bihar_620

बिहार के छपरा जिले के ब्राहिमपुर गांव में एक प्राथमिक स्कूल की कक्षा में पढ़ते बच्चे। हमारे विश्लेषण के अनुसार, राज्य में प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 8) के लिए आवश्यक शिक्षकों में से 37.3 फीसदी शिक्षक हैं। इस राज्य में 278,602 शिक्षकों की कमी है।

किसी भी अन्य राज्य की तुलना में बिहार में ज्यादा लोग निरक्षर हैं। हालांकि, वर्ष 2011 तक पिछले दशक में, साक्षरता में 14.8 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है लेकिन बिहार की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली अब भी संकट में है। यहां की कक्षाओं में सबसे ज्यादा भीड़ होती है और स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। बावजूद इसके भारत का छठा सबसे गरीब यह राज्य प्रति छात्र सबसे कम पैसे खर्च करता है। यह जानकारी विभिन्न सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के मापदंड के आधार पर हमारे द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार बिहार के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 1 से 8) में आवश्यक शिक्षकों की तुलना में 37.3 फीसदी कम शिक्षक हैं। साथ ही राज्य में 278,602 शिक्षकों की कमी है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के मापदंड छात्र शिक्षक-अनुपात (पीटीआर) यानी प्रति शिक्षक विद्यार्थियों की संख्या का अनुबंध करता है। इसके अनुसार, प्राथमिक स्कूलों (कक्षा 1 से 5) में 30:1 और उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 6 से 8) में 35: 1 का अनुपात होना चाहिए।

देश भर के सरकारी स्कूलों में साठ लाख शिक्षण पदों में से करीब 900000 प्राथमिक विद्यालय के शिक्षण पद और 100,000 माध्यमिक स्कूल के शिक्षण पद (दोनों मिलाकर 1 मिलियन) रिक्त हैं, जैसा कि लोकसभा में दिए गए जवाब के आधार पर इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 की रिपोर्ट में बताया है। इनमें से करीब 200,000 रिक्तियां बिहार में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में हैं।

जैसा कि इस लेख श्रृंखला के पहले भाग में हमने बताया है कि साक्षरता दर और सीखने के परिणाम बीमारू (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) राज्यों में सबसे कम हैं। वर्ष 2020 तक विश्व भर में भारत की कामकाजी आबादी सबसे ज्यादा होगी, करीब 86.9 करोड़,लेकिन चार राज्यों में साक्षरता, स्कूल में नामांकन, सीखने के परिणामों, और शिक्षा के खर्च के संकेतक पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि युवा आबादी को शिक्षत और प्रशिक्षित करने के लिए भारत तैयार नहीं है। हम बता दें कि इन चार राज्यों में 5 से 14 की उम्र के बीच यानी स्कूल जाने की उम्र की आबादी 43.6 फीसदी है।

9.9 करोड़ की आबादी के साथ बिहार भारत का तीसरा सर्वाधिक आबादी वाला राज्य है । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी साक्षरता दर (61.8 फीसदी) देश के सबसे कम है और महिला साक्षरता दर (51.5 फीसदी) भी कम है। अन्य राज्यों की तुलना में दूसरे नंबर पर। बिहार में औसत उम्र 20 वर्ष है जो कि सबसे कम है। भारत में औसत उम्र 26.6 वर्ष है।

शिक्षा पर वार्षिक स्थिति रिपोर्ट – समय के साथ रुझान रिपोर्ट (2006-14) के अनुसार, पिछले पांच पांच वर्षों में बिहार के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने के स्तर में गिरावट आई है, जबकि निजी स्कूलों में सुधार हुआ है। यह निश्चित रुप से उत्साहवर्धक संकेत नहीं हैं, क्योंकि बिहार में 90 फीसदी स्कूल सरकार द्वारा चलाए जाते हैं।

साक्षरता में वृद्धि के बावजूद 62 फीसदी प्राथमिक छात्र नहीं करते हैं माध्यमिक शिक्षा पूरी

वर्ष 2015 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय शिक्षा प्रोफ़ाइल के अनुसार, 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बिहार से करीब 5 फीसदी बच्चों का स्कूल से बाहर होने का अनुमान है। जो स्कूल से बाहर हैं, उनमें से 55 फीसदी बच्चों का नामंकन कभी नहीं हुआ है, जबकि 25 फीसदी बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है।

एकीकृत-जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-15 में बिहार में प्राथमिक स्कूलों से मुश्किल से 85 फीसदी बच्चे उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गए । यह नागालैंड और उत्तर प्रदेश के बाद भारत में तीसरा सबसे कम अनुपात है।

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, कक्षा 1 में नामांकन कराए गए छात्रों में 38 फीसदी से ज्यादा ने माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 10) पूरी नहीं की।

छात्र परिणामों में सुधार करना है मुश्किल- क्योंकि पर्याप्त कक्षाएं और शिक्षक नहीं

शिक्षा आंकड़ों के अनुसार बिहार ने केंद्र सरकार को, 5 से 14 वर्ष के आयु के बीच 28 फीसदी (करीब 2.89 करोड़) की आबादी के साथ बिहार ने वर्ष 2015-16 में प्राथमिक विद्यालयों में 2.34 करोड़ छात्रों 467,877 शिक्षकों की सूचना दी है। इन आंकड़ों में उन स्कूलों को भी शामिल किया गया है, जहां प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर सह-अस्तित्व में हैं, और अस्थायी अनुबंध पर भी शिक्षक काम करते हैं।

प्राथमिक स्कूल ( कक्षा 1 से 5) में हर 30 छात्रों के लिए 1 शिक्षक और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6 से 8) में हर 35 छात्रों के लिए 1 शिक्षक की पीटीआर मानदंड के अनुसार बिहार के प्राथमिक विद्यालय में 746,479 शिक्षक होने चाहिए। ज्यादातर शिक्षकों की कमी प्राथमिक स्कूलों में है, जहां हर 36 छात्र पर एक शिक्षक है। यू-डीआईएसई फ्लैश सांख्यिकी 2015-16 के अनुसार, यह भारत में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे कम हैं। प्राथमिक स्कूल में भारतीय औसत पीटीआर 23 है।

बिहार में, उच्च प्राथमिक में 24 का शिक्षक छात्र अनुपात है, जो कि भारत के कुल 17 के अनुपात से ज्यादा है लेकिन 35 के निर्धारित दिशानिर्देश से कम है।

बिहार का शिक्षा संकेतक
Indicator
Bihar
India
Literacy Rate (2011)61.8%74.0%
Pupil Teacher Ratio at Primary Level (2015-16)3623
Pupil Teacher Ratio at Upper Primary Level (2015-16)2417
Student Classroom Ratio at Elementary Level (2015-16)5127

Source: Census 2011, Unified-District Information System For Education

हालांकि, राज्य में शिक्षकों की कमी में गिरावट हुई है। वर्ष 2003 में 39 फीसदी से गिरकर वर्ष 2010 में 28 फीसदी हुआ है, जैसा कि 2014 की इस अध्ययन में बताया गया है। लेकिन यह अब भी 24 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

यू-डीआईएसई (2015-16) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बिहार की प्रति प्राथमिक स्कूल (कक्षा 1 से 7) कक्षा पर छात्रों की संख्या भी बद्तर है। हालांकि, यह अनुपात वर्ष 2012-13 में 65 से गिरकर 2015-16 में 51 हुआ है लेकिन अब भी 27 के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बना हुआ है।

प्रारंभिक शिक्षा पर बिहार में प्रति छात्र व्यय सबसे कम

भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु के बीच की दूसरी सबसे अधिक आबादी बिहार की है। पहला राज्य उत्तर प्रदेश है। लेकिन अब भी सरकार प्रति छात्र पर कम खर्च करती है।

इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में छपी एक टिप्पणी के अनुसार, वर्ष 2014-15 में भारत में प्रारंभिक शिक्षा पर प्रति छात्र व्यय सबसे कम बिहार में दर्ज की गई है, करीब 5298 रुपए। वर्ष 2014-15 में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य हिमाचल प्रदेश रहा है। हिमाचल प्रदेश में प्रति छात्र 39,343 रुपए या करीब साढे सात गुना ज्यादा खर्च हुआ है। इस टिप्पणी के लिए 18 राज्यों में सर्वेक्षण कराए गए थे।

प्राथमिक शिक्षा पर बिहार का व्यय

Source: Economic Survey, 2015-16, Government of Bihar

बिहार ने कॉनट्रैक्ट शिक्षकों को नियुक्त कर छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार किया है । इन शिक्षकों को पारा शिक्षक कहा जाता है । इन शिक्षकों का वेतन स्थायी शिक्षकों की तुलना में कम होता है।

दिल्ली स्थित एक विचार मंच ‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव’ द्वारा 2013 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार नालंदा और पूर्णिया जिलों में पैरा शिक्षकों को प्रति माह 6,400-6,800 रुपए का भुगतान किया गया, जबकि नियमित शिक्षकों को 23,000-28,000 रुपए मिल रहे थे।

‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव’ द्वारा वर्ष 2014 के इस अध्ययन ‘हाऊ मच डज इंडिया स्पेंड पर स्टूडेंट ऑन एलिमेंट्री एजुकेशन’ के अनुसार महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और राजस्थान की तुलना में बिहार शिक्षक वेतन, प्रशिक्षण और जानकारी पर अपनी प्राथमिक शिक्षा बजट का कम अनुपात खर्च करता है। ‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव’ के अध्ययन के अनुसार, शिक्षकों पर प्राथमिक शिक्षा के बजट का कम हिस्सा खर्च करके बिहार स्कूल छोड़ चुके बच्चे को औपचारिक शिक्षा के जरिए मुख्य धारा में वापस लाने के लिए अन्य चीजों पर अधिक पैसे खर्च करता है। जैसे दोपहर का भोजन और बच्चों को आकर्षित करने के लिए किताबें और युनिफॉर्म के रुप में प्रोत्साहन।

प्राथमिक शिक्षा का बजट कैसे खर्च करते हैं राज्य

Source: Accountability Initiative; *Others includes expenditure on quality, midday meal scheme, management, etc. Expenditure on teacher includes salaries, training and teaching inputs

फिर भी, नए स्कूलों और कक्षाओं पर खर्च यानी पूंजीगत व्यय हर साल कम और घटता-बढ़ता रहता है। वर्ष 2015-2016 में, बिहार ने स्कूल के बुनियादी ढांचे पर अपने कुल शिक्षा बजट का 5.75 फीसदी आवंटित किया है। यह ऐसे राज्य के लिए अपर्याप्त है, जहां एक कक्षा में 51 छात्रों का औसत है।

इंडिया स्पेंड की ओर से पांच भागों वाली श्रृंखला का यह दूसरा लेख है। इस श्रृंखला में हम बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति पर चर्चा कर रहे हैं। तीसरे भाग में उत्तर प्रदेश में शिक्षा की स्थिति पर नजर डालेंगे।

(बलानी स्वतंत्र लेखक हैं और मुंबई में रहती हैं। बलानी की दिलचस्पी विकास के विभिन्न मुद्दों में है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 4 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :