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नई दिल्ली: वर्ष 2014-15 में भारत में भूमि उपयोग में गिरावट के कारण सालाना आर्थिक नुकसान 3.17 लाख करोड़ रुपये (46.90 बिलियन डॉलर) के बराबर हुआ है, जो 2014-15 में देश के सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसदी है। यह जानकारी हाल ही में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।

दिल्ली स्थित वैचारिक संस्था, ‘द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ (टीईआरआई) द्वारा किए गए 2018 के अध्ययन के मुताबिक सरकार को भूमिसुधार की गति तेज करने की जरूरत है क्योंकि भूमि क्षरण की लागत 2030 में भूमिसुधार की लागत से बाहर हो जाएगी।

अध्ययन ने घाटे को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया: कृषि, रेंजेलैंड और जंगलों सहित भूमि के प्रकार से भूमि में ह्रास औऱ जब भूमि को एक से अधिक उत्पादक उपयोग में बदल दिया जाता है उससे हुआ नुकसान। अध्ययन के अनुसार, अनुमानित लागत का लगभग 82 फीसदी भूमि क्षरण के कारण है और भूमि उपयोग में बदलाव के कारण 18 फीसदी है।

भारत में 328.72 मिलियन हेक्टेयर का भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें से भूमि ह्रास 96.4 मिलियन हेक्टेयर, या 29.3 फीसदी भूमि क्षेत्र ( संयुक्त रुप से राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र ), जैसा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र द्वारा 2016 के अध्ययन में बताया गया है।

भूमि क्षरण और भूमि उपयोग में परिवर्तन से आर्थिक नुकसान, 2014-15

Economical Losses From Land Degradation And Change Of Land Use, 2014-15
CategoryAnnual Economic Costs Of Degradation (Rs crore)Loss (As % Of GDP)
Agricultural Loss72331.90.58
Loss Due To Degradation Of Rangelands12024.50.10
Loss Due To Forest Degradation175857.41.41
Total Due To Land Degradation260213.82.08
Loss Due To Land Use/Cover Change57525.20.46
Total Cost Of Land Degradation And Land Use Change3177392.54

Source: The Energy And Resource Institute

Note: Costs are according to 2014-15 prices

अध्ययन में कहा गया है कि मौजूदा पारिस्थितिक तंत्र की गिरावट बड़ी चिंता का विषय है। अध्ययन में आगे कहा गया है, "यह एक गंभीर चिंता है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि भारत 2030 में भूमि अवक्रमण-तटस्थ होना है, जहां जमीन में गिरावट में कोई वृद्धि भूमि पुनर्वास में समान लाभ से संतुलित होती है।"

कृषि क्षेत्र में घाटे का सबसे बड़ा कारण जल कटाव

जल कटाव, पवन कटाव, लवणता और वनस्पति के नुकसान के कारण कृषि क्षेत्र में घाटा करीब 72,000 करोड़ रुपये (10.68 अरब डॉलर) का हुआ है ( जो कि 2018-19 में 58,000 करोड़ रुपये (8.54 अरब डॉलर) के कृषि बजट से अधिक है ), जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।

पानी के माध्यम से मिट्टी के क्षरण के कारण उत्पादन घाटे कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा होता है।

भूमि ह्रास के कारण कृषि उत्पादन में घाटा

कृषि क्षेत्र के लिए अनुमानित नुकसान परिवर्तन विरोधी हैं, क्योंकि सभी फसलों के लिए नुकसान (यानी नकद फसलों को मिट्टी के कटाव के अनुमानों में शामिल नहीं किया गया है), क्षेत्रों (यानी जल कटाव केवल बारिश से भरे कृषि के लिए अनुमानित किया गया है), या निम्नीकरण (यानी नुकसान अध्ययन में कहा गया है कि जलरोधक शामिल नहीं हैं) की गणना नहीं की गई है।

2030 में भूमिसुधार की लागत भूमि ह्रास की लागत से ज्यादा

अध्ययन के मुताबिक भूमि क्षरण (अनुमानित 3.17 लाख करोड़ या 46.90 बिलियन रुपये) की अनुमानित वार्षिक लागत 2030 में भूमिसुधार की लागत से बाहर हो जाएगी।

अध्ययन ने 2030 में भूमि पुनर्वास लागत की परियोजना के लिए दो अलग-अलग समय-श्रृंखला का उपयोग करके दो परिदृश्यों को देखा है।

परिदृश्य 1 में, आठ साल (2003-11) के निम्नीकरण डेटा को लिया गया है, उसमें 2030 में पुनर्विचार की लागत 2.94 लाख करोड़ रुपये (43.37 बिलियन डॉलर) थी।

परिदृश्य 2 में, 16 साल (1995-2011) के लिए भूमि-निम्नीकरण डेटा को लिया गया है, उसमें पुनर्वास लागत 3.17 लाख करोड़ ( 46.70 बिलियन डॉलर) होने का अनुमान है, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के लिए भारत के मौजूदा संयुक्त बजट से 1.5 गुना अधिक है।

दो परिदृश्यों के तहत भूमि ह्रास का क्षेत्रफल 2030 तक क्रमश: 94.53 मिलियन हेक्टेयर और 106.15 मिलियन हेक्टेयर होने की संभावना है।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 1 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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