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फ़रवरी २०१४ में दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के सामने अपने कैमरे के उपकरणों को सेट करता एक कैमरामैन |

गत 13 वर्षों से सलमान खान का “टक्कर मारो और भागो – H IT & R U N का आपराधिक केस न्यायायिक रूप से विचाराधीन चल रहा था | वह भारत के जिला और उससे नीचे की अदालतों में 18.5 मिल्यन आपराधिक और लंबित केसों में से एक रहा है और 50 वर्ष के बॉलीवुड स्टार सलमान खान केस, भारत में कुल 22.2 मिल्यन विचाराधीन कैदियों / केसों में से एक है |

भारत की कछुआ चाल से चल रही न्यायायिक प्रक्रिया बहुत से अन्य कारणों के अलावा अभियोजकों ( prosecutors) , न्यायाधीशों और न्यायालयों की भारी कमी से आक्रांत है – भारत की जेलों में नीदरलैंड्स और कज़ाकिस्तान देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा कैदी / केसेस न्यायायिक रूप से विचाराधीन बंद/ चल रहे हैं |

वर्ष 2013 तक अभियोजित विचाराधीन कैदियों के कुल केसों में से 85% मामले लंबित चले आ रहे हैं – नेशनल क्राइम रिकोर्ड्स बियूरो के आंकड़ों के अनुसार |

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सोर्स : नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स बियूरो : फिगर्स 1 अप्रैल 2014

भारतीय न्याय प्रक्रिया के मंदिर समझे जाने वाले सर्वोच्च न्यायालय से उच्च/ जिला और उसके नीचे काम करने वाले विभिन्न स्तर की न्यायायिक अदलतों में ढेर लगे लंबित वादों का एक चिंतनीय सिंघावलोकन नीचे चार्ट में देखें |

An Eternal Catch-Up Game
CourtsCases brought forwardFreshly institutedCases disposed ofCases pending at quarter-endCases pending as % of all cases in trial during quarter
Supreme Court (criminal)12211546652671241070.2
Supreme Court (criminal+civil)6433022549208196597075.9
High Courts (criminal)1023738176652166765103362686.1
High Courts (criminal+civil)4456412508727486115447902390.2
District and Subordinate Courts (criminal)18560764370435432664141899870485.3
District and subordinate courts (criminal+civil)26839032486661843448352736081486.3

सोर्स : उच्च न्यायालय न्यूज़: फिगर्स 1 अप्रैल 2014

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कुल लंबित केसों में से लगभग 19% आपराधिक मामलों से संबन्धित हैं | और 25% निर्णीत वादों के फैसले हैं |

भारत के उच्च न्यायालयों में कुल लंबित मामलों मे से 23% (लगभग 1 मिलियन ) आपराधिक कृत्यों से संबन्धित हैं , जब कि 6.9% निर्णीत वाद के आपराधिक मामलें हैं जिला और उससे नीचे उप-न्यायलाओं में कुल लंबित केसों में से 67% अपराध के मामलें हैं |

न्यायलाओं में नित्य नए मामलें / केसेस दर्ज होने के साथ ही साथ और पुराने ढेर लगे लंबित केसेस और उनके बाद निर्णीत वादों को पीछे छोड़ देते हूए – केसलोडस में वृद्धि कर देते हैं उदाहरण स्वरूप वर्ष 2014 की पहली तिमाही में सर्वोच्च न्यायालया में 5,466 केसेस दर्ज हूए हैं और 12,211 केसेस उसके पिछले वर्ष के थे , लेकिन केवल 5267 ही निर्णीत वादों में फैसला हो पाया |

भारत की न्याय प्रक्रिया क्षेत्र में प्रमुख जरूरत : काफी संख्या में नए न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ आवश्यक |

भारत में प्रति मिलियन (10 लाख) जनता के लिए केवल 15 न्यायाधीश उपलब्ध हैं जो कि विश्व स्तर पर न्यूनतम औसत है |

इंडियास्पेंड ने अपनी पूर्व रेपोर्ट्स में बताया है जैसा कि निम्न टेबल में अंकित आकडे प्रदर्शित कर रहें है- जिलों की निचली उप अदालतों में न्यायाधीसों के रिक्त पड़े पद, लंबित मामलों के समय पर सुनवाई न होने / तदनुरूप निर्णयों में बहुत देरी होने के पीछे मुख्य कारण है |

Understaffed and Under-strength
CourtSanctioned StrengthWorking StrengthVacanciesVacancies as % of sanc. strength
Supreme Court of India3125619.4
High Courts of India90664126529.2
District and Subordinate Courts1972615438428821.7

सोर्स : उच्च न्यायालय न्यूज़: फिगर्स 1 अप्रैल 2014

भारत के जिलों की निचली अदालतों में 22% (या 4,288 न्यायाधीश), उच्च न्यायालयों में 29% (256 जजेस) और सर्वोच्च न्यायालय में 19%(6 जजेस) की कमी है –यह आकडे अप्रैल 2014 तक के हैं – सुप्रीम कोर्ट न्यूज़ के अनुसार |

सोर्स : सर्वोच्च न्यायालय न्यूज़ | आंकड़े यहाँ देंखें

सोर्स : सर्वोच्च न्यायालय न्यूज़

भारतीय अदालतों में न्याय के प्रक्रिया में कछुआ चाल के होने का इन अदालतों में न्यायाधीशों के खाली पड़े रिक्त पदों से सीधा संबंध है | इसी तरह उच्च न्यायलाओं में अधिक संख्या में पड़े अनिर्णीत मामलों के पीछे भी हाइ कोर्ट जजेस की संख्या में काफी कमी है जैसा की निम्न आकडे प्रदर्शित करते हैं |

(साल्वे एक नीति विश्लेषक और इंडियास्पेंड में कार्यरत ।येडिसनल रिसर्च बाइ आद्य शर्मा और प्रतीक्ष वाडेकर|)


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