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भारतीय रेलवे को वर्ष 2018 में खराब 'जैव शौचालय' ( गिरावट को सक्रिय करने के लिए बैक्टीरिया जोड़ने ) को “रीचार्ज” करने के लिए 42 करोड़ रुपए में गोबर के 3,350 ट्रक लोड खरीदने की जरूरत है। 44.8 फीसदी गाड़ियों में 'जैव शौचालय' लगाया गया है और संसद के लिए राष्ट्रीय लेखा परीक्षक द्वारा जारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के अनुमान के अनुसार 2018 तक सभी ट्रेनों में विस्तार की उम्मीद है।

जैव शौचालय में , शौचालय सीट के नीचे लघु-स्तर के सीवेज-उपचार प्रणालियां लगी होती हैं। पानी और मीथेन के पीछे छोड़कर एक कंपोस्ट चैंबर में बैक्टीरिया मानव अवशेष को नष्ट करता है। इन जैव शौचालयों के बड़े पैमाने पर खराबी की जांच पर ‘नियंत्रक और महालेखा परीक्षक’ (सीएजी) की रिपोर्ट, हमारे नवंबर, 2017 के निष्कर्षों की ही बात करता है। कैग ने 25,000 शौचालयों में से 199,689 में खराबी पाई है।

कैग के निष्कर्षों के जवाब में रेल मंत्रालय ने कहा कि यह आलोचना ‘सही नहीं’ थीं और ‘यात्रियों द्वारा शौचालयों के दुरुपयोग के कारण कुछ समस्याएं उत्पन्न हुई थी।‘ 20 दिसंबर, 2017 को एक आधिकारिक नोट में कहा गया है कि "इन मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई की जा रही है।"

नोट में कहा गया है कि, "नवंबर 2011 तक, जैव-शौचालयों के प्रत्येक डिज़ाइन के प्रदर्शन के मुद्दों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया था। इसलिए, मंत्रालय ने फैसला (निजी निर्माताओं से बायो-शौचालयों की खरीद के लिए आदेश) लेने के लिए परीक्षण अवधि समाप्त होने तक इंतजार नहीं किया ।"

हमने नवंबर, 2017 के लेख में आईआईटी, मद्रास और आईआईटी, कानपुर के अध्ययन को उद्धृत किया है, जिसमें कहा गया है कि जैव-शौचालय ‘सेप्टिक टैंक’ से बेहतर नहीं थे, और जो पानी उन्होंने छोड़ा वह ‘कच्चे सीवेज’ से बेहतर नहीं थे।

19 दिसंबर, 2017 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक जैव-शौचालय में 60 लीटर ( या तीन बड़ी बाल्टी ) इनोकुलम और गोबर और पानी के मिश्रण की आवश्यकता होती है। यह इनोकुल्कम 3,980 टन मानव अवशेष को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू करता है, जो हर रोज रेल पटरियों पर रेलगाड़ियों द्वारा अनुपचारित छोड़ा जाता है।

जैव-शौचालय मूलतः एक रक्षा वैज्ञानिक द्वारा अंटार्कटिका में पाए गए जीवाणु के इस्तेमाल पर सामने आया था, जिन्होंने 2005 में इसे संवर्धित किया था और 10 साल बाद, इसके प्रयोग पर उन्हें पेटेंट मिला था। पिछले सात सालों यानी 2017 तक, 97,761 ऐसे शौचालय भारतीय रेल के नए कोचों में लगाए गए थे।

हालांकि 2007 में एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा ‘डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन’ (डीआरडीओ) द्वारा डिज़ाइन किए गए बुनियादी मॉडल में दोष का पता चला था। एक साक्षात्कार में, पैनल का नेतृत्व करने वाले आईआईटी के पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर विनोद तारे ने हमें बताया कि इन जैव शौचालयों को दो जगहों पर अप्रभावी पाया गया है। एक तो कुंभ मेला, जहां हर बारह वर्षों में नदी के तट पर हिंदू तीर्थयात्रियों का बड़े पैमाने पर तांता लगता है और दूसरा सियाचिन ग्लेशियर पर सेना के बेस कैंप में।

पैनल का दो साल का अध्ययन आईआईटी मद्रास में नवंबर 2017 में पूरा हुआ, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 23 नवंबर, 2017 की अपनी रिपोर्ट में बताया है। बाद में, रेलवे ने हमारी लेख का एक प्रत्युत्तर भेजा है ( आप यहां पढ़ सकते हैं ) और बाद में बताया कि वे हवाई जहाज-शैली के वैक्यूम शौचालयों की जांच कर रहे थे।

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे ने मई, 2016 में 680000 रुपए की लागत का 3,600 लीटर इनोक्यूल्कम खरीदा था। इस लागत के आधार पर, हम अनुमान लगाते हैं कि वर्तमान में 97,761 बायो-शौचालयों को रिचार्ज करने के लिए, रेलवे को 23.46 मिलियन लीटर या 3,350 ट्रक लोड गोबर की आवश्यकता होगी।

पर्याप्त बैक्टीरिया बनाने में रेलवे की असफलचा के साथ गोबर की खपत निजी क्षेत्र से 19 रुपए प्रति लीटर की जाएगी। रेलवे की एक कार्यशाला नागपुर में है ( प्रत्येक माह 30,000 लीटर बैक्टीरिया उत्पन्न करने के लिए एक स्थापित क्षमता के साथ ), लेकिन कपूरथला और पेराम्बुर में दो और सुविधाएं स्थापित करने के 2011 के प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

जैव शौचालय परियोजना के लिए धन या मानवशक्ति पर कोई स्पष्टता नहीं

रेल गाड़ियों में जैव शौचालय से संबंधित दो अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई स्पष्टता नहीं है। खरीद और निकासी मशीनों की स्थापना और हाइड्रोलिक लिफ्टों सहित अधिष्ठापन में शामिल बुनियादी ढांचा लागत और मानव शक्ति के प्रशिक्षण और तैनाती पर अनुमानित खर्च।

इसके अलावा, यदि सभी 54,506 रेल डिब्बों को बायो-शौचालयों के ऊपर वैक्यूम शौचालय लगाया जाए ( यह योजना बनाई जा रही है ) तो 10,900 करोड़ रुपए की अतिरिक्त लागत आएगी। वैक्यूम टॉयलेट यूनिट का वर्तमान बाजार मूल्य लगभग 200,000 रुपए है।

अतिरिक्त व्यय शायद सही हो सकता था यदि 24 साल में बनने वाला जैव शौचालय योजना कुशल होती। लेकिन कैग ने इसके प्रदर्शन के संबंध में चिंताओं को बढ़ा दिया है और इंडियास्पेंड की जांच के निष्कर्षों का समर्थन किया है।

कैग के मुताबिक जैव-शौचालयों में खामियां

समीक्षाधीन अवधि (2016-17) के लिए 25,000 शौचालयों के मूल्यांकन में, कैग ने 199,689 में दोष और कमियों का पता लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार यहां कुछ प्रमुख मुद्दे दिए गए हैं:

  • बेंगलुरु कोचिंग डिपो में सबसे ज्यादा समस्याएं (41,111) पाई गई हैं। इसके बाद गोरखपुर (24,495) और वाडीबंदर (22,521) का स्थान रहा है।
  • बेंगलुरु कोचिंग डेपोर्ट (98) में बायो-टॉयलेट की शिकायतें सबसे अधिक थीं। इसके बाद वाडी बनडेर (32), रामेश्वरम (28) और ग्वालियर (17) का स्थान रहा है।
  • चोकिंग के 102,792 उदाहरणों में, मार्च 2017 में 10,0 9 8 (10 फीसदी) मामले मिले
  • 25,080 जैव-शौचालयों में चोकिंग के 102,792 मामलों में से, सबसे ज्यादा (34 फीसदी) बेंगलुरु से सूचना मिली थी। इसका मतलब है कि एक जैव शौचालय एक साल में 83 बार चोक हुआ है।
  • 2015-16 से चोकिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में एक जैव-शौचालय वर्ष में चार बार चोक हुआ ।

इस्तेमाल की गई सामग्री और गुणवत्ता पर कैग की आलोचना

21 मई 2016 को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को लिखे एक ई-मेल में डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक वाई अशोक बाबू ने ‘नौकरशाहों और उद्योगपतियों के गठजोड़’ से उत्पन्न् अनियमितताओं पर ध्यान आकृष्ट कराया था। कैग की रिपोर्ट ने भी खरीदी गई सामग्री की "गुणवत्ता और मात्रा" के लिए रेलवे की आलोचना की गई है।

जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है, 9 फर्मों में से सात के खिलाफ शिकायतें लंबित थीं, जिसके साथ रेलवे बोर्ड ने आदेश दिए थे। ये हैं: एमएस जेएसएल लाइफ स्टाइल लिमिटेड, एमएस ओमैक्स ऑटो लिमिटेड, एमएस मोहन रेल कॉम्पोनेंट्स लिमिटेड, एमएस रेल फैब, एमएस अमित इंजीनियर्स, एमएस हिंदुस्तान फाइबर ग्लास वर्क्स और एमएस रेल टेक।

जुलाई 2017 में, रेलवे मंत्रालय ने अनिर्दिष्ट अवधि के लिए रेल अनुबंध के लिए विचार करने से तीन कंपनियों (एमएस रेल तकनीक, एमएस रेल फैब और एमएस हिंदुस्तान फाइबर) को रोक दिया था। मंत्रालय ने यह भी प्रस्तावित किया कि एक अन्य कंपनी एमएस मोहन रेल का अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा।

अपशिष्ट और बैक्टीरिया के परीक्षण में लापरवाही

कैग रिपोर्ट में पाया गया कि नौ रेलवे क्षेत्र के 12 कोचिंग डिपो ने जैव-शौचालयों के लिए वार्षिक रख-रखाव और परिचालन ठेके (एएमओसी) को अंतिम रूप नहीं दिया है।

रेल मंत्रालय ने कैग रिपोर्ट के जवाब में एक प्रेस नोट में कहा, "प्रदर्शन का मूल्यांकन एक निरंतर प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप अनुमोदित सूची से इसे जोड़ा या हटाया जा सकता है।" इसमें कहा गया है कि "सभी प्रमुख कोचिंग डिपो में अब एएमओसी अनुबंध था, जबकि यह धीरे-धीरे दूसरे डिपो तक बढ़ाया गया था"।

जैसा कि कैग ने पाया है, भारतीय रेलवे ने बायो-शौचालयों द्वारा जारी किए गए प्रदूषित क्षेत्रों के परीक्षण के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है। धनबाद कोचिंग डिपो में परीक्षण नहीं किया गया था और परीक्षण के लिए भेजे गए नमूनों के रिकॉर्ड और इन परीक्षणों के परिणाम पांच कोचिंग डिपो पर नहीं रखा गया है।

मुंबई में लोअर परेल कार्यशाला में, मई 2016 में 68,400 रुपए की लागत से खरीदी गई 18 ड्रम बैक्टीरिया उनकी शेल्फ लाइफ की अवधि समाप्त होने के बाद भी अप्रयुक्त रखा हुआ था।

वर्ष 2011 के बाद, रेलवे ने लगभग 80,000 बायो-शौचालयों की आपूर्ति, स्थापना और कमीशन के लिए थोक आदेश दिए थे। कैग ने इन इकाइयों के लिए ‘मानकीकृत डिजाइन’ के साथ आने के लिए रेलवे की आलोचना की है। यह परीक्षण के परिणाम से पहले सात विभिन्न प्रकारों का विश्लेषण से पहले नवंबर 2011 में 10,000 टैंकों के ‘बड़े पैमाने पर प्रसार’ की ओर इशारा करता है।

इससे पहले की रिपोर्टों में यह सुझाव दिया गया था कि इन शौचालयों के भूमि आधारित संस्करण असफल रहे हैं।

दो लेखों की श्रृंखला का यह पहला भाग है, जो मूलत: अंग्रेजी में 6 जनवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

(झा नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार है।)

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