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केंद्र सरकार के दो वर्ष पूरे होने के बावजूद, दो-तिहाई केंद्रीय सरकार मंत्रालयों द्वारा संसद में दिए गए “आश्वासनों” में 50 फीसदी से अधिक को लागू नहीं किया गया है। यह लोकसभा के आंकड़ों से पता चलता है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है कि,16 वीं लोकसभा के लिए दिए गए आश्वासनों में से 80 फीसदी लंबित थे; जो अब 2016 में 58 फीसदी रह गए हैं।

आश्वासन - सरकार द्वारा संसद में किए गए वादे – समाप्त नहीं होते

संसदीय सत्र के दौरान, सरकार रोज़ाना संसद सदस्यों के 250 सवालों का उत्तर देती है।

सवालों का उत्तर देते हुए या बिल, प्रस्तावों आदि पर बहस के दौरान, मंत्रियों द्वारा मुद्दे पर विचार करना एवं उचित कार्यवाही करने का विश्वास दिलाना ही आश्वासन कहलाता है।

संसदीय कार्य मंत्रालय और लोकसभा सचिवालय द्वारा संकलित इन आश्वासनों को संबंधीत संसदीय समिति को भेजा जाता है।

समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तीन महीने के भीतर आश्वासनों को लागू किया जाए । मंत्रालयों के सचिवों द्वारा हर हफ्ते या दो हफ्तों पर संसद को दिए गए आश्वासनों की समीक्षा करना अपेक्षित है।

जब लोकसभा भंग होती है तो आश्वासन अगली सरकार को हस्तांतरित किया जाता है।

2014 में पीएमओ द्वारा दिया गया एक आश्वासन अब तक पूरा नहीं

आठ मंत्रालयों ने संसद में दिए आश्वासनों में से 80 फीसदी पर कार्रवाई नहीं की है; तीन मंत्रालयों ने संसद में दिए गए आश्वासनों में से 75 फीसदी से अधिक को लागू किया है।

9 मंत्रालयों के 75 फीसदी आश्वासन लंबित

Source: Lok Sabha

16वीं लोकसभा को प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक आश्वासन दिया कि यह वर्ष 2013-14 के लिए मंत्रालयों के प्रदर्शन और मूल्यांकन प्रणाली की रिपोर्ट जारी करेगी और 2014 से अभी तक यह आश्वासन पूरा नहीं हुआ है।

प्रधानमंत्री कार्यालय से आश्वासन मिलने के बावजूद कि प्रणाली को मंजूरी दे दी गई है और मंत्रालयों की मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की जाएगी, वर्ष 2013-14 के लिए यह लागू नहीं हुआ है।

मंत्रालय अनुसार लंबित आश्वासन

इस संबंध में 83 फीसदी लंबित आश्वासन के साथ सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, 82 फीसदी के साथ अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, 75 फीसदी के साथ सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय अधिक पीछे नहीं हैं।

मंत्रालय अनुसार लंबित आश्वासन

गृह मंत्रालय द्वारा संसद में किए गए कम से कम 58 फीसदी आश्वासन – जिन्होंने दो आश्वासनों को विलोपन कर देने का अनुरोध किया है – लंबित हैं।

विलोपन गए आश्वासन में से एक तटीय पुलिस थानों (मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमले जिसका नतीजा थे) की स्थापना है। 2014 में गृह मंत्रालय ने कहा कि तटीय सुरक्षा योजना के चरण 2 को लागू करेगी। नवंबर 2015 में, यह आश्वासन को विलोपन का अनुरोध किया गया।

2014 से गृह मंत्रालय का एक लंबित आश्वासन संविधान के आठ अनुसूची में "आधिकारिक" स्थिति के लिए भाषा का चयन करने के लिए मानदंड के सृजन करना है। 22 आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल किए जाने के लिए कम से कम 38 भाषाएं गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।

गिराए गए या लंबित आश्वासन

नीचे दिए गए कुछ आश्वासन हैं जो मंत्रालय द्वारा लंबित या विलोपित किए गए हैं :

* सरोगेट मां और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) उद्योग के लिए भारत एक अनुकूल गंतव्य के रूप में उभरा है और सालाना 2,500 करोड़ रुपए (365 मिलियन डॉलर ) कारोबार में विकसित हुआ है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में होने वाले सरोगेट गर्भधारण, महिलाओं के शोषण का परिणाम हो सकता है। भारत में सरोगेसी को विनियमित करने के कानून का सरकार का आश्वासन 2014 से लंबित है।

* भारत की बिजली परियोजनाओं की सुस्त कार्यान्वयन से लागत में वृद्धि हो रही है। जब संसद सदस्य ने पूछा कि क्या परमाणु परियोजनओं को समय पर पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि है तो सरकार का जवाब था कि “समय सीमा के भीतर परियोजनाओं को पूरा करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं।” हालांकि, लोकसभा की वेबसाइट के अनुसार, इस आश्वासन को फरवरी 2016 में गिरा दिया गया है।

सबसे अधिक आश्वासन देता है कानून मंत्रालय, 27 फीसदी पूर्ण

16वीं लोकभा के दौरान सबसे अधिक आश्वासन, 146, विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वार दिए गए हैं, इनमें से 12 मई, 2016 तक 27 फीसदी पूर्ण हुए हैं।

मंत्रालय द्वारा आश्वासन, 16वां लोकसभा

Source: Lok Sabha

संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 129 आश्वासन दिए थे और 40 फीसदी लागू किया है; वित्त मंत्रालय ने 121 आश्वासनों में से 57.9 फीसदी लागू किया है; मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 113 आश्वासनों में से 35 फीसदी लागू किया है; रेल मंत्रालय ने 107 में 44 फीसदी आश्वासन पूरा किया है।

सबसे अधिक आश्वासन देने वाले मंत्रालय

सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति ने सरकार को कई आश्वासनों के लंबित होने पर फटकार लगाई है। कई आश्वासन तो दशकों से लंबित हैं। रिपोर्ट कहती है कि, “मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 17 आश्वासनों, क्रियान्वयन के लिए लंबित हैं और पहले के दो आश्वासन करीब एक दशक से लंबित हैं।”

(अग्रवाल और सिब्बल पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में फेलो थे। इन्होंने विधायी और नीतिगत मामलों पर संसद सदस्यों के साथ काम किया है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 26 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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