गया: अगर यह उनके ऊपर होता, तो 23 साल की सरोजा देवी के तीन बच्चे नहीं होते। लेकिन यह फैसला उनका नहीं था। उनके पति गर्भ निरोधकों और सर्जिकल नसबंदी का विरोध करते हैं, और वह मानती है कि पति को वह मना नहीं कर पाती।

सरोजा देवी जैसी परिस्थिति, दक्षिण बिहार के एक जिले, गया की कई महिलाओं की है, जैसा कि इंडियास्पेंड के एक सर्वेक्षण से पता चलता है। इस सर्वेक्षण में प्रति बच्चों अनुसार भारत के सबसे जनन सक्षम, राज्य में परिवार नियोजन की लगातार विफलता का अध्ययन किया गया है। हमने सर्वेक्षण में पाया कि, 90 फीसदी से अधिक महिलाओं ने अपने पतियों के साथ परिवार नियोजन पर चर्चा की, लेकिन उनमें से केवल 18 फीसदी की ही अंतिम निर्णय में हिस्सेदारी थी।

बिहार के दक्षिणी जिले गया में, जहां सरोजा देवी रहती हैं, 2017 में विवाहित महिलाओं के बीच परिवार नियोजन की अतृप्त जरुरत 36.5 फीसदी थी, जैसा कि दिसंबर 2017 से अप्रैल 2018 के बीच किए गए 900 महिलाओं के हमारे सर्वेक्षण में पाया गया। 2015-16 में भारत की औसत अतृप्त जरुरत से यह 24 प्रतिशत अंक अधिक था। 2015-16 में यह आंकड़ा 12.9 फीसदी था। परिवार नियोजन के लिए बिहार की समग्र अतृप्त जरुरत 21.2 फीसदी है, जो भारत में तीसरा सबसे ज्यादा है।

3.4 के आंकड़ें पर,बिहार देश की उच्चतम प्रजनन दर की रिपोर्ट करता है, लेकिन अगर राज्य की सभी महिलाओं के केवल उतने बच्चे होते, जितनी वे चाहती हैं, तो यह दर प्रति महिला 2.5 हो सकती थी, जैसा कि 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) से पता चलता है।

अतृप्त जरुरत एक महिला के प्रजनन इरादों और उसके गर्भनिरोधक व्यवहार के बीच अंतर को प्रकट करता है। अंतर गर्भनिरोधकों तक पहुंच की कमी के कारण हो सकता है, लेकिन यह सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं को भी प्रतिबिंबित कर सकता है जो गर्भनिरोधक को मना करते हैं या महिलाओं को परिवार नियोजन के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति नहीं देते हैं।

इसमें, भारत के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य बिहार में परिवार नियोजन के उपायों की विफलता पर हमारी श्रृंखला का दूसरा और समापन हिस्सा है। हम गर्भनिरोधक के लिए अतृप्त जरूरतों के कारणों को देखेंगे। पहले भाग में, हमने निष्कर्ष निकाला कि हालांकि, 15-49 आयु वर्ग की 94 फीसदी यौन सक्रिय महिलाओं को अस्तित्व में कम से कम आठ गर्भनिरोधक विधियों में से एक पता था, वर्तमान में केवल पांच में से एक (20.1 फीसदी) किसी तरह के विधि का उपयोग कर रही थी।

एनएचएफएस -4 फैक्ट-शीट के अनुसार, बिना शिक्षा और सबसे गरीब परिवारों की महिलाओं को बिहार में सबसे ज्यादा कुल अतृप्त जरूरत है - क्रमशः 40.1 फीसदी और 40.6 फीसदी थी। 35 से 39 वर्ष के बीच की यौन सक्रिय महिलाओं की सबसे अधिक अतृप्त आवश्यकता थी - 42.5 फीसदी। कुल जन्म का लगभग 12.5 फीसदी ​​किशोर महिलाओं में हुआ, जो भारत में इस श्रेणी की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है।

निर्णय लेना ज्यादातर पुरुषों के हाथ

आमतौर पर, परिवार का छोटा आकार और वांछित प्रजनन क्षमता महिलाओं में स्वायत्तता के उच्च स्तर के साथ देखी जाती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अप्रैल 2017 की रिपोर्ट में बताया है। गर्भनिरोधक प्रसार की उच्च दर महिलाओं में अधिक पारस्परिक नियंत्रण के साथ दर्ज की गई और अधिक निर्णय लेने की शक्तियों वाली महिलाओं के बीच बाल मृत्यु दर कम देखी गई है।

हमने पाया कि सर्वेक्षण में शामिल, विवाहित महिलाओं के 4.8 फीसदी मामलों में पति अकेले ही आधुनिक गर्भनिरोधक उपयोग के बारे में निर्णय लेते हैं, 18 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अकेले ही चुनाव करती हैं। इन महिलाओं ने गर्भनिरोधक गोली के लिए प्राथमिकता दिखाई।

सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक महिलाओं (50.2 फीसदी) जिनकी उम्र 15-19 के बीच थी, उनके गर्भनिरोधक का उपयोग करने से पहले एक जीवित बच्चा था। शिक्षा के स्तर की परवाह किए बिना, अधिकतम प्रतिशत महिलाओं ने अपना पहला बच्चा होने के बाद अपनी पहली गर्भनिरोधक का उपयोग किया।

इसके अलावा, अवांछित गर्भधारण के कुछ मामलों में, महिलाएं आवश्यक देखभाल के बिना खराब परिस्थितियों में गर्भपात से गुजरती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं होती हैं।

चार बच्चों के साथ महिलाओं के बीच सबसे अतृप्त मांग

‘एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के 2018 के पेपर के अनुसार, बिहार में तीन में से एक महिला के एक बच्चे का जन्म बिना योजना के हुआ है। और तीन विवाहित महिलाओं में से केवल एक के पास परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुंच थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की मार्च 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य का स्वास्थ्य विभाग बिहार में लगभग 40 लाख जोड़ों को गर्भनिरोधक प्रदान करने में विफल रहा।

एनएफएचएस -4 के अनुसार, कुल अतृप्त जरुरत में से , 9.6 फीसदी अंतर के लिए था। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र परिवार नियोजन के आंकड़ों ने बिहार के आंकड़ों को 41 फीसदी पर रखा है, जो सभी भारतीय राज्यों में सबसे अधिक है।

इंडियास्पेंड द्वारा सर्वेक्षण की गई हर पांच अशिक्षित महिलाओं में से दो ने परिवार नियोजन के लिए आवश्यक जरुरत के बारे में बताया। सर्वेक्षण के समय वे विवाहित महिलाएं, जिनके पास बच्चे थे या नहीं थे, उन लोगों की जरुरत सबसे अधिक थी, जिनके पास चार (41 फीसदी) बच्चे थे।

गया में ग्रामीण विवाहित महिलाओं में, 36.5 फीसदी ने 2015-16 में परिवार नियोजन के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता व्यक्त की। 2012-13 में 31.9 फीसदी के आंकड़ों से यह करीब पांच प्रतिशत अंकों की वृद्धि है। अंतर के लिए अतृप्त जरुरत में 15-प्रतिशत-बिंदु वृद्धि हुई थी - 2012-13 में 11 फीसदी से 2015-16 में 27.6 फीसदी तक।

गया में 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं के बीच, परिवार नियोजन के लिए कुल अतृप्त जरुरत 2017 में 36.5 फीसदी थी, जो दस वर्षों के दौरान 32.6 फीसदी के आंकड़ों से ज्यादा है। शहरी (29.1 फीसदी) की तुलना में अधिक ग्रामीण महिलाओं (37.9 फीसदी) को परिवार नियोजन सहायता की आवश्यकता थी और यह उन्हें नहीं मिली थी।

गर्भनिरोधक तक पहुंच

गया में किए गए सर्वेक्षण में हमने पाया कि 75 फीसदी महिलाएं जो आपूर्ति-आधारित गर्भनिरोधक का उपयोग करती हैं, उन्होंने महसूस किया कि 2017 में दिन के हर समय सरकारी परिवार नियोजन सेवाएं उपलब्ध थीं। गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाओं में से 51.5 फीसदी ने वहां तक पहुंचने में 30 मिनट से कम की दूरी तय की।

आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग करने वाली गया की सभी महिलाओं में ( फार्मेसियों में गर्भ निरोधकों के लिए मुख्य स्रोत थे जैसे कि कॉपर ट्यूब- इन्ट्रयूटरिन डिवाइस, गर्भनिरोधक गोली और अन्य आधुनिक तरीके ) से 53.5 फीसदी ने उन्हें फार्मेसियों में खरीदना पसंद किया;18.5 फीसदी ने उन्हें स्वास्थ्य केंद्र से खरीदा। 10 में से सात ग्रामीण महिलाओं ने फार्मेसी में आधुनिक गर्भनिरोधक खरीदे; और शहरी महिलाओं ने स्वास्थ्य केंद्रों के लिए वरीयता (37 फीसदी) दिखाई।

15-44 आयु वर्ग की महिलाओं ने फार्मेसी से गर्भनिरोधक खरीदना पसंद किया, जबकि 45 वर्ष की आयु की तीन में से एक महिला ने अस्पतालों को चुना।

पांच अशिक्षित महिलाओं में से तीन से ज्यादा (62.5 फीसदी) ने फार्मेसियों के लिए चुना, लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता गया, वरीयता अस्पतालों या स्वास्थ्य केंद्रों की ओर गई। फार्मेसियों के लिए वरीयता 49 वर्ष की आयु तक जारी रही, जिसके आगे महिलाओं को अपने गर्भ निरोधकों को खरीदने के लिए अस्पतालों में जाना पसंद किया गया।

इंजेक्शन और नसबंदी

बिहार सरकार ने जुलाई 2018 में एक इंजेक्शन गर्भनिरोधक, अंतरा पेश किया,जो तीन महीने तक गर्भधारण को रोक सकता है। गर्भनिरोधक की अंतिम खुराक के 7-10 महीने बाद गर्भावस्था हो सकती है, जैसा कि सरकारी पर्चे से पता चलता है।

मुफ्त में दी जाने वाली, यह राज्य के हर स्वास्थ्य केंद्र को उपलब्ध कराया गया था। लेकिन ये गर्भनिरोधक विवादास्पद हैं - वे ऑस्टियोपोरोसिस, स्तन कैंसर और प्रजनन क्षमता में देरी सहित स्वास्थ्य के मुद्दों से जुड़े हुए हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

नवीनतम स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली के आंकड़ों के अनुसार, 2017-18 में गया में 257 महिलाओं को अंतरा गर्भनिरोधक की पहली खुराक मिली, जबकि 161 को उनकी चौथी खुराक मिली।

नसबंदी कराने वाली 50 फीसदी से अधिक महिलाओं ने इसे सरकारी अस्पताल के माध्यम से किया, जबकि 25 फीसदी ने निजी सुविधाओं को चुना।

2014 में, अस्वाभाविक परिस्थितियों के तहत किए गए नसबंदी के दौरान छत्तीसगढ़ में 13 महिलाओं की मौत के बाद से हाइजेनिक नसबंदी पर ध्यान दिया जाने लगा।

2017-18 में गया में महिला नसबंदी के बाद किसी भी मौत की सूचना नहीं है,लेकिन सर्जरी के बाद की जटिलताओं के 35 मामले थे, जैसा कि स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है। यह स्वास्थ्य सुविधाओं का समर्थन करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक डिजिटल पहल है।

गर्भनिरोधक स्रोत तक पहुंचने के लिए 30 मिनट से कम समय

गया में दो में से एक महिला, जो आपूर्ति-आधारित गर्भ निरोधकों का उपयोग कर रही थी, उन्होंने बताया उन्हें गर्भ निरोधकों के स्रोत तक पहुंचने के लिए 30 मिनट से कम समय की यात्रा करनी पड़ी, जबकि 32 फीसदी ने कहा कि उन्हें 30 से 59 मिनट का समय लगा।केवल 3.3 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें अपने गर्भनिरोधक आपूर्तिकर्ता तक पहुंचने में 2-3 घंटे लगते हैं।

यह बिहार की जनसंख्या संकट पर हमारी दो आलेखों की श्रृंखला का अंतिम भाग है। आप पहला भाग यहां पढ़ सकते हैं।

( दास ‘इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर-इंडिया’ में प्रोग्राम पॉलिसी मैनेजर हैं। उनके पास ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ से सामाजिक नीति में ‘मास्टर ऑफ रिसर्च’ की डिग्री और और ‘ससेक्स विश्वविद्यालय’ के ‘इंस्टूट ऑफ डेवलप्मेंट स्टडीज’ से डेवलप्मेंट स्टडीज में एमए की डिग्री है। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 24 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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