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मध्यान्ह भोजन योजना के बावजूद, भारत के सबसे समृद्ध शहर में समृद्ध नगर निगम द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों के एक-तिहाई बच्चे कुपोषित हैं। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है। यहां यह जान लेना भी दिलचस्प है कि इस जानकारी का आधार निगम के आंकड़े हैं।

गवर्नन्स पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी संस्था ‘प्राजा फाउंडेशन’ द्वारा 30 मई 2017 को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में कुपोषण में चार गुना ज्यादा वृद्धि हुई है। ये आंकड़े वर्ष 2013-14 में 8 फीसदी थे। वर्ष 2015-16 में बढ़कर 34 फीसदी हुए हैं। हालांकि, शहर में मध्यान्ह भोजन योजना बजट के इस्तेमाल न होने का अनुपात बढ़ा है।

बृहणमुंबई म्यूंनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) के स्कूलों में आयोजित नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान कुपोषण का पता चला था।

प्राजा फाउंडेशन के संस्थापक और ट्रस्टी निताई मेहता कहते हैं, “ कुपोषण के मामले में यदि मुंबई में कई वार्ड उप-सहारा अफ्रीका से भी खराब हैं तो हम मुंबई से शंघाई की तुलना नहीं कर सकते हैं। ”

2016 ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट के अनुसार, कुपोषण और आहार अब विश्व में बीमारियों के लिए सबसे बड़े जोखिम वाले कारक हैं और वे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 फीसदी तक घाटे का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये आंकड़े 2008-10 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान हुए निरंतर नुकसान से अधिक हैं।

2015-16 के डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन(डीआईएसई) और बीएमसी आंकड़े के अनुसार, मुबंई के 10 लाख से अधिक बच्चों में से 36 फीसदी (383,485) बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं।

2015-16 में बीएमसी स्कूलों के बच्चों में से लगभग आधे-189,809- बच्चों का स्कूल स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच किया गया और इनमें से 64,681 बच्चे कुपोषित पाए गए । अधिकारियों का अनुमान है कि बीएमसी स्कूलों में 130,680 बच्चे कुपोषित हैं।

मुंबई नगरपालिका स्कूलों में कुपोषण

Malnutrition In Mumbai Municipal Schools
Parameter2013-142014-152015-16
BoysGirlsBoysGirlsBoysGirls
Total students201,965202,286199,033198,052192,652190,833
Screened students76,17580,83697,825103,77292,25897,551
Malnourished students4,9386,89326,17027,23830,45934,222
Malnourished students (In %)6%9%27%26%33%35%
Estimated malnourished students13,0921724953,24551,98563,60466,946

Source: Status of Malnutrition in Municipal Schools in Mumbai

डीआईईएस के मुताबिक स्कूलों में बच्चे कुपोषित हैं, हालांकि मुंबई महानगर और उसके उपनगरों में क्रमश: 83 फीसदी और 95.1 फीसदी सरकारी और अनुदानित स्कूलों में मिड-डे मील कार्यक्रम चल रहा है।

प्राजा फाउंडेशन के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर मिलिंद म्हस्के कहते हैं, “यह बच्चों के पोषण में सुधार लाने के उद्देश्य से आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवा) और अन्य योजनाओं की उपयोगिता पर गंभीर प्रश्न उठाता है। यदि स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में बच्चे कुपोषित हैं, तो इसका मतलब है कि योजनाओं की खामियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ”

लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक कुपोषित

वर्ष 2015-16 में 33 फीसदी लड़कों की तुलना में 35 फीसदी लड़कियां कुपोषित थीं। वर्ष 2014-15 में कुपोषण के मामले में लड़कियों का प्रतिशत 26 फीसदी और लड़कों का 6 फीसदी था।

नगर निगम के स्कूलों में वर्ष 2015-16 में कुपोषित बच्चों का उच्चतम अनुपात कक्षा 1 में पाया गया है। लड़कियों के लिए आंकड़े 42 फीसदी और लड़कों के लिए 43 फीसदी थे। ज्यदातर बच्चे आंगनवाड़ी से जुड़े हैं, जो आईसीडीएस के तहत चलते हैं । याद रहे, बच्चों के लिए यह दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 2015-16 से उपलब्ध नवीनतम स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में, मुंबई में पांच वर्ष की आयु के भीतर 25.5 फीसदी बच्चे स्टंड यानी आयु के अनुसार कम कद के थे । इसी दौरान 25.8 फीसदी बच्चे वेस्टेड यानी कद के अनुसार कम वजन के थे। यही नहीं, मुंबई उपनगर जिले में 21.3 फीसदी बच्चे स्टंड और 20.3 फीसदी बच्चे वेस्टेड थे।

बीएमसी कुपोषण के आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के बड़े होने के साथ उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं होता है।

दस्त के साथ कुपोषण में भी वृद्धि

प्राजा फाउंडेशन के अध्ययन के लेखकों के अनुसार, “बीएमसी स्कूलों में छात्रों के बीच कुपोषण की वृद्धि का संबंध मुंबई की स्वास्थ्य व्यवस्था में दर्ज दस्त के मामलों में वृद्धि से भी है।”

वर्ष 2016 में प्राजा में प्रकाशित स्वास्थ्य पर एक श्वेत पत्र के अनुसार दस्त के मामले वर्ष 2011-12 में 99,838 थे जो बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 119,342 हुए।

इसके अलावा, वर्ष 2015 में 29 फीसदी दस्त से मृत्यु के मामले 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से जुड़े थे।

उच्च कक्षाओं में कुपोषण के मामले ज्यादा

वर्ष 2015-16 में कक्षा 1 से 5 के बीच 73 फीसदी कुपोषित बच्चों का अनुमान लगाया गया है। ये आंकड़े निचली कक्षाओं से अधिक हैं।

वर्ष 2015 से 2016 तक एक साल में, कक्षा 1 में कुपोषित बच्चों की संख्या 3,123 से बढ़कर 10,802 हुई है, यानी 246 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कक्षा 5 में कुपोषित बच्चों की संख्या 2,591 से बढ़कर 10,562 हुई है, यानी 308 फीसदी की वृद्धि हुई है।

मानखुर्द और गोवंडी क्षेत्रों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक

वर्ष 2015-16 में पूर्वी उपनगर के मानखुर्द और गोवंडी के इलाकों सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चों की संख्या दर्ज की गई । इन इलाकों के लिए यह आंकड़ा 15,038 रहा है। यह क्षेत्र संयुक्त रुप से एम / ई वार्ड कहा जाता है, जहां 2009 के मुंबई मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में सबसे कम मानव विकास सूचकांक (0.05) है।

एम / ई वार्ड के बाद एच / ई (सांताक्रूज़) और एल (कुर्ला) का स्थान है। इन इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या क्रमश: 9,100 और 6,586 है।

धन की कोई कमी नहीं, फंड के इस्तेमाल में कमी

बच्चों में कुपोषण की दर जरूर बढ़ रही है। लेकिन इससे लड़ने के लिए फंड की कमी नहीं है।

वर्ष 2013-14 से वर्ष 2015-16 के बीच, कक्षा 1 से 5 के लिए मिड डे मील कार्यक्रम के लिए बजट अनुमान में 10.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह 29 करोड़ रुपए से बढ़ कर 32 करोड़ रुपए हुआ है। कक्षा 6 से 8 के लिए बजट अनुमान में 18 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह 33 करोड़ रुपए से बढ़ कर 39 करोड़ रुपए हुआ है।

लेकिन वर्ष 2013-14 से वर्ष 2015-16 के बीच कक्षा 1 से 5 तक के लिए इस्तेमाल किए गए बजट का अनुपात 81 फीसदी से गिरकर 65 फीसदी हुआ है । कक्षा 6 से 8 के लिए इस्तेमाल किए गए बजट का अनुपात 83 फीसदी से गिरकर 64 फीसदी हुआ है।

मिड डे मील बजट का इस्तेमाल, वर्ष 2013-16

Source: Status of Malnutrition in Municipal Schools in Mumbai

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 01 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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