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इस बार मानसून ने थोड़ी राहत दी । एक ओर इस साल कृषि क्षेत्र को अधिक राशि दी गई है। दूसरी ओर "सामान्य" मानसून रहा और राष्ट्र भर के प्रमुख जलाशयों में पर्याप्त पानी उपलब्ध है। ऐसे में उम्मीद है कि वर्ष 2016 में खरीफ (गर्मी) और रबी (सर्दी) फसलों की उपज बेहतर रहेगी। माना जा रहा है कि वर्ष 2016 में 270 मिलियन टन का उत्पादन हो सकता है। गौर हो कि यह सरकार के लक्ष्य से 2 फीसदी ज्यादा है।

आधिकारिक तौर पर इस सप्ताह दक्षिण पश्चिम मानसून समाप्त हो रहा है। कर्नाटक और गुजरात को छोड़कर अक्तूबर, वर्ष 2015 की तुलना में इस वर्ष राष्ट्र भर के 91 जलाशयों में 25 फीसदी अधिक पानी उपलब्ध है। कर्नाटक और गुजरात में मौसमी बारिश में 20 फीसदी से अधिक की कमी दर्ज की गई है। यह जानकारी केंद्रीय जल आयोग की ओर से जारी आंकड़ों से सामने आई है।

सरकार के प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, भारत 135 मिलियन टन खारीफ उत्पादन के लिए तैयार है। हालांकि सरकार की ओर से 132 मिलियन टन का लक्ष्य रखा गया था। इससे पहले अधिकतम उपज वर्ष 2011-12 में था और वह 131 मिलियन टन का था।

ऐसा माना जा रहा है कि भारत रबी फसलों के 137 मिलियन टन के लक्ष्य को भी पूरा करेगा। यह आंकड़ा 2013-14 में रहे अधिकतम उपज के आंकड़े से 10 लाख ज्यादा है।

अगस्त 2016 में इंडियास्पेंड ने बताया है कि जून-अगस्त की अवधि में भारत के एक-तिहाई जिलों में बारिश की कमी का सामना किया गया है। इस मामले में शोध करने वाले संस्थान ‘क्रिसिल’ द्वारा अक्टूबर 2016 में जारी ‘मानसून ग्रैन्यलर रिव्यू’ के अनुसार कर्नाटक और गुजरात को बारिश की कमी से सबसे अधिक नुकसान का सामना करना होगा। मानसून ग्रैन्यलर रिव्यू’ की रिपोर्ट कहती है कि ये दो राज्य तीन साल से बारिश की कमी एवं जर्जर सिंचाई व्यवस्थाओं की दोहरी मार झेल रहे हैं। इन दोनों राज्यों के 13 जिलों पर इस वर्ष मानसून की कमी का बदतर प्रभाव देखने को मिल रहा है।

कृषि को जीवनदान, लेकिन चूल्हे हो सकते हैं उदास

अपने देश में चार महीने का मानसून काल 4 फीसदी की सामान्य सीमा (+/-) के भीतर खत्म हुआ है। पिछले 100 साल का औसत आंकड़ा भी यही देखा गया है। जून से सितंबर महीने की अवधि के दौरान भारत में 97 फीसदी सामान्य वर्षा हुई है। इस हिसाब से बारिश की वास्तविक कमी मात्र 3 फीसदी थी। ये आंकड़े निश्चित रुप से मानसून की शुरुआत में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा की गई 6 फीसदी अधिक बारिश होने की भविष्यवाणी से अलग रहा है।

केंद्रीय जल आयोग द्वारा निगरानी रखे जाने वाले 91 प्रमुख जलाशयों में उनकी अपनी क्षमता का 75 फीसदी पानी है। यह पिछले 10 वर्षों के औसत उपलब्धता के बराबर है।

क्रिसिल की रिपोर्ट कहती है, “अखिल भारतीय खरीफ उत्पादन के मामले में कमजोर जिलों की हिस्सेदारी केवल 1.7 फीसदी ही है, लेकिन कृषि घरेलू आय पर इसका बोझ अधिक हो सकता है। इसकी वजह यह है कि कर्नाटक में खरीफ उपज की एक-चौथाई और गुजरात में एक तिहाई मात्रा ऐसे ही कमजोर जिलों से आती है।”

रिपोर्ट कहती है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और केरल में भी सामान्य से कम बारिश हुई है। कम बारिश के बाद मिलने वाली पर्याप्त सिंचाई सुविधा ही तय करेंगे कि इन राज्यों में कर्नाटक और गुजरात में कम उपज का प्रभाव पड़ेगा या नहीं।

वैसे कुछ राज्यों में कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए तो इस वर्ष भारत की कृषि अर्थव्यवस्था की तस्वीर सकारात्मक लग रही है। लेकिन इस अच्छी तस्वीर के लिए गर्मियों की फसल की बुआई का रकबा 107.1 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंचाने की जरूरत थी। यह तब संभव हो पाता अगर सितंबर अंत तक 102.5 मिलियन हेक्टेयर की औसत बुआई का रकबा हमारे पास होता।

2016-17 में रिकार्ड खाद्य उत्पादन

Source: 4th advanced estimates of agricultural production, ministry of agriculture, figures in million tonnes

Note: For 2015-16: 4th advanced estimates; for 2016 kharif: 1st advance estimate; for 2016 rabi production: set target; rest of the years: actual production.

खरीफ मौसम में दलहन उत्पादन 87 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया गया था। यह आंकड़े 2010-11 में हासिल किए गए 7.1 मिलियन टन की तुलना में 22 फीसदी और पिछले साल के 55 मिलियन टन की तुलना में 60 फीसदी से अधिक है।

इस वर्ष तिलहन उत्पादन 234 मिलियन टन होने की उम्मीद की जा रही है। यह संख्या 2013-14 में हुए अब तक के सबसे बेहतर उपज से 4 फीसदी अधिक है।

7 फीसदी अधिक क्षेत्र में बोया गया अनाज और तिलहन

Source: All India Crop Situation as on September 30, 2016, Ministry of Agriculture

सीमावर्ती क्षेत्रों में कमी, मध्य भारत में अधिकता

हर वर्ष मानसून का प्रदर्शन चाहे अच्छा (सामान्य से ऊपर) रहे या बुरा (सामान्य से नीचे) कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश होती और कुछ क्षेत्रों में कमी रहती है। 2016 के "सामान्य" मानसून में, आठ राज्यों में सामान्य से 85 फीसदी कम बारिश हुई है।

2013 में सामान्य मानसून में बिहार में 30 फीसदी और झारखंड में 23 फीसदी की कमी हुई थी। 2016 में भी मध्य भारत के अलावा, अन्य तीन क्षेत्रों, उत्तर-पश्चिम, दक्षिणी प्रायद्वीपीय और पूर्वी (पूर्वोत्तर सहित) इलाकों में जून-से-सितंबर की वर्षा में कमी दर्ज की गई है।

देश के 36 ‘मीटीऑरलाजिकल सब-डिविजन’ में से केवल चार में सामान्य से 20 फीसदी अधिक बारिश हुई है। सूखे से त्रस्त मराठवाड़ा और महाराष्ट्र में कोंकण के तटीय पट्टी में सामान्य से 22 फीसदी और 21 फीसदी अधिक बारिश हुई है, जबकि राजस्थान के पश्चिम और पूर्व के दो डिवीजन्स में सामान्य से 20 फीसदी और 32 फीसदी अधिक बारिश हुई है।

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आठ राज्यों को कवर करने वाले नौ डिवीजन्स में, जिनमें कर्नाटक का तटीय और दक्षिणी क्षेत्र, केरल, पूर्वी गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, असम और मेघालय आते हैं, सामान्य मानसून से 80 फीसदी कम वर्षा दर्ज की गई है। पूरे पूर्वी और मध्य भारत के कवर करने वाले 23 डिवीजन्स में सामान्य बारिश हुई है।

नकदी फसलों पर असर, पूर्वी राज्यों को लाभ

आईएमडी के पूर्वानुमान के अनुसार, उत्तर-पूर्वी मानसून या जिसे अंत का मानसून भी कहा जाता है,तमिलनाडु, दक्षिणी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में राहत देने के लिए तैयार है। कपास और गन्ना भारत के प्रमुख नकदी फसल हैं। इस मौसम में इन फसलों को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। इस बार कपास के सामान्य फसल क्षेत्र के 83 फीसदी रकबे में खेती की गई है और इसका उत्पादन वर्ष 2013-14 में हासिल की गई सबसे अच्छी पैदावार 360 लाख गांठ कपास की तुलना में 11 फीसदी कम होने की उम्मीद है।

इस बार गन्ने के सामान्य फसल क्षेत्र के 90 फीसदी हिस्से पर खेती की गई है। इस मौसम में वर्ष 2011-12 और वर्ष 2013-14 में 360 मिलियन टन गन्ने की पैदावार दर्ज की गई थी और इसे बेहतर माना गया था। माना जा रहा है कि इस वर्ष 2016 में इस आंकड़े का 82 82 फीसदी उपज संभव हो पाएगा।

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(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 अक्तूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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