अप्रैल 2013 में हिमालय के पहाड़ी शहर नैनीताल से मुंबई आने से पहले, मुझे अपने कार्यस्थल तक एक 30 मिनट का छोटा सा सर्द और आकर्षक पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना होता था। तो जब यहां मैं 10 किमी दूर कार्यस्थल तक जाने के लिए के लिए मुंबई की लोकल ट्रेन द्वारा 20 मिनट की यात्रा पर सोच विचार कर रही थी तो मेरे दोस्तों और परिवार ने मुझे "लोकल " पर नहीं चढ़ने की प्यारभरी सलाह दी ।

मेरे ख्याल से वे सिर्फ मेरे लिए चिंतित थे शायद उन्हें लग रहा था कि कहीं प्रतिदिन मुंबई की लोकल - जैसा इन्हे स्थानीय लोग पुकारते हैं - लेने वाले 85 लाख लोग मुझे कहीं कुचल न दें । मुझे लगा वे मेरी सुरक्षा के प्रति कुछ ज्यादा चिंतित थे। आखिर मैं लखनऊ में पली बढ़ी थी जो कि भारत की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य की राजधानी है, इसलिए मेरे लिए भीड़ कोई अजनबी चीज़ नही थी।

यह सही है कि , धरती पर सबसे अधिक सघन भीड़ वाली कुछ जगहों में से मुंबई की लोकल भी एक है, और मुझे जल्द ही समझ आ गया कि इस पर मौजूद संख्या की तुलना में मुझे लोकल की संस्कृति को समझने की जरूरत है।

वास्तव में ट्रेन लेने के लिए अलावा मेरे पास और कोई विकल्प भी नहीं था। मुझे काम पर आने जाने में एक द्वितीय श्रेणी के टिकट का खर्चा 10 रुपये आता था। अगर मैं एक टैक्सी लेती तो एक तरफ से मुझे 250 रुपए का खर्च होता और घंटों तक सड़कों पर लगे जाम का भी सामना करना पड़ता ।

मुंबई की लोकल दुनिया की सबसे सस्ती जन पारवहन विकल्पों में से एक है : 8 किमी तक के लिए यात्रा करने के लिए 5 रुपए, या 8 सेंट,। न्यूयॉर्क शहर में मेट्रो पर एक सवारी का खर्च $ 2.50 (यदि आप एक मासिक मेट्रो कार्ड खरीदते हैं) है ; जो 154 रूपये , या इसके मुकाबले 30 गुना है।

लोकल आपको ग्रेटर मुंबई के आर पर पहुँचा सकती है , जो कि 26 मिलीयन लोगों के साथ पांच जिलों मुंबई, उपनगरीय मुंबई , ठाणे, रायगढ़ और पालघर में फैला हुआ , एक शहरी समुदाय है।

दक्षिण मुंबई के दो टर्मिनस-, चर्चगेट और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, या सीएसटी (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) से विपरीत दिशाओं में बाहर निकलती हुई ट्रेनें एक पंजे की तरह फैले मुंबई के प्रायद्वीप पर दौड़ती रहती हैं । दो लाइनें , हार्बर शाखा और मध्य लाइन-जिसे पहले ग्रेट इंडियन प्रायद्वीपीय रेलवे (जीआईपीआर) भी कहा जाता था - पूर्व की और जाती हैं । भारतीय रेल फैन क्लब के अनुसार, जीआईपीआर की समय सारिणी में पहली "लोकल " 1865 में वर्णित है।

पश्चिमी पूर्वी लाइन-- जो पहले बड़ौदा, मुंबई और मध्य भारत रेलवे (बीबीसीआई )कहलाती थी , पश्चिम -की और जाती है । 147 साल पहले इसकी पहली परिवहन सेवा,हर दिन प्रत्येक दिशा में एक ट्रेन चला करती थी। पश्चिमी लाइन, चर्चगेट से दहानु रोड 124 किमी की दूरी तय करती है। सेंट्रल लाइन सीएसटी से कसारा तक 120 किमी तक जाती है , और हार्बर शाखा पनवेल में समाप्त होने से पहले 68 किमी तक जाती है। एक चौथी फीडर लाइन ठाणे-वाशी-पनवेल को जोड़ती है ।

बहुत हो चुका भूगोल और इतिहास। मैं एक विश्लेषक हूँ, इसलिए मुंबई की लोकल रेल प्रणाली का विश्व के अन्य बड़े शहरों की बड़े पैमाने वाली परिवहन प्रणाली के साथ के कुछ विश्लेषण करते हैं।

बड़े शहरों में लोकल ट्रेन सिस्टम्स

यह तुलनाएँ स्पष्ट करती हैं कि मुंबई की लोकल के पास क्षमता के संदर्भ में, दुनिया का सबसे कठिन काम है। यही कारण है की सबसे व्यस्त घंटों में इतनी सघन भीड़ होती है - और बढ़ती ही जा रही है , पहले से कहीं अधिक एक दिन में कई कई बार ऐसी ही हालत रहती है । सुबह में, भीड़ दक्षिण की ओर चर्चगेट और मुंबई सीएसटी की ओर अधिक होती है और शाम को उसकी विपरीत दिशा में होती है। यह वह पांच बातें है जो मैंने लोकल का उपयोग करते हुए सीखीं हैं ।

1) अपनी ट्रेन के बारे में जानें: मुंबई उपनगरीय रेलवे के में बेड़े में 201 रेक , तीन लाइनों और एक फीडर लाइन हैं । रेल नेटवर्क 319 किलोमीटर की दूरी तक बिछा है। गाड़ियोंयाँ उत्तर-दक्षिण की ओर चलने के लिए अच्छी हैं। लेकिन यदि आप प्रायद्वीप के आर पार या , पूर्व-पश्चिम की ओर यात्रा करना चाहते हैं तो वे उपयुक्त नही हैं । एक नई वातानुकूलित मेट्रो की पहली लाइन और आंशिक रूप से निर्मित मोनोरेल पूर्व-पश्चिम की तरफ चलती है लेकिन वह केवल शहर के केवल छोटे हिस्सों को ही कवर करती हैं । लोकल पर लगे संकेत बहुत व्यर्थ हैं और आपको हमेशा मदद के लिए यात्रियों से ही पूछना चाहिए। प्रथम श्रेणी में केवल मामूली सी ही भीड़ होती है और सीटों पर बेहतर गद्दे हैं , लेकिन ना केवल इसके टिकट आठ गुना महंगे हैं लेकिन यह कोच -कहाँ आ कर रूकेगीयह जानने का कोई नहीं है -आपको अपने आसपास खड़े दिग्गज से ही पूछना चाहिए । विकलांग और कैंसर रोगियों और यहां तक मछली बेचने वालों के लिए भी आरक्षित डिब्बों हैं -लेकिन जानने के लिए , फिर से,पूछिए ।

2) ट्रेन पर चढ़ना : एक ट्रेन हर स्टेशन पर 20 सेकंड के लिए ही रूकती है। व्यस्त घंटों के दौरान, दसियों लोग नीचे उतरते हैं और चढ़ते हैं । ट्रेन और प्लेटफार्म के बीच बड़ा अंतराल रहता है जो कभी भी आपस में मिलते नहीं हैं यह स्थिति बुज़ुर्ग लोगों, विकलांगों और लोकल से अनजान लोगों के लिए कठिन समस्या उतपन्न कर देती है । हर दिन, या तो रेल से गिर कर, या इस अंतराल में फिसल कर या फिर पटरियों को पार करते हुए 5 लोग इस रेल तंत्र में मर जाते हैं। व्यस्त घंटे के दौरान, इस भीड़ के बीच घुसना मैंने सीख लिया है। आमतौर पर, सामान्य शिष्टाचार की मांग है कि आप यदि किसी को धक्का दे कर निकलना चाहते है तो कम से कम एक्सक्यूज़ मी कहें , लेकिन इन किट घंटों के दौरान मुंबई की लोकल पर आपको हमेशा माफ कर दिया जाएगा। धक्का दिया जाना यदि आप चलती गाड़ी के साथ साथ दौड़ रहे हैं तो भीतर खींच लेना और ज़बरदस्ती घुसना लोकल की संस्कृति है।

3) एक सीट लेना : जिन यात्रियों को शहर के दूसरे कोने तक यात्रा करनी होती है , उनके लिए यह एक लम्बी दौड़ हो सकती है ; चर्चगेट से दहानु तक की 126 किलोमीटर की सबसे लंबी यात्रा में लगभग दो से ढाई घंटे लगते हैं , व्यस्त घंटों के दौरान कई ट्रेनें मुंबई का एक विशिष्ट अनुभव प्रदान करते हैं जिसे आधिकारिक भाषा में सुपर डेन्स क्रश लोड भी कहा जाता है, जिसके अनुसार एक कोच में 14 से 16 यात्री एक वर्ग मीटर की जगह में खड़े होते हैं । दिग्गजों के पास कुछ गुर हैं । कुछ यात्री सीटें हड़पने के लिए, किसी एक टर्मिनस तक, गंतव्य से विपरीत दिशा में यात्रा करते हैं ; कुछ अन्य दूसरे बैठे यात्रियों से उतरते समय उन्हें ही सीटें देने के लिए झ देते हैं । और मैं, मैं सुपर डेन्स क्रश लोड का हिस्सा बन जाती हूँ ।

4) बाहर निकलना: आप यदि अपने स्टॉप पर उतरना चाहते हैं तो यह ज़रूरी है कि आप पता कर लें की प्लेटफार्म किस तरफ आएगा । यह मैंने बहुत जल्दी ही सीख कि आपको उदघोषणा का इंतजार नही करना चाहिए। वह होती भी नहीं है। मैंने अन्य लोगों से संकेत लेना सीख लिया जो आने वाले प्लेटफार्म की दिशा में मुड़ जाते हैं और मैं उन्ही के पीछे कतार में लग जाती हूँ । मुझे नही पता कि उन्हें कैसे पता चल जाता है। वे बस ऐसा ही करते हैं। जब मैंने पहली बार अंधेरी -रेल तंत्र की पश्चिमी लाइन के सबसे व्यस्त स्टेशन - की ओर यात्रा की -तब वास्तव में मुझे उतरने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ा था । मैं चुपचाप उतरती भीड़ की कतार में खड़ी हो गई और उसी बहाव में बाहर तक आ गई ।

5) महिलाओँ के लिए विशेष : हर ट्रेन में महिलाओं के लिए उनकी सुरक्षा और आराम सुनिश्चित करने के लिए आरक्षित कारों की वयवस्था की गई है। पुरुष को 'महिलाओं के लिए आरक्षित कारों में बिलकुल यात्रा नहीं कर सकते हैं, जबकि महिलाओं को सामान्य या गैर-आरक्षित कारों में यात्रा करने की अनुमति होती है । हालांकि इन गाड़ियों में सुपर डेन्स क्रश लोड होता है फिर भी मुंबई के पुरुष - दिल्ली या काइरो में अपने समकक्षों के विपरीत इस आरक्षण का उल्लंघन नहीं करते हैं । पश्चिमी लाइन पर तीन सम्पूर्ण गाड़ियों को महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया है जो सुबह के अलग अलग समय पर क्रमश: विरार , भयन्दर और बोरीवली के लिए चर्चगेट के लिए बाध्य हैं और शाम में विपरीत दिशा की ओर चलती हैं । सेंट्रल लाइन पर केवल एक ही ऎसी ट्रैन है जो कल्याण से शुरू होती है।

(तिवारी इंडिया स्पेंड के साथ एक नीति विश्लेषक के रूप में कार्यरत हैं। उन्हें मुंबई में रहते हुए केवल एक ही वर्ष हुआ है लेकिन लोकल पर वह खुद को एक दिग्गज मानती हैं ।)

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