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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा 2016 में भारत में अपराध रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ कम से कम 39 मामलों की सूचना मिली है। हम बता दें कि 2007 में यह आंकड़े 21 थे।

2016 में, महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर ( प्रति 100,000 महिला आबादी पर होने वाला अपराध ) 55.2 दर्ज किया गया है। हम यहां यह भी बता दें कि 2012 में यह आंकड़े 41.7 थे।

महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में सबसे ज्यादा मामले "पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता" दर्ज की गई है। 2016 में दर्ज सभी अपराधों में 33 फीसदी हिस्सेदारी पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामले हैं।

महिलाओं के खिलाफ सभी अपराधों में 11 फीसदी हिस्सेदारी बलात्कार की है। हम बता दें कि 2016 में बलात्कार के 38, 947 या हर घंटे चार मामले दर्ज किए गए है।

साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ सजा दर (18.9 फीसदी) यानी जिन मामलों में अदालतों द्वारा परीक्षण पूरा किया गया, उन मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले मामलों का प्रतिशत, इस दशक में सबसे कम दर्ज की गई है।

पिछले दशक में भारत में महिलाओं के खिलाफ करीब 2.5 मिलियन अपराध दर्ज किए गए हैं। दर्ज किए गए महिलाओं के खिलाफ अपराध में मामलों में 83 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े 2007 में 185,312 से बढ़ कर 2016 में 338,954 दर्ज किए गए हैं।

महिलाओं के अधिकारों की वकील और महिलाओं और बच्चों को कानूनी सेवाएं प्रदान करने वाली गैर लाभकारी संस्था, मजलिस की सह-संस्थापक, फ्लाविया एग्नेस ने इंडियास्पेंड को बताया कि, "अपराध दर में वृद्धि से ज्यादा, दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।"

एग्नेस कहती हैं, “ऐसी घटनाओं के विश्लेषण के लिए कोई तंत्र नहीं हैं। मुझे लगता है कि कुछ बेरहम हिंसक घटनाओं पर मीडिया के दबाव के कारण, अधिक जागरूकता है, और महिलाओं को अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए आगे आ रहे हैं। ”

Source: National Crime Records Bureau 2016; Previous Publications
Note: Prior to 2012, the crime rate was calculated on the basis of the population of India and state/union territory. From 2012, it is calculated based on the female population (incidences of crimes against women/female population x 100,000 female population).

दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ उच्चतम अपराध दर दर्ज की गई

दिल्ली के केंद्रशासित प्रदेश में उच्चतम अपराध दर दर्ज की गई है। दिल्ली के लिए यह आंकड़े 160.4 है जबकि राष्ट्रीय औसत 55.2 दर्ज किया गया है। दिल्ली के बाद असम (131.3), ओड़िशा (84.5), तेलंगाना (83.7) और राजस्थान (78.3) का स्थान रहा है।

2016 में भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा ( 15 फीसदी ) मामले दर्ज किए गए हैं। 2016 में उत्तर प्रदेश के यह आंकड़े 49,262 या हर घंटे छह का रहा है। उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल (32,513), महाराष्ट्र (31,388), राजस्थान (27,422) और मध्यप्रदेश (26,604) का स्थान रहा है।

2016 में, दिल्ली शहर में महिलाओं के खिलाफ 13,803 अपराध या हर दिन 38 मामले दर्ज किए गए हैं और इस आंकड़े के साथ 2016 में 2 मिलियन से अधिक आबादी वाले 19 शहरों में सूची में दिल्ली टॉप पर है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 1 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

दिल्ली शहर का अपराध दर सबसे बद्तर रहा है। दिल्ली के लिए यह आंकड़े प्रति 100,000 महिलाओं पर 182.1 अपराध का दर रहा है जबकि राष्ट्रीय औसत 77.2 दर्ज किया गया है।

2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में पति / रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के सबसे सबसे ज्यादा मामले दर्ज

महिलाओं के खिलाफ अपराध में पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। 2016 में हुए सभी अपराधों में से 33 फीसदी हिस्सेदारी पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। 2016 में ऐसे 110,378 मामले या हर घंटे 13 मामले दर्ज किए गए हैं। इस तरह के दर्ज मामलों में 45 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2007 में ऐसे मामलों के लिए आंकड़े 75,930 थे।

पति / रिश्तेदारों के द्वारा क्रूरता के तहत दर्ज मामलों के बाद महिलाओं की शीलता भंग करने के इरादे से हमले (25 फीसदी), महिलाओं के अपहरण (19 फीसदी) और बलात्कार (11 फीसदी) के तहत मामले दर्ज हुए हैं।

2016 में, "पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता" के अधिकांश मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए हैं। राज्य के लिए यह आंकड़े 19,302 या हर घंटे दो मामले दर्ज किए गए हैं। 2016 में असम में अपराध दर (58.7) उच्चतम दर्ज की गई है जबकि राष्ट्रीय औसत 18 दर्ज किए गया है।

2016 में, महिला की शीलता भंग करने के इरादे से किए हमले के तहत कम से कम 84,746 या हर घंटे 10 मामले दर्ज हुए हैं।

2016 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं, करीब 11,396 या हर घंटे एक। अपराध दर के मामले दिल्ली सबसे बद्तर रहा है, 43.6 जबकि राष्ट्रीय औसत 13.8 दर्ज किया गया है।

'' महिला की शीलता भंग करने के इरादे से किए जाने वाले हमले” के तहत अधिक गंभीर अपराध जैसे कि यौन उत्पीड़न, पहृत करने के इरादे से महिलाओं को आपराधिक बल का प्रयोग, पीछा करना इत्यादी शामिल है।

उत्तर प्रदेश में महिलाओं के अपहरण के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं, करीब 12,994। जबकि देश भर में महिलाओं के अपहरण के 65,519 मामले दर्ज हुए हैं। 2016 में, दिल्ली में उच्चतम अपराध दर (40.7) दर्ज किया गया है।

2016 में हर घंटे चार बलात्कार मामले दर्ज, नौ साल पहले दो का था आंकड़ा

वर्ष 2016 में देश में हर घंटे चार बलात्कार मामले दर्ज किए गए हैं। हम बता दें कि इस संबंध में 2007 में आंकड़े 2 थे। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं, जबकि सिक्किम ने बलात्कार के लिए सबसे ज्यादा अपराध दर (30.3) दर्ज हुए हैं। राष्ट्रीय औसत 6.3 का रहा है।

बलात्कार के दर्ज करने के मामलों में 88 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2007 में जहां यह आंकड़े 2007 में 20,737 थे, वहीं 2016 में यह आंकड़े 38,947 दर्ज किए गए हैं।

2016 में 39,068 बलात्कार पीड़ितों में, 43 फीसदी 18 साल से कम उम्र की लड़कियां थी। 95 फीसदी दर्ज मामलों में अपराधी, पीड़ित का जानने वाला था।

इनमें से 29 फीसदी पड़ोसी थे, 27 फीसदी पीड़ित से शादी करने के वादे पर ज्ञात व्यक्ति थे जबकि 30 फीसदी अन्य ज्ञात व्यक्ति थे।

बलात्कार के मामले में, 2016 में 2 मिलियन से अधिक आबादी वाले 19 शहरों में सूची में दिल्ली टॉप पर है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 1 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

बलात्कार के लिए, अपराध दर के मामले में भी दिल्ली सबसे ऊपर है, प्रति 100,000 महिलाओं पर 26.3 मामले जबकि राष्ट्रीय औसत 9.1 का रहा है।

दशक में, महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए सजा दर सबसे कम

2016 में, महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए सजा दर 18.9 फीसदी रही है। जैसा कि हमने कहा 2007 के बाद से यह सबसे कम है।

Source: National Crime Records Bureau 2016; Previous Publications

पश्चिम बंगाल, जिसने 2016 में अपराधों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या दर्ज की है, वहां निम्न सजा दर (3.3 फीसदी) की सूचना दी है।

2016 में, मिजोरम ने उच्चतम सजा दर (88.8 फीसदी) की सूचना दी है। इसके बाद मेघालय (67.7 फीसदी), पुडुचेरी (62.5 फीसदी), उत्तर प्रदेश (52.6 फीसदी) और उत्तराखंड (46.2 फीसदी) का स्थान है।

2016 में, भारत में चार बलात्कार के मामलों में से एक को सजा मिली है। यह आंकड़े 2012 के बाद से सबसे कम है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 28 अगस्त, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

एग्नेस कहती हैं, "ज्यादा रिपोर्टिंग और निराशाजनक सजा दर महिलाओं के लिए आपदाओं का कारण बनता है।"

"इसका मतलब यह है कि सिस्टम में बड़े विश्वास के साथ, पीड़ितों और / या उनके रिश्तेदार अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए आगे आते हैं। कठोर आपराधिक मुकदमा चलाने के बाद, अगर अभियुक्त को दोषी ठहराया जाता है, तो पीड़िता को लगता है कि उसने न्याय हासिल कर लिया है। लेकिन जब उसे केस वापस लेना पड़ता है या फैसले प्रतिकूल होता है, तो शिकार को असफलता की भावना का अनुभव होता है और उसे कलंकित किया जाता है। "

एग्नेस ने कहा कि "पति या रिश्तेदारों के द्वारा क्रूरता" के मामलों में सजा कम है क्योंकि यदि जोड़ा आपसी सहमति के तहत तलाक के लिए फाइल करने का निर्णय लेते हैं तो आम तौर पर मांग होती है कि पत्नी को धारा 498 ए (धारा जो पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित है) के तहत दायर किया गया मामला वापस लेना चाहिए।"

वह आगे समझाती हैं कि, "इसका यह अर्थ नहीं है कि मामला झूठा था, लेकिन उसने इसे केवल बंद करने के लिए वापस ले लिया और अपने जीवन के साथ आगे बढ़ना चाहती हैं। मीडिया में हम जो पढ़ते हैं वह यह है कि महिलाएं झूठे मामले दर्ज करती हैं, इस तथ्य के बावजूद कि महिलाएं शादी में घरेलू हिंसा में उच्च स्तर का अनुभवकरती है। "

एग्नेस कहती हैं कि, सबसे ज्यादा आवश्यक पीड़ित-सहायता कार्यक्रम का है ताकि एक बार मामला दायर हो जाए, तो पीड़ितों को आपराधिक कानूनी प्रणाली का सामना करने के लिए समर्थन मिले।

"अगर यह किया जाता है, तो यह पीड़ित के लिए अकेली लड़ाई नहीं होगी। हमें कानून में एक प्रावधान की आवश्यकता है ताकि पीड़ित का समर्थन क़ानून में बनाया गया हो। तभी हम बदलाव देख सकते हैं जैसा कि अधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। "

( मल्लापुर विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।