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हालांकि भारत में पाकिस्तान के मुकाबले काम करने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है (27 फीसदी एवं 25 फीसदी) लेकिन पाकिस्तान की श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी दर में वृद्धि हो रही है जबकि भारत में यह घट रही है। भारत के मुबाकले बांग्लादेश में काम करने वाली महिलाओं की प्रतिशत दो गुना अधिक है, जोकि महिलाओं के श्रम - शक्ति की भागीदारी के मामले में ब्रिक्स देशों में सबसे पीछे है ; जी -20 देशों के बीच यह नीचे से दूसरे स्थान पर है, सबसे नीचे साऊदी अरब है।

श्रम शक्ति में महिलाएं: भारत पड़ोसियों से पीछे

ऐसी स्थिति क्यों है? दक्षिण एशियाई संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, भारत में महिलाओं की स्थिति और काम पर किया गया हमारा विश्लेषण स्पष्ट विवरण प्रदान नहीं करता है। देशों में अक्सर आय बढ़ने पर एवं कम भुगतान वाले काम, विशेष कर कृषि, से महिलाओं के बाहर निकलने पर महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में कमी का अनुभव होता है। लेकिन आम तौर पर जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है एवं शिक्षा का स्तर बढ़ता है, अधिक से अधिक महिलाएं श्रम-शक्ति का हिस्सा बनती है।

अन्य विकासशील देशों से साक्ष्य के आधार पर, भारत की अर्थव्यवस्था बिंदु से परे है, जब बड़ी संख्या में महिलाओं की श्रम-शक्ति में प्रवेश करने की उम्मीद है। और यह कोई अकादमिक चिंता का विषय नहीं है – हाल के अनुमान के मुताबिक श्रम शक्ति की भागीदारी में भारत की लैंगिक अंतर को बंद करने से, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 27 फीसदी की शुद्ध वृद्धि हो सकती है।

लेकिन माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती संख्या के बावजूद, भारत की महिलाएं श्रम शक्ति से बाहर हो रही हैं। 2005 से, 25 मिलियन (या 250 लाख) से अधिक महिलाएं श्रम शक्ति से बाहर हुई हैं।

घर से बाहर काम करना, महिलाओं के लिए सकारात्मक सशक्तिकरण परिणामों की संख्या के साथ जुड़ा हुआ है। घरेलू स्तर पर , महिलाओं, जो श्रम शक्ति में भाग लेती हैं, बाद में शादी करती हैं एवं बच्चे होते हैं एवं उनके बच्चे स्कूलो में अधिक समय के लिए रहते हैं।

यदि गंभीर रुप से देखा जाए तो महिलाएं जो काम करती हैं उनके पास घर में निर्णय लेने की शक्ति अधिक होती है और वे अपनी सहयोगियों के साथ सुंयुक्त रुप से निर्णय लेती हैं। मध्यप्रदेश में हमने एक कार्य आयोजित किया, हमने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में भागीदारी एवं सशक्तिकरण के उच्चतर स्वयं रिपोर्ट के स्तर के बीच एक दस्तावेज़ तैयार किया है: जो महिलाएं मनरेगा में भागीदारी लेती हैं उन्होंने घरों में निर्णय लेने की शक्ति का उच्च स्तर के साथ-साथ कार्यक्रम में भाग न लेने वाली महिलाओं की तुलना में गतिशीलता के उच्च स्तर की भी रिपोर्ट की है।

वृहद स्तर पर, साक्ष्य है कि लैंगिक समानता (और अधिक विशेष रूप से, महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में हुई वृद्धि) आर्थिक विकास के लिए मजबूत योगदान देता है। फिर भी महिलाओं को काम के सभी पहलुओं पर भेदभाव और नुकसान का सामना करना पड़ता है। वे कम कमाती हैं, उनकी भागीदारी कम होती है, उनकी रोज़गार की स्थिति अधिक अस्थायी होती है एवं पुरुषों की तुलना में उनकी नौकरियों की गुणवत्ता कम होती है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं की उत्पादक क्षमता का 48 फीसदी अप्रयुक्त है।

भारत में काम करने वाली महिलाओं की संख्या क्यों कम है – एवं क्यों अधिक महिलाएं श्रम शक्ति से बाहर हो रही हैं – इस पर साक्ष्य सीमित है। एविडेंस फॉर पॉलिसी डीज़ाइन (EoPD) में किए गए एक रिसर्च में महिलाओं और भारत में काम के संबंध में पांच बातें सामने आई हैं:

1. महिलाएं काम करना चाहती हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के आंकड़ों बताते हैं कि 31 फीसदी महिलाएं जो अपना अधिकांश समय घरेलू कामों में लगाती हैं, वह किसी तरह का काम करना चाहती हैं। शिक्षित ग्रामीण महिलाएं जो काम करना चाहती हैं, उनका अनुपात और भी अधिक है: 50 फीसदी से अधिक महिलाएं अपने घरेलू काम से अलग एक नौकरी चाहती हैं। यदि सभी महिलाएं, जिन्होंने काम करने की इच्छा व्यक्त की है, वह काम करती हैं तो भारत में महिला श्रम शक्ति की भागीदारी दर (एफएलएफपीआर) में 21 प्रतिशत अंक (78 फीसदी) की वृद्धि होगी।

श्रम-शक्ति में महिलाएं

2. घर के पास की नौकरियां महिलाओं को आकर्षित करती हैं। हमने भोपाल के आसपास के क्षेत्रों में ग्रामीण, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले युवाओं का एक पायलट सर्वेक्षण किया है। हमारे अध्ययन में, 93 फीसदी बेरोज़गार युवा महिलाओं ने कहा कि वो ऐसी नौकरियां करेंगी को घर से कर सकें या फिर जो गांव के भीतर ही हो। राष्ट्रीय श्रम बाजार के विपरीत, पिछले पांच वर्षों में मनरेगा कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि देखी गई है, एवं अब पुरुषों (48 फीसदी) की तुलना में थोड़ी अधिक महिलाएं (52 फीसदी) कार्यरत हैं।

भारतीय शहरों में श्रम शक्ति में महिलाएं

3. सामाजिक मानदंड बदले जा सकते हैं, और व्यापक आर्थिक प्रवृत्तियां और सरकार की नीतियां हैं विचारार्थ विषय। ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड की पहल, महिलाओं शिक्षकों के लिए एक 50 फीसदी कोटा के साथ, 1980 के दशक में शुरू किया गया था। तब से, कृषि के बाद, महिलाओं को सबसे अधिक काम पर शिक्षा क्षेत्र में रखा जाता है।

4. मौजूदा पहल जैसे कि स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया एवं लिंग आधारित नए कोटा - पुलिस बल से कॉर्पोरेट बोर्डों तक - सकारात्मक परिवर्तन को प्रोत्साहित कर सकते हैं। लेकिन हमें कौशल प्रशिक्षण और नौकरी के समर्थन में निवेश करने की जरूरत है। आधे से अधिक महिलाएं जो नौकरी चाहती हैं, विशेष रुप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उनका कहना है कि नौकरी के लिए उनके पास पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं है। उदाहरण के लिए, चमड़े या वस्त्र निर्माण करना इत्यादि। इसके अलावा, जो अवसर उपलब्ध है, उनमें न्यायसंगत होने की जरूरत है। 2010 से 2012 तक, विनिर्माण श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी में 15 से 25 फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में लिंग वेतन अंतर अधिक देखा गया था - सेवाओं की तुलना में बहुत अधिक है। महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी और भलाई बढ़ाने के लिए, वर्तमान नीतियों को महिलाओं की ओर ध्यान देना होगा।

5. रोज़गार के लिए महिलाएं पलायन नहीं करती हैं एवं इसे समर्थित भी नहीं किया जाता है। EPoD के एक सर्वेक्षण में, 62 फीसदी बेरोज़गार युवा महिलाओं ने – 68 फीसदी बेरोज़गार युवा पुरुषों के समान – कहा कि नौकरी के लिए पलायन के संबंध में भी वह सोच सकती हैं। पलायन मुश्किल हैं, हालांकि, महिलाओं के कुछ विशेष चिंताएं हैं जिन्हें संबोधित करना चाहिए। नौकरी के लिए पलायान को तैयार होने की बात कहने के बावजूद , 32 फीसदी पुरुषों की तुलना में 69 फीसदी युवा महिलाओं ने बताया कि घर से दूर रहना असुरक्षित है (कौशल प्रशिक्षण के संदर्भ में)। और पुरुषों की तुलना में ऐसी महिलाएं अधिक पाई गई जो रोज़गार के लिए अपने ही ज़िले में पलायन के लिए तैयार हैं।

महिला श्रम-शक्ति भागीदारी एवं भारत में शिक्षा

महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रभावी रणनीति, ठीक से समझी नहीं जाती हैं। इन सवालों का जवाब पाने के लिए आगे रिसर्च की आवश्यकता है। श्रिंकिंग शक्ति नाम का एक कार्यक्रम में, जो नई दिल्ली में 7 मार्च को EPoD के रोहिणी पांडे और पत्रकार बरखा दत्त द्वारा, सह-आयोजित किया गया था, कई विद्वानों, नेताओं, अधिकारियों, पत्रकारों के साथ इन सवालों पर चर्चा की गई है। ऊपर बताए गए पांच बिंदुओं पर हम भविष्य में विस्तार से चर्चा करेंगे। भारत का 2030 तक, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होने के साथ, यह अपनी आधी श्रम-शक्ति को पीछ छोड़ देने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।

(पांडे पब्लिक पॉलिसी की मोहम्मद कमल प्रोफेसर एवं हार्वर्ड केनेडी स्कूल में एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन (EPoD) की सह- निर्देशक हैं। मूर EPoD भारत निदेशक हैं और शोध - नीति साझेदारी की विविधता पर काम करती हैं। जॉनसन EPoD की भारत कार्यक्रमों के प्रबंधन के लिए एक कार्यक्रम एसोसिएट है।)

लेख में एक त्रुटि को दूर करने के लिए संशोधित किया गया है। हमने कहा था कि बांग्लादेश में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत भारत की तुलना में तीन गुना अधिक है। सही आंकड़ा है - बांग्लादेश में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत भारत की तुलना में दो गुना अधिक है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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