हैं।

क्वारंटीन केंद्र बंद होने के बाद संक्रमितों और मौत के आंकड़े बढ़े

बिहार स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों को देखें, तो पता चलता है कि क्वारंटीन केंद्र बंद हो जाने के बाद कोरानावायरस से संक्रमित मरीज़ों और इससे मरने वालों की संख्या में इज़ाफा हुआ है।

22 मार्च को बिहार में कोरोनावायरस से संक्रमित पहला मरीज़ सामने आया था। तब से लेकर 31 मई तक बिहार में कोरोनावायरस के मरीज़ों की संख्या 3,969 थी और 23 लोगों की मौत हुई थी। इसी दिन बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने क्वारंटीन केंद्रों को बंद करने का आदेश जारी किया था और एक जून से बिहार लौटने वाले प्रवासी मज़दूरों का पंजीयन बंद किया था।

तब (1 जून) से 6 जुलाई तक 8,171 कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ मिले हैं जो पिछले ढाई महीने (22 मार्च से 31 मई तक) में दर्ज मामलों की तुलना में दोगुने से भी ज़्यादा हैं। इसी तरह कोरोनावायरस की वजह से हुई मौतों का आंकड़ा देखें, तो 22 मार्च से 31 मई तक 23 लोगों की मौत हुई थी, जो 6 जुलाई तक बढ़कर 97 हो गई। यानी एक महीने 6 दिन में 74 लोगों की मौत कोरोनावायरस से हो चुकी है।

कोरोनावायरस से मरने के कुछ मामलों की तफ़्तीश से पता चलता है कि अगर क्वारंटीन केंद्र संचालित हो रहे होते, तो कम से कम संक्रमण पर थोड़ी लगाम लग सकती थी।

“अगर रामपुरा में क्वारंटीन केंद्र चल रहा होता और उन्हें 14 दिनों के लिए वहां रखा जाता, तो शायद जब्बार के अंदर कोरोनावायरस के संक्रमण की शिनाख़्त पहले ही हो जाती और शायद उसकी जान बच जाती”, मो. जमील ख़ान ने कहा।

जब्बार जैसा ही एक और मामला पिछले दिनों पटना में भी सामने आया था। पटना ज़िले के पालीगंज ब्लॉक के निरखपुर पाली गांव में 23 मई को गुड़गांव से एक व्यक्ति निजी वाहन किराए पर लेकर आया था। उसने यहां न तो जांच कराई और न क्वारंटीन केंद्र में गया, बल्कि वह होम क्वारंटीन हो गया। 15 जून को उसकी शादी हुई, जिसमें दर्जनों लोग शामिल हुए। लेकिन शादी के दो दिन बाद ही उसकी मौत हो गई और उसके परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। बाद में गांव के ही कुछ लोगों ने जब प्रशासन को जानकारी दी तो शादी में शामिल हुए लोगों में से 145 के सैंपल लिए गए।

ये तस्वीर कैमूर ज़िले के कर्मनाशा बाॅर्डर की तब की है, जब बिहार सीमा पर बाॅर्डर डिज़ास्टर्स रिलीफ़ केंद्र स्थापित थे। उन केंद्रों पर बिहार आने वाली गाड़ियों को रोक कर यात्रियों की स्क्रीनिंग होती थी और लोगों को उनके गृह ज़िले के क्वारंटीन केंद्रों में भेजा जाता था। ये केंद्र भी अब बंद हो चुके हैं। फ़ोटो: उमेश कुमार राय

इनमें से 36 लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला है। वह सभी शादी में शामिल हुए थे,” स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अधिकारी डॉ. रामानुज ने बताया।

“दूल्हे का सैंपल नहीं लिया गया था। लेकिन, उसकी मृत्यु के बाद उसके संपर्क में आए लोगों का सैंपल लेकर जांच कराई गई और उनमें से कई लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला। इसी आधार पर हमने अंदाज़ा लगाया कि दूल्हा कोरोनावायरस से संक्रमित रहा होगा,” पालीगंज के बीडीओ चिरंजीव पांडेय ने इंडियास्पेंड को बताया।

अभी क्या है जांच का नियम

बिहार में जब क्वारंटीन केंद्र चल रहे थे, तो बाहर से आने वाले लोगों को यहीं रख जाता था। अगर बिहार लौटने वाले कामगार दूसरे राज्यों के रेड ज़ोन से लौटते थे, तो प्राथमिकता के आधार पर उनका टेस्ट किया जाता था।

लेकिन, अब जब क्वारंटीन केंद्र हैं ही नहीं और सरकार ने बाहर से आने वाले लोगों का रजिस्ट्रेशन बंद कर दिया है, तो सरकार को भी नहीं पता चल पा रहा है कि कौन रेड ज़ोन से आ रहा और कौन ग्रीन ज़ोन से।

राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 22 जून को स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया था कि अत्यधिक संक्रमित क्षेत्रों से बिहार लौटने वाले लोगों की शिनाख़्त कर उनकी समुचित स्क्रीनिंग की जाए।

“अत्यधिक संक्रमित क्षेत्रों से आने वाले लोगों की शिनाख़्त कर उस क्षेत्र में विशेष स्क्रीनिंग अभियान चलाया जाए और योजनाबद्ध तरीके से अधिक से अधिक टेस्टिंग की जाए ताकि संक्रमण की चेन तोड़ी जा सके,” मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था।

लेकिन, इसे लेकर न तो कोई स्पष्ट नियम तय किया गया है और न ही निचले स्तर पर कोई आदेश दिया गया है। “हमलोगों को कुछ भी नहीं कहा गया है, किसी तरह की निर्देशिका नहीं मिली है। अभी तो बाहर से कौन गांव में आ रहा है, यह भी पता नहीं चल पा रहा है क्योंकि लोग बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से सीधे अपने घर चले जाते हैं,” दरभंगा ज़िले के जाले ब्लॉक की रेउरहा पंचायत के मुखिया मिथिलेश प्रसाद ने इंडियास्पेंड को बताया।

हालांकि, 27 जून को आशा वर्करों को डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के लिए नया फ़ॉर्मेट दिया गया है, लेकिन इसमें बाहर से आने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाने का कोई ज़िक्र नहीं है। रोहतास की एक आशा (एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) फ़ेसिलिटेटर कुसुम देवी, जो आशा के सर्वे की देखरेख करती हैं, ने इंडियास्पेंड को बताया कि नए सर्वे के लिए जो फ़ॉर्मेट उपलब्ध कराया गया है, उसमें बाहर से लौटे लोगों की जानकारी लेने का कोई प्रावधान नहीं है।

“जो फ़ॉर्मेट मिला है, उसमें हर घर के मुखिया का नाम लिखना है। उनके परिवार में कितने सदस्य हैं, उनकी उम्र क्या है, वृद्धों में क्या बीमारियां पहले से हैं आदि जानकारी जुटानी हैं। बाहर से लौट रहे प्रवासियों को लेकर कोई सवाल नहीं है। इससे पहले आशा ने दो बार और सर्वे किया था। एक 7 दिन का था और दूसरा 5 दिन का। इन दोनों सर्वे में प्रवासियों के बारे में जानकारी हासिल करना शामिल था। ये सर्वे मई में ही खत्म हो गए थे,” कुसुम देवी ने बताया।

वैशाली के सिविल सर्जन डॉ इंद्रदेव रंजन का कहना है कि जब क्वारंटीन कैंद्र थे, तो वायरस क्वारंटीन सेंटरों तक ही पहुंचता था, लेकिन अब घरों तक पहुंच गया है।

ज़िला स्तरीय अधिकारियों के मुताबिक, अभी कोरोनावायरस की जांच के लिए सैंपल संग्रह के दो आधार हैं। “पहला आधार है कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग। इसके तहत अगर किसी क्षेत्र में कोई कोविड-19 पॉज़िटिव मरीज़ मिलता है, तो उसके संपर्क में आए लोगों की शिनाख़्त की जाती है और उनके सैंपल लिए जाते हैं। दूसरा आधार है कन्टेनमेंट ज़ोन। इसमें किसी इलाके में कोरोनावायरस पॉज़िटिव मरीज़ मिलता है, तो उसके आवास के 3 किलोमीटर के दायरे को कन्टेनमेंट ज़ोन बना दिया जाता है। इस कन्टेनमेंट ज़ोन के लोगों का सैंपल हम लोग जांच के लिए भेजते हैं। अभी रोज़ाना जिन सैंपलों की जांच हो रही है, वह इन्हीं दो आधार पर लिए जा रहे हैं,” वैशाली ज़िले के सिविल सर्जन डॉ इंद्रदेव रंजन ने इंडियास्पेंड को बताया।

इंद्रदेव क्वारंटीन केंद्रों को बंद करने के फैसले पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं। “क्वारंटीन केंद्र जब थे, तो कोरोनावायरस इन केंद्रों तक ही पहुंचता था, लेकिन क्वारंटीन केंद्र बंद होने से अब वायरस घरों तक पहुंच गया है,” डॉ. इंद्रदेव ने कहा।

“अभी बाहर से आने वालों पर किसी तरह की प्रशासनिक निगरानी नहीं रखी जा रही है। वे सीधे घर जा रहे हैं। घर पर कैसे रह रहे हैं, यह कोई नहीं जानता। अगर बाहर से आने वाले किसी व्यक्ति को महसूस होता है कि उसमें कोरोनावायरस का संक्रमण हो सकता है, तो वह मुखिया या प्रखंड स्तरीय चिकित्सा अधिकारियों से संपर्क कर इसकी जानकारी दे सकता है। लेकिन, यह सब उस व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है। अगर उसे लगेगा कि जांच नहीं करवानी चाहिए, तो प्रशासन उसके पास पहुंच ही नहीं सकता है। कुल मिलाकर अब मरीज़ो पर ही है कि उन्हें जांच करवानी है या नहीं,” पटना के सिविल सर्जन डॉ राजकिशोर चौधरी ने इंडियास्पेंड से कहा।

इस संबंध में बिहार सरकार की प्रतिक्रिया के लिए एपिडेमियोलॉजिस्ट और बिहार में कोविड-19 की नोडल अफ़सर डॉ रागिनी मिश्रा को कई बार कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। डॉ मिश्रा और बिहार के स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक मेल पर हमने सवाल भेजे हैं। उनके जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा।

(उमेश, पटना में स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)

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