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मुंबई: हाल ही में जारी 2018-वाटरएड रिपोर्ट के मुताबिक एक तरफ जहां भारत का स्थान उन देशों की सूची में शीर्ष रैंक पर है, जहां पानी तक पहुंच में सुधार हुआ है, वहीं दूसरी तरफ भारत में ऐसे लोगों की संख्या भी ज्यादा है, जिनके घर के पास स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है।

करीब 163.1 मिलियन लोगों को भारत में अपने घरों के पास स्वच्छ पानी की सुविधा नहीं है। यह आंकड़े इथियोपिया में इसी तरह प्रभावित हुए लोगों से ढाई गुना ज्यादा है। इथियोपिया सूचि में दूसरे स्थान पर है। इस सूचि में शीर्ष पांच देशों में अन्य देश नाइजीरिया, चीन और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं।

हालांकि वर्ष 2000 के बाद से, पानी तक पहुंच में सुधार करने वाले देशों में चीन के बाद भारत का स्थान है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 300.7 मिलियन लोगों तक पानी की पहुंच में सुधार हुआ है, जबकि चीन के लिए यह आंकड़े 334.2 मिलियन है।

यह रिपोर्ट विश्व जल दिवस से एक दिन पहले आया है, जो हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है।

2015 में, भारत में ऐसे लोगों की आबादी ज्यादा थी जिनके पास घर के पास स्वच्छ पानी की सुविधा नहीं है

विश्व स्तर पर, दुनिया की अनुमानित 89 फीसदी आबादी के घर में या घर के पास स्वच्छ पानी की सुविधा उपलब्ध है (2000 की तुलना में 81 फीसदी की वृद्धि ) जबकि 844 मिलियन लोगों को पानी की सुविधा के लिए अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है। वर्तमान में, दुनिया के करीब 60 फीसदी लोग जल-तनाव क्षेत्रों में रहते हैं।

नवीनतम आंकड़े उस वक्त आए हैं,जब वर्ष 2030 तक सभी को सुरक्षित पानी और स्वच्छता देने के लिए तैयार संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल लक्ष्य 6 की समीक्षा, 2018 गर्मियों के लिए निर्धारित है।

2000 से, चीन, भारत ने जल पहुंच प्रदान करने में सबसे अधिक सुधार दिखाया है

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की चुनौतियों में भूजल का गिरता स्तर, सूखा, कृषि और उद्योग की मांग का दबाव, प्रदूषण और बद्तर जल संसाधन प्रबंधन शामिल है।

भारत का अनुमान है कि 2025 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,341 घन मीटर होगी। जल संसाधन मंत्रालय द्वारा इस 2017 के मूल्यांकन के अनुसार 2050 में यह आगे 1,140 घन मीटर तक गिर सकता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 30 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। 2011 के दशक के अंत में, भारत में पानी की उपलब्धता 15 फीसदी कम हुई है।

प्रति व्यक्ति 1,700 क्यूबिक मीटर से कम की वार्षिक प्रति व्यक्ति उपलब्धता के साथ एक क्षेत्र को जल-तनाव क्षेत्र माना जाता है। भारत का पुनर्गठन ग्रामीण जल कार्यक्रम का लक्ष्य 2022 तक 90 फीसदी ग्रामीण घरों में पानी पहुंचाना है। वर्तमान में, केवल 56.3 फीसदी ग्रामीण आबादी के पास पाइप से पानी आपूर्ति है, जैसा कि जनवरी 2018 में राज्यसभा में सरकार की इस प्रतिक्रिया से पता चलता है।

विश्व में महिलाएं डेढ़ से दो महीने पानी जमा करने में करती हैं खर्च

पानी की पहुंच की व्यापक वैश्विक कमी के लिए संपत्ति, जातीयता, धर्म और सांस्कृतिक आचरण सहित कई असमानताओं को जिम्मेदार बताया गया है। पानी की कमी लिंग असमानता को बढ़ाता है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। पानी लाने की जिम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों पर ही होती है।

रिपोर्ट के मुताबिक चार सदस्यों के परिवार के लिए, 30 मीनट दूरी पर मौजूद स्रोत से 50 लीटर पानी रोजाना इकट्ठा करने वाली महिला ( प्रति व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र अनुशंसित मात्रा ) इस कार्य के लिए साल में ढाई महीने खर्च करती हैं। यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन फंड की ओर से 2016 में जारी इस प्रेस वक्तव्य के अनुसार, महिलाएं और लड़कियों ने रोजाना 200 मिलियन घंटों या 22,800 साल पानी जमा करने पर खर्च किया है।

भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस II) के मुताबिक, चार ग्रामीण घरों में से एक पानी के स्रोत तक पहुंचने के लिए आधे घंटे का समय खर्च करते है। इस सर्वेक्षण में 42,153 भारतीय घरों को शामिल किया गया था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 26 जून, 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

धन असमानताओं ने भी पानी की पहुंच में योगदान दिया। पाकिस्तान में, 79.2 फीसदी गरीब और 98 फीसदी सबसे अमीर लोगों के पास स्वच्छ पानी है। बांग्लादेश में, अंतर कम है। यहां 98.9 फीसदी सबसे अमीर और 93.2 फीसदी गरीब लोगों के पास साफ पानी की पहुंच है।

(पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 21 मार्च, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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