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नए जनगणना आंकड़ों के अनुसार, लगभग 17 लाख भारतीय बच्चोँ में से 6% बच्चे जो 10 से के 19 की उम्र के बीच में हैं शादीशुदा हैं और बहुत से अपने से कहीं बूढ़े व्यक्तियों के साथ।

वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों से इसमें 0.9 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई है।

शादी के लिए कानूनी उम्र 18 है, तो हो सकता है इसमें कुछ वयस्क भी शामिल हैं, लेकिन यह दोनों पक्ष वयस्क हों यह संभावना नहीं हो सकती है।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, इन विवाहित बच्चों में से, 76%, या 12.7 मिलियन, लड़कियां हैं। इस आयु वर्ग में केवल चार मिलियन लड़के शादीशुदा हैं जिससे यह तथ्य और मज़बूत होता है कि लड़कियाँ अधिक नुकसान में हैं।

2011 में अधिक संख्या में लडको की शादी हुई, लगभग 4 मिलियन जबकि 2001 में यह संख्या 3.4 मिलियन रही। लड़कियों के लिए यह संख्या स्थिर रही है।

10-19 की उम्र के बीच में शादी* करने वाले बच्चों की संख्या, राज्य अनुसार

Source: Census; *Married back in 2011

उत्तर प्रदेश बिहार में शादीशुदा बच्चों की संख्या (2.8 मिलियन) सबसे अधिक है इसके उपरांत बिहार और राजस्थानका नंबर है (दोनों में हर एक के पास 1.6 मिलियन)।

इंडिया स्पेंड ने पहले भी रिपोर्ट किया है कि भारत, महिलाओं में बाल विवाह के संदर्भ में शीर्ष 10 देशों में छठे स्थान पर है।

क्योंकि शादीशुदा लड़कों की संख्या लड़कियों की तुलना में बहुत कम है, इससे यह स्पष्ट है कि लड़कियाँ बूढ़े पुरुषों से शादी कर रही हैं।

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में 10-19 वर्ष के आयु वर्ग में 2 मिलियन विवाहित लड़कियाँ हैं; जहाँ (लड़कों व लड़कियों) इस आयु वर्ग में कुल 2.8 लाख शादियां हुई हैं, वहीँ इस समूह में कुल शादीशुदा लड़कियों की संख्या हैं । यह अन्य राज्यों के लिए भी यह संख्या एक ही है।

Source: Census; shapefile from Datameet; view raw data here

और बच्चे ही बच्चों को जन रहे हैं

10-19 वर्ष के आयु समूह में विवाहित जोड़ों से छह लाख बच्चे पैदा हुए थे। इन बच्चों में अधिकांशतः बच्चे लड़के (3 मिलियन) थे।

उत्तर प्रदेश में इन बच्चों से पैदा हुए बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है: 1 मिलियन

मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर छोटी उम्र में विवाह से बारीकी से जुडी हैं।

यूनिसेफ के एक अध्ययन से पता चलता है कि जल्द शादी शिक्षा प्राप्ति में बाधा बनती है जो खराब मातृ स्वास्थ्य और उच्च शिशु मृत्यु दर का कारण बन जाती है ।

कम उम्र में बच्चे पैदा करना मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यही कारण है कि बाल विवाह पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है इसके अलावा एक यह तथ्य भी है कि पुरुषों द्वारा कम उम्र में शादी करने की संभावना कम होती है।

भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (प्रति लाख जीवित जन्मों पर गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या) 2006 में 254 से गिर कर 2014 में 190 हुई है, लेकिन यह अभी भी अधिकांश अन्य देशों के अनुपात से अधिक है।

शिशु मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मों पर शिशु मौतों की संख्या) 2006 में 68 से कम हो कर 2014 में 56 हो गई है , लेकिन यह अभी भी बहुत अधिक है और मानव-विकास के लक्ष्यों से कम है।

Source: Lok Sabha; MMR data for several states are unavailable and been stated as 0.

उच्च बाल विवाह की दर वाले राज्यों में उच्च संख्या में मातृ और शिशु मृत्यु भी देखने को मिलती है ।

इसका एक अपवाद महाराष्ट्र है जहां बाल विवाह की दर उच्च है, लेकिन मातृ मृत्यु अनुपात, 68 पर ,कम बनी हुई है। जैसा कि इंडिया स्पेंड के रिपोर्ट में बताया गया है, इसका कारण वहां की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार भी हो सकता है।

वर्तमान में, विवाहित बच्चे भारत की शादीशुदा आबादी का 47% हिस्सा हैं।

35-39 वर्ष के आयु समूह में, शादीशुदा पुरुषों की संख्या, 40.2 मिलियन के साथ, सबसे अधिक थी, और 25-29 वर्ष की आयु वर्ग में, विवाहित महिलाओं की संख्या, 44.6 मिलियन के साथ, सबसे ज्यादा थी।

अद्यतन: यूनिसेफ के अध्ययन की एक कड़ी संशोधित की गई है।

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